सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ज्ञान प्रकाश विवेक, तराना परवीन, महावीर राजी और आनंद हर्षुल की कहानियों पर टिप्पणियां


◆ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी "बातूनी लड़की"

(कथादेश सितंबर 2023)

उसकी मृत्यु के बजाय जिंदगी को लेकर उसकी बौद्धिक चेतना और जिंदादिली अधिक देर तक स्मृति में गूंजती हैं। 

~~~~~~~~~~~~~~~~~

ज्ञान प्रकाश विवेक जी की कहानी 'शहर छोड़ते हुए' बहुत पहले दिसम्बर 2019 में मेरे सम्मुख गुजरी थी, नया ज्ञानोदय में प्रकाशित इस कहानी पर एक छोटी टिप्पणी भी मैंने तब लिखी थी।

लगभग 4 साल बाद उनकी एक नई कहानी 'बातूनी लड़की' कथादेश सितंबर 2023 अंक में अब पढ़ने को मिली। बहुत रोचक संवाद , दिल को छू लेने वाली संवेदना से लबरेज पात्र और कहानी के दृश्य अंत में जब कथानक के द्वार खोलते हैं तो मन भारी होने लग जाता है।

अंडर ग्रेजुएट की एक युवा लड़की और एक युवा ट्यूटर के बीच घूमती यह कहानी, कोर्स की किताबों से ज्यादा जिंदगी की किताबों पर ठहरकर बातें करती है। इन दोनों ही पात्रों के बीच के संवाद बहुत रोचक,बौद्धिक चेतना के साथ पाठक को तरल संवेदना की महीन डोर में बांधे रखकर अपने साथ वहां तक ले जाते हैं जहां कहानी अचानक बदलने लगती है।

लड़की को ब्रेन ट्यूमर होने की जानकारी जब होती है, तब न केवल उसके ट्यूटर को बल्कि पाठक को भी एक गहरा धक्का सा लगता है।कहानी की खूबी यह है कि

सारी घटनाएं बहुत स्वाभाविक लगती हैं।

जिंदगी से जुड़ी कई कहानियाँ बहुत त्रासद होती हैं पर उसको जीने वाले पात्र बहुत जिंदादिल होते हैं।वे छोटी सी जिंदगी को भी अपनी जिंदादिली से बहुत बड़ा बना देते हैं। बातूनी लड़की जैसे पात्र को बहुत खूबसूरती से ज्ञानप्रकाश विवेक जी ने गढ़ा है। उसकी मृत्यु के बजाय जिंदगी को लेकर उसकी बौद्धिक चेतना और जिंदादिली अधिक देर तक स्मृति में गूंजती हैं।कहानी मुझे अच्छी लगी।


◆तराना परवीन की कहानी "चिन्दियाँ"

(बया सितंबर 2023 अंक में प्रकाशित)

~~~~~~~~~~~~~~~~~

कालकी और भूरकी की कथा भर नहीं है यह , उन आम भारतीय किशोर उम्र की लड़कियों की कथा है जो एकदम संसाधन विहीन परिवारों से आती हैं। एक किशोर उम्र की लड़की के जीवन में माहवारी एक बायोलॉजिकल  घटना है जिसके कारण पहले पहल बहुत असहज स्थितियाँ निर्मित होती हैं।शहर से अपने गांव जाने के लिए सड़क पर किसी सवारी वाहन की प्रतीक्षा करते हुए  गरीब, संसाधन विहीन माता पिता की लड़कियों को जब इस माहवारी जैसी असहज कर देने वाली घटना का पहली बार सामना करना पड़े तो परिस्थिति जन्य एक चिन्दी के लिए भी तरसना पड़ सकता है।

माता पिता संग उन लड़कियों द्वारा एक ट्रक पर लिफ्ट लेकर सफ़र करते हुए जो दृश्य और संवाद इस कहानी में हैं बहुत भयावह  हैं। परिस्थितियां और वहाँ की घटनाएं ऐसी हैं कि पुरुषों का नग्न चरित्र एक शैतान की तरह आंखों के सामने दिखाई पड़ता है। एक चिन्दी के बदले शोषित लडकियों की यह कहानी आज के नग्न समाज की  सच्चाई बयाँ करती है।एक अच्छी कहानी के लिए तराना परवीन जी को बधाई।


◆महावीर राजी की  कहानी "अनाम सी खुशबू" 

