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जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

■सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह चलो फिर से शुरू करें

■रमेश शर्मा

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सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘चलो फिर से शुरू करें’ पाठकों तक पहुंचने के बाद चर्चा में है। संग्रह की कहानियाँ भारतीय अप्रवासी जीवन को जिस संवेदना और प्रतिबद्धता के साथ अभिव्यक्त करती हैं वह यहां उल्लेखनीय है। संग्रह की कहानियाँ अप्रवासी भारतीय जीवन के स्थूल और सूक्ष्म परिवेश को मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में बड़ी तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि उनके दृश्य आंखों के सामने बनते हुए दिखाई पड़ते हैं। हमें यहां रहकर लगता है कि विदेशों में ,  खासकर अमेरिका जैसे विकसित देशों में अप्रवासी भारतीय परिवार बहुत खुश और सुखी होते हैं,  पर सुधा जी अपनी कहानियों में इस धारणा को तोड़ती हुई नजर आती हैं। वास्तव में दुनिया के किसी भी कोने में जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन में सुख-दुख और संघर्ष का होना अवश्य संभावित है । वे अपनी कहानियों के माध्यम से वहां के जीवन की सच्चाइयों से हमें रूबरू करवाती हैं।

संग्रह की एक कहानी है ‘वे अजनबी और गाड़ी का सफर’ । फिल्मों में दिखाई जा रहीं घटनाओं की तरह वास्तविक जीवन में भी बहुत सी घटनाएं अब घटने लगी हैं । यह कहानी हमें एक ऐसे विषय की ओर ले जाती है जिसे अक्सर हम फिल्मों या अन्य टीवी सीरियलों में देख पाते हैं। पत्रकारिता से जुडीं दो भारतीय युवतियाँ चीनी युवती को एक यूरोपीय पुरुष के साथ रेलगाड़ी में सफ़र करते हुए देखती हैं। लड़की के हाव भाव देखकर उन्हें संदेह होता है कि वह लड़की कुछ तकलीफ में है। उन दोनों भारतीय युवतियों ने किस तरह सूझबूझ, होशियारी व सर्तकता से संकट में फंसी उस लड़की को एक अंग्रेज ड्रग माफिया से मुक्त करवाया,ये सभी घटनाएं कहानी को पढ़ने से ही पता लग सकती हैं। सुधा ओम ढींगरा अमेरिका में रहती हैं और उनका भारत में लगातार आना-जाना लगा रहता है । ऐसा लगता है कि यह कहानी उन यात्राओं के अनुभवों से ही जन्म लेने वाली कहानी है। यह कहानी लोगों को संभावित अप्रिय घटनाओं से न केवल सतर्क करती है बल्कि दूसरों की सहायता के लिए भी सजग रहने का आग्रह करती है। 

शीर्षक कहानी ‘चलो फिर से शुरू करें’ अप्रवासी युवक कुशल के पारिवारिक जीवन की कथा है जिसमें बहुत से उतार चढ़ाव हैं।  विदेशी महिला मार्था से विवाह कर वह माँ-बाप से अलग हो गया है । पुत्र से अत्यधिक लगाव होते हुए भी पुत्र की गृहस्थी में दखल देना ठीक नहीं , यह सोचकर माँ-बाप ने भी समझदारी दिखाते हुए उससे दूरी बना ली है। समय आता है जब उस माता-पिता को किसी परिचित के माध्यम से खबर मिलती है कि मार्था, कुशल को तलाक देकर, बच्चों को उसके पास छोड़ कर चली गई है। इतना ही नहीं मार्था ने  कुशल के नाम पर तीन मिलियन का कर्ज़ भी ले लिया है। कहानी में यह प्रसंग ध्यातव्य है कि यदि कुशल श्वेत अमेरिकन होता तो मार्था बच्चों को साथ ले जाती परन्तु भारतीय अमेरिकन पिता के बच्चों को वह कभी स्वीकार नहीं कर पाती।  इन मुश्किल परिस्थितियों में मां-बाप ही काम आते हैं यह कुशल को पता है । यह घटना भारतीय माता-पिता के प्रति एक आस्था जगाने वाली घटना भी लगती है जो सच के करीब भी है। इस मुश्किल घड़ी में कुशल को माता-पिता का साथ मिलता है । वह अपने बच्चों को उनके पास छोड़कर एक नए जीवन की शुरुआत करने लगता है। 'चलो फिर से शुरू करें' संघर्षों की कहानी है , रिश्तों के प्रति आस्था की कहानी है और साथ साथ जीवन की घटनाओं से सबक सीखने वाली कहानी भी है। 

