सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

डॉक्टर परिधि शर्मा की कहानी - ख़त

 

शिवना नवलेखन पुरस्कार 2024 अंतर्गत डॉक्टर परिधि शर्मा के कहानी संग्रह 'प्रेम के देश में' की पाण्डुलिपि अनुसंशित हुई है। इस किताब का विमोचन फरवरी 2025 के नयी दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में शिवना प्रकाशन के स्टाल पर  किया जाएगा । यहाँ प्रस्तुत है उनकी कहानी  'ख़त'


कहानी:   ख़त

डॉ. परिधि शर्मा

_______________


रात की सिहरन के बाद की उदासी ठंडे फर्श पर बूंद बनकर ढुलक रही थी। रात के ख़त के बाद अब कोई बात नहीं बची थी। खुद को संभालने का साहस भी मात्र थोड़ा-सा बच गया था। ख़त जिसमें मन की सारी बातें लिखी गईं थीं। सारा आक्रोश, सारे जज़्बात, सारी भड़ास, सारी की सारी बातें जो कही जानी थीं, पूरे दम से आवेग के साथ उड़ेल दी गईं थीं। ख़त जिसे किसी को भी भेजा नहीं जाना था।

ख़त जिसे किसी को भेजने के लिए लिखा गया था। कुछ ख़त कभी किसी को भेजे नहीं जाते बस भेजे जाने के नाम पर लिखे जाते हैं।

खिड़की के कांच के उस ओर खुली हवा थी। हवा के ऊपर आकाश। पेड़ पौधे सबकुछ। आजादी। प्रेम में विफल हो जाने के बाद की आजादी की तरह। खिड़की के पास बैठे हुए आकाश कांच के पार से उतना नंगा नहीं दिख रहा था।

यूं ही बैठे बैठे अनायास ही उसे खयाल आया, आंखों पर चश्मे चढ़ाकर दुनिया देखने वालों को भी दुनिया कम नंगी लगती हो शायद।

दूर बहुत ऊपर गर्व से उड़ता चील आकाश की ऊंचाई की कहानी कह रहा था।

प्रेम में विफल हो जाने के बाद भी प्रेम का रह जाना उसे तकलीफ दे रहा था, मगर दुःख इस बात का था कि प्रेम में अस्वीकृत उसे इसलिए किया गया था कि उसकी योग्यता काफी न थी।

भौतिकतावादी सोच की समृद्धता के आगे घुटने टेकते उसके प्रेम का मोल कोई क्या समझता। जीवन के ही सस्ते हो जाने के दौर में प्रेम की गरिमा जहां तक बचाई जा सकती थी, उसने बचाई और अपने दुःख और आंसू बगैर किसी को दिखाए बेआवाज़ अपनी आंखों में समेट कर मानो खुद को बचा लिया। मगर उस प्रेम को बाहर फेंक देना उसके बस में न था जो उसके भीतर बच गया था। ख़त में सबकुछ उतार देने के बावजूद। यह बच गया प्रेम ठहराव पैदा कर रहा था। बार बार अंतिम मुलाकात के लम्हों को लौटा रहा था। उसके होने के एहसास भर के सहारे उससे बातें करना एक समय के बाद उबाऊ लगते हुए भी जरूरी हो गया था। क्या यह बातें करने की प्रक्रिया उम्र भर चलनी थी? शायद हां। इस वार्तालाप में केवल वह नहीं होता था, वह भी होती थी कल्पनाओं में श्रोता बनकर मुस्कुराती हुई। शायद वह सारी जिंदगी उसी तरह मुस्कुराती रहेगी श्रोता बनकर, उतनी ही बूढ़ी, उतनी ही जवान। आखिरी मुलाकात के जितनी। उसकी कल्पनाओं में कैद। इसके बाद के समय में उस प्रेमिका को जानना इस कल्पना को बिगाड़ सकता है, इसलिए अब उसके विषय में कुछ भी और जानना उचित नहीं। यदि वह जा चुकी है तो उसका पीछा अब नहीं होना चाहिए।

वह ओवरकोट पहन कर बाहर निकल आया। सड़क किनारे की झाड़ियों में चंपा के खिलने का वक्त हो चला था। कहीं दूर से किसी संगीत मंडली द्वारा प्रेम गीत बजाए और गाये जाने की आवाजें आ रही थीं। श्रमजीवी जिनकी जिजीविषा अक्षुण्ण थी, ठिठुरते हुए भोर में ट्रैक्टर की ट्राली में लदे काम पर चले थे।

