गांधी पर केंद्रित रमेश शर्मा की कुछ कविताएँ आज गांधी जयंती है । गांधी के नाम को लेकर हर तरफ एक शोर सा उठ रहा है । पर क्या गांधी सचमुच अपनी नीति और सिद्धांतों के स्वरूप और प्रतिफलन में राजनीति , समाज और आदमी की दुनियाँ में अब भी मौजूद हैं ? हैं भी अगर तो किस तरह और किस अनुपात में ? कहीं गांधी अब एक शो-केस मॉडल की तरह तो नहीं हो गए हैं कि उन्हें दिखाया तो जाए पर उनके बताए मार्गों पर चलने से किसी तरह बचा जाए ? ये ऐसे प्रश्न हैं जो इसी शोर शराबे के बीच से उठते हैं । शोर इतना ज्यादा है कि ये सवाल कहीं गुम होने लगते हैं। सवालों के ऊत्तर ढूंढ़तीं इन कविताओं को पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया भी ब्लॉग पर ही टिप्पणी के माध्यम से व्यक्त करें-- १. हर आदमी के भीतर एक गांधी रहता था कभी --------------- एक छाया की तरह है वह तुम चलोगे तो आगे जाएगा पकड़ने की हर कोशिशों की परिधि के बाहर ! बाहर खोजने-पकड़ने से अच्छा है खोजो भीतर उसे तुम्हारी दुनियाँ के किसी कोने में मिल जाए दबा सहमा हुआ मरणासन्न ! कहते हैं हर आदमी के भीतर एक गांधी रहता था कभी ...