कविता की आँख से खगेंद्र ठाकुर के अमूर्त संसार को देखना - रमेश शर्मा (आलेख : परिकथा खगेन्द्र ठाकुर विशेषांक मई - अगस्त 2020 से साभार) ------------------------- बस ऐसे ही रहने दो मुझे अनदेखा , अनजाना मरने दो मुझे बिना शोक , बिना रोए छुपा लो इस दुनिया से जहाँ एक पत्थर भी न बताए कि मैं कहाँ हूँ लेटा कहाँ सोया ! - एलेकजेंडर पोप कई बार कविता की पंक्तियां कवि को देखने का एक सुनहरा अवसर देती हैं । कविताओं के माध्यम से कवि को देखना उसकी भीतरी दुनिया से गुजरने का एक सुखद सा अनुभव भी देता है । मैं खगेंद्र ठाकुर से बस एक बार मिला था । छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सितंबर 2016 में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के 16 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में । तब वे वहां आए हुए थे। अपनी बाहरी दुनिया में धोती कुर्ता पहना हुआ बिल्कुल एक साधारण सा आम आदमी , जिसे मेरी आँखें उत्सुकता से ठहरकर उस दिन देखती रहीं। मैंने मिलकर उनसे बात भी की । ऐसा बहुत कम होता है कि जो हम बाहर देखते हैं वह भीतर भी महसूस करते हैं , पर उनसे मिलकर मैंने जो बाहर से देखा वह भीतर से भी महसूस हुआ । यह एक छोटी मुलाकात थी । एक छ