सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गांधी पर केंद्रित कुछ कविताएँ - रमेश शर्मा

गांधी पर केंद्रित रमेश शर्मा की कुछ कविताएँ



आज गांधी जयंती है । गांधी के नाम को लेकर हर तरफ एक शोर सा उठ रहा है । पर क्या गांधी सचमुच अपनी नीति और सिद्धांतों के स्वरूप और प्रतिफलन में राजनीति , समाज और आदमी की दुनियाँ में अब भी मौजूद हैं ? हैं भी अगर तो किस तरह और  किस अनुपात में ? कहीं गांधी अब एक शो-केस मॉडल की तरह तो नहीं हो गए हैं कि उन्हें दिखाया तो जाए पर उनके बताए मार्गों पर चलने से किसी तरह बचा जाए ? ये ऐसे प्रश्न हैं जो इसी शोर शराबे के बीच से उठते हैं । शोर इतना ज्यादा है कि ये सवाल कहीं गुम होने लगते हैं। सवालों के ऊत्तर ढूंढ़तीं इन कविताओं को पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया भी ब्लॉग पर ही टिप्पणी के माध्यम से व्यक्त करें-- 


१.

हर आदमी के भीतर एक गांधी रहता था कभी 

---------------    

एक छाया की तरह है वह

तुम चलोगे तो आगे जाएगा 

पकड़ने की हर कोशिशों की 

परिधि के बाहर !


बाहर खोजने-पकड़ने से अच्छा है 

खोजो भीतर उसे

तुम्हारी दुनियाँ के 

किसी कोने में मिल जाए

दबा सहमा हुआ मरणासन्न !


कहते हैं 

हर आदमी के भीतर 

एक गांधी रहता था कभी

किसी के भीतर का मर चुका अब

तो किसी के भीतर 

पड़ा हुआ है मरणासन्न !


गांधी-गांधी जपने के शोर में

डूब रही दुनियाँ

यह तो भटकना हुआ साफ साफ

या हुआ अन्धेरे में धकेलना 

इस दुनियाँ को !


जपने से पहले

जिंदा करो

अपने भीतर उस गांधी को

जो मरणासन्न है 

तुम्हारी अपनी दुनियाँ में !


नहीं कर सकते 

फिर तो तुम्हारी गांधीगिरी

बस एक छाया है

कहते हैं छाया भी एक धोखे की तरह है 

जो दिखाई तो देती है

पर पकड़ में नहीं आती कभी !


२.

गांधी को छुए बिना 

----------------------------

गांधी रहेंगे

हमेशा रहेंगे

अपने उपयोग होने की 

खबर से बेखबर 

वे रहेंगे हमेशा दुनियाँ में !


उन पर खूब होंगी बातें 

उन्हें मानने के लिए नहीं

बस उन्हें जानने के लिए

कि वे ऐसे थे

उन्होंने जिया इस तरह जीवन !


सबने रख लिया है गांधी को 

एक कागज की तरह

अपनी अपनी जेबों में 

धर लिया है जुबान पर उन्हें

कि समय बेसमय निकालकर उन्हें

रखा जा सके

भागती पीढ़ी के सामने

दिखाया जा सके 

कि देखो 

गांधी की घुट्टी को 

किस तरह घोलकर 

पी लिया हमने !


यह समय है

गांधी के जीवन को छुए बिना

गांधी को जानने का

अपने अपने तरीकों से 

उन्हें पहचानने का !


रोज जंगल कट रहे

हो रही हत्याएं रोज

बेदखल हो रहे आदिवासी जंगलों से

कूड़े में बदल रही दुनियाँ रोज

गांधी की आत्मा को 

छलनी करने के तरीकों से 

भर उठा है यह समय !


जुबान में ही सही 

इन मुद्दों को छूना

गांधी को छूने की तरह होता

पर बिना छुए भी

चर्चा जारी है इनदिनों !


कितना दुखद है

कि यह समय गांधी को छूने का नहीं

उन पर चर्चा करने

और खुद चर्चा में बने रहने का समय है !


३.

एक गांधी के बिना 

-----------------------

अहिंसा का रास्ता बहुत कठिन है 

उससे भी कठिन है

सत्य को किसी आदमी में खोज पाना 

 

हम कठिन दिनों की यात्रा पर हैं 


झूठ के कंकड़ 

और हिंसा के कांटे 

हर कदम पर चुभ रहे


जैसे झूठ और हिंसा की कहानियों से 

भर उठा है यह समय 

जिनकी अट्टहास करती आवाजें 

कदमों को रोक रहीं हर घड़ी !


कौन है 

जो बचा ले जाएगा हमें 

कौन है 

जिसके सहारे हमारी यात्राएँ पूरी हो सकेंगी 


कोई तो नहीं 

तुम्हारे जैसा आसपास 

इस सदी की सरहदों में समाया हुआ 


हम कितने असहाय हो गए हैं इनदिनों !


