सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ललित सुरजन का जाना : वे हमेशा हमें याद आते रहेंगे

 


ललित सुरजन जी का जाना हम सबके बीच से एक ऐसे शख्स का विदा हो जाना था जिनका होना युवाओं को रचनात्मक रूप से ऊर्जावान बनाए रखने के लिए एक उम्मीद की किरण की तरह मुझे हमेशा लगता रहा। छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से और अक्षर पर्व पत्रिका से जुड़े रहने के कारण उनका साथ कई वर्षों तक बना  रहा । वे छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष थे और अक्षर पर्व पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में हम सब को उनका साथ मिलता रहा।


 

उनके साथ संगठन में काम करते हुए बहुत से अनुभव हैं पर उनसे जब मैं पहली बार जुड़ा उस समय का अनुभव अक्सर स्मृतियों में लौट लौट आता है।

सन 1992 के आसपास जब मैं अपने स्कूल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली रायगढ़ में स्थानान्तरण के बाद पदस्थ हुआ तो वहां की लाइब्रेरी में किताबों को ढूंढते हुए सुरजन जी का पहला कविता संग्रह ' अलाव में तपकर ' मेरे हाथ लगा था । मैंने उनकी सारी कविताएं पढ़ डालीं और उन कविताओं को पढ़ने के उपरांत मैंने उनसे पत्राचार किया।

मेरे इस पत्र को पढ़कर उन्हें उन दिनों बहुत आश्चर्य हुआ था । उनका जवाब आया कि इतने पुराने कविता संग्रह को पढ़ने के बाद इस तरह भी कोई युवा उन्हें चिट्ठी लिख सकता है।

यह संवाद फिर धीरे धीरे घनीभूत होता चला गया। अक्षर पर्व पत्रिका में जब मेरी कविताएं और  कहानियां प्रकाशित होकर आने लगीं तो उन्होंने कई बार बातचीत के माध्यम से प्रोत्साहित भी किया।

धीरे-धीरे फिर मैं छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन से भी जुड़ा। प्रादेशिक बॉडी में सह सचिव के रूप में मेरा मनोनयन हुआ और प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठकों में अक्सर मैं आता जाता रहा।

उनके साथ रहते हुए, वैचारिक स्तर पर बहुत कुछ सीखने समझने का जो एक रास्ता मिला ,उस रास्ते पर चलते हुए राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों को लेकर एक स्पष्ट विजन हमारे भीतर विकसित होता गया । आदमी के भीतर इस तरह के स्पष्ट विजन का होना आज कितना जरूरी है उसे हम ललित सुरजन के माध्यम से देख परख सकते हैं। बिना इस विजन के आज की जो पथभ्रष्ट राजनीति है, किसी भी युवा को अपने साथ बहाकर ले जा रही है और अपनी जरूरत के हिसाब से उन्हें अपने सांचे में ढाल ले रही है ।आज जब बहुतेरे लोगों के पास खुद का कोई विवेक, खुद की कोई बुद्धि , खुद के कोई विचार नहीं हैं इसलिए उनके पास किसी किस्म का कोई राजनैतिक और सामाजिक विजन भी नहीं है। इसी वजह से भी आज समाज में सांप्रदायिकता, जातिवाद , हिंसा और  भ्रष्टाचार जैसी सामाजिक बुराइयां फल फूल रही हैं| ऐसे में ललित जी की प्रासंगिकता बढ़ जाती है और उनका हमारे बीच न होना अखरता है  | ललित सुरजन कुछ इसी तरह के मुद्दों को लेकर वैचारिक स्तर पर हमेशा सक्रिय रहे। उन्होंने लोगों को हमेशा जगाने का काम किया। चाहे वह पत्रकारिता का क्षेत्र हो चाहे साहित्य का, दोनों ही क्षेत्रों में अपने विचारों के माध्यम से वे लगातार सक्रिय रहे । वैचारिक दर्शन की उस जरूरत को ललित सुरजन जी ने हमेशा एक व्यापक स्पेस दिया ।

छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के युवा रचना शिविरों के माध्यम से युवा पीढ़ी को वैचारिक स्तर पर सामाजिक गतिविधियों से जोड़ना, उनके समय की महत्वपूर्ण गतिविधियों की स्मृति को जीवंत कर उठता है।

रायपुर, डभरा और धमतरी के युवा रचना शिविरों में युवाओं के मध्य साहित्यिक और वैचारिक स्तर पर जो संवाद होते रहे, उन संवादों में ललित सुरजन की अगुवाई में, मैं भी बराबर का साझीदार रहा। वे युवाओं से आमने सामने लगातार जीवंत संवाद करने पर विश्वास रखते थे।

