सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग

अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहानी तोडती है और श्वेत नागरिकों जिनके प्रति समाज में अच्छी धारणाएं हैं ,उनकी अमानवीयता को सामने लाती है ।अश्वेत महिला आलियाह का भाई कोफ़ी जो कि एक इनोसेंट सा युवा है , उसके ऊपर मिथ्या चोरी का आरोप लगाकर जिस तरह पुलिसिया अत्याचार के दृश्य कहानी में अमिता के सामने घटित होते हैं,उसके लिए वे दिल दहला देने वाले दृश्य हैं । श्वेतों द्वारा अश्वेतों के ऊपर हो रही बर्बरता को वह करीब से देखती है । रोती तडपती आलियाह का चेहरा ,जिसके पीछे पीछे चलते हुए वह अपने को सुरक्षित महसूस करती है , वह आलियाह भी इन श्वेतों के मध्य कितना निरीह है और असुरक्षित है ,उसका एहसास उसे होता है ।अश्वेत विली जिसे आते जाते वह कोई मवाली या गुंडा समझती रही, उसी विली ने उसे तब बचाया जब श्वेतों ने उस पर यौनिक आक्रमण किया । यह कहानी अपनी महीन बुनावट और अश्वेतों की बस्ती के जीवंत दृश्यों के चलते भी मुझे अच्छी लगी ।

'परदेश के पड़ोसी' कहानी अमेरिकी जीवन में ब्याप्त दो अलग मुल्कों के लोगों के बीच, पड़ोसी होकर भी संबंधों की विरलता का ऐसा सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत करती है कि हमें कोफ़्त सी होने लगती है । कहानी में जीवन के  अत्यंत आकर्षक और जीवंत चित्रण हैं पर लेखिका ने रिश्तों के मध्य जो रिश्तों की मृतप्राय अवस्था है उसे बड़ी बारीकी से बुनकर सामने रखने का प्रयास किया है । कहानी के अंत में ऐसा भावुक और मन को विचलित कर देने वाला दृश्य  आता है कि पड़ोसियों के मध्य रिश्तों के स्थापन को लेकर मन की बेचैनी सघन होने लगती है | यह कहानी दरअसल मन के विज्ञान की कहानी है जो मनुष्य के बीच डिरेल हो चुके रिश्तों को तकनीकी रूप से धुरी पर लाये जाने का आग्रह करती है ।दोनों अच्छी कहानियों के लिए उन्हें बधाई।

■सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत

----------------------

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने  पलटते-पलटते लमही पत्रिका के एक अंक में सर्वेश सिंह की कहानी रोशनियों के प्रेत पर नजर गई । मैं सर्वेश जी को नहीं जानता ,इससे पहले सर्वेश सिंह की कोई कहानी मैंने पढ़ी है या नहीं मुझे याद भी नहीं , पर इस कहानी के माध्यम से उनके भीतर के कथाकार से मेरा परिचय हुआ । बिल्कुल  नए तरीके से लिखी गई यह कहानी भीतर से बहुत बेचैन कर देती है। व्यवस्था और मानवीय पतन की पराकाष्ठा को रेखांकित करती हुई यह कहानी समाज में अपनी मानवीय संवेदना के साथ जीते हुए किसी व्यक्ति के भीतर एक डर पैदा करती है । यह डर महज कहानी की काल्पनिक घटनाओं से उपजा डर नहीं है बल्कि यह डर आज की व्यवस्था और मानवीय पतन से प्रत्यक्ष तौर पर किसी मनुष्य को अंतर संबंधित कर देने वाला डर है । किसी घटना दुर्घटना या प्राकृतिक आपदाओं के उपरांत बिछी हुई लाशों के हाथ-पैर या गला काट कर सोना चांदी रुपये-पैसे  घड़ियाँ या सोने की चैन निकाल लिए जाने की घटनाएं तो हमारे समाज में सामान्य घटनाओं में गिनी जाने लगी हैं, पर यह कहानी उससे आगे की बात करती है। देह की भूख इस समाज में रोटी की भूख से भी आगे निकल चुकी है। सुंदर स्त्री देह की प्राप्ति की कल्पना में रात दिन डूबा प्रेतों के एक नए समाज का अभ्युदय आज सर्वाधिक चिंता का बिषय है । ये प्रेत समाज /तंत्र/व्यवस्था के हर उस जगह पर विद्यमान हैं जहां से हम उजाले की उम्मीद में जीते हैं । रात के अंधेरों में इन प्रेतों की अतृप्त इच्छाएं इन्हें इस कदर हैवान बना देती हैं कि मनुष्य के रूप में  मौजूद ये जिंदा प्रेत किसी सुंदर स्त्री की लाश को भी अपनी हवस मिटाने का साधन बना लेते हैं । समाज में बलात्कार की घटनाओं की सघनता इन जिंदा प्रेतों की ही देन है । कहानी में घटनाओं के चित्रण की स्वाभाविकता भी भीतर एक खलबली पैदा करती हुई चलती है।

