पारमिता शतपथी Parmita Satpathy की लिखी कहानी "कुरई फूल" उनके संग्रह "पाप और अन्य कहानियां"( राजकमल प्रकाशन) से पढ़ने का अवसर सुलभ हुआ। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कारपोरेट पोषित लोग किस तरह पहले विश्वास जीतते हैं और फिर उस विश्वास को किस तरह तार-तार करते हैं यह दृश्य रतन सिंह और रीना के प्रेम के माध्यम से हमारी आंखों के सामने लेखिका अपनी कहानी में रचती हैं । प्रेम वह सीढ़ी है जिसके माध्यम से शहरी और पढ़े लिखे लोग आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में स्त्रियों को अपने विश्वास में लेते हैं। इन स्त्रियों के लिए प्रेम का कोई अन्य अर्थ नहीं है, वे प्रेम को प्रेम की तरह अपने इकहरे अर्थ में ही लेती हैं ।यही उनकी कमजोरी है। इस कमजोरी के कारण वे अपने विश्वास को एक दिन पराए मर्द को सौंप देती हैं, और फिर यहीं से शोषण की कहानियां शुरू होती हैं। कारपोरेट द्वारा पाले पोसे गए कारिंदे जिनकी नजर जल जंगल और जमीन पर ही टिकी होती है, उन पर कब्जा जमाने के लिए सीढियों की तरह वे वहां की स्त्रियों का सहारा लेते हैं। कुरई फूल जो जंगल में रात में खिलता है उसकी सुगंध बहुत मीठी होती है, उस प्रेम की तरह जिस प्रेम को वहां की भोली भाली स्त्रियां जीती हैं और लोगों के हाथों अंत में छली जाती हैं ।
उनकी देह, उनका मन, उनका विश्वास सब कुछ तार-तार हो जाता है। कहानी में आदिवासी स्त्री के प्रेम और विश्वास के कई कई दृश्य रचे गए हैं जो फिल्म की तरह आंखों के सामने आते जाते हैं। जंगल में रात में खिलने वाले कुरई फूल की सुगंध को कौन बचाएगा? ऐसे सवालों के साथ कहानी को पढ़ लेने के बाद मानसिक रूप से बहुत बेचैनी और छटपटाहट का अनुभव होता है।परमिता शतपथी Parmita Shatpathy
परमिता शतपथी उड़िया साहित्य की एक प्रभावशाली कथा लेखिका हैं। उनके सात कहानी संग्रह और दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी रचनाओं का अनुवाद बहुत से लेखकों ने अन्य भारतीय भाषाओं में किया है और इस तरह उनकी ओड़िया भाषा में लिखी गयी पुस्तकें अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली और मराठी भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। 2016 में उन्हें ओड़िया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। वे 1989 में भारतीय राजस्व सेवा में शामिल हुईं थीं और वर्तमान में नई दिल्ली में आयकर आयुक्त के रूप में कार्यरत हैं।
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