कितना अच्छा हो 

कि इस समय की धरती पर 

तुम्हारे पदचापों की आवाज 

फिर से सुनाई देने लगें 

जिन्हें सुनने को हम तरस रहे हैं !


क्या तुम लौटोगे फिर से इस समय में 

अपनी धोती और लाठी के साथ ?


सचमुच 

कितना अधूरा है यह देश  

एक गांधी के बिना !


४.

ऐसा लगना ही गांधी का हमारे आसपास होना है

--------------------------------

मुझे ऐसा क्यों लगता है

कि कुछ लोग होंगे जो 

लालच को किसी बीहड़ में तड़प कर मरने को 

छोड़ आए होंगें !


कुछ लोग होंगे 

जिनके जीवन की गाड़ी इस समय की धरती पर

अल्प जरूरतों और कम संसाधनों के बीच 

आज भी सरपट दौड़ रही होगी !


कुछ लोग होंगे 

जिनकी आंखों में हर आदमी के लहु का रंग 

दिखता होगा एक जैसा ही !


कुछ लोग होंगे 

जिनके लिए हर दिल के दरवाजे प्रेम से खुलते होंगे 

और बेरोकटोक वे कर लेते होंगे अपनी रोज की यात्राएं !


कुछ लोग होंगे 

जो खुद से ज्यादा जीते होंगे दूसरों के लिए 

और ऐसा जीना भरपूर जीने की तरह लगता होगा उन्हें !


चैन की नींद सोते या जागते न जाने क्यों 

अक्सर ऐसा लगता है मुझे

कि ऐसे कुछ लोगों की उपस्थिति ही 

हमारे समय की घड़ियों को गतिमान किए हुए है !


किसी सुबह जब आप जागते हैं 

और किसी हिंसा की खबर के बिना 

आपका दिन बीत जाता है शुभ शुभ

तो क्या आपको भी ऐसा नही लगता 

कि दुनियां कितनी खूबसूरत है ?

ऐसा लगने को हर दिन हर जगह तलाशिए 

ऐसा लगना ही तो शायद 

गांधी का हमारे आस पास होना है ! 


मो.7722975017


                   

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

चित्रकला प्रतियोगिता में सेंट टेरेसा स्कूल रायगढ़ के कक्षा सातवीं के छात्र आयुष साहू को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। पुरस्कार स्वरूप उन्हें 50,000 पचास हजार रूपये का चेक प्रदान किया गया।

रायगढ़ ।  केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय भारत सरकार की देखरेख में ऊर्जा संरक्षण राज्य स्तरीय चित्रकला प्रतियोगिता 27 नवंबर को दुर्ग जिले के कुम्हारी स्थित पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन परिसर में संपन्न हुआ। पेंटिंग कॉम्पटीशन में छत्तीसगढ़ राज्य से विभिन्न स्कूलों के बच्चों ने भाग लिया। रायगढ़ जिले के सेंट टेरेसा कान्वेंट स्कूल बोईरदादर रायगढ़ के छात्रों की भी इस प्रतियोगिता में सहभागिता रही।इस स्कूल के विद्यार्थियों की कला को समर्पित कल्पना शीलता का उल्लेखनीय प्रदर्शन यहां देखने को मिला।         चित्रकला प्रतियोगिता में सेंट टेरेसा स्कूल रायगढ़ के कक्षा सातवीं के छात्र आयुष साहू को ग्रुप A में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। पुरस्कार स्वरूप उन्हें 50,000 पचास हजार रूपये का चेक प्रदान किया गया। इसी स्कूल के विद्यार्थी सुशांत शुक्ला (सातवीं), नावेद अनवर खान (दसवीं), शेख सनाउल्लाह (आठवीं) को सांत्वना पुरस्कार प्राप्त हुआ।सांत्वना पुरस्कार के तहत इन तीनों छात्रों में प्रत्येक को 7,500 (सात हजार पांच सौ)रूपये के चेक प्रदान किये गए। स्कूल के चित्रकला शिक्षक तोष कुमार साहू की क...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

