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अख़्तर आज़ाद की कहानी लकड़बग्घा और तरुण भटनागर की कहानी ज़ख्मेकुहन पर टिप्पणियाँ

जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती होंगी कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। (हंस जुलाई 2023 अंक में अख्तर आजाद की कहानी लकड़बग्घा पढ़ने के बाद एक टिप्पणी) -------------------------------------- हंस जुलाई 2023 अंक में कहानी लकड़बग्घा पढ़कर एक बेचैनी सी महसूस होने लगी। लॉकडाउन में मजदूरों के हजारों किलोमीटर की त्रासदपूर्ण यात्रा की कहानियां फिर से तरोताजा हो गईं। दास्तान ए कमेटी के सामने जितने भी दर्द भरी कहानियां हैं, पीड़ित लोगों द्वारा सुनाई जा रही हैं। उन्हीं दर्द भरी कहानियों में से एक कहानी यहां दृश्यमान होती है। मजदूर,उसकी गर्भवती पत्नी,पाँच साल और दो साल के दो बच्चे और उन सबकी एक हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा। कहानी की बुनावट इन्हीं पात्रों के इर्दगिर्द है। शुरुआत की उनकी यात्रा तो कुछ ठीक-ठाक चलती है। दोनों पति पत्नी एक एक बच्चे को अपनी पीठ पर लादे चल पड़ते हैं पर धीरे-धीरे परिस्थितियां इतनी भयावह होती जाती हैं कि गर्भवती पत्नी के लिए बच्चे का बोझ उठाकर आगे चलना बहुत कठिन हो जाता है। मजदूर अगर बड़े बच्चे का बोझ उठा भी ले तो उसकी पत्नी छोटे बच्चे का बोझ उठाकर चलने में पूरी तरह असमर्थ हो च

अनघा जोगलेकर सीमा शर्मा और प्रीति प्रकाश की कहानियों पर टिप्पणियाँ और समाज की एक मैली सी तस्वीर

चित्र रानी दरहा करमागढ़ ■अनघा जोगलेकर की कहानी 'ऐ जमूरे! ..हाँ उस्ताद' पढ़ते हुए  ------------------------------------ हंस जून 2021 अंक में अनघा जोगलेकर की कहानी "ऐ जमूरे!... हाँ उस्ताद" पढ़कर उस पर कुछ लिखने के लिए कहानी के कथ्य ने एक तरह से मन को प्रोवोक किया। ऐसा तब होता है जब कोई कहानी अन्दर से हमें विचलित करने लगती है । दंगाई पृष्ठभूमि और उससे उपजे हालातों को बयाँ करती यह कहानी  कभी दंगा का सामना न करने वाले लोगों को भी उन दृश्यों के इतना निकट ले जाती है जैसे वे स्वयं भी उन दृश्यों के हिस्से हों । दंगाई हालातों और  कर्फ्यू के दरमियान किसी के दरवाजे पर मटके में पानी मांगने गयी कोई प्यासी अबोध बच्ची जब पुलिस की गोली का शिकार होकर सामने खून से लथपथ पड़ी हो  और आप उसके चश्मदीद हों तो आपकी भीतरी दुनियां में किस तरह के मानवीय संवेग पैदा होंगे ? उस पर पुलिस पिस्तौल तानकर  ये कहे  कि इस लड़की को मना किया गया था .... नहीं मानी ! अन्दर जाइए नहीं तो आपको भी इस लडकी की तरह  गोलियों से भून देंगे तब ?  कहानी मन के भीतर एक कशमशाहट पैदा करती है कि झुग्गियों से निकल कर पानी मांगने गय

ज्ञान प्रकाश विवेक, तराना परवीन, महावीर राजी और आनंद हर्षुल की कहानियों पर टिप्पणियां