इन युवा रचना शिविरों के दरमियान उन्हें जानने समझने के कई अवसर हमें मिले। मैंने जब जब उनकी भीतरी दुनिया में झांकने का प्रयास किया, तब तब उनकी भीतरी दुनिया की खूबसूरती मेरे सामने आती रही। वे एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे और कई बार इसके टूटने पर डांट-डपट देने की उनकी आदत का सामना भी हमें करना पड़ता । उस डांट डपट में एक स्नेह होता था और उसकी एक प्रति ध्वनि हमारे दिलों तक पहुंचा करती थी। उसके माध्यम से हम जीवन में कुछ नया सीखते थे। शिविरों में आने वाले सहभागियों का वे परिवार के मुखिया की तरह बराबर   ध्यान रखा करते थे। कौन खाना खाया, कौन नहीं खा पाया, एक-एक का ख्याल रखना यह भी उनकी आदत में शामिल था। उनकी हर गतिविधि में कुछ सीखने का एक संदेश होता था जो युवाओं को प्रेरित करता था। रायपुर के युवा रचना शिविर में जो कि लोकायन में संपन्न हो रहा था, उस रचना शिविर की याद मेरे मन में आज भी रह-रह कर आने लगती है। पहली रात अचानक खूब तेज हवा चलने लगी थी । तेज अंधड़ के साथ थोड़ी बारिश भी हुई । उस रात रायपुर शहर की बिजली भी चली गई थी। यहां तक कि जहां भोजन के लिए टेंट लगे थे वे भी उड़ उड़ कर उखड़ उखड़ जा रहे थे। उस रात मोमबत्ती के उजाले में ललित सुरजन जी  और माया भाभी वहीँ टेंट के नीचे तब तक जमे रहे, जब तक कि सब ने भोजन नहीं कर लिया। एक जिम्मेदार आदमी किस तरह होता है, उस दिन उनके भीतर उस जिम्मेदार आदमी का मैंने दर्शन किया । डांट डपट देना और स्नेह जताना उनके व्यक्तित्व के बहुरंगी आकर्षक गुण थे। उनके ये गुण मुझे हमेशा आकर्षित करते रहे।

एक बार मेरे आग्रह पर 13 नवंबर 2017 को छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन रायगढ़ इकाई की ओर से आयोजित मुक्तिबोध जयंती के कार्यक्रम में वे रायगढ़ भी आए थे । वह आयोजन मेरे लिए आज भी एक यादगार आयोजन के रूप में मेरे भीतर जिंदा है और उस आयोजन की स्मृति के माध्यम से मैं उन्हें आज भी याद करता हूं।

एक बार अक्षर पर्व के संपादकीय में छत्तीसगढ़ के चार कहानीकारों के कहानी संग्रह जिसमें रामकुमार तिवारी, विनोद साव ,संतोष झांझी और मेरे संग्रह शामिल थे , इन संग्रहों पर ललित सुरजन जी ने विस्तार पूर्वक तटस्थ भाव से आलोचनात्मक टिप्पणियां लिखीं थीं । उनकी उस टिप्पणी से कहानियों को गहराई से जानने समझने की एक नई दृष्टि भी मुझे मिली थी  जिसके लिए मेरे मन में उनके प्रति आदर और श्रद्धा का भाव सघन होता गया। वे हम सबके लिए एक मार्गदर्शक की तरह थे।

वे हमेशा कहा करते थे कि सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग किया करो, फोटो जन्मदिन इत्यादि में उलझे रहने के बजाय इस मंच का उपयोग लोगों को वैचारिक स्तर पर जागरूक करने में हमेशा करो।

वे मूल्यों के साथ जीने में हमेशा विश्वास करते रहे और इस विश्वास को उन्होंने कभी धूमिल नहीं होने दिया | समाज में प्रगतिशील विचारों को ज़िंदा रखने के लिए वे आजीवन संघर्षरत रहे| ऐसे जागरूक पत्रकार सम्पादक और सुकवि का हमारे बीच से जाना हम सबके लिए व्यक्तिगत क्षति की तरह है। उनके विचार हमेशा हमें राह दिखाते रहेंगे | वे हमेशा हमें याद आते रहेंगे।

-----------------------------

रमेश शर्मा

92 श्रीकुंज , बोईरदादर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

मो.7722975017  

 