अहा जिंदगी अगस्त 2023 अंक

~~~~~~~~~~~~~

कहानी में कथाकार ने स्त्रियों की उस मजबूरी की ओर ध्यान आकृष्ट किया है जो परिवार में उनकी ही जिम्मेदारी के बतौर परिभाषित कर दिया गया है। चाय बनानी हो, चाय को सर्व करना हो , पुरुष की नज़र में किचन का सारा काम औरत के जिम्मे ही है भले ही वह बीमार हो। ज्वर बुखार से पीड़ित होने की स्थिति में भी  इन कामों को उसे ही करना है।बीमार होने की स्थिति में अगर वह इन कामों को न करे तो उसका बीमार होना भी बहानेबाजी के बतौर ही देखा जाता है क्योंकि पुरुष की नजर में तो स्त्री कभी बीमार हो ही नहीं सकती। उसे तो बीमार होना ही नहीं चाहिए।  

एक स्त्री की मजबूरियों को एक अन्य स्त्री की नजर से जो कि एक काम वाली बाई है, देखने की कोशिश इस कहानी में की गई है।

कहानी में बुखार से बुरी तरह पीड़ित अपनी मालकिन के प्रति कामवाली बाई की संवेदना को  जिस तरह स्वाभाविक तौर पर उभारा गया है वह ध्यान आकर्षित करता है। संवेदना जब जागृत होती है तब अपने साथ त्याग और समर्पण को भी बहा कर लाती है। कामवाली बाई जो कि आमतौर पर आर्थिक रूप से विपन्न ही होती है  अगर  वह भी अपनी मासिक मजदूरी की रकम को मालकिन की बेहोशी की हालत में उसके इलाज पर खर्च कर दे तो यह घटना त्याग, समर्पण और संवेदना से संपृक्त घटना है। खर्च हुई रकम के वापस मिलने की संभावना भी कुहांसे से भरी हुई है क्योंकि सारी घटनाएं मालकिन की बेहोशी की हालत में घटित हुई है। यद्यपि ऐसी घटनाएं आमतौर पर आज के समय में  देखने को न भी मिलें तब भी इस तरह की घटनाओं के घटित होने की संभावना खत्म नहीं हुई है। कहानी इसी संभावना के जीवित रहने को आगे बढ़ाती है।

अपनी सुविधाओं भरी जिंदगी में मस्त होकर धनाढ्य और पितृसत्तात्मक समाज की संवेदना जहां कोमा में जा चुकी है, ऐसे में एक कामवाली बाई जैसा पात्र और इस पात्र का त्याग, उसकी संवेदना और उसका समर्पण पाठक को आश्वस्त करते हैं।

महावीर राजी की यह छोटी सी कहानी सही मायनों में मानवता और जीवन को आश्वस्त करने वाली कहानी है।


◆आनंद हर्षुल की कहानी "गन्ध"

(कथादेश अंक जुलाई 2023) 

~~~~~~~~~~~~~~~~

आनंद हर्षुल जी अपनी कहानी में भाषा को बरतने, उसको कलात्मक रूप देने में हमेशा नए तरह के प्रयोग करते देखे जाते हैं। उनकी भाषायी मौलिकता उनकी कहानियों में देखी जा सकती है। उनकी कहानियों में मन से जुड़ी अंदरूनी परतों की बुनावटें भी कुछ इस तरह आती हैं कि उन्हें पकड़ने के लिए हमारे जैसे सामान्य पाठक को, मन के विज्ञान से को-रिलेट  करते हुए उन्हें समझना पड़ता है।

कथादेश जुलाई 2023 अंक में उनकी कहानी "गन्ध" पढ़ रहा था तो लगभग इसी तरह के अनुभवों से गुजरना हुआ, जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है।

यह कहानी सिबू नामक एक ऐसे पात्र के इर्द-गिर्द बुनी गई है जिसकी नौकरी अपने मालिक के घर उनके छः कुत्तों की देखभाल से जुड़ी है।

गंध निरा एक अमूर्त बिषय होते हुए भी कहानी में उसे मूर्त तरीके से प्रस्तुत करने की चुनौती कथा लेखक के सामने रही होगी, पर आनंद हर्षुल जी ने बड़े सलीके से उसे पाठकों के सामने रखा है।

पृथ्वी अनगिनत गंधों से भरी हुई है । सुगंध और दुर्गंध । गन्ध के दो घटक । पर इन दो घटकों के बीच कोई सीधी स्पष्ट रेखा नहीं खींची जा सकती। किसी के लिए दुर्गंध भी सुगंध की तरह हो सकती है तो किसी के लिए सुगंध भी दुर्गंध की तरह हो सकती है। यह होना परिस्थिति जन्य है और यह जीवन और जीवन की आजीविका से जुड़ा एक गंभीर मसला है।

आनंद जी ने इस कहानी में एक बड़ी बात यह कही है कि धरती पर गन्ध भी मरते रहते हैं। जैसे सिबू के जीवन में मनुष्य देह की गंध मृत हो चुकी है। वह जहां से भी गुजरता है लोगों को उसकी देह से कुत्तों की गंध आती है।

