सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हरिद्वार में 'शांतिकुंज' , सप्तऋषि आश्रम और 'हर की पौड़ी' की परिक्रमा

हरिद्वार का नाम सुनते ही मन में एक आकर्षण पैदा होने लगता है । उत्तराखंड का एक सबसे सुंदर शहर, धार्मिक आस्था का शहर हरिद्वार । जब दिल्ली गए थे तो हम लोग हरिद्वार भी चले गए। उत्कल एक्सप्रेस रायगढ़ से सीधे हरिद्वार ले जाती है ।पर हम बीच में एक रात के लिए दिल्ली रुक गए थे। दूसरे दिन रात को दिल्ली से हमने ट्रेन पकड़ कर हरिद्वार के लिए यात्रा प्रारंभ की और सुबह-सुबह हरिद्वार पहुंच गए। हरिद्वार का रेलवे स्टेशन श्रद्धालु पर्यटकों से भरा हुआ था। गो आईबिबो के माध्यम से हमारी होटल की बुकिंग हो रखी थी, और हम सीधे अपने होटल में चले गए। हमने नहा धोकर थोड़ी देर होटल में विश्राम किया। बाहर निकले तो गलियों में बहुत सारे छोटे-छोटे रेस्टोरेंट हमें मिले। नाश्ता करते हुए लगभग 10 बजे का समय हो गया। फिर थोड़ा टहलते हुए आगे बढ़े और एक ऑटो रिक्शे में हम सीधे शांतिकुंज हरिद्वार के लिए निकल पड़े। वहां गेट पर भीड़ लगी थी , बताया गया कि प्रवेश के लिए आधार कार्ड का होना बहुत जरूरी है। हम अपना आधार कार्ड होटल में ही भूल कर आ गए थे ।

हर की पौड़ी हरिद्वार

उस समय हमें थोड़ी परेशानी महसूस हुई। होटल जाकर फिर से वापस आना संभव नहीं लग रहा था। हमने रायगढ़ फोन लगाया तब पता चला कि रायगढ़ जिले के कुछ लोग यहां स्थाई रूप से शांतिकुंज हरिद्वार में रहते हैं। एक साहू जी का नंबर मिला । उनको मैंने फोन लगाया और अपनी परेशानी बताई, तब वे बाहर निकल कर गेट पर आ गए और उनके माध्यम से हमें अंदर जाने की अनुमति मिल गई। हमने शांतिकुंज हरिद्वार के भीतर बहुत सारी जगहों में जाकर उनका निरीक्षण किया। शांतिकुंज सचमुच में शांति का कुंज है , वहां पहुंचकर हमें जो मानसिक शांति मिली वह अवर्णनीय है। वहां जो सामूहिक भोजनालय है, वहां बैठकर हमने वहां का सादा भोजन भी ग्रहण किया।
बहुत से नए लोगों से बातचीत हुई। शांतिकुंज की व्यवस्था को हमने बहुत करीब से जानने समझने की कोशिश की। उनका खुद का स्कूल है ,उनका खुद का विश्वविद्यालय है, वहां बहुत सारे बच्चे पढ़ते हैं । वहां जो आरती होती है वह अद्वितीय है । लोगों का आपस में मिल जुल कर रहना , पूरी व्यवस्था को संभालना एक अद्भुत तंत्र को स्वमेव संचालित करने जैसा है। बिना त्याग और समर्पण के इस तरह की व्यवस्था संभव नहीं है, जैसा कि वहां हमें देखने के बाद महसूस हुआ। वहां करीब में स्थित एक सप्तऋषि आश्रम में भी घूमते घूमते चले गए । वह आश्रम हमें बहुत सुंदर लगा। उस आश्रम का एक बहुत बड़ा केम्पस है, यहां बहुत से छोटे-छोटे घर बने हुए हैं। इन घरों को कुटिया बोलते हैं जिनमें अलग-अलग ऋषियों के नाम अंकित हैं ।
इन छोटे-छोटे अलग-अलग घरों में रहने के लिए पूरी व्यवस्था है । गर्मियों में आकर लोग यहां महीनों इन छोटे-छोटे घरों को भाड़े में लेकर रहते हैं। इनमें कूलर वगैरा की पूरी व्यवस्था है। केम्पस हरा भरा होने के कारण बहुत सुंदर और मनोहारी लगता है।
वहां से घूम फिर कर हम दोपहर लगभग 3 बजे हर की पौड़ी पहुंच गए।
शांति कुञ्ज हरिद्वार
हर की पौड़ी जिसे हरि की पौड़ी भी कहा जाता है,धार्मिक नगरी हरिद्वार के सर्वाधिक पवित्र स्थलों में से एक है। इस स्थान के बारे में जानना हमें बहुत जरूरी लगा। यह वह स्थान है, जहाँ प्रतिदिन भारत के अलग-अलग जगहों से आए हुए लोगों के दर्शन होते हैं। यहां आए हुए लोगों को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह शहर एक लघु भारत में बदल गया है । जानकारी के मुताबिक 'हर की पौड़ी' को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। ये माना गया है कि यह वही स्थान है, जहाँ से गंगा नदी पहाड़ों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों की ओर मुड़ती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर बहती नदी के जल में पापों को धो डालने की अद्भुत शक्ति है । इसलिए यहां आए हुए लोग नदी में जरूर स्नान करते हैं । लोगों की मान्यता है कि यहाँ एक पत्थर में अंकित श्रीहरि के पदचिह्न इस बात का समर्थन करते हैं। यह घाट गंगा नदी की नहर के पश्चिमी तट पर है, जहाँ से नदी उत्तर दिशा की ओर मुड़ जाती है।
हर की पौड़ी से जुड़ा पौराणिक तथ्य
'हर की पौड़ी' उत्तराखण्ड राज्य की धार्मिक नगरी हरिद्वार का पवित्र और सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस के भीतर छुपा भाव है- "हरि यानी नारायण के चरण"। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद देवशिल्पी विश्वकर्मा अमृत के कलश को, जिसे पाने के लिए देवता तथा दानवों में घमासान मचा हुआ था,उन सबसे बचाकर ले जा रहे थे। उसी दरमियान भागा भागी में पृथ्वी पर अमृत की कुछ बूँदें कलश से छलक कर गिर गईं । अमृत के छलक कर गिरने की वजह से हरिद्वार में हर की पौड़ी धार्मिक महत्त्व वाला स्थान बन गया। यहाँ पर स्नान करना हरिद्वार आए हर श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहाँ पर स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हर की पौड़ी हरिद्वार

