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रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

 



रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी । 

आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था जहाँ आने जाने से लोग डरते थे। रायगढ़ के वयोबृद्ध कला गुरु वेदमणि सिंह ठाकुर ने बताया कि लोगों की आवाजाही से दूर होने की वजह से रायगढ़ रजवाड़े की ओर से निर्मित इस भवन को शिकारगाह के रूप में विकसित किया गया था और इसे शिकारगाह के रूप में ही जाना जाता रहा है । दूर दराज के जंगलों में जाकर शिकार करना राजाओं का एक शौक रहा है जिसका जिक्र इतिहास की किताबों में मिलता है । रायगढ़ के तत्कालीन राजाओं को भी शिकार करने का शौक था । जनश्रुति के अनुसार अपनी रानियों के साथ शिकार के लिए जब उस क्षेत्र में वे जाते थे तो इसी महल में कुछ समय रहकर विश्राम करते थे।


वर्तमान जर्जर भवन के उपरी हिस्से में बड़ी बड़ी खिडकियों के अवशेष मिलते हैं जिन्हें लेकर कहा जाता है कि उन झरोखों से दूर पास के जंगली जानवरों, पशु पक्षियों  पर नज़र रखी जाती थी और उनका शिकार किया जाता था । इस महल के पिछवाड़े एक छोटा सा दरवाजा भी मिलता है जहां से होकर कोई सुरंग या तहखाना होने का आभास होता है। यद्यपि सुरक्षा की दृष्टि से अब उसे मिटटी से पाट दिया गया है । 


कहानी कविता जैसे रचनात्मक लेखन के क्षेत्र से जुड़े रायगढ़ के सक्रिय लेखक बसंत राघव ने चर्चा के दौरान इस बात का जिक्र किया कि आज से आठ दस साल पहले एक बार जब वे इस महल को देखने के लिए ही गए थे तब वहां उपस्थित कुछ चरवाहों ने बताया कि यहाँ से कोई सुरंग भी जाती थी । अब वो कोई सुरंग थी या कोई गुप्त रास्ता था उसके बारे में कोई जानकारी मिल नहीं पाती । उस जमाने में सुरक्षा की दृष्टि से, खासकर किसी युद्ध के दौरान राजाओं के द्वारा गुप्त रास्तों से होकर आने जाने के उदाहरण इतिहास में मिलते हैं इसलिए इस बात से यहाँ भी इनकार नहीं किया जा सकता । पूर्व के राजाओं को यह शौक भी था कि कुछ समय अपने राज-काज से फारिग होकर प्रकृति की गोद में बसे किसी एकांत और सुन्दर जगह में जाकर थोड़ा विश्राम किया जाए , लगता है आज का यह रानी महल उस लिहाज से भी बनाया गया रहा होगा । आज अगर बड़ी बड़ी गाड़ियों , बड़े बड़े डम्फरों का इस मार्ग से आना जाना न रहता तो कहना न होगा कि प्रकृति की सुन्दरता के लिहाज से यह जगह आज भी शहर की सबसे सुन्दर जगह  है । इस रानी महल से बस दो फर्लांग दूर पर ही इंदिरा विहार है जहाँ जंगल की झाड़ियों का सुन्दर फैलाव है। इस जगह पर आज भी सैकड़ों पर्यटकों का रोज आना जाना है । चूँकि यह एतिहासिक रानी महल अब अत्यंत जीर्ण शीर्ण हालत में है और उसके रख रखाव को लेकर किसी तरह की संजीदगी किसी भी स्तर पर नहीं दिखाई पड़ती इसलिए कई यू ट्यूबर अपने ब्लॉग में इसे भूतहा महल कहकर भी संबोधित करते हैं और इसे एक हॉरर फिल्म की तरह वीडियों में प्रदर्शित करते हैं जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है । 


मेरी तरह आप भी कभी इस छोटे से महल के भीतर जाइए तो लगेगा कि अपने दिनों में यह महल और इसके आसपास का इलाका कितना खूबसूरत रहा होगा । यहाँ प्रकृति की सुन्दरता अपने पूरे यौवन में रही होगी । काश हम उन दिनों में लौट सकते तो हमारा रायगढ़ शहर भी उन दिनों की तरह खूबसूरत होने लगता । 


आमीन।


रमेश शर्मा

मो. 7722975017

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. इतिहास से मनुष्य सीखे कुछ तो कितना अच्छा हो।

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  2. बहुत सुंदर आलेख जिसमें एक शहर के ऐतिहासिक सिम्बोल के बहाने एक सुचिंतित वैचारिक दिशा में ले जाने की कोशिश की गई है। बधाई

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    उत्तर
    1. आप नियमित रूप से मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी करते हैं इससे मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है। बहुत आभार ।

      हटाएं
  3. मैं पहले बहुत 40 साल पहले बहुत जाता रहता था । पिताजी उस समय एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में थे तो वहां हॉर्टिकल्चर ऑफिस एग्रीकल्चर का होता था और खेतिहर भूमि पर कृषि विभाग अनुसंधान के तहत फसल उगाया करते थे। उस समय इस क्षेत्र में बहुत सारे जंगली जानवर स्वयं मैंने देखे हैं ,जंगली जानवरों का उस समय क्षेत्र पर काफी आना जाना रहता था। सुरंग के बारे में मैंने भी सुना है ।इस रानीमहल पर खेलना हमारी रोज की दिनचर्या थी।

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    1. राजय भाई इस क्षेत्र को बेहतर जानते हैं। उनका अनुभव इस आलेख से मेल खाता है यह जानकर अच्छा लगा। आपकी टिप्पणी पढ़कर खुशी हुई। शुक्रिया इस टिप्पणी के लिए।

      हटाएं

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