दरअसल गन्ध मनुष्यों के मन से जुड़ा मसला है । मन में कोई धारणा बहुत सघन रूप में बैठ जाती है तो कई बार वह गन्ध का रूप ग्रहण कर लेती है।कुत्तों की सेवा करने जैसी नौकरी करने वाले सिबू के जीवन से मनुष्य देह की गन्ध को उसकी पत्नी भी महसूस नहीं कर पाती। सिबू की पत्नी के जीवन में सिबू से जुड़ी मनुष्य देह की गंध मृत होकर वह कुत्तों की गन्ध में बदल गयी है।धरती पर लोगों के जीवन से गंध किस तरह मरती रहती हैं, उसका एक मनोवैज्ञानिक चित्रण इस कहानी में मिलता है।

अंत में कोलाज के सहारे आनंद जी ने सिबू को एक कुत्ते के रूप में तब्दील करते हुए उसका चित्रण किया है। कई बार कहानी में इस तरह के प्रयोगों के माध्यम से कथ्य को संप्रेषित करने की कोशिश की जाती है। संभवतः कहानी को प्रभावी बनाने का यह एक तरीका है।

छह कुत्तों के साथ सातवें कुत्ते के रूप में सिबू के बदल जाने के बाद मनुष्य के रूप में सिबू की पहचान पूरी तरह मिट चुकी होती है। अब उसे देखकर सिबू के रूप में कोई नहीं पहचान सकता। यहां तक की उसकी पत्नी भी।

सिबू के लिए यह एक बहुत बड़ा संकट है कि देख कर  उसकी पत्नी भी उसे ना पहचान पाए। अपनी पहचान के संकट के साथ वह अपने घर की चौखट के बाहर रात दिन बैठा रहता है। उसकी ललक देख सिबू की पत्नी का ध्यान उसकी ओर जाता है। तब अचानक सिबू की पत्नी को उस सातवें कुत्ते की देह से मनुष्य की गंध आने लगती है । सिबू की देह की गंध। यह गन्ध ही उसकी पहचान में एकमात्र घटक है जिसके सहारे वह पहचाना जाता है।

मनुष्य का मन ही कुछ ऐसा है कि कोई चीज अगर जीवन में खो जाए तब हम उसे पहचान पाते हैं। उसकी गंध को पहचान पाते हैं।

इस धरती पर चीजों के गंध के मरने और जीवित होने की कहानियाँ अनवरत चलती रहती हैं जिसे इस कहानी के माध्यम से हम महसूस करते हैं।एक बात जरूर है कि यह कहानी पढ़ने के दरमियान बहुत धीरज की मांग करती है। कई बार कहानी पढ़ते समय दृश्यों, घटनाओं और मन में आते जाते विचारों के तालमेल के लिए पाठकीय धीरज भी जरूरी होता है। इसे पठनीयता की बाधा के रूप में देखने को मैं सही नहीं मानता।

कहानी को खत्म करने के बाद भी हम कहानी के विषय में बहुत देर तक सोचते रहते हैं। 

रमेश शर्मा


टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

'कोरोना की डायरी' का विमोचन

"समय और जीवन के गहरे अनुभवों का जीवंत दस्तावेजीकरण हैं ये विविध रचनाएं"    छत्तीसगढ़ मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन जिला इकाई रायगढ़ के अध्यक्ष सुशीला साहू के सम्पादन में प्रकाशित किताब 'कोरोना की डायरी' में 52 लेखक लेखिकाओं के डायरी अंश संग्रहित हैं | इन डायरी अंशों को पढ़ते हुए हमारी आँखों के सामने 2020 और 2021 के वे सारे भयावह दृश्य आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी रूप में हम सब की हिस्सेदारी रही है | किताब के सम्पादक सुश्री सुशीला साहू जो स्वयं कोरोना से पीड़ित रहीं और एक बहुत कठिन समय से उनका बावस्ता हुआ ,उन्होंने बड़ी शिद्दत से अपने अनुभवों को शब्दों का रूप देते हुए इस किताब के माध्यम से साझा किया है | सम्पादकीय में उनके संघर्ष की प्रतिबद्धता  बड़ी साफगोई से अभिव्यक्त हुई है | सुशीला साहू की इस अभिव्यक्ति के माध्यम से हम इस बात से रूबरू होते हैं कि किस तरह इस किताब को प्रकाशित करने की दिशा में उन्होंने अपने साथी रचनाकारों को प्रेरित किया और किस तरह सबने उनका उदारता पूर्वक सहयोग भी किया | कठिन समय की विभीषिकाओं से मिलजुल कर ही लड़ा जा सकता है और समूचे संघर्ष को लिखि...

