सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जगदलपुर के युवा "डॉक्टर चायवाला" की कहानी समाज को प्रेरित करने लगा है

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर में एक युवा की चर्चा आजकल जोरों पर है ।  चाय की गुमटी चलाने वाले इस युवा की कहानी कई युवाओं को, समाज को अब प्रेरित करने लगा है। दरअसल बेसहारा लोगों का सहारा बने इस युवा का नाम अशोक जायसवाल है जो महारानी अस्पताल के सामने चाय की गुमटी चलाते हैं। इनकी गुमटी का नाम "डॉक्टर चायवाला" है जो बस्तर में और बस्तर के बाहर भी काफी फेमस हो चुका है। हालांकि इस  युवा ने कोई डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं की है और ना ही डॉक्टरी की कोई डिग्री ली है, लेकिन सभी उसे डॉक्टर चायवाला के नाम से ही अब जानते हैं।


आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद अगर किसी मनुष्य में अच्छी नियत हो तो वह लोगों की मदद कर सकता है। ऐसा ही कुछ संदेश देने का काम अशोक जायसवाल कर रहे हैं। जगदलपुर में डॉक्टर चायवाला के नाम से फेमस अशोक जायसवाल आर्थिक रूप से कमजोर और बेसहारा लोगों को नि:शुल्क दवाइयां मुहैया करवाते हैं। इसके साथ ही उनके द्वारा अस्पताल में गरीब महिलाओं को प्रसव के बाद दूध और जरुरी चीजें भी नि:शुल्क मुहैया करवाई जाती हैं । अशोक जायसवाल ने हमें बातचीत में  बताया कि वे मुलतः प्रयाग राज के हैं और रोजी रोटी के सिलसिले में किस्मत उन्हें इस शहर तक खींच कर ले आयी है । जगदलपुर शहर के महारानी अस्पताल के सामने वे  2015 से अपनी चाय की गुमटी चला रहे हैं।

जरूरतमंदों की सही पहचान करने एवं उन्हें नि:शुल्क दवाई, दूध एवं गर्म पानी वितरित करने के लिए वे बाकायदा महारानी अस्पताल के डॉक्टरों से संपर्क करते हैं ।अपनी सीमित आय के बावजूद डॉक्टरों की सिफारिश पर अशोक जायसवाल गरीब और असहाय मरीजों को अपनी ओर से नि:शुल्क दवाई, दूध एवं गर्म जल पिछले कई सालों से मुहैया करवा रहे हैं।चाय की गुमटी से प्राप्त अपनी सीमित आमदनी में से हर माह 2 हजार रुपये निर्धन लोगों की मदद के लिए वे नियमित लगाते हैं और उनका कहना है कि उन्हें ऐसा करना बहुत अच्छा लगता है। 

अनुग्रह की ओर से रमेश शर्मा की डॉक्टर चायवाला से फोन पर एक लंबी बातचीत हुई है। इस बातचीत के बीच-बीच में कुछ प्रश्न हैं जो डॉक्टर चायवाला से पूछे गए हैं और डॉक्टर चायवाला ने उनका जवाब भी दिया है। यह एक दिलचस्प बातचीत है और इस तरह की बातचीत से ऐसे शख्स के जीवन के बारे में हमें जानकारी मिल रही है जिसके क्रियाकलापों से समाज को एक प्रेरणा मिल सकती है। इस बातचीत के अंश को आप नीचे यहां पढ़ सकते हैं-


■मैं रायगढ़ से रमेश शर्मा बोल रहा हूं ।

~"जी सर बोलिए!" 

■क्या मेरी बात डॉक्टर चायवाला से हो रही है?

~"हां सर बिल्कुल!" 

■आपके बारे में मैं बहुत जानता तो नहीं था पर उर्मिला आचार्य दीदी के फेसबुक वाल से आपके बारे में मुझे कल जानकारी मिली तो मुझे लगा कि आपसे बातचीत करनी चाहिए । आप व्यस्त तो होंगे पर क्या आपके पास 5-10 मिनट बातचीत के लिए है? 

~"हां सर बिल्कुल । अभी दोपहर का समय है तो उतनी व्यस्तता नहीं है। आपसे बात कर सकता हूं ।"

■आपका नाम अशोक जायसवाल है। मुझे बताइए कि यदि कोई "डॉक्टर चायवाला" कहकर पुकारे तो आपको ज्यादा अच्छा लगता है या अशोक जायसवाल के नाम से ही आप ज्यादा कंफर्ट फील करते हैं?

