यूथ और गांधी के बीच का राजनैतिक परिदृश्य यूथ को गांधी के निकट ले जाने की कोशिश के किसी भी उपक्रम में विभिन्न दिशाओं से यह सवाल खड़ा होने लगता है कि गांधी राजनीतिज्ञ हैं या नहीं? यूथ को गांधी से आखिर किस तरह जोड़ा जा सकता है? राजनीति कोई अस्पृश्य बिषय नहीं है । कोई दो राय नहीं कि विचारों के दायरे में हर आदमी राजनीति की परिधि से बाहर भी नहीं है। जो कोई मतदान करने जाता है , किसी न किसी दल को अपना समर्थन देता ही है। यहां यह समझना होगा कि उसका समर्थन कई बार परिस्थिति जन्य होता है। लोकहित में, जिसे वह उचित समझता है उस वक्त समर्थन कर देता है। उसकी पक्षधरता यहां किसी राजनीतिक खांचे में कैद न होकर अपने विचारों के भीतर कैद होती है। किसी व्यक्ति के इस आचरण को राजनीति के दायरे में लाकर परिभाषित करना न्यायसंगत होगा, मुझे ऐसा नहीं लगता। व्यक्तिवादी राजनीति की परिभाषा उस जगह अधिक सुसंगत लगती है जब व्यक्ति अपने विचारों की कैद से मुक्त होकर या अपने स्वयं के विचारों से मुक्त होकर एक पक्ष तय करके दृढ़ता से खड़ा नज़र आता है। आम आदमी जो चेतना और विवेक के स्तर पर अपनी जगह दृढ़ है , उसकी पहली प्राथमिकता राजनीतिक