हर की पौड़ी से जुड़ा मिथक
इस स्थान से संबंधित कई मिथकों में से एक मिथक यह है कि वैदिक काल के दौरान भगवान विष्णु एवं शिव यहाँ प्रकट हुए थे। दूसरे अन्य मिथक अनुसार ब्रह्मा जी जिन्हें सृष्टि का सृजनकर्ता भी कहा जाता है, उन्होंने यहाँ एक यज्ञ किया था। यहाँ के घाट पर कुछ पदचिन्ह भी मौजूद हैं, इन पद चिन्हों के बारे में वहां के पंडितों ने बताया कि ये भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
हर की पौड़ी से जुड़ा ऐतिहासिक तथ्य
'हर की पौड़ी' का निर्माण प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया था। उन्होंने अपने भाई भतृहरि की याद में इसका निर्माण कराया था। भतृहरि गंगा नदी के घाट पर बैठकर काफ़ी लम्बे समय तक ध्यान किया करते थे।
हर की पौड़ी की धार्मिक मान्यता
हर की पौड़ी में सुबह शाम गंगा जी की आरती होती है। इस आरती में शामिल होना सौभाग्य का विषय इसलिए होता है क्योंकि आप दुनिया के सबसे खूबसूरत दृश्यों में से गिने चुने दृश्यों को उस समय देख रहे होते हैं। हमने भी शाम के समय हर की पौड़ी में उपस्थित रहकर गंगा आरती के दृश्यों का आनंद लिया। आस्था की दृष्टि से भी इसे देखें तो वहां की मौजूदगी एक गहरी संतुष्टि मन को प्रदान करती है ।हमें भी वहां रहकर एक मानसिक शांति मिली और बहुत आनंद का अनुभव हुआ। वहां के पंडित बार-बार इस बात को बताते हैं कि 'हर की पौड़ी' में एक बार डुबकी लगाने पर व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। लोग बड़ी संख्या में यहाँ कुछ प्रथाओं, जैसे- कि 'मुंडन' एवं 'उपनयन' को पूर्ण करने के लिए भी आते हैं। यह भी एक महत्व का बिषय है कि प्रत्येक 12 वर्ष के पश्चात् यहाँ 'कुंभ मेले' का आयोजन होता है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों भक्त यहाँ आते हैं।
शांति कुञ्ज हरिद्वार केम्पस में
शाम के समय यहाँ जो महाआरती आयोजित होती है उससे निर्मित गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा बेहद आकर्षक लगती है। शाम को होने वाली गंगा आरती ही हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है। हरिद्वार में बहुत सारे मंदिर और आश्रम हैं। जब हर शाम सूर्यास्त के समय साधु, संन्यासी गंगा आरती करते हैं, तब नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया हुआ दिखाई पड़ता है । इस मुख्य घाट के अतिरिक्त यहाँ नहर के किनारे बहुत से छोटे-छोटे घाट हैं जहां लोग नहाते हुए दिखाई पड़ जाते हैं। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर ही सन्तरी व सफ़ेद रंग के जीवन रक्षक टावर लगे हुए हैं, जो ये निगरानी रखते हैं कि कहीं कोई श्रद्धालु पर्यटक डूब तो नहीं रहा है।
कश्यप कुटी, सप्तऋषि आश्रम केम्पस में

