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फ़रवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आलोचक नन्द किशोर आचार्य का महत्वपूर्ण वक्तब्य : छत्तीसगढ़ साहित्य एकेडमी का आयोजन

  ब तौर आलोचक प्रभात त्रिपाठी किसी कविता के पास, किसी कहानी के पास या किसी उपन्यास के पास उसी अन्वेषण धर्मिता के साथ जाते हैं जिस तरह कि वे स्वयं की रचना के पास जाते हैं   -  आलोचक नंद किशोर आचार्य  आयोजन में बोलते हुए आलोचक नंदकिशोर आचार्य आलोचना का मतलब है आलोचन। पूर्णता से  उसको  समझने की कोशिश । अगर वो आप नहीं करते हैं , आपने यह तय कर लिया कि सिर्फ दाखिल करना है या खारिज करना है कि ये अच्छा कवि है या अच्छा कवि नहीं है तब तो आपके लिए कविता अन्वेषण नहीं है । आपके लिए कविता  अपने पूर्व निर्धारित विचारों का स्थापन भर है और उसके विरोध में आने वाले विचारों को खारिज करने का एक बहाना भर है।अच्छा आलोचक किसी को खारिज नहीं करता, वह उसमें से कुछ ढूँढ़ कर निकालता है और उस प्रक्रिया में आलोचना का जन्म होता है । प्रभात त्रिपाठी किसी पूर्व निर्धारित प्रतिमान को लेकर के या किसी पूर्व निर्धारित थियरी को लेकर के कविता के पास , कला के पास या उपन्यास के पास नहीं जाते । वे जाते हैं एक पाठक के रूप में उसी अन्वेषण धर्मिता के साथ जिसके साथ कि वे स्वयं अपनी रचना में जाते हैं । अपने रचना कर्म में जो अन्वेषण

'कोरोना की डायरी' का विमोचन

"समय और जीवन के गहरे अनुभवों का जीवंत दस्तावेजीकरण हैं ये विविध रचनाएं"    छत्तीसगढ़ मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन जिला इकाई रायगढ़ के अध्यक्ष सुशीला साहू के सम्पादन में प्रकाशित किताब 'कोरोना की डायरी' में 52 लेखक लेखिकाओं के डायरी अंश संग्रहित हैं | इन डायरी अंशों को पढ़ते हुए हमारी आँखों के सामने 2020 और 2021 के वे सारे भयावह दृश्य आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी रूप में हम सब की हिस्सेदारी रही है | किताब के सम्पादक सुश्री सुशीला साहू जो स्वयं कोरोना से पीड़ित रहीं और एक बहुत कठिन समय से उनका बावस्ता हुआ ,उन्होंने बड़ी शिद्दत से अपने अनुभवों को शब्दों का रूप देते हुए इस किताब के माध्यम से साझा किया है | सम्पादकीय में उनके संघर्ष की प्रतिबद्धता  बड़ी साफगोई से अभिव्यक्त हुई है | सुशीला साहू की इस अभिव्यक्ति के माध्यम से हम इस बात से रूबरू होते हैं कि किस तरह इस किताब को प्रकाशित करने की दिशा में उन्होंने अपने साथी रचनाकारों को प्रेरित किया और किस तरह सबने उनका उदारता पूर्वक सहयोग भी किया | कठिन समय की विभीषिकाओं से मिलजुल कर ही लड़ा जा सकता है और समूचे संघर्ष को लिखि

मलकानगिरी यात्रा संस्मरण: बीहड़ जंगलों के बीच गुजरते हुए लगा जैसे यात्राएं भी जीवन की कहानियाँ सुनाती हैं

रायगढ़ से निकल कर हम ओड़िशा के एक ऐसे शहर में पहुंचे थे जिसे माल्यवंत गिरी के नाम से जाना जाता रहा है ।अब इस शहर का नाम मलकानगिरी है । कोरापुट जिले से अलग होकर नए जिले के रूप में इसकी खुद की पहचान अब तेजी से बन रही है। छत्तीसगढ़ और आंध्रा के बॉर्डर इलाके में स्थित माओवादी इलाके के रूप में जो इसकी खुद की पहचान अब तक रही थी , तेजी से विकसित हो रहे इस शहर ने उस पहचान को एक तरह से अब धूमिल किया है। अब यह शहर तेजी से मुख्यधारा की ओर बढ़ने लगा है। हरी-भरी सुंदर पहाड़ियों की गोद में बसा यह शहर अपने शुद्ध पर्यावरण के लिए भी लोगों का पसंदीदा शहर बनता जा रहा है। यहां का सतिगुड़ा डैम और चित्रकुंडा डैम पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अगस्त माह के बारिश के दिनों में जब हम यहां कुछ समय के लिए रुके थे तो घनी पहाड़ियों की वजह से जब चाहे बारिश हो जाया करती थी। शहर से पांच किलोमीटर दूर सतीगुड़ा डैम में टहलते हुए हमें लग रहा था कि हरी-भरी वादियों और अथाह जल सागर की गोद में हम आ बैठे हैं।यद्यपि डेम तक पहुंचने का रास्ता बारिश के कारण अस्त व्यस्त सा है पर वहां पहुंचने के बाद हरी भरी वादियों की खूबसूरत

'भाप के घर में शीशे की लड़की' [ डायरी संग्रह, लेखिका :बाबुषा कोहली ] गूढ़ सांकेतिकता को बूझने का एक गंभीर उद्यम -रमेश शर्मा

बाबुषा कोहली की किताब ' भाप के घर में शीशे की लड़की ' पढ़ते हुए कई बार लगा कि निजी जीवन के अनुभवों को ही प्रतिछबियों में मैं देख पा रहा हूं। मेरी जगह कोई और भी पाठक होता तो संभव है उसे भी इसी किस्म के अनुभव होते। बाबुषा के पास आम जन जीवन /निजी जीवन में घटित घटनाओं को देख पाने की एक विरल दृष्टि है जो अमूमन बहुत कम लोगों के पास होती है। विजन की अद्वितीयता एक रचनाकार को दूसरे रचनाकारों से अलग रखते हुए उसे एक नई पहचान देती है । बाबुषा की इस किताब में जो कुछ भी है बहुत साधारण होते हुए भी एक असाधारण दृष्टि के साथ इस रूप में सामने आती है कि एक पाठक के रूप में हम अपने आप को अंतर संबंधित करने लगते हैं। किताब में संग्रहित गद्य में दृष्टि की अद्वितीयता के साथ-साथ जो भाषायी सौंदर्य और सूफियाना अंदाज में व्यक्त हुई गद्य का जो लालित्य है वह अप्रतिम है। एक अच्छी कवियत्री और अप्रतिम गद्य लेखिका होने के साथ-साथ बाबुषा पेशे से एक अध्यापिका भी हैं । अपने मित्रों , अपने विद्यार्थियों के साथ समय बिताते हुए बतौर रचनाकार और अध्यापिका के रूप में उनके दैनिक जीवन के जो अनुभव हैं और उन अनुभवों से उपजी जो