इस कहानी पर हरियश राय जी अपनी टिप्पणी में लिखते हैं - ‘ परिकथा ’ के सितम्बर-अक्टूबर 2020 अंक में प्रकाशित रमेश शर्मा की कहानी ‘ रिजवान तुम अपना नोट बुक लेने कब आओगे ‘ कोरोना काल के संदर्भों पर लिखी गई एक विशिष्ट कहानी है। इस कहानी में रमेश शर्मा ने कोरोना काल में मजदूरों का पलायन और उस पलायन से उपजे दुःख को मानवीयता के साथ देखने की कोशिश की है। इस काल में पलायन से उपजे भयावह सन्दर्भों को एक छोटी लड़की की नजर से देखते हुए कहानी सरकार के प्रति एक नफरत का भाव पैदा करती है। देश बंदी के निर्णय के कारण लोगों के जीवन में अफरा-तफरी मची और आजीविका का संकट उनके सामने आ गया और उनके बीच से गुजरती हुई कहानी उनकी बेबसी को रेखांकित करती है। कहानी में एक फ्रीलांस रिपोर्टर , टाट से घिरी झोंपड़ी नुमा गुमटी में बैठकर भूली बिसरी बातों को याद करने की कोशिश करती है। वह झोपड़ी एक चाय बेचने वाले बाबा की है। वह बाबा अखबार उसके सामने रख देता है , जिसमें लिखा है कि ‘ समय के भीतर हाहाकार मचाता यह कैसा रुदन है कि कोई किसी का दर्द बांटने के लिए उससे बात भी न करे। ’ अखबार पढ़कर उसे लगता