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ललित सुरजन का जाना : वे हमेशा हमें याद आते रहेंगे

 


ललित सुरजन जी का जाना हम सबके बीच से एक ऐसे शख्स का विदा हो जाना था जिनका होना युवाओं को रचनात्मक रूप से ऊर्जावान बनाए रखने के लिए एक उम्मीद की किरण की तरह मुझे हमेशा लगता रहा। छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से और अक्षर पर्व पत्रिका से जुड़े रहने के कारण उनका साथ कई वर्षों तक बना  रहा । वे छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष थे और अक्षर पर्व पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में हम सब को उनका साथ मिलता रहा।


 

उनके साथ संगठन में काम करते हुए बहुत से अनुभव हैं पर उनसे जब मैं पहली बार जुड़ा उस समय का अनुभव अक्सर स्मृतियों में लौट लौट आता है।

सन 1992 के आसपास जब मैं अपने स्कूल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली रायगढ़ में स्थानान्तरण के बाद पदस्थ हुआ तो वहां की लाइब्रेरी में किताबों को ढूंढते हुए सुरजन जी का पहला कविता संग्रह ' अलाव में तपकर ' मेरे हाथ लगा था । मैंने उनकी सारी कविताएं पढ़ डालीं और उन कविताओं को पढ़ने के उपरांत मैंने उनसे पत्राचार किया।

मेरे इस पत्र को पढ़कर उन्हें उन दिनों बहुत आश्चर्य हुआ था । उनका जवाब आया कि इतने पुराने कविता संग्रह को पढ़ने के बाद इस तरह भी कोई युवा उन्हें चिट्ठी लिख सकता है।

यह संवाद फिर धीरे धीरे घनीभूत होता चला गया। अक्षर पर्व पत्रिका में जब मेरी कविताएं और  कहानियां प्रकाशित होकर आने लगीं तो उन्होंने कई बार बातचीत के माध्यम से प्रोत्साहित भी किया।

धीरे-धीरे फिर मैं छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन से भी जुड़ा। प्रादेशिक बॉडी में सह सचिव के रूप में मेरा मनोनयन हुआ और प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठकों में अक्सर मैं आता जाता रहा।

उनके साथ रहते हुए, वैचारिक स्तर पर बहुत कुछ सीखने समझने का जो एक रास्ता मिला ,उस रास्ते पर चलते हुए राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों को लेकर एक स्पष्ट विजन हमारे भीतर विकसित होता गया । आदमी के भीतर इस तरह के स्पष्ट विजन का होना आज कितना जरूरी है उसे हम ललित सुरजन के माध्यम से देख परख सकते हैं। बिना इस विजन के आज की जो पथभ्रष्ट राजनीति है, किसी भी युवा को अपने साथ बहाकर ले जा रही है और अपनी जरूरत के हिसाब से उन्हें अपने सांचे में ढाल ले रही है ।आज जब बहुतेरे लोगों के पास खुद का कोई विवेक, खुद की कोई बुद्धि , खुद के कोई विचार नहीं हैं इसलिए उनके पास किसी किस्म का कोई राजनैतिक और सामाजिक विजन भी नहीं है। इसी वजह से भी आज समाज में सांप्रदायिकता, जातिवाद , हिंसा और  भ्रष्टाचार जैसी सामाजिक बुराइयां फल फूल रही हैं| ऐसे में ललित जी की प्रासंगिकता बढ़ जाती है और उनका हमारे बीच न होना अखरता है  | ललित सुरजन कुछ इसी तरह के मुद्दों को लेकर वैचारिक स्तर पर हमेशा सक्रिय रहे। उन्होंने लोगों को हमेशा जगाने का काम किया। चाहे वह पत्रकारिता का क्षेत्र हो चाहे साहित्य का, दोनों ही क्षेत्रों में अपने विचारों के माध्यम से वे लगातार सक्रिय रहे । वैचारिक दर्शन की उस जरूरत को ललित सुरजन जी ने हमेशा एक व्यापक स्पेस दिया ।

छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के युवा रचना शिविरों के माध्यम से युवा पीढ़ी को वैचारिक स्तर पर सामाजिक गतिविधियों से जोड़ना, उनके समय की महत्वपूर्ण गतिविधियों की स्मृति को जीवंत कर उठता है।

रायपुर, डभरा और धमतरी के युवा रचना शिविरों में युवाओं के मध्य साहित्यिक और वैचारिक स्तर पर जो संवाद होते रहे, उन संवादों में ललित सुरजन की अगुवाई में, मैं भी बराबर का साझीदार रहा। वे युवाओं से आमने सामने लगातार जीवंत संवाद करने पर विश्वास रखते थे।

