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दिव्या विजय की कहानी: महानगर में एक रात, सरिता कुमारी की कहानी ज़मीर से गुजरने का अनुभव

■विश्वसनीयता का महासंकट और शक तथा संदेह में घिरा जीवन 


कथादेश नवम्बर 2019 में प्रकाशित दिव्या विजय की एक कहानी है "महानगर में एक रात" । दिव्या विजय की इस कहानी पर संपादकीय में सुभाष पंत जी ने कुछ बातें कही हैं । वे लिखते हैं - "महानगर में एक रात इतनी आतंकित करने वाली कहानी है कि कहानी पढ़ लेने के बाद भी उसका आतंक आत्मा में अमिट स्याही से लिखा रह जाता है।  यह कहानी सोचने के लिए बाध्य करती है कि हम कैसे सभ्य संसार का निर्माण कर रहे जिसमें आधी आबादी कितने संशय भय असुरक्षा और संत्रास में जीने के लिए विवश है । कहानी की नायिका अनन्या महानगर की रात में टैक्सी में अकेले यात्रा करते हुए बेहद डरी हुई है और इस दौरान एक्सीडेंट में वह बेहोश हो जाती है। होश में आने पर वह मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान है कि कहीं उसके साथ बेहोशी की अवस्था में कुछ गलत तो नहीं हो गया और अंत में जब वह अपनी चिंता अपने पति के साथ साझा करती है तो कहानी की एक और परत खुलती है और पुरुष मानसिकता के तार झनझनाने लगते हैं । जिस शक और संदेह से वह गुजरती रही अब उस शक और संदेह की गिरफ्त में उसका वह पति है जो उसे बहुत प्यार और सम्मान देता है । कहानी अपने कथ्य में ही नहीं शिल्प में भी अनूठी है। कहानी पढ़ते हुए ऐसा अनुभव होता है जैसे उसे घटित होता हुआ  भी हम देख रहे हैं।"

दरअसल समाज की बाह्य संरचना में आम मनुष्य के नैतिक आचरण की अमूर्त परिस्थितियां इस कदर बदली हैं कि सबसे अधिक मनुष्य ने अपने  विश्वास को ही खोया है और जैसे-जैसे विश्वास का पतन हुआ है वैसे वैसे मनुष्य के भीतर शक और संदेह का भूगोल अधिक विस्तृत होता गया है । कहानी शक और संदेह की इसी जमीन पर सरकते हुए हमारे भीतर इतनी शंकाएं, इतना भय उत्पन्न करती चली जाती है कि हम तय नहीं कर पाते कि कोई मनुष्य अच्छा है या बुरा है, विश्वास योग्य है या विश्वास योग्य नहीं है । हमारा शक और संदेह हर छोटी-छोटी बातों को लेकर मन के भीतर उठ रहे तर्कों कुतर्कों को जस्टिफाई करने लगता है । हम गहरे द्वंद में इस कदर फंसते चले जाते हैं कि हमारे आपस का गहरा प्रेम भी हमें शक और संदेह के घेरे से बाहर आने नहीं देता। शक और संदेह का जो रहस्य है वह जीवन में कभी नहीं टूटता । वह परिणति के रूप में मूर्त नहीं होता। वह उसी तरह शक और संदेह के रूप में ही हमारे जीवन के साथ साथ चलता रहता है। कहानी भी इसी संदेह और शक को रहस्य के रूप में अंत तक बनाए रखती है ।उस रहस्य का न खुलना ही कहानी का असल प्रभाव है जो हमारे मन पर पड़ता है। कई बार शक और संदेह मनुष्य के भीतर डर पैदा करते हैं  और वही डर मनुष्य को भीतर से अराजक भी बनाता है। कहानी को पढ़ते हुए कई बार लगता है कि कहानी की नायिका अनन्या उस ड्राइवर के प्रति अपने आचरण में अराजक होती लग रही है ।दरअसल यह हमारे भीतर का द्वंद है कि हम तय नहीं कर पाते कि सामने वाला मनुष्य अच्छा मनुष्य है या खराब मनुष्य ।यही विश्वसनीयता का संकट आज मनुष्य समाज में सबसे बड़ा संकट है जिसे यह कहानी बहुत बखूबी सामने रखती है।


