सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ललित सुरजन का जाना : वे हमेशा हमें याद आते रहेंगे

 


ललित सुरजन जी का जाना हम सबके बीच से एक ऐसे शख्स का विदा हो जाना था जिनका होना युवाओं को रचनात्मक रूप से ऊर्जावान बनाए रखने के लिए एक उम्मीद की किरण की तरह मुझे हमेशा लगता रहा। छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से और अक्षर पर्व पत्रिका से जुड़े रहने के कारण उनका साथ कई वर्षों तक बना  रहा । वे छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष थे और अक्षर पर्व पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में हम सब को उनका साथ मिलता रहा।


 

उनके साथ संगठन में काम करते हुए बहुत से अनुभव हैं पर उनसे जब मैं पहली बार जुड़ा उस समय का अनुभव अक्सर स्मृतियों में लौट लौट आता है।

सन 1992 के आसपास जब मैं अपने स्कूल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली रायगढ़ में स्थानान्तरण के बाद पदस्थ हुआ तो वहां की लाइब्रेरी में किताबों को ढूंढते हुए सुरजन जी का पहला कविता संग्रह ' अलाव में तपकर ' मेरे हाथ लगा था । मैंने उनकी सारी कविताएं पढ़ डालीं और उन कविताओं को पढ़ने के उपरांत मैंने उनसे पत्राचार किया।

मेरे इस पत्र को पढ़कर उन्हें उन दिनों बहुत आश्चर्य हुआ था । उनका जवाब आया कि इतने पुराने कविता संग्रह को पढ़ने के बाद इस तरह भी कोई युवा उन्हें चिट्ठी लिख सकता है।

यह संवाद फिर धीरे धीरे घनीभूत होता चला गया। अक्षर पर्व पत्रिका में जब मेरी कविताएं और  कहानियां प्रकाशित होकर आने लगीं तो उन्होंने कई बार बातचीत के माध्यम से प्रोत्साहित भी किया।

धीरे-धीरे फिर मैं छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन से भी जुड़ा। प्रादेशिक बॉडी में सह सचिव के रूप में मेरा मनोनयन हुआ और प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठकों में अक्सर मैं आता जाता रहा।

उनके साथ रहते हुए, वैचारिक स्तर पर बहुत कुछ सीखने समझने का जो एक रास्ता मिला ,उस रास्ते पर चलते हुए राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों को लेकर एक स्पष्ट विजन हमारे भीतर विकसित होता गया । आदमी के भीतर इस तरह के स्पष्ट विजन का होना आज कितना जरूरी है उसे हम ललित सुरजन के माध्यम से देख परख सकते हैं। बिना इस विजन के आज की जो पथभ्रष्ट राजनीति है, किसी भी युवा को अपने साथ बहाकर ले जा रही है और अपनी जरूरत के हिसाब से उन्हें अपने सांचे में ढाल ले रही है ।आज जब बहुतेरे लोगों के पास खुद का कोई विवेक, खुद की कोई बुद्धि , खुद के कोई विचार नहीं हैं इसलिए उनके पास किसी किस्म का कोई राजनैतिक और सामाजिक विजन भी नहीं है। इसी वजह से भी आज समाज में सांप्रदायिकता, जातिवाद , हिंसा और  भ्रष्टाचार जैसी सामाजिक बुराइयां फल फूल रही हैं| ऐसे में ललित जी की प्रासंगिकता बढ़ जाती है और उनका हमारे बीच न होना अखरता है  | ललित सुरजन कुछ इसी तरह के मुद्दों को लेकर वैचारिक स्तर पर हमेशा सक्रिय रहे। उन्होंने लोगों को हमेशा जगाने का काम किया। चाहे वह पत्रकारिता का क्षेत्र हो चाहे साहित्य का, दोनों ही क्षेत्रों में अपने विचारों के माध्यम से वे लगातार सक्रिय रहे । वैचारिक दर्शन की उस जरूरत को ललित सुरजन जी ने हमेशा एक व्यापक स्पेस दिया ।

छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के युवा रचना शिविरों के माध्यम से युवा पीढ़ी को वैचारिक स्तर पर सामाजिक गतिविधियों से जोड़ना, उनके समय की महत्वपूर्ण गतिविधियों की स्मृति को जीवंत कर उठता है।

