मैक्सिम गोर्की असमर्थ युग के समर्थ लेखक के रूप में पहचाने जाते हैं। जन्म के समय अपनी पहली चीख़ के बारे में मैक्सिम गोर्की ने एक जगह स्वयं लिखा है- 'मुझे पूरा यकीन है कि वह चीख घृणा और विरोध की चीख़ रही होगी।' इस पहली चीख़ की घटना 1868 ई. की 28 मार्च की 2 बजे रात की है लेकिन घृणा और विरोध की यह चीख़ आज इतने वर्ष बाद भी सुनाई दे रही है।मैक्सिम गोर्की ऐसे क्रांतिकारी और युगद्रष्टा लेखक थे जिन्होंने लेखन के माध्यम से ऐसा रच दिया कि आजतक कोई रच नहीं पाया। जीते जी उन्हें जो कीर्ति मिली , जो सम्मान मिला वह किसी अन्य को नहीं मिल पाया। पीड़ा और संघर्ष उनकी रचनाओं का मुख्य कथानक है। यह सब उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता बढ़ई थे जो लकड़ी के संदूक बनाया करते थे । उनकी माँ ने अपने माता-पिता की इच्छा के बिरूद्ध विवाह किया था। यह दुर्भाग्य रहा कि मैक्सिम गोर्की सात वर्ष की आयु में ही अनाथ हो गए। वे माँ की ममता से वंचित रह गए। माँ की ममता की लहरों से वंचित हुए गोर्की को वोल्गा की लहरों द्वारा ही बचपन से संरक्षण मिला। शायद इसलिए उनकी 'शैलकश' और अन्य कृतियों में वोल्गा का सजीव चि...