घर वापसी युवा कथाकार मनोज कुमार शिव जी का पहला कहानी संग्रह है।इस संग्रह में ग्यारह कहानियां हैं । इन ग्यारह कहानियों को पढ़ने के बाद यह तय कर पाने में कोई संशय नहीं रह जाता कि मनोज ग्रामीण अंचल की घटनाओं को अपनी कहानियों में पिरोने वाले कथाकार हैं। उनके रचना कर्म का भूगोल मूलतः ग्रामीण अंचल की घटनाओं से ही आकार पाता है। आज के उत्तर आधुनिक समय में ग्रामीण अंचल की घटनाओं को कहानियों में उतारना दुरूह तो नहीं है पर सरल भी नहीं है।
इसके लिए कथाकार को ग्रामीण अंचल के जीवन का पर्याप्त अनुभव होना चाहिए और यह अनुभव केवल सुनी सुनाई बातों के माध्यम से अर्जित किया हुआ न होकर जीवंत होना चाहिए । मनोज की कहानियों को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनके पास एक नागरिक और उस नागरिक के भीतर जन्मे लेखक के रूप में ग्रामीण जीवन का पर्याप्त अनुभव है। इन कहानियों को पढ़ने के बाद पाठक को नदी, नाले, पहाड़ , पहाड़ की गोद में बसे गांव ,सेब के पेड़ के बगीचे और वहां की आबोहवा के सौंदर्य का एहसास यूं होने लगता है कि जैसे उनके बिना दुनिया का सौंदर्य अधूरा है। कहानियों को पढ़ते हुए एक बात और शिद्दत से महसूस होती है कि मनोज कुमार शिव जी ने अपनी कहानियों की रचना में प्रकृति के चित्रण का बखूबी इस्तेमाल किया है।
इसी चित्रण के माध्यम से वे कहानियों को आगे बढ़ाते हैं और एक परिवेश की रचना करते हैं । एक ऐसा परिवेश जहां प्रकृति है , उससे जुड़ा लोक है और लोक के दुख दर्द भी हैं। कहानियों को पढ़ते हुए कई बार ऐसा भी लगता है कि मनोज कुमार शिव मिथकों पर आस्था रखने वाले कथाकार हैं। पर यह आस्था उनकी खुद की मर्जी से चल कर आई हो ऐसा भी नहीं है ।दरअसल लोक में इस तरह की आस्थाएं आज भी जीवित हैं और उन लोक आस्थाओं से छेड़छाड़ किए बिना उन्होंने उन्हें उसी रूप में अपनी कहानियों में आने दिया है।
यह एक कथाकार की ईमानदारी भी है कि लोक आस्थाओं, मान्यताओं की स्वाभाविकता को अपनी कहानियों में वह उसी रूप में आने दे । संग्रह की कहानी इंसाफ एक ऐसी ही कहानी है जो इन लोक आस्थाओं को प्रगाढ़ करती है । प्रकृति जब इंसाफ करती है तब फिर किसी की नहीं चलती। इंसाफ' कहानी हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की एक सत्य घटना पर बुनी गयी है।
इस कहानी में जंगलों की अवैध कटाई को वनरक्षक होशियार सिंह रोकने की कोशिश करता है और अपराधी तत्वों द्वारा उसकी जान ले ली जाती है। पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर प्रकृति की गोद में बसे गाँव की शांति को जिस तरह छीनने की कोशिश होती है और जिस तरह पर्यटन के नाम पर वनों की अवैध कटाई के दृश्य इस कहानी में आते हैं उन सभी दृश्यों में आज के समय की विभीषिका नजर आती है। पशु पक्षी, पेड़ पौधों से प्रेम करने वाला होशियार सिंह उन विभीषिकाओं से लोहा लेता है और एक दिन जंगल में उसकी लाश टंगी हुई मिलती है । कहानी यह सन्देश भी देती है कि आज सरकारों और पूंजीवादी ताकतों का गठजोड़ गुंडे और अपराधियों की भूमिका में है और आम इंसान को ईमानदारी और सच्चाई की खातिर उससे जूझने के अपने खतरे हैं | इस सन्देश के