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उनकी सबसे बड़ी खूबी है कि वे आपका विकल्प नहीं ढूंढते (किताब : प्रिय ओलिव)

■ क्या पेट्स हमें जीवन जीना सिखाते हैं पेट्स को लेकर अलग-अलग समय में अलग-अलग किस्म के अनुभव मेरे पास संचित होते रहे हैं । एक अनुभव का जिक्र करना यहां बहुत जरूरी समझ रहा हूं । एक बार एक सज्जन आए थे मेरे घर । पढ़े लिखे हैं और स्कूल में व्याख्याता के रूप में उनकी तैनाती है। मेरे घर में पेट्स टोक्यो को देखकर कहने लगे कि घर में डॉगी कभी नहीं पालना चाहिए । घर में जितने भी पूजा पाठ होते हैं उनका फल इनके रहने से घर वालों को नहीं मिल पाता। कोई दीगर बात अगर वे करते, मसलन इस संदर्भ से जुड़ी परेशानियों का जिक्र करते तो बात हजम भी होती। उनकी बातें घोर अवैज्ञानिक बातें थीं और पेट्स के प्रति घृणा से भी भरी हुई थीं। अगर आपके जीवन में प्रेम है, आप लोगों से,अपने परिजनों से प्रेम करते हैं तो इस तरह किसी जानवर से घृणा नहीं कर सकते । उनकी बातें मुझे असंवेदनशील सी महसूस हुईं। उनके मन में पेट्स को लेकर एक किस्म का पूर्वाग्रह था जो बिना अनुभव के दूर नहीं हो सकता था ।पेट्स को पालने से कुछ परेशानियाँ जरूर होती हैं पर इसके बावजूद उनके प्रति घृणा का भाव उचित नहीं लगता। पेट्स हमारी संवेदना को जगाते हैं, पेट्स हमारी

तीन महत्वपूर्ण कथाकार राजेन्द्र लहरिया, मनीष वैद्य, हरि भटनागर की कहानियाँ ( कथा संग्रह सताईस कहानियाँ से, संपादक-शंकर)

  ■राजेन्द्र लहरिया की कहानी : "गंगा राम का देश कहाँ है" --–-----------------------------  हाल ही में किताब घर प्रकाशन से प्रकाशित महत्वपूर्ण कथा संग्रह 'सत्ताईस कहानियाँ' आज पढ़ रहा था । कहानीकार राजेंद्र लहरिया की कहानी 'गंगा राम का देश कहाँ है' इसी संग्रह में है। सत्ता तंत्र, समाज और जीवन की परिस्थितियाँ किस जगह जा पहुंची हैं इस पर सोचने वाले अब कम लोग(जिसमें अधिकांश लेखक भी हैं) बचे रह गए हैं। रेल की यात्रा कर रहे सर्वहारा समाज से आने वाले गंगा राम के बहाने रेल यात्रा की जिस विकट स्थितियों का जिक्र इस कहानी में आता है उस पर सोचना लोगों ने लगभग अब छोड़ ही दिया है। आम आदमी की यात्रा के लिए भारतीय रेल एकमात्र सहारा रही है। उस रेल में आज स्थिति यह बन पड़ी है कि जहां एसी कोच की यात्रा भी अब सुगम नहीं रही ऐसे में यह विचारणीय है कि जनरल डिब्बे (स्लीपर नहीं) में यात्रा करने वाले गंगाराम जैसे यात्रियों की हालत क्या होती होगी जहाँ जाकर बैठने की तो छोडिये खड़े होकर सांस लेने की भी जगह बची नहीं रह गयी है। साधन संपन्न लोगों ने तो रेल छोड़कर अपनी निजी गाड़ियों के जरिये सड़क मा

पुस्तक समीक्षा "छोटी आंखों की पुतलियों में" देवेश पथ सारिया की ताइवान डायरी

एक अलहदा अनुभव है छोटी आँखों की पुतलियों से दुनिया को देखना- रमेश शर्मा ताइवान डायरी 'छोटी आंखों की पुतलियों में' देवेश पथ सारिया युवा कवि देवेश पथ सरिया की कविताओं को पढ़ने के कई अवसर मेरे हाथ लगे हैं। भौतिक शास्त्र के पोस्ट डॉक्ट्रल फेलो होने के बावजूद हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी रूचि और प्रतिबद्ध इमानदारी , मौलिक शैली और गंभीर अभिव्यक्ति के जरिये उन्होंने अपनी कविताओं के लिए एक समृद्ध पाठक वर्ग तैयार किया है। देवेश के भीतर मौजूद गद्यकार को जानने समझने के अवसर अब तक कम मिले, यद्यपि उनकी हाल फिलहाल प्रकाशित एक दो कहानियों के माध्यम से मैंने महसूस किया कि उनके भीतर का यह हुनर भी एक नए आकार में देर सवेर हमारे सामने आएगा और पाठकों को चकित करेगा। हाल ही में सेतु प्रकाशन से प्रकाशित होकर आयी उनकी ताइवान डायरी की किताब 'छोटी आँखों की पुतलियों से' उनके भीतर मौजूद उसी गद्यकार को थोड़ा और विस्तार देती है । उनके भीतर मौजूद गद्य लेखन का यह हुनर हमें आश्वस्त करता है कि आगे चलकर इस युवा रचनाकार से हमें बहुत कुछ ऐसा पढ़ने को मिलेगा जो हमारी पाठकीय परिपक्वता को विस्तार देते हुए हमें सं

