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अंधेरे के पार : गजेन्द्र रावत

  नैतिक मूल्यों को लेकर मनुष्य की भीतरी दुनिया में मचा द्वंद कई बार मनुष्य को अंधेरे की खोह में धकेल देता है तो कई बार अंधेरे के उस पार भी ले जाता है। परिकथा नवंबर दिसंबर 2020 अंक में प्रकाशित गजेंद्र रावत की कहानी "अंधेरे के पार"को पढ़ते हुए, जीवन के कठिन समय में संघर्षरत, एक सर्वहारा मनुष्य के भीतर मचे हुए द्वंद के कई कई दृश्य आंखों के सामने आने जाने लगते हैं। मनुष्य के लिए आज नैतिक पतन सबसे आसान रास्ता है और वह भी उस मनुष्य के लिए जो जीवन के अभावों के बीच नीत संघर्षरत है, जिसके पास गरीबी है, जो तंत्र की अमानवीयताओ का शिकार है। गजेंद्र रावत की कहानी अंधेरे के उस पार "लाली" नामक एक ऐसे ही युवक की कहानी है जो "सत्ता" नामक बिगड़ैल और गुंडेनुमा युवक की संगत में गरीब मजदूरों को राहजनी कर लूटने का काम करता है पर यह काम उसे रास नहीं आता। उसे लगता है कि उसने बहुत गलत काम किया है। उसके भीतर का द्वंद उसे बैचैन और परेशान कर देता है। वह भीतर ही भीतर आत्मग्लानि से भर उठता है। मनुष्य के नैतिक मूल्यों के प्रतिस्थापन को लेकर लिखी गईं इस तरह की मनोवैज्ञानिक कहानियां पा...