■ सरिता कुमारी की लिखी जमीर  कहानी से गुजरते हुए

सरिता कुमारी हमारे समय की महत्वपूर्ण युवा कथा लेखिका हैं। उनकी कई कहानियाँ महिला विमर्श पर केन्द्रित हैं पर उन्होंने  इस विषय के आगे जाकर भी कहानियाँ लिखी हैं। नया ज्ञानोदय अगस्त 2019 में प्रकाशित उनकी एक कहानी 'ज़मीर' की चर्चा मैं यहाँ करना चाहूँगा। यह कहानी आरिफ नामक एक ऐसे पात्र पर बुनी गयी है जो राजस्थान के रेगिस्तानी टूरिस्ट इलाकों में पर्यटकों को ऊंट की सवारी कराता है। कम पढ़ा लिखा यह आरिफ अपने व्यवहार और बातचीत से हंसमुख और पढ़ा लिखा लगता है। उसे जीवन का वह व्यवहारिक अनुभव हासिल है जो आमतौर पर स्कूल या महाविद्यालयों से प्राप्त नहीं हो पाता। वह अपने जीवन में सीमित संसाधनों के बावजूद संतुष्ट है क्योंकि उसे इस बात का इल्म है कि व्यक्ति कितना भी धन अर्जित कर ले उसे जीवन में हर समय संशाधनों की कमी महसूस होती है । इसे लेकर उसका नजरिया इतना स्पष्ट है कि वह अपने टूरिस्ट से अलग से बख्शीश नहीं माँगता न ही देने पर कभी लेता है । उसका जमीर इस बात के लिए गवाही नहीं देता कि वह ऐसा गलत कदम उठाए । अंत में जब उसके दो महिला टूरिस्ट उसकी बच्ची के बर्थ डे के नाम पर बख्शीश में एक हजार रूपये यह जानते हुए भी कि वह नहीं लेगा , आग्रह पूर्वक खुश होकर उसे देने का प्रयास करती हैं तो वह बड़ी विनम्रता से यह कहकर टाल देता है कि अगर आपको देना ही है तो कल घर आकर उसी के हाथों में दे दीजिए । वह ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि बातचीत के दौरान उसे पता रहता है कि ये महिला टूरिस्ट कल तक यहाँ रूकेंगी नहीं। आरिफ इस कहानी का इतना कल्चर्ड पात्र है कि वह अपने टूरिस्टों का दिल दुखाना भी नहीं चाहता, इसलिए चालाकी से वह उनसे पूछता है... " मेडम क्या आपके पास टॉफियाँ होंगी ?" टूरिस्ट जब  ख़ुशी खुशी टॉफियाँ निकालती हैं तो उनमें से यह कहकर वह एक टॉफी रख लेता है कि यह उसकी बेटी के लिए बर्थ डे गिफ्ट है।उसके इस व्यवहार से महिला टूरिस्ट चकित होकर रह जाती हैं और वे अपने स्वयं के जीवन की कमियों की ओर झाँकने से भी नहीं बच पातीं।

ऊंट वाले इस आरिफ नामक पात्र के भीतर का ज़मीर यद्यपि अकल्पनीय है, उसके बावजूद यह सच है कि आज भी अकल्पनीय चीजें हमारे आसपास विरल रूप में मौजूद हैं जिसकी तरफ लेखिका हमें लेकर गयी हैं। कहानी पढ़ते समय, कहानी पढने का जो एक सतत आनंद है, वह कहीं भी बाधित नहीं होता, यह इस कहानी की खूबी है।

◆रमेश शर्मा

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