आगे मंदिर के सामने फूल बेचते बच्चे मिले जो उसे कातर दृष्टि से जाते हुए देखते रहे। सुबह हो चुकी थी। सामने सड़क पार कर एक दीवार दिखाई दी जिस पर लिखा था कि 'यहां गाड़ियां खड़ी करना मना है', मगर किसी मजदूर ने अपनी एक जर्जर साईकिल उसी वाक्य के ठीक नीचे दीवार से टिका दी थी।

उसने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाली और लाइटर की मदद से सुलगाने लगा। हवा और पानी से प्रेम करने वाले लोग कब धुंए और बारूद के दीवाने हो गए थे ये कौन बताए। बारूद बनाने वाले ने ज्यादा नहीं तो कम से कम एक बार खुद के चीथड़े उड़ने की कल्पना तो की ही होगी। जब वह सिगरेट पीते हुए भी दुखी रहता, तब वह अक्सर हंसती हुई कहा करती थी, दुख को धुंए में उड़ा दिया करो।

वह जवाब में कुछ भी कहता, जैसे कि, क्या तुम एक रौबदार परिवार से ताल्लुक रखने का दंभ भरती हो। बदले में वह कहती, मेरे पिता प्रशासन में हैं और मां और भाई पुलिस में। अपनी योग्यता का जिक्र वह न करती क्योंकि उससे पुरूष के अहम पर चोट लगने का डर होता। वे दोनों ही असहज होकर खामोश हो जाते। शहर में साथ साथ घूमने पर भी झिझक महसूस करते। दोनों के बीच बढ़ते फासले उसे मुंह चिढ़ाते। ऐसा नहीं था कि उसने सरकारी नौकरी के लिए कोशिशें न की हों, बस बात नहीं बन रही थी।

बहुत सुंदर दिनों में जब वे दोनों एक ही सीढ़ी पर खड़े होते थे तब प्रेम का आकर्षण कितना अधिक हुआ करता था। सीढ़ियां चढ़ते हुए रास्ते अलग हुए और मंजिलें भी। वह आज भी नीचे की सीढ़ियों से ऊपर की ओर देखता हुआ उसे ढूंढने की कोशिश में खड़ा रह गया था। अपनी ही धुन में इतराता। बगैर अफसोस किये। वह इतना न कर पाता तो शायद झुकी गर्दन के साथ एक निजी कंपनी की नौकरी करते हुए शर्मिंदा होता रहता मानो कोई गुनाह कर रहा हो। मानों वही प्रेम का गुनहगार हो। तो क्या वह प्रेम करने का गुनाह करते करते स्वयं प्रेम का गुनहगार हो जाता !

वह पैदल ही चलता जा रहा था। सुबह में अब हल्की धूप घुल गई थी। ओवरकोट उतार कर उसने कमर में बांध लिया था। वह लोगों को देख रहा था। सभी जल्दी में थे। वे सभी उसे नशे में लग रहे थे। सिगरेट तो वह पी रहा था मगर नशे में दुनिया लगती थी। अंतिम मुलाकात में मानों वह बहस कर गई थी इसी नशे वाली बात पर। वह कह रहा था, "नशे में मैं नहीं ये दुनिया है, इस पूरे ब्रह्मांड की इस छोटी सी पृथ्वी में चींटियों की तरह रेंगते ये तिनके बराबर लोग जाने किस घमंड में चूर हैं, उस ऊपर वाले तक का डर नहीं उन्हें और तुम सोचती हो कि मैं नशे में हूं!"

"नशे में तो तुम भी हो, जिसे लगता है सबकुछ हमेशा एक जैसा रहता है, तुम होश में आओ, सब बदल चुका है", कहती हुई वह चली गई थी।

समय का निरंतर बीत जाना दवा कर गया था। वह अपने पूरे वजूद के साथ संभल पाया था।

नीली सड़क की मरम्मत के बावजूद उस पर कहीं कहीं कुछ छोटे छोटे गड्ढे बच गए थे। मानों किसी किरदार के वजूद पर लगे दाग हों। जैसे जोकर की गंभीरता। जैसे किसी क्रूर कातिल की करूणा।वह सिगरेट का धुआं उड़ाता पुराने दोस्तों के अड्डे तक जा पहुंचा। दोस्त अब पहले से न थे। वे अब फिक्रमंद और चिंतित लगते। वे अब कम हंसते। दो दोस्त चाय की चुस्कियां लेते हुए आपस में बतिया रहे थे, आखिर जिंदगी की त्रासदियों का अंत क्या है? ऐसा क्या है जो जीते-जी हमें दुखों से बचा ले...!