गंगाधर मेहेर : ओड़िया के लीजेंड कवि gangadhar meher : odiya ke legend kavi

हम हिन्दी में पढ़ने लिखने वाले ज्यादातर लोग हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के कवियों, रचनाकारों को बहुत कम जानते हैं या यह कहूँ कि बिलकुल नहीं जानते तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।  इसका एहसास मुझे तब हुआ जब ओड़िसा राज्य के संबलपुर शहर में स्थित गंगाधर मेहेर विश्वविद्यालय में मुझे एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर वक्ता वहां जाकर बोलने का अवसर मिला ।  2 और 3  मार्च 2019 को आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में शामिल होने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जिस शख्श के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नामकरण हुआ है वे ओड़िसा राज्य के ओड़िया भाषा के एक बहुत बड़े कवि हुए हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से  ओड़िसा राज्य को देश के नक़्शे में थोड़ा और उभारा है। वहां जाते ही इस कवि को जानने समझने की आतुरता मेरे भीतर बहुत सघन होने लगी।वहां जाकर यूनिवर्सिटी के अध्यापकों से , वहां के विद्यार्थियों से गंगाधर मेहेर जैसे बड़े कवि की कविताओं और उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी जुटाना मेरे लिए बहुत जिज्ञासा और दिलचस्पी का बिषय रहा है। आज ओड़िया भाषा के इस लीजेंड कवि पर अपनी बात रखते हुए मुझे जो खु...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

गजेंद्र रावत की कहानी : उड़न छू

गजेंद्र रावत की कहानी उड़न छू कोरोना काल के उस दहशतजदा माहौल को फिर से आंखों के सामने खींच लाती है जिसे अमूमन हम सभी अपने जीवन में घटित होते देखना नहीं चाहते। अम्मा-रुक्की का जीवन जिसमें एक दंपत्ति के सर्वहारा जीवन के बिंदास लम्हों के साथ साथ एक दहशतजदा संघर्ष भी है वह इस कहानी में दिखाई देता है। कोरोना काल में आम लोगों की पुलिस से लुका छिपी इसलिए भर नहीं होती थी कि वह मार पीट करती थी, बल्कि इसलिए भी होती थी कि वह जेब पर डाका डालने पर भी ऊतारू हो जाती थी। श्रमिक वर्ग में एक तो काम के अभाव में पैसों की तंगी , ऊपर से कहीं मेहनत से दो पैसे किसी तरह मिल जाएं तो रास्ते में पुलिस से उन पैसों को बचाकर घर तक ले आना कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी। उस चुनौती को अम्मा ने कैसे स्वीकारा, कैसे जूतों में छिपाकर दो हजार रुपये का नोट उसका बच गया , कैसे मौका देखकर वह उड़न छू होकर घर पहुँच गया, सारी कथाएं यहां समाहित हैं।कहानी में एक लय भी है और पठनीयता भी।कहानी का अंत मन में बहुत उहापोह और कौतूहल पैदा करता है। बहरहाल पूरी कहानी का आनंद तो कहानी को पढ़कर ही लिया जा सकता है।       ...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी : हम दोनों

स्व.रघुनंदन त्रिवेदी मेरे प्रिय कथाकाराें में से एक रहे हैं ! आज 17 जनवरी उनका जन्म दिवस है।  आम जन जीवन की व्यथा और मन की बारिकियाें काे अपनी कहानियाें में मौलिक ढंग से व्यक्त करने में वे सिद्धहस्त थे। कम उम्र में उनका जाना हिंदी के पाठकों को अखरता है। बहुत पहले कथादेश में उनकी काेई कहानी पढी थी जिसकी धुंधली सी याद मन में है ! आदमी काे अपनी चीजाें से ज्यादा दूसराें की चीजें  अधिक पसंद आती हैं और आदमी का मन खिन्न हाेते रहता है ! आदमी घर बनाता है पर उसे दूसराें के घर अधिक पसंद आते हैं और अपने घर में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! आदमी शादी करता है पर किसी खूबसूरत औरत काे देखकर अपनी पत्नी में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! इस तरह की अनेक मानवीय मन की कमजाेरियाें काे बेहद संजीदा ढंग से कहानीकार पाठकाें के सामने प्रस्तुत करते हैं ! मनुष्य अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं रहता, उसे हमेशा लगता है कि दुनियां थाेडी इधर से उधर हाेती ताे कितना अच्छा हाेता !आए दिन लाेग ऐसी मन: स्थितियाें से गुजर रहे हैं , कहानियां भी लाेगाें काे राह दिखाने का काम करती हैं अगर ठीक ढंग से उन पर हम अपना ध्यान केन्...