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ओमा द अक ने

नीरज वर्मा की कहानी : हे राम

नीरज वर्मा की कहानियाँ किस्सागोई से भरपूर होती हैं । साथ साथ उनकी कहानियाँ राजनैतिक संदर्भों को छूती हुईं हमें एक तरह से विचारों की दुनिया में घसीटकर भी ले जाने की कोशिश करती हैं। कहानी 'हे राम' इस बात को स्थापित करती है कि राजनीति मनुष्य को विचारवान होने से हमेशा रोकती है क्योंकि विचारवान मनुष्य के बीच राजनीति के दांव पेच फेल होने लगते हैं । नीरज वर्मा अपनी इस कहानी में गांधी को केंद्र में रखकर घटनाओं को बुनते हैं तब ऐसा करते हुए वे हमें उसी विचारों की दुनिया में ले जाने की कोशिश करते हैं।गांधी को केंद्र में रखकर लिखी गयी यह कहानी 'हे राम' देश के वर्तमान हालातों पर भी एक नज़र फेरती हुई आगे बढ़ती है । बतौर पाठक कहानी के पात्रों के माध्यम से इस बात को गहराई में जाकर महसूस किया जा सकता है कि गांधी हमारे भीतर वैचारिक रूप में हमेशा जीवित हैं । जब भी अपनी आँखों के सामने कोई अनर्गल या दुखद घटना घटित होती है तब हमारी जुबान से अनायास ही "हे राम" शब्द  निकल पड़ते हैं । इस कहानी में नीरज यह बताने की कोशिश करते हैं कि गांधी का हमारे जीवन में इस रूप में अनायास लौटना ही उनकी

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था जहाँ आने

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सोचना

गाँधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक

गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवारों

गजेंद्र रावत की कहानी : उड़न छू

गजेंद्र रावत की कहानी उड़न छू कोरोना काल के उस दहशतजदा माहौल को फिर से आंखों के सामने खींच लाती है जिसे अमूमन हम सभी अपने जीवन में घटित होते देखना नहीं चाहते। अम्मा-रुक्की का जीवन जिसमें एक दंपत्ति के सर्वहारा जीवन के बिंदास लम्हों के साथ साथ एक दहशतजदा संघर्ष भी है वह इस कहानी में दिखाई देता है। कोरोना काल में आम लोगों की पुलिस से लुका छिपी इसलिए भर नहीं होती थी कि वह मार पीट करती थी, बल्कि इसलिए भी होती थी कि वह जेब पर डाका डालने पर भी ऊतारू हो जाती थी। श्रमिक वर्ग में एक तो काम के अभाव में पैसों की तंगी , ऊपर से कहीं मेहनत से दो पैसे किसी तरह मिल जाएं तो रास्ते में पुलिस से उन पैसों को बचाकर घर तक ले आना कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी। उस चुनौती को अम्मा ने कैसे स्वीकारा, कैसे जूतों में छिपाकर दो हजार रुपये का नोट उसका बच गया , कैसे मौका देखकर वह उड़न छू होकर घर पहुँच गया, सारी कथाएं यहां समाहित हैं।कहानी में एक लय भी है और पठनीयता भी।कहानी का अंत मन में बहुत उहापोह और कौतूहल पैदा करता है। बहरहाल पूरी कहानी का आनंद तो कहानी को पढ़कर ही लिया जा सकता है।              कहानी '

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहानी तो

डॉक्टर उमा अग्रवाल और डॉक्टर कीर्ति नंदा : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर रायगढ़ शहर के दो होनहार युवा महिला चिकित्सकों से जुड़ी बातें

आज 8 मार्च है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस । आज के दिन उन महिलाओं की चर्चा होती है जो अमूमन चर्चा से बाहर होती हैं और चर्चा से बाहर होने के बावजूद अपने कार्यों को बहुत गम्भीरता और कमिटमेंट के साथ नित्य करती रहती हैं। डॉ कीर्ति नंदा एवं डॉ उमा अग्रवाल  वर्तमान में हम देखें तो चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला चिकित्सकों की संख्या में  पहले से बहुत बढ़ोतरी हुई है ।इस पेशे पर ध्यान केंद्रित करें तो महसूस होता है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला डॉक्टरों के साथ बहुत समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। उन पर काम का बोझ अत्यधिक होता है और साथ ही साथ अपने घर परिवार, बच्चों की जिम्मेदारियों को भी उन्हें देखना संभालना होता है। महिला चिकित्सक यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ है और किसी क्षेत्र विशेष में  विशेषज्ञ सर्जन है तो  ऑपरेशन थिएटर में उसे नित्य मानसिक और शारीरिक रूप से संघर्ष करना होता है। किसी भी डॉक्टर के लिए पेशेंट का ऑपरेशन करना बहुत चुनौती भरा काम होता है । कहीं कोई चूक ना हो जाए इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है । इस चूक में  पेशेंट के जीवन और मृत्यु का मसला जुड़ा होता है।ऑपरेशन थियेटर में घण्टों  लगाता