वह पूछना चाहता था, बल्कि उसने पूछा भी, क्या अपने भीतर बचे हुए प्रेम के साथ जीवित रह पाना संभव है? क्या बचा हुआ प्रेम दुखों से बचा सकता है? क्या उस बचे हुए प्रेम का आलिंगन करना चाहिए या उसे यूं ही अपने भीतर पड़े रहने दिया जाना चाहिए? क्या पुनः प्रेम करना चाहिए?

खुले वातावरण में साफ ठंडी हवा मानों उसके इस अंतिम ख्याल से सहमति जताती हुई बह चली थी। परंतु यह जो बचा हुआ प्रेम है, क्या पुनः प्रेम कर लेने से मिट जाता होगा!

उसने कोट की जेब से ख़त निकाला और एक बड़ी सी गंदी नाली में फेंक दिया।

--------------

[यह कहानी अहा जिन्दगी दिसम्बर 2023 अंक से  साभार ली गयी है]


परिचय

---------------

नाम : डॉ.परिधि शर्मा

जन्म : 6 अगस्त 1992

शिक्षा : मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी( MDS )

सम्प्रति : दन्त चिकित्सक

प्रकाशन : भास्कर रसरंग (20.09.2009) , वागर्थ (मार्च 2010), समावर्तन (अक्टूबर 2011),परिकथा (जनवरी-फरवरी 2012), समावर्तन (फरवरी 2012),परिकथा (मार्च-अप्रेल 2014), अहा जिन्दगी (दिसम्बर 2023) परिकथा (सितंबर-दिसम्बर 2024)इत्यादि पत्र पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित.

छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के आमंत्रण पर श्रीकांत वर्मा सृजन पीठ बिलासपुर के मंच पर कहानी पाठ, रज़ा फाउंडेशन "युवा 2024" के दिल्ली में हुए आयोजन में उनके आमंत्रण पर सहभागिता एवं कवि श्रीकांत वर्मा पर वक्तब्य की प्रस्तुति।

एक यात्रा संस्मरण "आनंदवन में बाबा आमटे के साथ"मधुबन बुक्स की किताब वितान-7 (जो कुछ कान्वेंट स्कूलों में कक्षा सातवीं के बच्चों को पढ़ाई जाती है) में शामिल।

सम्मान: दैनिक भास्कर पत्र समूह की ओर से मुख्य अतिथि अनुपम खेर के हाथों यूथ अचीवर छत्तीसगढ़ प्राइड अवार्ड सम्मान 2014, शिवना नवलेखन पुरस्कार 2024 अंतर्गत कहानियों की पांडुलिपि 'प्रेम के देश में' प्रकाशन हेतु चयनित.


संपर्क :

डॉ. परिधि शर्मा

जुगल किशोर डेंटल क्लिनिक

आर.के टावर, न्यू मेडिकल रोड़

मलकानगिरी (ओड़िसा) 

Email- mylifemychoices140@gmail.com

 

 

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

डॉ. चंद्रिका चौधरी की कहानी : घास की ज़मीन

  डॉ. चंद्रिका चौधरी हमारे छत्तीसगढ़ से हैं और बतौर सहायक प्राध्यापक सरायपाली छत्तीसगढ़ के एक शासकीय कॉलेज में हिंदी बिषय का अध्यापन करती हैं । कहानियों के पठन-पाठन में उनकी गहरी अभिरुचि है। खुशी की बात यह है कि उन्होंने कहानी लिखने की शुरुआत भी की है । हाल में उनकी एक कहानी ' घास की ज़मीन ' साहित्य अमृत के जुलाई 2023 अंक में प्रकाशित हुई है।उनकी कुछ और कहानियाँ प्रकाशन की कतार में हैं। उनकी लिखी इस शुरुआती कहानी के कई संवाद बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं । चाहे वह घास और जमीन के बीच रिश्तों के अंतर्संबंध के असंतुलन को लेकर हो , चाहे बसंत की विदाई के उपरांत विरह या दुःख में पेड़ों से पत्तों के पीले होकर झड़ जाने की बात हो , ये सभी संवाद एक स्त्री के परिवार और समाज के बीच रिश्तों के असंतुलन को ठीक ठीक ढंग से व्याख्यायित करते हैं। सवालों को लेकर एक स्त्री की चुप्पी ही जब उसकी भाषा बन जाती है तब सवालों के जवाब अपने आप उस चुप्पी में ध्वनित होने लगते हैं। इस कहानी में एक स्त्री की पीड़ा अव्यक्त रह जाते हुए भी पाठकों के सामने व्यक्त होने जैसी लगती है और यही इस कहानी की खूबी है। घटनाओ...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

