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'भूरी आँखें घुंघराले बाल' अनुपमा तिवाड़ी के कहानी संग्रह की समीक्षा

जिन्दगी की ठोस सच्चाइयों का जीवंत दस्तावेज◆ कहानियों को पढ़ते हुए पाठकों को अपनी बाहरी और भीतरी दुनियां से साक्षात्कार होने जैसा कुछ न कुछ अनुभव होना चाहिए अर्थात कहानी को पढने के पूर्व और पढने के उपरान्त मानसिक अनुभवों का जो अंतर है, उस अन्तर का इन दोनों ही दुनियाओं से ठहरकर सीधा संवाद होना चाहिए |अनुपमा तिवाड़ी की कहानियों को पढ़ने के उपरान्त उपरोक्त वर्णित इस शर्त की कसौटी पर उन्हें कसे जाने की अगर बात हो, तो मेरा खुद का अपना   अनुभव यह कहता है कि उनके संग्रह 'भूरी आँखें घुंघराले बाल' की ज्यादातर कहानियाँ हमारी भीतरी और बाहरी दुनियाओं से   भरपूर संवाद करती हैं | इन कहानियों को पढ़कर हम यूं ही आगे नहीं बढ़ जाते बल्कि एक लम्बे समय तक इन कहानियों के भीतर रंगे-घुले जिन्दगी के असल पात्रों के दुःख दर्द और उनके संघर्ष को हम करीब से महसूस करते हैं | ये कहानियाँ कहीं से भी कहानी न लगते हुए जिन्दगी की ठोस सच्चाइयों का एक जीवंत दस्तावेज लगती हैं जिसे लेखिका ने सामाजिक जिम्मेदारियों से भरे अपने यायावरी जीवन के बीच से खोज निकाला है |  बहुत करीब से देखी परखी गयीं सामाजिक घटनाओं को लेकर जब स

'अंगूठे पर वसीयत' शोभनाथ शुक्ल के उपन्यास की समीक्षा

  ग्रामीण समाज में नई चेतना का स्थापन ग्रामीण समाज का जिक्र आते ही हमारे मनो मस्तिष्क में रिश्तों की सहजता और लोगों का भोलापन सहज रूप से घर करने लगता है | यह कुछ हद तक सच के करीब भी है पर शहरीकरण और बाजार की घुसपैठ ने इस समाज में भी समय के साथ विकृतियाँ उत्पन्न की हैं | कथाकार शोभनाथ शुक्ल जी का नवीनतम उपन्यास 'अंगूठे पर वसीयत' ग्रामीण समाज के भीतर पसरतीं जा रहीं अनपेक्षित विकृतियों के अनेकानेक रंगों को घटनाओं के माध्यम से चलचित्र की भांति रखता चला जाता है |ग्रामीण समाज में राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर घटित होने वाली घटनाओं का विवरण कुछ इस तरह सिलसिलेवार मिलता है कि उपन्यास के साथ हम एक जिज्ञासु पाठक की हैसियत से जुड़ते हैं और फिर आगे बढ़ने लगते हैं |उपन्यास का केन्द्रीय पात्र 'रामबरन गरीब' समाज के उस आदमी का प्रतिनिधित्व करता है जो समाज में फैली विसंगतियों को लेकर चिंतातुर है| सामाजिक वर्ग भेद जैसी विसंगतियों से बाहर निकल   समाज की बेहतरी जैसी सोच रखना,   यूं तो मानवीय चेतना से संपन्न व्यक्ति का गुण है   जिसकी दुर्लभता से आज का समाज चिंतन के स्तर पर लगातार विपन्न होता ज

'वह उस्मान को जानता है' रमेश शर्मा की चर्चित कहानी

    आज रविवार का दिन था और जनवरी का महीना | आँगन में खड़ा अमरूद का पेड़ इनदिनों अमरूदों से लदा हुआ था जिस पर सुबह से चिड़ियाँ आकर शोर मचा रही थीं | चिड़ियों का शोर उसे अच्छा लगता था | वे कुतर-कुतर कर अमरूद से अपना हिस्सा अलग कर पेट भर लेतीं और बचे हिस्से को आँगन में टपका कर उड़ जातीं | कुतरे हुए टपके अमरूदों को देखकर उसका बेटा कहता "वो देखो पापा चिड़ियों का पेट कितना छोटा होता है | उनका आहार कितना कम है |" कुतरे हुए हिस्सों को देखकर ही वह उनके आहार का अंदाजा लगाता | उसकी बातें उसे अच्छी लगतीं | कभी कभी वह उससे जान बूझ कर पूछ बैठता " इंसान के आहार के बारे में पता करना हो तो कैसे पता करेंगे ?" वह कुछ देर सोचता फिर तपाक से कह उठता - " इंसान के आहार के बारे में इंसान भला खुद कैसे बता सकता है? उसे तो धरती के दूसरे प्राणी ही ठीक-ठीक बता पाएंगे | जैसे आप हमारी अनिच्छा के बिरूद्ध एक बार पेड़ का पूरा अमरूद तोड़वाकर बाजार में बेचवा दिए थे तो उस वक्त चिड़ियाँ सोची होंगी कि इंसान को कुछ भी नहीं पूरता | उस वक्त उसकी बातें सुनकर वह शर्मिन्दगी से भर उठा था | उसे लगा था कि अलग-अलग सम

ललित सुरजन का जाना : वे हमेशा हमें याद आते रहेंगे

  ललित सुरजन जी का जाना हम सबके बीच से एक ऐसे शख्स का विदा हो जाना था जिनका होना युवाओं को रचनात्मक रूप से ऊर्जावान बनाए रखने के लिए एक उम्मीद की किरण की तरह मुझे हमेशा लगता रहा। छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से और अक्षर पर्व पत्रिका से जुड़े रहने के कारण उनका साथ कई वर्षों तक बना   रहा । वे छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष थे और अक्षर पर्व पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में हम सब को उनका साथ मिलता रहा।   उनके साथ संगठन में काम करते हुए बहुत से अनुभव हैं पर उनसे जब मैं पहली बार जुड़ा उस समय का अनुभव अक्सर स्मृतियों में लौट लौट आता है। सन 1992 के आसपास जब मैं अपने स्कूल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली रायगढ़ में स्थानान्तरण के बाद पदस्थ हुआ तो वहां की लाइब्रेरी में किताबों को ढूंढते हुए सुरजन जी का पहला कविता संग्रह ' अलाव में तपकर ' मेरे हाथ लगा था । मैंने उनकी सारी कविताएं पढ़ डालीं और उन कविताओं को पढ़ने के उपरांत मैंने उनसे पत्राचार किया। मेरे इस पत्र को पढ़कर उन्हें उन दिनों बहुत आश्चर्य हुआ था । उनका जवाब आया कि इतने पु