हमने हर की पौड़ी का खूब आनंद लिया। वहां से निकलकर हम हरिद्वार के सड़कों पर कुछ देर चलते रहे वहां की आबोहवा इतनी सुंदर है कि मन को बहुत शांति मिलती है। हर की पौड़ी में हमारा स्नान तो नहीं हो सका क्योंकि हम वहां दोपहर को पहुंचे थे । यह स्नान हमने अगली बार की यात्रा के लिए रिजर्व कर लिया है यह सोचते हुए रात्रि 8 बजे हम अपने होटल की ओर लौट आए।
लाइक करें
कमेंट करें

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

डॉ. चंद्रिका चौधरी की कहानी : घास की ज़मीन

  डॉ. चंद्रिका चौधरी हमारे छत्तीसगढ़ से हैं और बतौर सहायक प्राध्यापक सरायपाली छत्तीसगढ़ के एक शासकीय कॉलेज में हिंदी बिषय का अध्यापन करती हैं । कहानियों के पठन-पाठन में उनकी गहरी अभिरुचि है। खुशी की बात यह है कि उन्होंने कहानी लिखने की शुरुआत भी की है । हाल में उनकी एक कहानी ' घास की ज़मीन ' साहित्य अमृत के जुलाई 2023 अंक में प्रकाशित हुई है।उनकी कुछ और कहानियाँ प्रकाशन की कतार में हैं। उनकी लिखी इस शुरुआती कहानी के कई संवाद बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं । चाहे वह घास और जमीन के बीच रिश्तों के अंतर्संबंध के असंतुलन को लेकर हो , चाहे बसंत की विदाई के उपरांत विरह या दुःख में पेड़ों से पत्तों के पीले होकर झड़ जाने की बात हो , ये सभी संवाद एक स्त्री के परिवार और समाज के बीच रिश्तों के असंतुलन को ठीक ठीक ढंग से व्याख्यायित करते हैं। सवालों को लेकर एक स्त्री की चुप्पी ही जब उसकी भाषा बन जाती है तब सवालों के जवाब अपने आप उस चुप्पी में ध्वनित होने लगते हैं। इस कहानी में एक स्त्री की पीड़ा अव्यक्त रह जाते हुए भी पाठकों के सामने व्यक्त होने जैसी लगती है और यही इस कहानी की खूबी है। घटनाओ...

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहान...