रायपुर, डभरा और धमतरी के युवा रचना शिविरों में युवाओं के मध्य साहित्यिक और वैचारिक स्तर पर जो संवाद होते रहे, उन संवादों में ललित सुरजन की अगुवाई में, मैं भी बराबर का साझीदार रहा। वे युवाओं से आमने सामने लगातार जीवंत संवाद करने पर विश्वास रखते थे।

इन युवा रचना शिविरों के दरमियान उन्हें जानने समझने के कई अवसर हमें मिले। मैंने जब जब उनकी भीतरी दुनिया में झांकने का प्रयास किया, तब तब उनकी भीतरी दुनिया की खूबसूरती मेरे सामने आती रही। वे एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे और कई बार इसके टूटने पर डांट-डपट देने की उनकी आदत का सामना भी हमें करना पड़ता । उस डांट डपट में एक स्नेह होता था और उसकी एक प्रति ध्वनि हमारे दिलों तक पहुंचा करती थी। उसके माध्यम से हम जीवन में कुछ नया सीखते थे। शिविरों में आने वाले सहभागियों का वे परिवार के मुखिया की तरह बराबर   ध्यान रखा करते थे। कौन खाना खाया, कौन नहीं खा पाया, एक-एक का ख्याल रखना यह भी उनकी आदत में शामिल था। उनकी हर गतिविधि में कुछ सीखने का एक संदेश होता था जो युवाओं को प्रेरित करता था। रायपुर के युवा रचना शिविर में जो कि लोकायन में संपन्न हो रहा था, उस रचना शिविर की याद मेरे मन में आज भी रह-रह कर आने लगती है। पहली रात अचानक खूब तेज हवा चलने लगी थी । तेज अंधड़ के साथ थोड़ी बारिश भी हुई । उस रात रायपुर शहर की बिजली भी चली गई थी। यहां तक कि जहां भोजन के लिए टेंट लगे थे वे भी उड़ उड़ कर उखड़ उखड़ जा रहे थे। उस रात मोमबत्ती के उजाले में ललित सुरजन जी  और माया भाभी वहीँ टेंट के नीचे तब तक जमे रहे, जब तक कि सब ने भोजन नहीं कर लिया। एक जिम्मेदार आदमी किस तरह होता है, उस दिन उनके भीतर उस जिम्मेदार आदमी का मैंने दर्शन किया । डांट डपट देना और स्नेह जताना उनके व्यक्तित्व के बहुरंगी आकर्षक गुण थे। उनके ये गुण मुझे हमेशा आकर्षित करते रहे।

एक बार मेरे आग्रह पर 13 नवंबर 2017 को छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन रायगढ़ इकाई की ओर से आयोजित मुक्तिबोध जयंती के कार्यक्रम में वे रायगढ़ भी आए थे । वह आयोजन मेरे लिए आज भी एक यादगार आयोजन के रूप में मेरे भीतर जिंदा है और उस आयोजन की स्मृति के माध्यम से मैं उन्हें आज भी याद करता हूं।

एक बार अक्षर पर्व के संपादकीय में छत्तीसगढ़ के चार कहानीकारों के कहानी संग्रह जिसमें रामकुमार तिवारी, विनोद साव ,संतोष झांझी और मेरे संग्रह शामिल थे , इन संग्रहों पर ललित सुरजन जी ने विस्तार पूर्वक तटस्थ भाव से आलोचनात्मक टिप्पणियां लिखीं थीं । उनकी उस टिप्पणी से कहानियों को गहराई से जानने समझने की एक नई दृष्टि भी मुझे मिली थी  जिसके लिए मेरे मन में उनके प्रति आदर और श्रद्धा का भाव सघन होता गया। वे हम सबके लिए एक मार्गदर्शक की तरह थे।

वे हमेशा कहा करते थे कि सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग किया करो, फोटो जन्मदिन इत्यादि में उलझे रहने के बजाय इस मंच का उपयोग लोगों को वैचारिक स्तर पर जागरूक करने में हमेशा करो।

वे मूल्यों के साथ जीने में हमेशा विश्वास करते रहे और इस विश्वास को उन्होंने कभी धूमिल नहीं होने दिया | समाज में प्रगतिशील विचारों को ज़िंदा रखने के लिए वे आजीवन संघर्षरत रहे| ऐसे जागरूक पत्रकार सम्पादक और सुकवि का हमारे बीच से जाना हम सबके लिए व्यक्तिगत क्षति की तरह है। उनके विचार हमेशा हमें राह दिखाते रहेंगे | वे हमेशा हमें याद आते रहेंगे।

