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मार्च, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हरिद्वार में 'शांतिकुंज' , सप्तऋषि आश्रम और 'हर की पौड़ी' की परिक्रमा

हरिद्वार का नाम सुनते ही मन में एक आकर्षण पैदा होने लगता है । उत्तराखंड का एक सबसे सुंदर शहर, धार्मिक आस्था का शहर हरिद्वार । जब दिल्ली गए थे तो हम लोग हरिद्वार भी चले गए। उत्कल एक्सप्रेस रायगढ़ से सीधे हरिद्वार ले जाती है ।पर हम बीच में एक रात के लिए दिल्ली रुक गए थे। दूसरे दिन रात को दिल्ली से हमने ट्रेन पकड़ कर हरिद्वार के लिए यात्रा प्रारंभ की और सुबह-सुबह हरिद्वार पहुंच गए। हरिद्वार का रेलवे स्टेशन श्रद्धालु पर्यटकों से भरा हुआ था। गो आईबिबो के माध्यम से हमारी होटल की बुकिंग हो रखी थी, और हम सीधे अपने होटल में चले गए। हमने नहा धोकर थोड़ी देर होटल में विश्राम किया। बाहर निकले तो गलियों में बहुत सारे छोटे-छोटे रेस्टोरेंट हमें मिले। नाश्ता करते हुए लगभग 10 बजे का समय हो गया। फिर थोड़ा टहलते हुए आगे बढ़े और एक ऑटो रिक्शे में हम सीधे शांतिकुंज हरिद्वार के लिए निकल पड़े। वहां गेट पर भीड़ लगी थी , बताया गया कि प्रवेश के लिए आधार कार्ड का होना बहुत जरूरी है। हम अपना आधार कार्ड होटल में ही भूल कर आ गए थे । हर की पौड़ी हरिद्वार उस समय हमें थोड़ी परेशानी महसूस

कहानी संग्रह "उस घर की आंखों से" की समीक्षा- बसंत राघव

युवा लेखक कवि  बसंत राघव छत्तीसगढ़ के रायगढ़ शहर में रहते हैं । उनके पिता स्व. डॉ बलदेव जो एक प्रसिद्ध लेखक रहे और अपने लेखन के माध्यम से साहित्य जगत को जाते जाते बहुत कुछ दे गए, की उस परंपरा को बसंत राघव बखूबी निभा भी रहे हैं। वे रचनात्मक लेखन के लिए लगातार फेसबुक में सक्रिय रहते हैं।  सबलोग, संवेद, जनचौक,समता मार्ग जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उनके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं।मुद्रित पत्रिकाओं की बात करें तो परिकथा, रचना उत्सव,मानवी,  सुसंभाव्य, देशबन्धु जैसी पत्र-पत्रिकाओं में उनके आलेख एवम उनकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित भी होती आ रही हैं। उन्होंने कहानी संग्रह 'उस घर की आंखों से' पर एक समीक्षकीय टिप्पणी लिखी है जो हाल ही में परिकथा के नए अंक मार्च अप्रैल 2023 में प्रकाशित हुई है। मनुष्यता को हर हाल में बचाए रखने की मुहिम  ------------------------------------------------  रमेश शर्मा के अब तक तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। "उस घर की आँखों से" उनका तीसरा कहानी संग्रह है। इसमें छोटी-बड़ी करीबन अठारह कहानियां संग्रहित हैं। अधिकांश कहानियों का रचना समय 2020-2021 है। कहा

पुरी ओड़िशा के अंतिम थियेटर श्रीकृष्ण सिनेमा के जमींदोज होने की कहानी

यह जानकर आपको बहुत अजीब लगेगा कि ओड़िशा के पुरी जैसे शहर में जहां प्रतिदिन हजारों पर्यटक घूमने आते हैं, वहां अब एक अदद सिनेमा हॉल तक नहीं बचा है।                           श्री कृष्ण सिनेमा हॉल पुरी आप कहेंगे कि लोग वहां सिनेमा देखने थोड़ी आते हैं। अगर बाहर के पर्यटक समय निकालकर सिनेमा नहीं भी देखते तो क्या किसी सुंदर शहर में  एक सिनेमा हॉल भी नहीं होना चाहिए? तो इसका उत्तर होगा--बिल्कुल होना चाहिए । आखिर पुरी में जो स्थानीय लोग रहते हैं, उनको भी तो कभी सिनेमा देखने की जरूरत महसूस होती होगी। इस विषय पर इसलिए मैं आज यहां कुछ लिख रहा हूं क्योंकि ओड़िशा की तीर्थ धाम कही जाने वाली नगरी पुरी का सबसे पुराना और आखिरी बचा हुआ थिएटर श्रीकृष्ण सिनेमा हॉल सोमवार 27 मार्च 2023 को ध्वस्त कर जमींदोज कर दिया गया । श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) कार्यालय के पीछे स्थित यह श्रीकृष्ण सिनेमा हॉल को श्री क्षेत्र  परिक्रमा परियोजना जिसे श्रीमंदिर हेरिटेज कॉरिडोर परियोजना भी कहा जाता है , इसी परियोजना  के लिए ध्वस्त कर दिया गया। सिनेमा हॉल मंदिर से सिर्फ 100 मीटर की दूरी पर था- इस बिषय को लेकर जो बातें स