कहानी संग्रह "उस घर की आंखों से" की समीक्षा- बसंत राघव

युवा लेखक कवि  बसंत राघव छत्तीसगढ़ के रायगढ़ शहर में रहते हैं । उनके पिता स्व. डॉ बलदेव जो एक प्रसिद्ध लेखक रहे और अपने लेखन के माध्यम से साहित्य जगत को जाते जाते बहुत कुछ दे गए, की उस परंपरा को बसंत राघव बखूबी निभा भी रहे हैं। वे रचनात्मक लेखन के लिए लगातार फेसबुक में सक्रिय रहते हैं।  सबलोग, संवेद, जनचौक,समता मार्ग जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उनके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं।मुद्रित पत्रिकाओं की बात करें तो परिकथा, रचना उत्सव,मानवी,  सुसंभाव्य, देशबन्धु जैसी पत्र-पत्रिकाओं में उनके आलेख एवम उनकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित भी होती आ रही हैं। उन्होंने कहानी संग्रह 'उस घर की आंखों से' पर एक समीक्षकीय टिप्पणी लिखी है जो हाल ही में परिकथा के नए अंक मार्च अप्रैल 2023 में प्रकाशित हुई है। मनुष्यता को हर हाल में बचाए रखने की मुहिम  ------------------------------------------------  रमेश शर्मा के अब तक तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। "उस घर की आँखों से" उनका तीसरा कहानी संग्रह है। इसमें छोटी-बड़ी करीबन अठारह कहानियां संग्रहित हैं। अधिकांश कहानियों का रचना समय 2020-2021 है। कहा

मनोज कुमार शिव का कहानी संग्रह घर वापसी Ghar Vapasi Manoj kumar Shiv

घर वापसी युवा कथाकार मनोज कुमार शिव जी का पहला कहानी संग्रह है।इस संग्रह में ग्यारह कहानियां हैं । इन ग्यारह कहानियों को पढ़ने के बाद यह तय कर पाने में कोई संशय नहीं रह जाता कि मनोज ग्रामीण अंचल की घटनाओं को अपनी कहानियों में पिरोने वाले कथाकार हैं। उनके रचना कर्म का भूगोल मूलतः ग्रामीण अंचल की घटनाओं से ही आकार पाता है। आज के उत्तर आधुनिक समय में ग्रामीण अंचल की घटनाओं को कहानियों में उतारना दुरूह तो नहीं है पर सरल भी नहीं है। इसके लिए कथाकार को ग्रामीण अंचल के जीवन का पर्याप्त अनुभव होना चाहिए और यह अनुभव केवल सुनी सुनाई बातों के माध्यम से अर्जित किया हुआ न होकर जीवंत होना चाहिए । मनोज की कहानियों को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनके पास एक नागरिक और उस नागरिक के भीतर जन्मे लेखक के रूप में ग्रामीण जीवन का पर्याप्त अनुभव है। इन कहानियों को पढ़ने के बाद पाठक को नदी, नाले, पहाड़ , पहाड़ की गोद में बसे गांव ,सेब के पेड़ के बगीचे और वहां की आबोहवा के सौंदर्य का एहसास यूं होने लगता है कि जैसे उनके बिना दुनिया का सौंदर्य अधूरा है। कहानियों को पढ़ते हुए एक बात और शिद्दत से महसूस होती है

"वे खोज रहे थे अपने हिस्से का प्रेम": अपने समय और परिवेश को अभिव्यक्त करती कविताएं - डॉ. नीलोत्पल रमेश , Ve khoj rahe the apne hisse ka prem :Poetry book of Ramesh sharma

