सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कविता लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सोनाली शेट्टी की कविताएँ

सोनाली शेट्टी की कविताएँ सोनाली शेट्टी मूलतः देहरादून की हैं और अंग्रेजी भाषा में लेखन करती हैं। विचारों में खुलेपन के साथ जीवन को अपने ढंग से जीने वाली सोनाली की कविताओं में मनुष्य के भीतर जज्ब संवेदना मुखर रूप में हमसे संवाद करती है। लगभग बातचीत के अंदाज में कविताओं को रच पाने की कला उनके पास है। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए जीवन के आसपास बिखरे रंगों को जिसे हम कई बार देख नहीं पाते, सहजता से देख पाते हैं. १.वो बारिशों की बात थी वो बारिशों की बात थी और  हम भीगने से डरने की एक्टिंग कर रहे थे। भीग रहे थे खुल कर  बेशुमार  हद हो गयी थी  बेशरमी की  मगर  रुक नहीं रही थी चाह भीगने की  बेशुमार। तुम मैं और बारिशें और  साथ सिर्फ ये पहाड़ी रास्ते फिर नहीं आएंगी वो बारिशें वो हद  वो वक़्त बस सिर्फ  तुम्हरे शर्ट का रंग जो मेरे  सफेद सूट पर आज भी लगा है रह गया है  और एक संदूक में रखा तुम्हारी ग्रीन शर्ट को याद करता है आज भी । २. चले जाने के बाद (लीना के लिए) उस रोज़ जब तुम्हारी मृत्यु की सूचना मिली मै मॉल में शॉपिंग कर रही थी  चेंजिंग रूम में फोन उठाया उस तरफ से आवाज़ आई  लीना चली गयी क्या! मगर ... मुझे कल

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सोचना

बंधु पुष्कर की कविताएं

बंधु पुष्कर की कविताएं , इधर  युवाओं द्वारा रची जा रही कविताओं से थोड़ी भिन्नता लिए हुए सामने आती हैं।ये कविताएँ भिन्न इस अर्थ में हैं कि इनमें बदलते समय के साथ बह जाने की आकुलता नहीं दिखाई देती। उनकी कविताओं में अपने समय को ठहरकर देखने का न केवल संयम है बल्कि इस संयम में भाव और विचार की सम्यक जुगलबंदी भी है। पूरी दुनिया में आज जीवन के जरूरी मूल्यों को पीछे छोड़कर बाज़ारू समय के साथ भागने की एक होड़ सी मची है। ऐसे समय में भी जीवन के परंपरागत मूल्यों की पहचान कराने के साथ साथ बन्धु पुष्कर की कविताएं उन्हें बचाए रखने का आग्रह करती हैं। 'मेरे शहर के लड़के पतंगबाज़ नहीं रहे' जैसी उनकी कविता इन्हीं संदर्भों को स्थापित करती है। प्रेम को नई तरह से देखने का नज़रिया भी एक वैचारिक तरलता के साथ उनकी कविताओं में विद्यमान है।  इन कविताओं में जीवन एवं इतिहास बोध भी दबे पांव आते हैं और एक जीवंत सा संवाद स्थापित करते हैं। बंधु पुष्कर की इन कविताओं को पढ़कर जीवन में बहुत पीछे छूट गयी चीजों की स्मृतियां मन के भीतर चलकर भी आने लगती हैं और एक हलचल सी मचाती हैं। एक कोमल सी वैचारिक तरलता होते हुए भी इन कवित

'पृथ्वी से क्या कहेंगे' संग्रह से भगत सिंह सोनी की कवितायें

  भगत सिंह सोनी का नाम पुरानी पीढ़ी के महत्वपूर्ण कवियों में शुमार है. चुपचाप अपनी कविताएँ लिखकर कवि धर्म निभाते रहने वाले इस कवि पर यद्यपि कभी उस तरह चर्चा नहीं हुई जिस तरह की चर्चा उन पर होनी चाहिए थी. अपने आसपास की दुनिया को देखने का अनुभव उनकी कविताओं में बहुत बारीकी से एक तरल संवेदना में तब्दील होकर हम तक पहुंचता है. बहुत साधारण और कम शब्दों में अपने भीतर उठते भावबोध और जीवन दर्शन को मन में चुभने वाली एक असाधारण सी कविता में रचने की कला इस कवि के पास है. उनकी कविताओं को पढ़ते हुए अपने रोजमर्रा की जिन्दगी की प्रतिछवियों को जब हम वहां देखते हैं तो इस कवि को अपने आसपास ही पाते हैं. उनकी कविताओं में मनुष्य मनुष्य के बीच ,मनुष्य और प्रकृति के बीच व्याप्त   रिश्तों की बिषमताओं को बड़ी सहजता के साथ जिस तरह देखा समझा गया है वह हमारा ध्यान खींचता है. उनके संग्रह 'पृथ्वी से क्या कहेंगे' से उनकी कुछ कवितायेँ यहाँ प्रस्तुत हैं         १.अंधियारे से बाहर ---------------- कमल हमेशा कीचड़ में खिलते हैं कोयले के गर्भ से निकलते हैं हीरे अंधियारे से निकलता है चाँद. देखते रहना मैं इस