होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अनुग्रह के द्वारा आयोजित परिचर्चा मौजूं , बहुआयामी और मननीय होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण बन पड़ी है।
होली पर गांधीजी की जिस टिप्पणी का उल्लेख आपने किया है वह कुछ ज्यादा कठोर प्रतीत हो सकती है; लेकिन आज, १३२ वर्षों के बाद भी वह टिप्पणी पूरी तरह गलत नहीं है, यह परिचर्चा में सम्मिलित महिलाओं के विचारों और अनुभवों से सिद्ध होता है।
यद्यपि उस टिप्पणी की सीमा श्रीमती तुलसी सुकरा के मंतव्य से स्पष्ट हो जाती है।
दरअसल, भारत सांस्कृतिक दृष्टि से इतनी अधिक विविधता वाला देश है कि एक ही त्यौहार विभिन्न स्थानों और अलग अलग सामाजिक श्रेणियों में इतने अधिक भिन्न भिन्न रूपों में मनाया जाता है कि उसके विषय में दोटूक और सपाट व्यक्तव्य दे पाना संभव नहीं है।
परिचर्चा में सम्मिलित लगभग सभी प्रतिभागियों के व्यक्तव्यों में इस कठिनाई की झलक मिलती है।
फिर भी, इस कड़वी सच्चाई को झुठलाना तो सत्य से मुंह फेरने जैसा ही होगा कि पितृसत्ता की काली छाया ने होली के सप्तरंगी सुंदर स्वरूप को ढंक रखा है।
त्यौहार और पर्व ऐसे अवसर होते हैं जब हम वैयक्तिकता की संकीर्णता से निकल कर सामाजिकता की विशालता में मुक्त और आनंदित होते हैं। त्योहारों का समावेशी होना ही उनकी सार्थकता है। यदि कोई त्यौहार एक्सक्लूसिव है तो यह स्थिति सदोष है और सुधार किए जाने योग्य है।
होली पर गांधीजी की टिप्पणी पूर्ण सत्य को भले व्यक्त न करती हो पर वस्तुस्थिति के एक बड़े और कड़वे हिस्से को तो आज भी जरूर व्यक्त करती है।
वह समय शीघ्र आए जब उनकी टिप्पणी पूरी तरह असत्य साबित हो - यही कामना है।
पुनः, सार्थक और समयोचित परिचर्चा आयोजित करने के लिए साधुवाद !
- हेमचंद्र पाण्डेय
【हेमचंद्र पांडेय की टिप्पणी में जिस परिचर्चा का जिक्र है , उसे ब्लॉग के 7 मार्च के पोस्ट ~ "8मार्च होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर गांधी के विचारों को केंद्र में रखकर महिलाओं के बीच एक परिचर्चा" ~ पर जाकर आप पढ़ सकते हैं।】
डॉ. हेमचंद्र पांडेय गम्भीर विषयों के विचारवान अध्येता हैं । वैचारिक विषयों एवं साहित्य विमर्श में गहरी रुचि रखते हैं। बतौर प्राध्यापक कालेज में एक लंबी सेवा के उपरांत उन्होंने स्वेच्छिक अवकाश ले लिया है।रायगढ़ उनका निवास स्थल है।
सार्थक परिचर्चा पर पांडेय जी की महत्वपूर्ण टिप्पणी।
जवाब देंहटाएंबहुत गम्भीर ईमानदार और सामयिक टिप्पणी । गांधी की बातें भले ही आज अतिरेक लगती हों पर उनकी बातों पर आज भी चिंता करने की जरूरत है।
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