कहानियां तो इन दिनों बहुत लिखी जा रही हैं  और उसे निजी संबंधों के स्तर पर आलोचकीय स्वीकृति भी मिल रही है पर महज आलोचकीय स्वीकृति ही  किसी कहानी को  पठनीय नहीं बनाती पाठकीय स्वीकृति भी  किसी कहानी के लिए  अधिक जरूरी विषय है । कहानी पढ़कर लगने लगता है कि आज का मनुष्य अब जिंदा प्रेतों में बदल चुका है। बहुत हद तक यह बात सच भी लगती है।


■आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा" (परिकथा जुलाई अगस्त २०२१)

----------------

परिकथा के अंक जुलाई अगस्त 2021 में आदित्य अभिनव की एक कहानी छिमा माई छिमा प्रकाशित हुई है। आदित्य अभिनव पहले से कहानियां लिख रहे हैं और उनकी  कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उनकी यह कहानी पढ़ते हुए उनके भीतर के कथाकार को जानने समझने का एक अवसर भी मिलता है। दरअसल इस कहानी की अंतर्वस्तु, कहानी को पढ़ते समय जितनी सरल लगती है उस पर ठहर कर  सोचने पर उतनी ही जटिल होने लगती है। 

इलाहाबाद रह रहे प्रोफेसर चंदन  द्वारा गांव में दुर्गा मूर्ति निर्माण के लिए चंदे के रूप में  अपने संजू चाचा को मनीआर्डर के माध्यम से 1000 रुपए भेजे जाने से शुरू हुई यह कहानी उस 1000 रुपए के खर्च होने के साथ ही समाप्त होती है। रुपयों के खर्च होने के इस दरमियान कहानी कई रोचक संवादों और एक गरीब परिवार के दारुण दृश्यों को अपने साथ लेते हुए चलती है। मनीआर्डर के रुपए गिनते हुए पिता को देखकर जरूरतमंद बच्चों के भीतर की आस जागने लगती है । उन दृश्यों को कथाकार ने एक सधे हुए अंदाज में सघन मानवीय संवेदना  के साथ जिस तरह बुना है,  पाठक को स्वत: ही महसूस होने लगता है कि इस रुपये को दुर्गा चंदे पर खर्च होने के बजाय परिवार के जरूरतमंदों की बुनियादी आवश्यकताओं पर ही खर्च हो जाना चाहिए। इन बुनियादी जरूरतों में जहां बीमार मां को दवाइयों के साथ पाव भर  दूध चाहिए, वहीं बच्चों को चिथड़े हो चुके कपड़ों की जगह  तन ढकने को नए कपड़े और पढ़ने को किताबें चाहिए।

पैसे उन्हीं जरूरतों पर खर्च होते हैं और थोड़े बहुत जो बचते हैं, संजू उसे आत्म संतोष में  अपने नशे पर खर्च कर जाता है।