बावजूद यह कहानी आम आदमी में इन खतरों से जूझने की एक हिम्मत देती है जिसका उल्लेख यहाँ जरूरी है | शहरीकरण आज की जरूरत है या नहीं यह तो हमारी अपनी सोच और नज़रिए पर निर्भर है पर आज जिस तरह शहरीकरण को पूंजीवादी ताकतें मिलकर बढ़ावा दे रही हैं उससे आज की नयी पीढी भी शहरीकरण की ओर आकर्षित हो रही है जो कि एक चिंता का बिषय है | शहरीकरण के चलते गाँव खत्म हो रहे हैं | प्रकृति नष्ट हो रही है | गाँव में परंपरागत आजीविका के साधन खत्म हो रहे हैं और आम लोगों का विस्थापन हो रहा है | शीर्षक कहानी 'घर वापसी' इसी चिंता को आगे बढाती है | यह कहानी एक ऐसे किसान की कहानी है जो सेब उत्पादन से अपना जीवन यापन अच्छी तरह कर रहा है | इस आजीविका से उसे वो सारी खुशियाँ प्राप्त हैं जो एक साधारण आदमी के खुशहाल जीवन के लिए पर्याप्त हैं | परंतु उसका बेटा इस गाँव को नहीं बल्कि शहर को प्राथमिकता देता है क्योंकि उसके मन में शहरी जीवन की चकाचौंध समाने लगी है और वह वहीं रहने चला गया है।इसे संयोग ही कहा जाए कि कहानी में परिस्थितियाँ बदलती हैं और कोरोना वायरस से उत्पन्न बीमारी के भय से उसका बेटा घर वापस लौट आता है।
कहानी में पेड़ों को काटे जाने एवं नशीले पदार्थों की खेती की ओर भी कथाकार ने इशारा करते हुए उससे उत्पन्न परेशानियों की ओर इशारा किया है। एक तरफ शहर की ओर आकर्षित होकर गए किसान के युवा पुत्र की कथा इस कहानी में है वहीं परदेश से रोजगार की खोज में गाँव की ओर आए युवकों की दास्तान भी इस कहानी का हिस्सा है | कथाकार ने दोनों घटनाओं का समानांतर रूप से जिक्र करते हुए गाँव का जीवन और वहां के रोजगार की पैरोकारिता करते हुए घर वापसी कहानी के माध्यम से गाँव और वहां की प्रकृति को बचाने की मंशा जाहिर की है जो पाठकों के लिए एक अच्छा सन्देश है | संग्रह में एक अन्य कहानी है 'बँटवारा' | इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने मानवीय दर्द को जिस तरह बयां किया है वह पाठकों का ध्यान खींचता है। स्थायी रूप से न सही पर अगर कहानी मनुष्य की संवेदना को आंशिक रूप में भी जगाने का काम करती है तो कहानी अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर कही जा सकती है | 'बँटवारा' कहानी अत्यंत मार्मिक है और अपने उद्देश्य की ओर बढ़ती हुई गतिशील होने का आभास कराती है |एक छोटी बच्ची और उसकी दादी के माध्यम से मानवीय पीड़ा को कथाकार ने अपनी इस कहानी में भली भांति संप्रेषित कर अपने कथा कौशल का परिचय दिया है | शराब आज एक ऎसी वस्तु है जिसे समाज में खराब नज़रिए से देखा जाता है | इसके बावजूद शराब की बिक्री सरकार की नज़र में बहुत ही जरूरी है | शराब की बिक्री से सरकारों का वित्तीय कारोबार गतिशील रहता है | सरकार को इन चीजों से कोई लेना देना नहीं कि शराब के कारण ही कितने परिवार तबाही के कगार पर पहुँच जाते हैं | संग्रह की कहानी 'गुरु दक्षिणा' एक ऎसी कहानी है जो एक शराबी पिता के बच्चे की पीड़ा , उसके दुःख दर्द की पड़ताल करती है | वो बच्चा पढ़-लिखकर कुछ करना चाहता है पर पारिवारिक परिस्थितियां उसे एक ट्रक पर लाकर छोड़ देती हैं जहाँ वह स्कूल आते जाते बच्चों को देखकर बैचैन रहता है।इस कहानी को पढ़ते हुए एक चलती हुई ट्रक में करतार और जग्गी के साथ पाठकों को भी ऐसा महसूस होगा जैसे वे भी उस ट्रक की सवारी कर रहे हों और उस बच्चे के दुःख दर्द में शामिल हों । करतार कहानी की शुरुआत में किंचित निष्ठुर प्रतीत होता है परंतु कहानी का अंत पाठकों को चौंकाता है।