डॉक्टर उमा अग्रवाल और डॉक्टर कीर्ति नंदा : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर रायगढ़ शहर के दो होनहार युवा महिला चिकित्सकों से जुड़ी बातें

आज 8 मार्च है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस । आज के दिन उन महिलाओं की चर्चा होती है जो अमूमन चर्चा से बाहर होती हैं और चर्चा से बाहर होने के बावजूद अपने कार्यों को बहुत गम्भीरता और कमिटमेंट के साथ नित्य करती रहती हैं। डॉ कीर्ति नंदा एवं डॉ उमा अग्रवाल  वर्तमान में हम देखें तो चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला चिकित्सकों की संख्या में  पहले से बहुत बढ़ोतरी हुई है ।इस पेशे पर ध्यान केंद्रित करें तो महसूस होता है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला डॉक्टरों के साथ बहुत समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। उन पर काम का बोझ अत्यधिक होता है और साथ ही साथ अपने घर परिवार, बच्चों की जिम्मेदारियों को भी उन्हें देखना संभालना होता है। महिला चिकित्सक यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ है और किसी क्षेत्र विशेष में  विशेषज्ञ सर्जन है तो  ऑपरेशन थिएटर में उसे नित्य मानसिक और शारीरिक रूप से संघर्ष करना होता है। किसी भी डॉक्टर के लिए पेशेंट का ऑपरेशन करना बहुत चुनौती भरा काम होता है । कहीं कोई चूक ना हो जाए इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है । इस चूक में  पेशेंट के जीवन और मृत्यु का मसला जुड़ा होता है।ऑपरेशन ...

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन 15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन  15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में  हक की आवाज़ और एकजुटता के  संकल्प के साथ जुटेंगे संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी रायगढ़। 14 अप्रैल 2025:  छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी, अपने हक और सम्मान की लड़ाई को एक नया आयाम देने जा रहे हैं। दिनांक *15 अप्रैल 2025, मंगलवार को स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल सभागृह, बिलासपुर* में आयोजित होने वाले *राज्य स्तरीय महासम्मेलन* में प्रदेश के 33 जिलों से हजारों कर्मचारी एकत्र होंगे। यह महासम्मेलन केवल एक सभा नहीं, बल्कि वर्षों की उपेक्षा, आश्वासनों की थकान और अनसुनी मांगों का साहसिक जवाब है। माननीयों का स्वागत, मांगों का आह्वान इस ऐतिहासिक आयोजन में छत्तीसगढ़ के यशस्वी स्वास्थ्य मंत्री *श्री श्याम बिहारी जयसवाल जी, श्री अमर अग्रवाल जी, श्री धरमलाल कौशिक जी, श्री धर्मजीत सिंह जी, श्री सुशांत शुक्ला* जी सहित अन्य गणमान्य विधायकों और जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। इनके समक्ष संविदा कर्मचारी अपनी मांगो...

गाँधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक

गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह...

21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024 (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न

डेंटल चिकित्सा से जुड़े तीन महत्वपूर्ण ब्रांच OOO【Oral and Maxillofacial Surgery,Oral Pathology, Oral Medicine and Radiology】पर 21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024  (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न हुआ. भारत के सिल्वर सिटी के नाम से प्रसिद्ध ओड़िसा के कटक शहर में 21st National OOO Symposium 2024  का सफल आयोजन 8 मार्च से 10 मार्च तक सम्पन्न हुआ। इसकी मेजबानी सुभाष चंद्र बोस डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक ओड़िसा द्वारा की गई। सम्मेलन का आयोजन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन ऑफ इंडिया, (AOMSI) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल पैथोलॉजिस्ट (IAOMP) के सहयोग से इंडियन एकेडमी ऑफ ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी (IAOMR) के तत्वावधान में किया गया। Dr.Paridhi Sharma MDS (Oral Medicine and    Radiology)Student एससीबी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक के ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की मेजबानी में संपन्न हुए इस नेशनल संगोष्ठी में ओरल मेडिसिन,ओरल रेडियोलॉजी , ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी और ओरल प...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...