अंततः नशे में जब उसे ध्यान आता है कि उसने दुर्गा मूर्ति के लिए भेजे गए चंदे के पैसे को परिवार की जरूरतों पर खर्च कर दिए हैं तो वह अपराध बोध से ग्रसित होने लगता है  और निर्माणाधीन दुर्गा मां की मूर्ति के सामने जाकर बार-बार क्षमा मांगता है। 

ये बच्चे तेरे ही रूप हैं मां ! बीमार माई तेरा ही हिस्सा है मां

छिमा माई छिमा।

कहानी के क्लाइमेक्स पर यह दृश्य मन को झकझोरता है ।

गरीब बच्चों का एक मजबूर बाप और एक बीमार मां का मजबूर बेटा संजू के भीतर मजबूरी वश रुपए खर्च कर लेने का जो अपराध बोध जन्मता है,  इस क्षमा में वह अपराध धुलने लगता है। कहानी एक बड़ा संदेश देती हुई खत्म होती  है कि धर्म कर्म  के नाम पर जितने गैर जरूरी खर्चे समाज में प्रचलित हैं उनसे अभावग्रस्त जरूरतमंद लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकती  हैं ।

छोटी-छोटी घटनाओं को रोचक संवादों के माध्यम से ठेठ देशज भाषा में सघन बुनावट के साथ प्रस्तुत करना किसी कथाकार के लिए एक चुनौती भरा काम है और इस चुनौती का निर्वहन आदित्य अभिनव ने ठीक ढंग से किया है। अभिनव के पास कहानी को प्रस्तुत करने की अपनी एक मौलिक शैली भी है जिसमें कोई भाषाई या शिल्प की जटिलता नहीं है । इसलिए एक फ्लो में बहती कहानी की पठनीयता को लेकर मन  में कहीं कोई रुकावट महसूस नहीं होती।

--------

रमेश शर्मा

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

डॉ. चंद्रिका चौधरी की कहानी : घास की ज़मीन

  डॉ. चंद्रिका चौधरी हमारे छत्तीसगढ़ से हैं और बतौर सहायक प्राध्यापक सरायपाली छत्तीसगढ़ के एक शासकीय कॉलेज में हिंदी बिषय का अध्यापन करती हैं । कहानियों के पठन-पाठन में उनकी गहरी अभिरुचि है। खुशी की बात यह है कि उन्होंने कहानी लिखने की शुरुआत भी की है । हाल में उनकी एक कहानी ' घास की ज़मीन ' साहित्य अमृत के जुलाई 2023 अंक में प्रकाशित हुई है।उनकी कुछ और कहानियाँ प्रकाशन की कतार में हैं। उनकी लिखी इस शुरुआती कहानी के कई संवाद बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं । चाहे वह घास और जमीन के बीच रिश्तों के अंतर्संबंध के असंतुलन को लेकर हो , चाहे बसंत की विदाई के उपरांत विरह या दुःख में पेड़ों से पत्तों के पीले होकर झड़ जाने की बात हो , ये सभी संवाद एक स्त्री के परिवार और समाज के बीच रिश्तों के असंतुलन को ठीक ठीक ढंग से व्याख्यायित करते हैं। सवालों को लेकर एक स्त्री की चुप्पी ही जब उसकी भाषा बन जाती है तब सवालों के जवाब अपने आप उस चुप्पी में ध्वनित होने लगते हैं। इस कहानी में एक स्त्री की पीड़ा अव्यक्त रह जाते हुए भी पाठकों के सामने व्यक्त होने जैसी लगती है और यही इस कहानी की खूबी है। घटनाओ...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

डॉक्टर उमा अग्रवाल और डॉक्टर कीर्ति नंदा : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर रायगढ़ शहर के दो होनहार युवा महिला चिकित्सकों से जुड़ी बातें