-----------------------------

रमेश शर्मा

92 श्रीकुंज , बोईरदादर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

मो.7722975017  

 

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ओमा द अक ने

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सोचना

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज

गाँधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक

गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह

'कोरोना की डायरी' का विमोचन

"समय और जीवन के गहरे अनुभवों का जीवंत दस्तावेजीकरण हैं ये विविध रचनाएं"    छत्तीसगढ़ मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन जिला इकाई रायगढ़ के अध्यक्ष सुशीला साहू के सम्पादन में प्रकाशित किताब 'कोरोना की डायरी' में 52 लेखक लेखिकाओं के डायरी अंश संग्रहित हैं | इन डायरी अंशों को पढ़ते हुए हमारी आँखों के सामने 2020 और 2021 के वे सारे भयावह दृश्य आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी रूप में हम सब की हिस्सेदारी रही है | किताब के सम्पादक सुश्री सुशीला साहू जो स्वयं कोरोना से पीड़ित रहीं और एक बहुत कठिन समय से उनका बावस्ता हुआ ,उन्होंने बड़ी शिद्दत से अपने अनुभवों को शब्दों का रूप देते हुए इस किताब के माध्यम से साझा किया है | सम्पादकीय में उनके संघर्ष की प्रतिबद्धता  बड़ी साफगोई से अभिव्यक्त हुई है | सुशीला साहू की इस अभिव्यक्ति के माध्यम से हम इस बात से रूबरू होते हैं कि किस तरह इस किताब को प्रकाशित करने की दिशा में उन्होंने अपने साथी रचनाकारों को प्रेरित किया और किस तरह सबने उनका उदारता पूर्वक सहयोग भी किया | कठिन समय की विभीषिकाओं से मिलजुल कर ही लड़ा जा सकता है और समूचे संघर्ष को लिखि

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था जहाँ आने

प्रीति प्रकाश की कहानी : राम को जन्म भूमि मिलनी चाहिए

प्रीति प्रकाश की कहानी 'राम को जन्म भूमि मिलनी चाहिए' को वर्ष 2019-20 का राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान मिला है, इसलिए जाहिर सी बात है कि इस कहानी को पाठक पढ़ना भी चाहते हैं | हमने उनकी लिखित अनुमति से इस कहानी को यहाँ रखा है | कहानी पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि यह कहानी एक संवेदन हीन होते समाज के चरित्र के दोहरेपन, ढोंग और उसके एकतरफा नजरिये को  किस तरह परत दर परत उघाड़ती चली जाती है | समाज की आस्था वायवीय है, वह सच के राम जिसके दर्शन किसी भी बच्चे में हो सकते हैं  , जो साक्षात उनकी आँखों के सामने  दीन हीन अवस्था में पल रहा होता है , उसके प्रति समाज की न कोई आस्था है न कोई जिम्मेदारी है | "समाज की आस्था एकतरफा है और निरा वायवीय भी " यह कहानी इस तथ्य को जबरदस्त तरीके से सामने रखती है | आस्था में एक समग्रता होनी चाहिए कि हम सच के मूर्त राम जो हर बच्चे में मौजूद हैं , और अमूर्त राम जो हमारे ह्रदय में हैं , दोनों के प्रति एक ही नजरिया रखें  | दोनों ही राम को इस धरती पर उनकी जन्म भूमि  मिलनी चाहिए, पर समाज वायवीयता के पीछे जिस तरह भाग रहा है, उस भागम भाग से उपजी संवेदनहीनता को