~"सर जब कोई "डॉक्टर चायवाला" कहकर पुकारता है मुझे, तो ज्यादा अच्छा लगता है।"

■डॉक्टर चायवाला मेरा आपसे एक सीधा सा सवाल है कि दुनिया में जब ज्यादातर लोग अपने लिए ज्यादा से ज्यादा धन संपत्ति बटोर लेना चाहते हैं, तब ऐसे में आपको नहीं लगता कि मैं भी अधिक से अधिक  बटोर लूं ?  मैं भी और थोड़ा अमीर बन जाऊं? मेरा भी अपना खुद का बिजनेस थोड़ा और बड़ा हो जाए?

~"सर तरक्की तो हर किसी को करनी चाहिए। मैं भी जीवन में तरक्की करना चाहता हूँ पर अपने लिए सबकुछ बटोर लेने की इच्छा मुझमें नहीं है।तरक्की कोई एकतरफा मसला नहीं है मेरी समझ से। मैंने जो गरीबी देखी है उससे मुझे लगता है कि मैं तरक्की इसलिए कर सकूं कि जीवन में किसी जरूरतमंद के काम आ सकूं।"

■डॉक्टर चायवाला आप अपने कम संसाधनों के बावजूद  हर महीने अस्पताल आने वाले अत्यंत गरीब , जरूरतमंदों के लिए दो से तीन हजार रूपये उनकी दवाईयों एवं दूध इत्यादि पर खर्च कर देते हैं । ऐसा करते हुए क्या आपको कभी लगा कि लोग मेरे बारे में जानें या मेरे यश में वृद्धि हो?

~"नहीं सर ऐसा मुझे कभी नहीं लगा। मेरी बचपन से यह सोच रही है कि आदमी तो अपने लिए ही जीवन जीता है , ऐसे में मैं हमेशा सोचता था कि मैं अपने जीवन में गरीब, जरूरतमंदों के कुछ काम आ सकूं। आज मेरी इनकम चालीस से पचास हजार के बीच है। मैं पिछले 10-12 सालों से जबकि मेरी इनकम दस से पंद्रह हजार हुआ करती थी तब से मैं लोगों की सहायता करते आ रहा हूं। मैं तो अपनी चाय की दुकान का बोर्ड भी बनवाना नहीं चाहता था पर दो साल पहले कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि अपनी दुकान का बोर्ड बनवा लीजिए। तब मैं बोर्ड बनवाया। बोर्ड बन जाने के बाद कुछ मीडिया के लोग आए और धीरे धीरे मेरे बारे में बहुत सी जानकारियां लोगों तक पहुंची।"

■आपका नाम डॉक्टर कैसे पड़ा इस बारे में थोड़ा बताइए?

~"सर मेरी नानी मुझे डॉक्टर बनाना चाहती थी और मुझे डॉक्टर कहकर ही पुकारती थी पर घर के आर्थिक हालात इतने बुरे थे कि ऐसा कर पाना बिल्कुल संभव नहीं हो सका। मेरी नानी के माध्यम से ही मेरा यह नामकरण हुआ था।"

■डॉक्टर चायवाला क्या आपको नहीं लगता कि हमारा समाज पहले से कहीं अधिक बीमार हो चुका है और उसकी नब्ज टटोलने वाले बहुत कम लोग रह गए हैं?

~"जी सर , ऐसा लगता तो है मुझे भी!"


■तब तो बीमार समाज को ठीक करने के लिए आप जैसा "डॉक्टर चायवाला" ही चाहिए जिससे प्रेरित होकर लोग सिर्फ अपने बारे में ही नहीं बल्कि समाज के बारे में भी सोचना शुरू करें। क्या आपको लगता है कि नानी की जो इच्छा थी आपको डॉक्टर बनाने की, उस डॉक्टर शब्द को आपने सार्थक किया है?

~"सर इस बारे में मैं क्या बताऊं । यह सब तो आप लोग ही तय कर सकते हैं । आप लोग ही इसके बारे में ज्यादा बता सकते हैं ।"

■आपकी शिक्षा दीक्षा कहां तक हुई है?

~"सर मैं ग्रेजुएट पास हूं"

■जगदलपुर के लोग आपको कैसे लगते हैं ?जगदलपुर शहर आपको कैसा लगता है?

~"सर मैं क्या बताऊं जगदलपुर के बारे में और यहां के लोगों के बारे में ! यह शहर मुझे बहुत अच्छा लगता है और इस शहर के लोग बहुत अच्छे हैं। वे मेरा बहुत सपोर्ट करते हैं। मैं तो मूलतः ऊत्तरप्रदेश का हूँ पर यहां आकर मुझे कभी नहीं लगा कि मैं कोई बाहर का व्यक्ति हूं।"

■कल को आप अगर ज्यादा पैसा कमा लें ,अमीर हो जाएं, तो समाज को लेकर क्या कोई और बड़ा सपना है आपके मन में?

