आज फादर्स डे है । इस अवसर पर प्रस्तुत है परिधि
की एक कविता "पिता की चप्पलें"।यह कविता वर्षों पहले उन्होंने लिखी थी । इस कविता में जीवन के गहरे अनुभवों को व्यक्त करने का वह नज़रिया है जो अमूमन
हमारी नज़र से छूट जाता है।आज पढ़िए यह कविता ......
पिता की चप्पलें
आज मैंने सुबह सुबह पहन ली हैं पिता की चप्पलें
मेरे पांवों से काफी बड़ी हैं ये चप्पलें
मैं आनंद ले रही हूं उन्हें पहनने का
यह एक नया अनुभव है मेरे लिए
मैं उन्हें पहन कर घूम रही हूं इधर-उधर
खुशी से
बार-बार देख रही हूं उन चप्पलों की ओर कौतूहल से
कि ये वही चप्पले हैं जिनमें होते हैं मेरे पिता
के पांव
वही पांव जो न जाने कहां-कहां गए होंगे
उनकी एड़ियाँ न जाने कितनी बार घिसी होंगी
कितने दफ्तरों सब्जी मंडियों अस्पतालों और शहर की
गलियों से गुजरते हुए
घर तक पहुंचते होंगे उनके पांव
अपनी पुरानी बाइक को न जाने कितनी बार
किक मारकर स्टार्ट कर चुके होंगे इन्हीं पांवों से
परिवार का बोझ लिए
जीवन की न जाने कितनी विषमताओं से गुजरे होंगे
पिता के पांव !
मगर वे नहीं कहते कभी किसी से अपनी कहानी
वे चुपचाप पहन लेते हैं चप्पल
और निकल पड़ते हैं एक ओर
ये मेरे पिता की चप्पले हैं
पूजनीय हैं ये दरअसल
मेरे लिए
पर मैं नहीं रख सकती इन्हें किसी मंदिर में
क्योंकि ये मात्र चप्पले हैं
मैंने पहन ली हैं आज वही चप्पलें
मैं देखती हूं अपने पैरों की ओर
फिर झेंप कर रख आती हूं इन चप्पलों को
उनकी जगह पर वापस
कि फिलहाल इन्हें पहनने की काबिलियत से
बेहद दूर हैं मेरे पांव
और उन्हें पहनने के लिए जीना होगा मुझे एक पिता का
जीवन
इतना आसान नहीं होता पिता की चप्पलों को पहन
लेना !
◆
परिधि शर्मा
Wrote
these lines years ago
Happy Father's Day
हमारे शहर का मान बढ़ाने वाली लेखिका परिधि शर्मा की यह कविता बहुत सुंदर कविता है। इस कविता को साझा करने के लिए अनुग्रह का बहुत शुक्रिया
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