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ ■सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह चलो फिर से शुरू करें ■रमेश शर्मा  -------------------------------------- सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘चलो फिर से शुरू करें’ पाठकों तक पहुंचने के बाद चर्चा में है। संग्रह की कहानियाँ भारतीय अप्रवासी जीवन को जिस संवेदना और प्रतिबद्धता के साथ अभिव्यक्त करती हैं वह यहां उल्लेखनीय है। संग्रह की कहानियाँ अप्रवासी भारतीय जीवन के स्थूल और सूक्ष्म परिवेश को मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में बड़ी तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि उनके दृश्य आंखों के सामने बनते हुए दिखाई पड़ते हैं। हमें यहां रहकर लगता है कि विदेशों में ,  खासकर अमेरिका जैसे विकसित देशों में अप्रवासी भारतीय परिवार बहुत खुश और सुखी होते हैं,  पर सुधा जी अपनी कहानियों में इस धारणा को तोड़ती हुई नजर आती हैं। वास्तव में दुनिया के किसी भी कोने में जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन में सुख-दुख और संघर्ष का होना अवश्य संभावित है । वे अपनी कहानियों के माध्यम से वहां के जीवन की सच्चाइयों से हमें रूबरू करवात...

चक्रधर नगर स्कूल में जननायक रामकुमार जन्म शताब्दी वर्ष पर हुए शैक्षिक प्रतियोगिताओं के आयोजन

चक्रधर नगर स्कूल में जननायक रामकुमार जन्म शताब्दी वर्ष पर हुए शैक्षिक प्रतियोगिताओं के आयोजन ।  विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चे हुए पुरस्कृत रायगढ़। 16 दिसम्बर। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व विधायक रामकुमार की स्मृति में उनके जन्म शताब्दी वर्ष पर शहर के अनेक संस्थानों में आयोजन हो रहे हैं। इसी कड़ी में जन्म शताब्दी आयोजन समिति के सहयोग से स्वामी आत्मानन्द शासकीय उ मा वि चक्रधरनगर में भी बच्चों के लिए स्लोगन,निबंध एवं भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। इन प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चों को पुरस्कृत करने के लिए सोमवार 16 दिसम्बर को स्कूल में एक गरिमामय आयोजन सम्पन्न हुआ ।  मुख्य अतिथि नगर निगम पार्षद पंकज कंकरवाल, विशिष्ट अतिथि नगर निगम पार्षद कौशलेश मिश्र , वरिष्ठ रंगकर्मी अनुपम पाल एवं पूर्व विधायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकुमार के परिवार से सुनील कुमार अग्रवाल की उपस्थिति में बच्चों ने अपनी स्पीच कला का बखूबी प्रदर्शन किया। स्लोगन प्रतियोगिता अंतर्गत कनिष्ठ वर्ग में शगुफ्ताह  प्रथम,नन्दिता मेहर द्वितीय एवं रितिका पाऊले तृतीय स्थान पर रहीं।क्षमा देवांगन को ...

दिव्या विजय की कहानी: महानगर में एक रात, सरिता कुमारी की कहानी ज़मीर से गुजरने का अनुभव

■विश्वसनीयता का महासंकट और शक तथा संदेह में घिरा जीवन  कथादेश नवम्बर 2019 में प्रकाशित दिव्या विजय की एक कहानी है "महानगर में एक रात" । दिव्या विजय की इस कहानी पर संपादकीय में सुभाष पंत जी ने कुछ बातें कही हैं । वे लिखते हैं - "महानगर में एक रात इतनी आतंकित करने वाली कहानी है कि कहानी पढ़ लेने के बाद भी उसका आतंक आत्मा में अमिट स्याही से लिखा रह जाता है।  यह कहानी सोचने के लिए बाध्य करती है कि हम कैसे सभ्य संसार का निर्माण कर रहे जिसमें आधी आबादी कितने संशय भय असुरक्षा और संत्रास में जीने के लिए विवश है । कहानी की नायिका अनन्या महानगर की रात में टैक्सी में अकेले यात्रा करते हुए बेहद डरी हुई है और इस दौरान एक्सीडेंट में वह बेहोश हो जाती है। होश में आने पर वह मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान है कि कहीं उसके साथ बेहोशी की अवस्था में कुछ गलत तो नहीं हो गया और अंत में जब वह अपनी चिंता अपने पति के साथ साझा करती है तो कहानी की एक और परत खुलती है और पुरुष मानसिकता के तार झनझनाने लगते हैं । जिस शक और संदेह से वह गुजरती रही अब उस शक और संदेह की गिरफ्त में उसका वह पति है जो उसे बहुत प्...