~"सर मैं शिक्षा के क्षेत्र में कुछ काम करना चाहता हूं। मेरी इच्छा है कि एक लाइब्रेरी मैं कहीं बनवाऊं , जहां जरूरतमंद बच्चे आकर पढ़ सकें। शिक्षा से ही समाज में बदलाव आ सकता है । शिक्षा से ही लोगों की गरीबी दूर हो सकती है।"

■जब कभी आप किसी जरूरतमंद की सहायता करते हैं और उनकी ओर से आपको दुआएं मिलती हैं तब आपको कैसा अनुभव होता है?

~"सर इसके बारे में क्या बताऊं! बस इतना कह सकता हूं कि उस समय की खुशी से बढ़कर दुनिया में मेरे लिए और कोई दूसरी खुशी नहीं है। एक आत्मिक संतोष मिलता है कि चलो दुनिया में आए हैं तो किसी के काम तो आ सके।"

■मैं कभी जगदलपुर आऊं तो क्या आपसे मुलाकात हो पाएगी? क्या आप मुझसे मिलना चाहेंगे?

~"जी सर बिल्कुल आईए , आपसे मिलकर मुझे बहुत खुशी होगी।"

■डॉक्टर चायवाला आपसे बातचीत करते हुए मुझे खुशी हुई बहुत अच्छा लगा।

~"मुझे भी सर"

■डॉक्टर चायवाला बस जाते-जाते एक सवाल मेरा और है। कल महिला दिवस पर  आप जगदलपुर की प्रख्यात लेखिका एक्टिविस्ट उर्मिला आचार्य जी के घर उनका सम्मान करने गए थे। बिजनेस से जुड़े होने ,व्यस्त होने के बावजूद आपको यह ख्याल कैसे आया कि मुझे किसी महिला का सम्मान करना चाहिए । कोई भी व्यक्ति जो चेतना संपन्न हो वही यह सब कर सकता है। कृपया इस बारे में थोड़ा बताएं।

उर्मिला आचार्य जी का सम्मान करते हुए डॉक्टर चायवाला

~"सर मैं जब टीवी देख रहा था कल,  तो टीवी पर हमारे प्रधानमंत्री महिला दिवस पर महिलाओं का सम्मान कर रहे थे। मुझे भी लगा कि महिलाओं के लिए कुछ न कुछ करना चाहिए। मैंने इसकी चर्चा जब कुछ लोगों से की तो लोगों ने उर्मिला आचार्य जी के बारे में मुझे बताया। उनका नंबर लेकर फिर मैं उनसे संपर्क किया और उनके घर जाकर उनका सम्मान किया। ऐसा करते हुए मुझे बहुत खुशी भी हुई। समाज को महिलाओं के मान सम्मान का हमेशा ध्यान रखना भी चाहिए।" 

■चलिए कभी आपसे मुलाकात हो

~"जी! बहुत बहुत धन्यवाद सर!"

टिप्पणियाँ

  1. बेहतरीन समाज को सही दिशा दिखाने ऐसे ही डॉक्टर की जरूरत है जो बीमार हो चुके समाज का इलाज कर सके

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहान...

डॉ. चंद्रिका चौधरी की कहानी : घास की ज़मीन

  डॉ. चंद्रिका चौधरी हमारे छत्तीसगढ़ से हैं और बतौर सहायक प्राध्यापक सरायपाली छत्तीसगढ़ के एक शासकीय कॉलेज में हिंदी बिषय का अध्यापन करती हैं । कहानियों के पठन-पाठन में उनकी गहरी अभिरुचि है। खुशी की बात यह है कि उन्होंने कहानी लिखने की शुरुआत भी की है । हाल में उनकी एक कहानी ' घास की ज़मीन ' साहित्य अमृत के जुलाई 2023 अंक में प्रकाशित हुई है।उनकी कुछ और कहानियाँ प्रकाशन की कतार में हैं। उनकी लिखी इस शुरुआती कहानी के कई संवाद बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं । चाहे वह घास और जमीन के बीच रिश्तों के अंतर्संबंध के असंतुलन को लेकर हो , चाहे बसंत की विदाई के उपरांत विरह या दुःख में पेड़ों से पत्तों के पीले होकर झड़ जाने की बात हो , ये सभी संवाद एक स्त्री के परिवार और समाज के बीच रिश्तों के असंतुलन को ठीक ठीक ढंग से व्याख्यायित करते हैं। सवालों को लेकर एक स्त्री की चुप्पी ही जब उसकी भाषा बन जाती है तब सवालों के जवाब अपने आप उस चुप्पी में ध्वनित होने लगते हैं। इस कहानी में एक स्त्री की पीड़ा अव्यक्त रह जाते हुए भी पाठकों के सामने व्यक्त होने जैसी लगती है और यही इस कहानी की खूबी है। घटनाओ...