संग्रह की एक महत्वपूर्ण कहानी है ‘वह ज़िन्दा है…’! कहानी हस्पताल की घटनाओं का वास्तविक चित्रण प्रस्तुत करती है।  कविता एक गर्भवती महिला है , अल्ट्रासाउंड करने वाली नर्स कीमर्ली जब उसे सीधे तौर पर कहती है कि ‘मिसेज़ सिंह यूअर बेबी इज़ डेड।’ ऐसा सुनते ही कविता के शरीर की गति थम सी जाती है। फिर जो होता है उस त्रासदपूर्ण घटना की सहज कल्पना की जा सकती है। कविता के शरीर की गति थम जाने से मृत बच्चे को बहुत मुश्किल से उसके शरीर से बाहर निकाला जाता है।अब कविता की केवल साँसें ही चल रही हैं जबकि वह अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है । दो बार गर्भपात हो जाने के बाद यह तीसरा मौका ही उसके लिए माँ बन पाने का एक अवसर था। वह अवसर अब उसके जीवन में नहीं है। नर्स द्वारा बिना सोचे समझे यांत्रिक रूप से , संवेदनहीन होकर सच्चाई  को जिस तरह प्रस्तुत किया जाता है उससे कविता को गहरी चोट लगती है। वह उसे सहन नहीं कर पाती। पति द्वारा कार को पार्क करके वापस आने तक कुछ मिनटों में ही उस दंपत्ति की ज़िदगी बेरंग सी होने लगती है।अब आगे संघर्ष यह है कि  पति को हस्पताल मैनेजमेंट के बिरूद्ध मानवता की लड़ाई लड़ने की जरूरत आन पड़ी है। उसका तर्क बस इतना ही है कि वह सच बोलने के खिलाफ नहीं, पर सच को बोला कैसे जाए इस पर उसे आपत्ति है!

कई जगह विदेशी कल्चर ठोस सच्चाइयों पर ही निर्भर होता है । यह एक किस्म का यांत्रिक भाव है, वहां मानवीय भावनाओं के लिए कोई स्पेस नहीं होता। हमारे भारतीय कल्चर में मानवीय भावनाओं पर विशेष ध्यान रखा जाता है , यह मनुष्य के हित में भी है , कहानी इसी ओर इशारा करती है।  

कई बार भावनाओं को सँभालने के लिए झूठ का सहारा भी लिया जा सकता है या सच को टाला भी जा सकता है। अलग-अलग किस्म की संस्कृतियों के बीच के अंतर को लेखिका ने मानवीय संवेदना के स्तर पर जिस तरह यहां प्रस्तुत करने की कोशिश की है वह काबिले तारीफ है। 

‘भूल-भुलैया’ संग्रह की एक अन्य कहानी है।  भारतीयों के व्हाट्सएप समूहों में लगातार इस प्रकार के संदेश आ रहे थे कि एशियाई लोगों को अकेले  देख कर, अगवा कर लिया जाता है और उन्हें बड़े ट्रकों में उठाकर बाहर ले जाया जाता है। फिर वहां  उनके मानवीय अंग निकाल लिए जाते है। इन संदेशों को पढ़कर घबरायी हुई सुरभि जॉगिंग करते हुए पार्क में उसका पीछा करते स्त्री पुरुष को उसी गैंग का समझ लेती है। अपने बचाव के लिए पुलिस को वह फ़ोन भी कर देती है । पुलिस आकर उसकी गलतफहमी दूर करती है कि ये सारी बातें अफवाह हैं । हकीकत यह है कि पीछे पीछे आने वाले स्त्री-पुरुष उसकी सहायता के लिए ही उसके साथ आ रहे थे। खुलासा होता है कि जिस घटना को लेकर ऐसी अफवाहें फैलीं हैं,दरअसल वह ग़लतफ़हमी के कारण ही घटित हुई । इस तरह की घटनाएं आज बहुत देखने को मिलती हैं जहां अफवाहों के कारण देखते-देखते अप्रिय स्थितियां निर्मित हो जाती हैं। यह कहानी मनुष्य की वैचारिक चेतना पर एक सवाल खड़ा करती है और सतर्क रहने की दिशा में ले जाती हुई प्रतीत होती है। अफवाहों के इस समय में ऐसी कहानियाँ प्रासंगिक भी हैं।

कहानी ‘कभी देर नहीं होती’ रिश्तों के उतार चढ़ाव भरे ऊबड़ खाबड़ रास्तों से हमें गुजारती है। ननिहाल की चालाकी और असामान्य व्यवहार के कारण आनंद और उसके छोटे भाई बचपन से ही दादा-दादी के प्यार से वंचित हैं। उनके आपसी रिश्तों में ननिहाल बड़ी रूकावट है।  सब कुछ समझते हुए भी मम्मी और ननिहाल के आगे पापा की चुप्पी बच्चों के लिए बड़ी पीड़ा दायक है पर पापा की समझ ऐसी है कि उनकी चुप्पी से ही बच्चों का परवरिश ठीक ढंग से हो पाएगा। तनाव , झगड़ा किसी भी परिवार के लिए अच्छा नहीं है । जब अरसे बाद अमरीका के एक शहर में रह रही आनंद की बुआ ने मिलने पर उसे ‘नंदी’ कह कर पुकारा, तो वह इतने वर्षों लंबे अंतराल के बाद उसी माहौल व अपनत्व से भर उठा। उसके लिए ददिहाल से जुड़ने की यह अपूर्व घटना है जिसकी खुशी अव्यक्त सी है। यह कहानी दरअसल रिश्तों को जोड़ने वाली कहानी है जहां से रिश्तों के प्रति आस्थाएं मन में जन्म लेने लगती हैं और एक अपूर्व, अव्यक्त सी खुशी से हमारा सामना होता है।