परिधि शर्मा की कहानी : मनीराम की किस्सागोई

युवा पीढ़ी की कुछेक   नई कथा लेखिकाओं की कहानियाँ हमारा ध्यान खींचती रही हैं । उन कथा लेखिकाओं में एक नाम परिधि शर्मा का भी है।वे कम लिखती हैं पर अच्छा लिखती हैं। उनकी एक कहानी "मनीराम की किस्सागोई" हाल ही में परिकथा के नए अंक सितंबर-दिसम्बर 2024 में प्रकाशित हुई है । यह कहानी संवेदना से संपृक्त कहानी है जो वर्तमान संदर्भों में राजनीतिक, सामाजिक एवं मनुष्य जीवन की भीतरी तहों में जाकर हस्तक्षेप करती हुई भी नज़र आती है। कहानी की डिटेलिंग इन संदर्भों को एक रोचक अंदाज में व्यक्त करती हुई आगे बढ़ती है। पठनीयता के लिहाज से भी यह कहानी पाठकों को अपने साथ बनाये रखने में कामयाब नज़र आती है। ■ कहानी : मनीराम की किस्सागोई    -परिधि शर्मा  मनीराम की किस्सागोई बड़ी अच्छी। जब वह बोलने लगता तब गांव के चौराहे या किसी चबूतरे पर छोटी मोटी महफ़िल जम जाती। लोग अचंभित हो कर सोचने लगते कि इतनी कहानियां वह लाता कहां से होगा। दरअसल उसे बचपन में एक विचित्र बूढ़ा व्यक्ति मिला था जिसके पास कहानियों का भंडार था। उस बूढ़े ने उसे फिजूल सी लगने वाली एक बात सिखाई थी कि यदि वर्तमान में हो रही समस्याओं क...

डॉक्टर उमा अग्रवाल और डॉक्टर कीर्ति नंदा : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर रायगढ़ शहर के दो होनहार युवा महिला चिकित्सकों से जुड़ी बातें

आज 8 मार्च है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस । आज के दिन उन महिलाओं की चर्चा होती है जो अमूमन चर्चा से बाहर होती हैं और चर्चा से बाहर होने के बावजूद अपने कार्यों को बहुत गम्भीरता और कमिटमेंट के साथ नित्य करती रहती हैं। डॉ कीर्ति नंदा एवं डॉ उमा अग्रवाल  वर्तमान में हम देखें तो चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला चिकित्सकों की संख्या में  पहले से बहुत बढ़ोतरी हुई है ।इस पेशे पर ध्यान केंद्रित करें तो महसूस होता है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला डॉक्टरों के साथ बहुत समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। उन पर काम का बोझ अत्यधिक होता है और साथ ही साथ अपने घर परिवार, बच्चों की जिम्मेदारियों को भी उन्हें देखना संभालना होता है। महिला चिकित्सक यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ है और किसी क्षेत्र विशेष में  विशेषज्ञ सर्जन है तो  ऑपरेशन थिएटर में उसे नित्य मानसिक और शारीरिक रूप से संघर्ष करना होता है। किसी भी डॉक्टर के लिए पेशेंट का ऑपरेशन करना बहुत चुनौती भरा काम होता है । कहीं कोई चूक ना हो जाए इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है । इस चूक में  पेशेंट के जीवन और मृत्यु का मसला जुड़ा होता है।ऑपरेशन ...

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ ■सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह चलो फिर से शुरू करें ■रमेश शर्मा  -------------------------------------- सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘चलो फिर से शुरू करें’ पाठकों तक पहुंचने के बाद चर्चा में है। संग्रह की कहानियाँ भारतीय अप्रवासी जीवन को जिस संवेदना और प्रतिबद्धता के साथ अभिव्यक्त करती हैं वह यहां उल्लेखनीय है। संग्रह की कहानियाँ अप्रवासी भारतीय जीवन के स्थूल और सूक्ष्म परिवेश को मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में बड़ी तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि उनके दृश्य आंखों के सामने बनते हुए दिखाई पड़ते हैं। हमें यहां रहकर लगता है कि विदेशों में ,  खासकर अमेरिका जैसे विकसित देशों में अप्रवासी भारतीय परिवार बहुत खुश और सुखी होते हैं,  पर सुधा जी अपनी कहानियों में इस धारणा को तोड़ती हुई नजर आती हैं। वास्तव में दुनिया के किसी भी कोने में जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन में सुख-दुख और संघर्ष का होना अवश्य संभावित है । वे अपनी कहानियों के माध्यम से वहां के जीवन की सच्चाइयों से हमें रूबरू करवात...

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहान...

21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024 (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न

डेंटल चिकित्सा से जुड़े तीन महत्वपूर्ण ब्रांच OOO【Oral and Maxillofacial Surgery,Oral Pathology, Oral Medicine and Radiology】पर 21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024  (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न हुआ. भारत के सिल्वर सिटी के नाम से प्रसिद्ध ओड़िसा के कटक शहर में 21st National OOO Symposium 2024  का सफल आयोजन 8 मार्च से 10 मार्च तक सम्पन्न हुआ। इसकी मेजबानी सुभाष चंद्र बोस डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक ओड़िसा द्वारा की गई। सम्मेलन का आयोजन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन ऑफ इंडिया, (AOMSI) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल पैथोलॉजिस्ट (IAOMP) के सहयोग से इंडियन एकेडमी ऑफ ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी (IAOMR) के तत्वावधान में किया गया। Dr.Paridhi Sharma MDS (Oral Medicine and    Radiology)Student एससीबी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक के ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की मेजबानी में संपन्न हुए इस नेशनल संगोष्ठी में ओरल मेडिसिन,ओरल रेडियोलॉजी , ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी और ओरल प...