संग्रह की एक अन्य कहानी 'रिटायरमेंट' जहाँ एक ओर पाठकों के मन में संवेदना जगाती है वहीं दूसरी तरफ मनुष्य की भीतरी दुनियां में सुप्त रूप में पड़े हुए लोभ लालच में डूबे भूखे मानव मन का भी दर्शन कराती है । कहानी का पात्र नानकू सभी को खुश रखने का भरसक प्रयास करता है परंतु उसके बेटे, नाते-रिश्तेदार, दोस्त, सबकी नजर उसके पास संग्रहित धनराशि पर होती है और धन प्राप्त होते ही सभी उसके जीवन से दूर चले जाते हैं।यह कहानी मनुष्य के भीतर अन्तर्निहित अच्छे और बुरे गुणों का द्वन्द प्रस्तुत करती है और उसे चुनने का एक खुला विकल्प देती है| कहानी उपदेशात्मक न होकर कुछ ऎसी स्थितियां सामने प्रस्तुत करे जहां से मानवीय मन के भीतर द्वन्द पैदा हो तो वहां से कहानी की दिशा तय होती है | इस लिहाज से यह एक ठीक ठाक कहानी लगती है | संग्रह में विस्थापन के दर्द को बयां करती एक अन्य मार्मिक कहानी है, 'जलेबी मेले की'। आज विकास के नाम पर जिस तरह गाँव , नदियाँ, पहाड़ और पूरी प्रकृति को नष्ट करने की सरकारी मुहीम चल पड़ी है ,उस मुहीम की विभीषिका को यह कहानी सामने रखती है |विकास के नाम पर कई मील फैली समतल घाटी का उपयोग , उसी विकास के नाम पर नदी पर बाँध बनाने की प्रक्रिया में वहाँ आस पास रह रहे लोगों के विस्थापन का दर्द अक्सर अनदेखा, अनकहा रह जाता है।उन लोगों की सुध न सरकारें लेती हैं न देश दुनियां का समाज ! उस अनकहे अनदेखे दर्द की टीस है यह कहानी ।
कहानी में आयी दादी जो कि अपने विस्थापन के दर्द को भूल ही नहीं पाती । पोता-दादी के प्रेम को यह कहानी बहुत मार्मिकता से सामने रखती है | देखा जाए तो ग्रामीण परिवेश , प्रकृति और मानवीय संवेदना की पैरोकारिता करने वाले कथाकार मनोज की सभी कहानियाँ पाठकों का ध्यान खींचती हैं | खासकर प्रकृति को लेकर कहानियों में जो चित्रण हैं वे आँखों के सामने जीवंत दृश्य रचकर पाठकीय मन को आनंदित करते हैं | मनोज की कहानियों में भाषा और शिल्प के स्तर पर जरूर एक किस्म की सहजता है जिसके कारण कई जगह कहानी की घटनाएँ विवरण के तौर पर आगे बढ़ती हैं और भाषायी कलात्मकता से दूर होती हुई प्रतीत होती हैं | इस लिहाज से कोई अगर उनके कथा शिल्प का आकलन करे तो उन्हें अपने भाषायी कौशल पर आगे अभी और खरा उतरना होगा | बहरहाल इस नए संग्रह की कहानियों को पढ़ते हुए पाठक कुछ नए अनुभवों को अर्जित करेंगे जो जीवन मूल्यों के बहुत करीब कहे जा सकते हैं |
कथा संग्रह : घर वापसी लेखक : मनोज कुमार शिव प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन प्रा.लि. गाजियाबाद मूल्य : 300 रूपये ■ समीक्षक : रमेश शर्मा 92 श्रीकुंज , बोईरदादर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़) पिन 496001, मो. 7722975017
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