"कटीली झाड़ी" संग्रह की एक अन्य कहानी है ।मानवीय चरित्र को समझने के लिए यह कहानी हमारे सामने बहुत सी परतें खोलती है। बड़े बाप की बेटी होने के अहंकार में डूबी अनुभा एक ऐसा कैरेक्टर है जिसका सामना कॉलेज में नेहा नामक लड़की से होता है। नेहा की योग्यता और उसकी सुंदरता से उसको बहुत ईर्ष्या होने लगती है । उसके अहम को चोट पहुंचने लगती है। नेहा के जीवन के हर कदम पर कांटे बिछाना उसका ध्येय  बन जाता है। यहां तक की शादी के बाद भी वह उसे बदनाम करने की कोशिश करती है पर वहाँ उसे मुंहकी खानी पड़ती है। मनुष्य का चरित्र भी कटीली झाड़ियों की तरह हो सकता है , ऐसे चरित्रों से सावधान रहने हेतु यह कहानी अपील करती है। पर जीवन में कुछ ऐसे कैरेक्टर से भी हम मिलते हैं , जो हमारे बारे में अच्छा सोचते हैं , हमारा कभी नुकसान नहीं करते और इन पात्रों के कारण रिश्तों पर हमारा विश्वास बना रहता है। कुछ ऐसे पात्रों का भी चित्रण इस कहानी में मिलता है।सुधा ओम ढींगरा सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार के पात्रों का यहां तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती हैं जिससे कहानी का प्रभाव बढ़ जाता है। 

संग्रह की एक अन्य कहानी के माध्यम से लेखिका यह दिखाने की कोशिश करती हैं कि दुनिया के हर एक मुल्कों में लोगों का जीवन अंधविश्वासों से भरा पड़ा है।  जब अपूर्व सुंदरी डयू स्मिथ गौरव मुखी को अपने जीवन के काले अतीत के बारे में बताती है तो एकबारगी उसे यकीन नहीं होता । उसे यह जानकर अत्यन्त हैरानी होती है कि डयू के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है जैसाकि किसी भी सुंदर लड़की के जवान होने पर उसे लोगों की बुरी नज़रों से और उनके दुश्कर्म से गुज़रना पड़ सकता है। यहां धर्मगुरु ही दुष्कर्म का वाहक है पर ड्यू के माता पिता ने अपने धर्मगुरु के चरित्र पर संदेह न करके अपने भीतर पल रहे अंधविश्वास को ही प्रगाढ़ किया । माता पिता का यह अंधविश्वासी व्यवहार चकित करता है। सच तो यह है कि डयू उसी दुश्कर्म के कारण ही एच आई वी वायरस की चपेट में आयी। आगे उसका संघर्ष जारी रहा और अपनी मेहनत व योग्यता के बल पर वह एक बड़ी कंपनी में बड़े ओहदे पर पहुँच गयी।ड्यू के पास सब कुछ था परन्तु इस घटना के कारण उसकी सुंदर नीली आँखें उदास और बेनूर रहती थीं। गौरव को समझ में अब आया था कि  डयू उससे शादी करना क्यों नहीं  चाहती थी । यह कहानी एचआईवी पीड़ित लोगों से सद्भावना रखने की अपील भी करती है।

सुधा ओम ढींगरा की कहानियों में जहां भाषिक सौंदर्य है वही संप्रेषण और पठनीयता के स्तर पर भी ये कहानियाँ हमसे जुड़ती हैं।

संग्रह की कहानियों को पढ़ने के बाद हमें लगता है कि सुधा ओम ढींगरा की कहानियाँ जीवन मूल्यों के पुनर्स्थापन की कहानियाँ हैं । ये कहानियाँ जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण को जन्म देने में हमें वैचारिक सहयोग प्रदान करती हैं। इस संग्रह को एक बार अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।


कहानी संग्रह: चलो फिर से शुरू करें 

लेखक – सुधा ओम ढींगरा

प्रकाशक- शिवना प्रकाशन, सीहोर, मप्र 466001

प्रकाशन वर्ष – 2024


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संपर्क: 

92 श्रीकुंज कॉलोनी

बोईरदादर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)पिन 496001

मो.7722975017

ईमेल- 

rameshbaba.2010@gmail.com

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