आज 8 मार्च है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस । आज के दिन उन महिलाओं की चर्चा होती है जो अमूमन चर्चा से बाहर होती हैं और चर्चा से बाहर होने के बावजूद अपने कार्यों को बहुत गम्भीरता और कमिटमेंट के साथ नित्य करती रहती हैं। डॉ कीर्ति नंदा एवं डॉ उमा अग्रवाल  वर्तमान में हम देखें तो चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला चिकित्सकों की संख्या में  पहले से बहुत बढ़ोतरी हुई है ।इस पेशे पर ध्यान केंद्रित करें तो महसूस होता है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला डॉक्टरों के साथ बहुत समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। उन पर काम का बोझ अत्यधिक होता है और साथ ही साथ अपने घर परिवार, बच्चों की जिम्मेदारियों को भी उन्हें देखना संभालना होता है। महिला चिकित्सक यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ है और किसी क्षेत्र विशेष में  विशेषज्ञ सर्जन है तो  ऑपरेशन थिएटर में उसे नित्य मानसिक और शारीरिक रूप से संघर्ष करना होता है। किसी भी डॉक्टर के लिए पेशेंट का ऑपरेशन करना बहुत चुनौती भरा काम होता है । कहीं कोई चूक ना हो जाए इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है । इस चूक में  पेशेंट के जीवन और मृत्यु का मसला जुड़ा होता है।ऑपरेशन ...

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन 15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन  15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में  हक की आवाज़ और एकजुटता के  संकल्प के साथ जुटेंगे संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी रायगढ़। 14 अप्रैल 2025:  छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी, अपने हक और सम्मान की लड़ाई को एक नया आयाम देने जा रहे हैं। दिनांक *15 अप्रैल 2025, मंगलवार को स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल सभागृह, बिलासपुर* में आयोजित होने वाले *राज्य स्तरीय महासम्मेलन* में प्रदेश के 33 जिलों से हजारों कर्मचारी एकत्र होंगे। यह महासम्मेलन केवल एक सभा नहीं, बल्कि वर्षों की उपेक्षा, आश्वासनों की थकान और अनसुनी मांगों का साहसिक जवाब है। माननीयों का स्वागत, मांगों का आह्वान इस ऐतिहासिक आयोजन में छत्तीसगढ़ के यशस्वी स्वास्थ्य मंत्री *श्री श्याम बिहारी जयसवाल जी, श्री अमर अग्रवाल जी, श्री धरमलाल कौशिक जी, श्री धर्मजीत सिंह जी, श्री सुशांत शुक्ला* जी सहित अन्य गणमान्य विधायकों और जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। इनके समक्ष संविदा कर्मचारी अपनी मांगो...

गाँधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक

गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह...

21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024 (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न

डेंटल चिकित्सा से जुड़े तीन महत्वपूर्ण ब्रांच OOO【Oral and Maxillofacial Surgery,Oral Pathology, Oral Medicine and Radiology】पर 21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024  (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न हुआ. भारत के सिल्वर सिटी के नाम से प्रसिद्ध ओड़िसा के कटक शहर में 21st National OOO Symposium 2024  का सफल आयोजन 8 मार्च से 10 मार्च तक सम्पन्न हुआ। इसकी मेजबानी सुभाष चंद्र बोस डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक ओड़िसा द्वारा की गई। सम्मेलन का आयोजन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन ऑफ इंडिया, (AOMSI) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल पैथोलॉजिस्ट (IAOMP) के सहयोग से इंडियन एकेडमी ऑफ ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी (IAOMR) के तत्वावधान में किया गया। Dr.Paridhi Sharma MDS (Oral Medicine and    Radiology)Student एससीबी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक के ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की मेजबानी में संपन्न हुए इस नेशनल संगोष्ठी में ओरल मेडिसिन,ओरल रेडियोलॉजी , ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी और ओरल प...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...