वर्ल्ड थियेटर डे :आज भी है थियेटर का महत्व

जीवन में वैचारिक मूल्यों को जीवित रखने के लिए कला साहित्य के साथ साथ रंगमंच की एक बहुत बड़ी भूमिका है।रंगमंच के महत्त्व को बचाए रखना आज एक बड़ी जरूरत  है । यह एक ऎसी प्रदर्शन कारी कला है जो आदिकाल से लोगों को जगाने का काम करती रही है। कहते हैं आज के बाजारू समय में वैचारिक मूल्यों के लिए बाज़ार ने बहुत कम जगह छोड़ा है। सोशल मीडिया के समय में ज्यादातर युवा साहित्य कला रंगमंच जैसी जीवन मूल्यों को सृजित करने वाली कलाओं से दूर होकर रील बनाने में रात दिन व्यस्त हैं । चाहे फेसबुक हो चाहे इन्स्टाग्राम , वहां हम देखते हैं कि आज के युवा लड़के लड़की फिल्मी गानों में एक्टिंग करते हुए बहुत फूहड़ ढंग से शोर्ट वीडियो शेयर कर रहे हैं । बाज़ार ने आज उन्हें उस जगह खड़ा कर दिया है जैसे कि रील बनाकर ही जीवन गुज़ारा जा  सकता है । उनके दिमाग में यह चीज बाज़ार ने बिठा दिया है कि इससे पैसे कमाए जा सकते हैं । इसी धुन में जीवन के महत्वपूर्ण समय को जाया करते हुए उन्हें देखा जा सकता है । हजारों में किसी एक दो ने पैसे कमा लिए, इसका मतलब यह तो नहीं कि इस अंधी दौड़ में हर कोई उर्फी जावेद की राह पकड़ ले । दरअसल यह रास्ता जीवन में

मनोज कुमार शिव का कहानी संग्रह घर वापसी Ghar Vapasi Manoj kumar Shiv

घर वापसी युवा कथाकार मनोज कुमार शिव जी का पहला कहानी संग्रह है।इस संग्रह में ग्यारह कहानियां हैं । इन ग्यारह कहानियों को पढ़ने के बाद यह तय कर पाने में कोई संशय नहीं रह जाता कि मनोज ग्रामीण अंचल की घटनाओं को अपनी कहानियों में पिरोने वाले कथाकार हैं। उनके रचना कर्म का भूगोल मूलतः ग्रामीण अंचल की घटनाओं से ही आकार पाता है। आज के उत्तर आधुनिक समय में ग्रामीण अंचल की घटनाओं को कहानियों में उतारना दुरूह तो नहीं है पर सरल भी नहीं है। इसके लिए कथाकार को ग्रामीण अंचल के जीवन का पर्याप्त अनुभव होना चाहिए और यह अनुभव केवल सुनी सुनाई बातों के माध्यम से अर्जित किया हुआ न होकर जीवंत होना चाहिए । मनोज की कहानियों को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनके पास एक नागरिक और उस नागरिक के भीतर जन्मे लेखक के रूप में ग्रामीण जीवन का पर्याप्त अनुभव है। इन कहानियों को पढ़ने के बाद पाठक को नदी, नाले, पहाड़ , पहाड़ की गोद में बसे गांव ,सेब के पेड़ के बगीचे और वहां की आबोहवा के सौंदर्य का एहसास यूं होने लगता है कि जैसे उनके बिना दुनिया का सौंदर्य अधूरा है। कहानियों को पढ़ते हुए एक बात और शिद्दत से महसूस होती है

रायगढ़ का कमला नेहरू पार्क : इतिहास और स्मृतियां Raigarh ka kamla neharu park: Itihas aur smritiyan