इन युवा रचना शिविरों के दरमियान उन्हें जानने समझने के कई अवसर हमें मिले। मैंने जब जब उनकी भीतरी दुनिया में झांकने का प्रयास किया, तब तब उनकी भीतरी दुनिया की खूबसूरती मेरे सामने आती रही। वे एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे और कई बार इसके टूटने पर डांट-डपट देने की उनकी आदत का सामना भी हमें करना पड़ता । उस डांट डपट में एक स्नेह होता था और उसकी एक प्रति ध्वनि हमारे दिलों तक पहुंचा करती थी। उसके माध्यम से हम जीवन में कुछ नया सीखते थे। शिविरों में आने वाले सहभागियों का वे परिवार के मुखिया की तरह बराबर   ध्यान रखा करते थे। कौन खाना खाया, कौन नहीं खा पाया, एक-एक का ख्याल रखना यह भी उनकी आदत में शामिल था। उनकी हर गतिविधि में कुछ सीखने का एक संदेश होता था जो युवाओं को प्रेरित करता था। रायपुर के युवा रचना शिविर में जो कि लोकायन में संपन्न हो रहा था, उस रचना शिविर की याद मेरे मन में आज भी रह-रह कर आने लगती है। पहली रात अचानक खूब तेज हवा चलने लगी थी । तेज अंधड़ के साथ थोड़ी बारिश भी हुई । उस रात रायपुर शहर की बिजली भी चली गई थी। यहां तक कि जहां भोजन के लिए टेंट लगे थे वे भी उड़ उड़ कर उखड़ उखड़ जा रहे थे। उस रात मोमबत्ती के उजाले में ललित सुरजन जी  और माया भाभी वहीँ टेंट के नीचे तब तक जमे रहे, जब तक कि सब ने भोजन नहीं कर लिया। एक जिम्मेदार आदमी किस तरह होता है, उस दिन उनके भीतर उस जिम्मेदार आदमी का मैंने दर्शन किया । डांट डपट देना और स्नेह जताना उनके व्यक्तित्व के बहुरंगी आकर्षक गुण थे। उनके ये गुण मुझे हमेशा आकर्षित करते रहे।

एक बार मेरे आग्रह पर 13 नवंबर 2017 को छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन रायगढ़ इकाई की ओर से आयोजित मुक्तिबोध जयंती के कार्यक्रम में वे रायगढ़ भी आए थे । वह आयोजन मेरे लिए आज भी एक यादगार आयोजन के रूप में मेरे भीतर जिंदा है और उस आयोजन की स्मृति के माध्यम से मैं उन्हें आज भी याद करता हूं।

एक बार अक्षर पर्व के संपादकीय में छत्तीसगढ़ के चार कहानीकारों के कहानी संग्रह जिसमें रामकुमार तिवारी, विनोद साव ,संतोष झांझी और मेरे संग्रह शामिल थे , इन संग्रहों पर ललित सुरजन जी ने विस्तार पूर्वक तटस्थ भाव से आलोचनात्मक टिप्पणियां लिखीं थीं । उनकी उस टिप्पणी से कहानियों को गहराई से जानने समझने की एक नई दृष्टि भी मुझे मिली थी  जिसके लिए मेरे मन में उनके प्रति आदर और श्रद्धा का भाव सघन होता गया। वे हम सबके लिए एक मार्गदर्शक की तरह थे।

वे हमेशा कहा करते थे कि सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग किया करो, फोटो जन्मदिन इत्यादि में उलझे रहने के बजाय इस मंच का उपयोग लोगों को वैचारिक स्तर पर जागरूक करने में हमेशा करो।

वे मूल्यों के साथ जीने में हमेशा विश्वास करते रहे और इस विश्वास को उन्होंने कभी धूमिल नहीं होने दिया | समाज में प्रगतिशील विचारों को ज़िंदा रखने के लिए वे आजीवन संघर्षरत रहे| ऐसे जागरूक पत्रकार सम्पादक और सुकवि का हमारे बीच से जाना हम सबके लिए व्यक्तिगत क्षति की तरह है। उनके विचार हमेशा हमें राह दिखाते रहेंगे | वे हमेशा हमें याद आते रहेंगे।

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रमेश शर्मा

92 श्रीकुंज , बोईरदादर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

मो.7722975017  

 

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