"वे खोज रहे थे अपने हिस्से का प्रेम" कवि कथाकार रमेश शर्मा का पहला कविता संग्रह है। इनके अब तक तीन कहानी संग्रह भी  प्रकाशित हो चुके हैं, पहला 'मुक्ति' ( 2013 ई.), दूसरा 'एक मरती हुई आवाज' ( 2019 ई.) और तीसरा "उस घर की आंखों से"(2021ई.)।  इस संग्रह में रमेश शर्मा की 64 कविताएं संकलित हैं । ये  कविताएं देश की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर प्रशंसित हो चुकी हैं।कवि ने  इन कविताओं में अपने समय को ही अभिव्यक्त करने की कोशिश की है। कवि जिस परिवेश और समय में रह रहा है उसे ही इन कविताओं में अभिव्यक्ति मिली है। कवि को इसमें कहीं से हड़बड़ी नहीं दिखाई पड़ती है, वह आराम से दुनिया की चकाचौंध से बेखबर अपनी कविताओं में लीन है। ये कविताएं हमारे आसपास और नजरों के सामने घटित होती दिख रही हैं। रमेश शर्मा ने वर्तमान दौर के सारे विषयों को अपनी कविताओं का माध्यम बनाया है, जिसमें शहर, गांव, मित्र, प्रेम, पिता, किसान, माँ, पहाड़, प्रेमिका, लड़कियां आदि सबकुछ समाहित हैं । इन्हीं चीजों के संयोग से कवि की कविताएं निर्मित हुई हैं।  'वे खोज रहे थे अपने हिस्से

विचारक प्रोफेसर हेमचंद्र पांडेय की महत्वपूर्ण टिप्पणी Hemchandra Pandey on Anugrah

होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अनुग्रह के द्वारा आयोजित परिचर्चा  मौजूं , बहुआयामी और मननीय होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण बन पड़ी है।  होली पर गांधीजी की जिस टिप्पणी का उल्लेख आपने किया है वह कुछ ज्यादा कठोर प्रतीत हो सकती है; लेकिन आज, १३२ वर्षों के बाद भी वह टिप्पणी पूरी तरह गलत नहीं है, यह परिचर्चा में सम्मिलित महिलाओं के विचारों और अनुभवों से सिद्ध होता है। यद्यपि उस टिप्पणी की सीमा श्रीमती तुलसी सुकरा के मंतव्य से स्पष्ट हो जाती है। दरअसल, भारत सांस्कृतिक दृष्टि से इतनी अधिक विविधता वाला देश है कि एक ही त्यौहार विभिन्न स्थानों और अलग अलग सामाजिक श्रेणियों में इतने अधिक भिन्न भिन्न रूपों में मनाया जाता है कि उसके विषय में दोटूक और सपाट व्यक्तव्य दे पाना संभव नहीं है।  परिचर्चा में सम्मिलित लगभग सभी प्रतिभागियों के व्यक्तव्यों में इस कठिनाई की झलक मिलती है। फिर भी, इस कड़वी सच्चाई को झुठलाना तो सत्य से मुंह फेरने जैसा ही होगा कि पितृसत्ता की काली छाया ने होली के सप्तरंगी सुंदर स्वरूप को ढंक रखा है। त्यौहार और पर्व ऐसे अवसर होते हैं जब हम वैयक्तिकता की संकीर्णता से निक

देवेश पथ सारिया की कवितायेँ : कविता संग्रह 'नूह की नाव' से चुनी हुईं कविताओं का पाठ.

दे   वेश पथ सारिया हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कवियों में से एक हैं । हाल ही में भारतीय साहित्य अकादेमी  से उनकी कविताओं का एक संग्रह 'नूह की नाव' प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में बहुत सी कवितायेँ मुझे पसंद हैं । उनमें  से चुनी हुई छः कवितायेँ यहाँ प्रस्तुत हैं.   "देवेश की कविताओं में मूर्तमान होती चीजों में भी एक तरह से अमूर्त सा लगने वाला अति सूक्ष्म विवेचन है जो अमूमन हमारी नज़रों से छूट जाता   है । उन छूटी हुई चीजों से देवेश हमारा परिचय कराते हैं । उनकी कविताओं में चेतन अचेतन रूप में फैले हुए मानवीय जीवन के राग-विराग सह्सा इस तरह आने लगते हैं कि कई बार चकित होना पड़ता है । कवि के पास जीवन और बदलते समय को देखने परखने की एक अलहदा दृष्टि भी है जो इन कविताओं को पुष्ट करती है । उनकी कहन शैली से भी कविताओं में भाषिक सौन्दर्य उत्पन्न होता है"-  रमेश शर्मा   एक पहिये की साइकिल वाला बच्चा एक धूरी पर घूमती है सारी पृथ्वी यह बेहद मामूली लेकिन जरूरी पाठ मुझे फिर से याद आया था उस ताईवानी बच्चे को देखकर जो निकल पड़ा था चिंग हुआ यूनिवर्सिटी की व्यस्त सड़क पर अपनी एक