◆ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी "बातूनी लड़की" (कथादेश सितंबर 2023) उसकी मृत्यु के बजाय जिंदगी को लेकर उसकी बौद्धिक चेतना और जिंदादिली अधिक देर तक स्मृति में गूंजती हैं।  ~~~~~~~~~~~~~~~~~ ज्ञान प्रकाश विवेक जी की कहानी 'शहर छोड़ते हुए' बहुत पहले दिसम्बर 2019 में मेरे सम्मुख गुजरी थी, नया ज्ञानोदय में प्रकाशित इस कहानी पर एक छोटी टिप्पणी भी मैंने तब लिखी थी। लगभग 4 साल बाद उनकी एक नई कहानी 'बातूनी लड़की' कथादेश सितंबर 2023 अंक में अब पढ़ने को मिली। बहुत रोचक संवाद , दिल को छू लेने वाली संवेदना से लबरेज पात्र और कहानी के दृश्य अंत में जब कथानक के द्वार खोलते हैं तो मन भारी होने लग जाता है। अंडर ग्रेजुएट की एक युवा लड़की और एक युवा ट्यूटर के बीच घूमती यह कहानी, कोर्स की किताबों से ज्यादा जिंदगी की किताबों पर ठहरकर बातें करती है। इन दोनों ही पात्रों के बीच के संवाद बहुत रोचक,बौद्धिक चेतना के साथ पाठक को तरल संवेदना की महीन डोर में बांधे रखकर अपने साथ वहां तक ले जाते हैं जहां कहानी अचानक बदलने लगती है। लड़की को ब्रेन ट्यूमर होने की जानकारी जब होती है, तब न केवल उसके ट्यूटर

माँ पर महत्वपूर्ण कोटेशन : माँ के बिना ये खूबसूरत शब्द हम तक न पहुँचते

  आज मदर्स डे है । माँ को लेकर न जाने कितनी गंभीर और खूबसूरत बातें बड़े बड़े लोगों ने कही हैं। अव्वल तो ये कि ये सारे बड़े लोग किसी माँ की संतानें ही हैं जिसने अपनी संवेदना के शब्दों से उन्हें इतना तरल बनाया कि वे माँ से जुड़े अपने अनुभवों को दुनिया से साझा कर सके । माँ न होती ये खूबसूरत शब्द हम तक कभी न पहुँचते ।आईये हम भी उनके अनुभवों को जाने समझें कि माँ को लेकर किसने क्या कहा है -   मातृत्व दिवस की बधाई    मां कहती थी चीजें जहां होती हैं अपनी एक जगह बना लेती हैं और वह आसानी से मिटती नहीं मां अब नहीं है सिर्फ उसकी जगह बची हुई है ! - मंगलेश डबराल   माँ का दिल बच्चे के स्कूल का कमरा है । -Henry Ward Beecher     जब आप अपनी माँ की आँखों में देखते हैं , तो आपको पता चलता है कि यह इस धरती पर मिलने वाला सबसे शुद्ध प्रेम है। - Mitch Albom   भगवान हर जगह नहीं हो सकता है , इसलिए उसने माँ को बनाया। - Rudyard Kipling   मैं आज जो कुछ भी हूँ , जो कुछ भी होऊंगा , इसके लिए मैं मेरी प्यारी माँ का अहसानमंद हूँ। - Abraham Lincoln     यदि पहली बार में आप सफल नह

केलो नदी : गांधीवादी मॉडल की अनदेखी और विकास के दुष्चक्र में फंसी नदियाँ

केलो नदी की समस्या को लेकर अनुग्रह में एक आलेख प्रकाशित हुआ था "रायगढ़ की जीवन रेखा केलो का शोक गीत" । उस आलेख को लेकर हमें कुछ महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। लेखक और विचारक डॉ हेमचंद्र पांडे और युवा कवि लेखक बसंत राघव की इन प्रतिक्रियाओं से सम्भव है इस बहस को आगे और जगह मिले । इन दोनों ही प्रतिक्रियाओं को अनुग्रह के पाठकों के लिए हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं - ◆१◆ अनुग्रह के 06/04/2023 के अंक में रमेश जी के द्वारा लिखित रायगढ़ की जीवन रेखा 'केलो' का शोक गीत हम रायगढ़ वासियों के द्वारा अनसुना ही रह गया । बसंत राघव के अलावा  किसी ने भी अत्यंत ज्वलंत समस्या पर केंद्रित इस जरूरी आलेख पर कोई टिप्पणी नहीं की। डॉ. हेमचन्द्र पांडेय  यह मौन और उदासीनता ही वे कारण हैं कि रायगढ़ मानों आत्मघात की दहलीज पर जा पहुंचा है। रमेश जी के इस आलेख का प्रत्यक्ष संदर्भ स्थानीय जरूर है पर, निहितार्थ सार्वभौमिक है। केलो के स्थान पर विश्व की किसी भी नदी का नाम रखा जा सकता है और रायगढ़ के स्थान पर किसी भी अन्य धुंधियाये औद्योगिक नगर या महानगर का नाम डाला जा सकता है ; तब भी आलेख का वर्