कोइलिघुगर वॉटरफॉल तक की यात्रा रायगढ़ से

    अपने दूर पास की भौगौलिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों को जानने समझने के लिए पर्यटन एक आसान रास्ता है । पर्यटन से दैनिक जीवन की एकरसता से जन्मी ऊब भी कुछ समय के लिए मिटने लगती है और हम कुछ हद तक तरोताजा भी महसूस करते हैं । यह ताजगी हमें भीतर से स्वस्थ भी करती है और हम तनाव से दूर होते हैं । रायगढ़ वासियों को पर्यटन करना हो वह भी रायगढ़ के आसपास तो झट से एक नाम याद आता है कोयलीघोघर! कोयलीघोघर ओड़िसा के झारसुगड़ा जिले का एक प्रसिद्द पिकनिक स्पॉट है जहां रायगढ़ से एक घंटे में सड़क मार्ग की यात्रा कर बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है । शोर्ट कट रास्ता अपनाते हुए रायगढ़ से लोइंग, बनोरा, बेलेरिया होते ओड़िसा के बासनपाली गाँव में आप प्रवेश करते हैं फिर वहां से निकल कर भीखमपाली के पूर्व पड़ने वाले एक चौक पर जाकर रायगढ़ झारसुगड़ा मुख्य सड़क को पकड लेते हैं। इस मुख्य सड़क पर चलते हुए भीखम पाली के बाद पचगांव नामक जगह आती है जहाँ खाने पीने की चीजें मिल जाती हैं।  यहाँ के लोकल बने पेड़े बहुत प्रसिद्द हैं जिसका स्वाद कुछ देर रूककर लिया जा सकता है । पचगांव से चलकर आधे घंटे बाद कुरेमाल का ढाबा पड़ता है , वहां र

समीक्षा- कहानी संग्रह "मुझे पंख दे दो" लेखिका: इला सिंह

शिवना साहित्यिकी के नए अंक में प्रकाशित समीक्षा स्वरों की धीमी आंच से बदलाव के रास्तों  की खोज  ■रमेश शर्मा ------------------------------------------------------------- इला सिंह की कहानियों को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि इला सिंह जीवन में अनदेखी अनबूझी सी रह जाने वाली अमूर्त घटनाओं को कथा की शक्ल में ढाल लेने वाली कथा लेखिकाओं में से एक हैं। उनका पहला कहानी संग्रह 'मुझे पंख दे दो' हाल ही में प्रकाशित होकर पाठकों तक पहुंचा है। इस संग्रह में सात कहानियाँ हैं। संग्रह की पहली कहानी है अम्मा । अम्मा कहानी में एक स्त्री के भीतर जज्ब सहनशील आचरण , धीरज और उदारता को बड़ी सहजता के साथ सामान्य सी लगने वाली घटनाओं के माध्यम से कथा की शक्ल में जिस तरह इला जी ने प्रस्तुत किया है , उनकी यह प्रस्तुति कथा लेखन के उनके मौलिक कौशल को हमारे सामने रखती है और हमारा ध्यान आकर्षित करती है । अम्मा कहानी में दादी , अम्मा , भाभी और बहनों के रूप में स्त्री जीवन के विविध रंग विद्यमान हैं । इन रंगों में अम्मा का जो रंग है वह रंग सबसे सुन्दर और इकहरा है । कहानी एक तरह से यह आग्रह करती है कि स्त्री का

परदेसी राम वर्मा की चर्चित कहानी : दीया न बाती

आज हम एक महत्वपूर्ण कथाकार परदेशी राम वर्मा जी पर चर्चा को केंद्रित करेंगे। 18 जुलाई 1947 को दुर्ग छत्तीसगढ़ के लिमतरा गांव में जन्मे परदेशी राम वर्मा देश के महत्वपूर्ण कथाकारों में से एक हैं ।वे पूर्व में सेना में भी रहे हैं और भिलाई स्टील प्लांट में भी उन्होंने काम किया है। रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से मानद डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त परदेशी राम वर्मा की अनेक किताबें प्रकाशित हुई हैं उनमें सात कथा संग्रह एवम तीन उपन्यास प्रमुख हैं । वे हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही भाषाओं में सम गति से लेखन करते हैं ।वर्तमान में वे अगासदिया नामक त्रैमासिक पत्रिका के संपादक भी हैं।उनकी कहानियों की देशजता और जनवादी तेवर उन्हें प्रेमचंद की परंपरा के कहानीकार के रूप में स्थापित करता है। उनकी इस कहानी को हमने हंस के जुलाई 2019अंक से लिया है। सत्ता और कॉर्पोरेट तंत्र की मिलीभगत और उनके षड्यंत्र से गांव आज कैसे प्रभावित हैं  कहानी इसे आख्यान की तरह हुबहू सुनाती है । सारे दृश्य आंखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगते हैं। ग्रामीणों को विकास का सपना दिखाकर उनकी जमीनों को छीनना आज का नया खेल है। इस खेल में