रायगढ़ के ह्रदय स्थल चक्रधर नगर चौक में स्थित है कमला नेहरू पार्क। यह पार्क शहर की जरूरतों के हिसाब से  वर्तमान में शहर के सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है | यहां बच्चे बूढ़े युवा सारे लोग सुबह शाम स्वास्थ्य और मानसिक तंदुरुस्ती के हिसाब से नियमित आते जाते हैं और यह जगह इस अवधि में गुलज़ार रहता है । मैं यहाँ से निकटस्थ किरोड़ीमल साइंस कॉलेज में सन 1983 में बी.एस-सी.में एडमिशन लिया था और एम.एस-सी.मैंने वहीं पूरी की । इन पांच छः सालों के दरमियान इस जगह के सामने की सड़क से होकर हम लोगों का अक्सर आना जाना होता था ।  यह पार्क उन दिनों उतना विकसित नहीं हुआ था इसलिए इसने इस तरह कभी मेरा ध्यान नहीं खींचा था । मैं बीच-बीच में भी कभी कभार वहां जाया करता था। आज 26 मार्च 2023 को बहुत दिनों  बाद वहां गया तो वहां के परिसर की सुंदरता देखकर मुझे बहुत खुशी हुई । इस पार्क को निर्मित हुए भी 35 साल गुजर चुके हैं और इन 35 सालों में इस शहर ने बहुत कुछ बदलाव देखा है।इसका निर्माण अस्सी के दशक में  हुआ और इसका रख रखाव नगर पालिका रायगढ़ के माध्यम से ही उस समय हुआ करती था। धीरे धीरे फिर इसका थोड़ा बहुत विकास हुआ। कालांत

तीरथगढ़ बस्तर की यात्रा Tirathgarh Bastar ki yatra

जब हमारे मित्रों की टोली बस्तर भ्रमण पर थी तो इस बस्तर भ्रमण के दौरान एक दिन हम सब तीरथगढ़ जलप्रपात भी जा पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद पर्यटन का जो आनंद होता है जीवन में, उस आनंद की अनुभूति को वहां से वापस लौट आने के बाद भी मैं बारंबार  महसूस करता रहता हूं। तीरथगढ़ जलप्रपात को लेकर जो बातें हमें जानने समझने को मिलती हैं उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ के बस्‍तर जिले में कांगेर नदी पर स्थित इस तीरथगढ़ वाटरफॉल की ऊंचाई 299 फीट है।         जब तीरथगढ़ जलप्रपात पर पहुंची मस्तानों की टोली यह जलप्रपात कांगेर घाटी नेशनल पार्क का हिस्सा है । यह जलप्रपात खूबसूरत जंगलों और प्रचुर वनस्‍पति और वन्‍यजीवों से चारों तरफ घिरा हुआ है। ये जगह बहुत खूबसूरत होने की वजह से पर्यटक यहां फोटोग्राफी का भी भरपूर आनंद हमारी तरह ले सकते हैं। यहां की हवा शुद्ध है और चारों तरफ के वातावरण में एक अलग किस्म का नशा छाया रहता है जो मन को ताजगी और खुशी से भर देता है। तीरथगढ़ जलप्रपात का खूबसूरत नजारा  प्राकृतिक छटाओं से घिरे होने के कारण पर्यटक यहां खूब आनंद लेते हैं।ऊंचे पहाड़ों से पानी के  झर झर कर गिरने की वजह से यहां का पानी दूधिया

महावीर राजी की कहानी : बकुल बाउरी की हिचक कथा

महावीर राजी की कहानी बकुल बाउरी की हिचक कथा पढ़ते हुए बतौर पाठक कई बार थोड़ी बेचैनी महसूस होती है कि बकुल बावरी की जो हिचक है वह जल्दी दूर हो और वह माछ के उधारी की रकम बारह सौ रुपये का तकादा जल्दी करे।  इस हिचक के आरपार ही कहानी की बुनावट है और इस बुनावट के भीतर ही किस्सागोई है। दरअसल कथाकार किसी कहानी को लिखते हुए बहुत महीन चीजों को देखने की कोशिश करता है।इस कहानी में कथाकार की नजर इस हिचक पर ही टिकी हुई है। इस हिचक के बने रहने पर ही कहानी की सार्थकता है जो कि आज के समाज का एक कड़वा यथार्थ भी है। मनुष्य ऊपर उठने के लिए बहुत सारे हथकंडे अपनाता है और जैसे-जैसे वह समाज में ऊपर उठता जाता है उसकी नीचता और बढ़ती जाती है। इस कहानी में मदन माझी से डॉक्टर मदन मुखर्जी बनने की कथा मनुष्य के पतन की ही कथा है। इस पतन में एनजीओ के रूप में तंत्र के दूसरे हिस्से भी शामिल हैं जो हर किस्म के अवैध कामों को पैकेज के माध्यम से करने का दावा भी करते हैं और अंततः उसे सम्पन्न भी करवा देते हैं । मदन माझी ऐसे ही तंत्रों के माध्यम से एक दिन होम्योपैथी का डॉक्टर बन जाता है और कागजी दस्तावेजों के हेर फेर से दलित से