पारमिता शतपथी की कहानी : कुरई फूल पर टिप्पणी paramita shatpathy ki kahani kurayi fool.

पारमिता शतपथी Parmita Satpathy की लिखी कहानी "कुरई फूल" उनके संग्रह "पाप और अन्य कहानियां"( राजकमल प्रकाशन) से पढ़ने का अवसर सुलभ हुआ। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कारपोरेट पोषित लोग किस तरह पहले विश्वास जीतते हैं और फिर उस विश्वास को किस तरह तार-तार करते हैं यह दृश्य रतन सिंह और रीना के प्रेम के माध्यम से हमारी आंखों के सामने लेखिका अपनी कहानी में रचती हैं । प्रेम वह सीढ़ी है जिसके माध्यम से शहरी और पढ़े लिखे लोग आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में स्त्रियों को अपने विश्वास में लेते हैं। इन स्त्रियों के लिए प्रेम का कोई अन्य अर्थ नहीं है, वे प्रेम को प्रेम की तरह अपने इकहरे अर्थ में ही लेती हैं । यही उनकी कमजोरी है। इस कमजोरी के कारण वे अपने विश्वास को एक दिन पराए मर्द को सौंप देती हैं, और फिर यहीं से शोषण की कहानियां शुरू होती हैं। कारपोरेट द्वारा पाले पोसे गए कारिंदे जिनकी नजर जल जंगल और जमीन पर ही टिकी होती है, उन पर कब्जा जमाने के लिए सीढियों की तरह वे वहां की स्त्रियों का सहारा लेते हैं। कुरई फूल जो जंगल में रात में खिलता है उसकी सुगंध बहुत मीठी होती है, उस प्रेम क

गांधी के विचारों पर केंद्रित होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर परिचर्चा

  सन 1888 में गांधी जी कानून की पढाई करने जब लन्दन गए तब वहां उन्होंने वेजिटेरियन सोसायटी की सदस्यता ली । वेजिटेरियन सोसायटी से उनदिनों एक पत्रिका निकलती थी जिसका नाम था वेजिटेरियन । ‘वेजिटेरियन’ पत्रिका के लिए गांधी ने भारत के त्योहारों पर लेखों की एक श्रृंखला लिखी थी। इसी श्रृंखला में 25 अप्रैल, 1891 को एक आलेख उन्होंने ‘होली’ पर भी लिखा था। इसमें उन्होंने होली और दिवाली का एक सुंदर तुलनात्मक विश्लेषण किया था। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि होली के अवसर पर विशेषकर महिलाओं के प्रति अशोभनीय व्यवहार और अश्लील भाषा के इस्तेमाल की वजह से उन्होंने इसे विनोदपूर्ण भाषा में अंग्रेजी का ‘अनहोली’ (Unholy) या अपावन त्योहार कहा था । इस आलेख में यद्यपि उन्होंने उम्मीद जताई थी कि जैसे-जैसे भारतीयों में शिक्षा बढ़ेगी, वैसे-वैसे ये अश्लील प्रथाएं समाप्त होती जाएंगी । 132 साल पहले गांधी जी ने जो उम्मीद जताई थी कि शिक्षा के साथ साथ महिलाओं को लेकर लोगों के नज़रिए में परिवर्तन आएगा , उस बात को हम बहुत पीछे छोड़ आए हैं।  8 मार्च को जब होली त्यौहार भी है और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी है, इस विशेष अवसर