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ ■सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह चलो फिर से शुरू करें ■रमेश शर्मा  -------------------------------------- सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘चलो फिर से शुरू करें’ पाठकों तक पहुंचने के बाद चर्चा में है। संग्रह की कहानियाँ भारतीय अप्रवासी जीवन को जिस संवेदना और प्रतिबद्धता के साथ अभिव्यक्त करती हैं वह यहां उल्लेखनीय है। संग्रह की कहानियाँ अप्रवासी भारतीय जीवन के स्थूल और सूक्ष्म परिवेश को मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में बड़ी तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि उनके दृश्य आंखों के सामने बनते हुए दिखाई पड़ते हैं। हमें यहां रहकर लगता है कि विदेशों में ,  खासकर अमेरिका जैसे विकसित देशों में अप्रवासी भारतीय परिवार बहुत खुश और सुखी होते हैं,  पर सुधा जी अपनी कहानियों में इस धारणा को तोड़ती हुई नजर आती हैं। वास्तव में दुनिया के किसी भी कोने में जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन में सुख-दुख और संघर्ष का होना अवश्य संभावित है । वे अपनी कहानियों के माध्यम से वहां के जीवन की सच्चाइयों से हमें रूबरू करवात...

चक्रधर नगर स्कूल में जननायक रामकुमार जन्म शताब्दी वर्ष पर हुए शैक्षिक प्रतियोगिताओं के आयोजन

चक्रधर नगर स्कूल में जननायक रामकुमार जन्म शताब्दी वर्ष पर हुए शैक्षिक प्रतियोगिताओं के आयोजन ।  विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चे हुए पुरस्कृत रायगढ़। 16 दिसम्बर। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व विधायक रामकुमार की स्मृति में उनके जन्म शताब्दी वर्ष पर शहर के अनेक संस्थानों में आयोजन हो रहे हैं। इसी कड़ी में जन्म शताब्दी आयोजन समिति के सहयोग से स्वामी आत्मानन्द शासकीय उ मा वि चक्रधरनगर में भी बच्चों के लिए स्लोगन,निबंध एवं भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। इन प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चों को पुरस्कृत करने के लिए सोमवार 16 दिसम्बर को स्कूल में एक गरिमामय आयोजन सम्पन्न हुआ ।  मुख्य अतिथि नगर निगम पार्षद पंकज कंकरवाल, विशिष्ट अतिथि नगर निगम पार्षद कौशलेश मिश्र , वरिष्ठ रंगकर्मी अनुपम पाल एवं पूर्व विधायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकुमार के परिवार से सुनील कुमार अग्रवाल की उपस्थिति में बच्चों ने अपनी स्पीच कला का बखूबी प्रदर्शन किया। स्लोगन प्रतियोगिता अंतर्गत कनिष्ठ वर्ग में शगुफ्ताह  प्रथम,नन्दिता मेहर द्वितीय एवं रितिका पाऊले तृतीय स्थान पर रहीं।क्षमा देवांगन को ...

दिव्या विजय की कहानी: महानगर में एक रात, सरिता कुमारी की कहानी ज़मीर से गुजरने का अनुभव

■विश्वसनीयता का महासंकट और शक तथा संदेह में घिरा जीवन  कथादेश नवम्बर 2019 में प्रकाशित दिव्या विजय की एक कहानी है "महानगर में एक रात" । दिव्या विजय की इस कहानी पर संपादकीय में सुभाष पंत जी ने कुछ बातें कही हैं । वे लिखते हैं - "महानगर में एक रात इतनी आतंकित करने वाली कहानी है कि कहानी पढ़ लेने के बाद भी उसका आतंक आत्मा में अमिट स्याही से लिखा रह जाता है।  यह कहानी सोचने के लिए बाध्य करती है कि हम कैसे सभ्य संसार का निर्माण कर रहे जिसमें आधी आबादी कितने संशय भय असुरक्षा और संत्रास में जीने के लिए विवश है । कहानी की नायिका अनन्या महानगर की रात में टैक्सी में अकेले यात्रा करते हुए बेहद डरी हुई है और इस दौरान एक्सीडेंट में वह बेहोश हो जाती है। होश में आने पर वह मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान है कि कहीं उसके साथ बेहोशी की अवस्था में कुछ गलत तो नहीं हो गया और अंत में जब वह अपनी चिंता अपने पति के साथ साझा करती है तो कहानी की एक और परत खुलती है और पुरुष मानसिकता के तार झनझनाने लगते हैं । जिस शक और संदेह से वह गुजरती रही अब उस शक और संदेह की गिरफ्त में उसका वह पति है जो उसे बहुत प्...