सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हरिद्वार में 'शांतिकुंज' , सप्तऋषि आश्रम और 'हर की पौड़ी' की परिक्रमा

हरिद्वार का नाम सुनते ही मन में एक आकर्षण पैदा होने लगता है । उत्तराखंड का एक सबसे सुंदर शहर, धार्मिक आस्था का शहर हरिद्वार । जब दिल्ली गए थे तो हम लोग हरिद्वार भी चले गए। उत्कल एक्सप्रेस रायगढ़ से सीधे हरिद्वार ले जाती है ।पर हम बीच में एक रात के लिए दिल्ली रुक गए थे। दूसरे दिन रात को दिल्ली से हमने ट्रेन पकड़ कर हरिद्वार के लिए यात्रा प्रारंभ की और सुबह-सुबह हरिद्वार पहुंच गए। हरिद्वार का रेलवे स्टेशन श्रद्धालु पर्यटकों से भरा हुआ था। गो आईबिबो के माध्यम से हमारी होटल की बुकिंग हो रखी थी, और हम सीधे अपने होटल में चले गए। हमने नहा धोकर थोड़ी देर होटल में विश्राम किया। बाहर निकले तो गलियों में बहुत सारे छोटे-छोटे रेस्टोरेंट हमें मिले। नाश्ता करते हुए लगभग 10 बजे का समय हो गया। फिर थोड़ा टहलते हुए आगे बढ़े और एक ऑटो रिक्शे में हम सीधे शांतिकुंज हरिद्वार के लिए निकल पड़े। वहां गेट पर भीड़ लगी थी , बताया गया कि प्रवेश के लिए आधार कार्ड का होना बहुत जरूरी है। हम अपना आधार कार्ड होटल में ही भूल कर आ गए थे ।

हर की पौड़ी हरिद्वार

उस समय हमें थोड़ी परेशानी महसूस हुई। होटल जाकर फिर से वापस आना संभव नहीं लग रहा था। हमने रायगढ़ फोन लगाया तब पता चला कि रायगढ़ जिले के कुछ लोग यहां स्थाई रूप से शांतिकुंज हरिद्वार में रहते हैं। एक साहू जी का नंबर मिला । उनको मैंने फोन लगाया और अपनी परेशानी बताई, तब वे बाहर निकल कर गेट पर आ गए और उनके माध्यम से हमें अंदर जाने की अनुमति मिल गई। हमने शांतिकुंज हरिद्वार के भीतर बहुत सारी जगहों में जाकर उनका निरीक्षण किया। शांतिकुंज सचमुच में शांति का कुंज है , वहां पहुंचकर हमें जो मानसिक शांति मिली वह अवर्णनीय है। वहां जो सामूहिक भोजनालय है, वहां बैठकर हमने वहां का सादा भोजन भी ग्रहण किया।
बहुत से नए लोगों से बातचीत हुई। शांतिकुंज की व्यवस्था को हमने बहुत करीब से जानने समझने की कोशिश की। उनका खुद का स्कूल है ,उनका खुद का विश्वविद्यालय है, वहां बहुत सारे बच्चे पढ़ते हैं । वहां जो आरती होती है वह अद्वितीय है । लोगों का आपस में मिल जुल कर रहना , पूरी व्यवस्था को संभालना एक अद्भुत तंत्र को स्वमेव संचालित करने जैसा है। बिना त्याग और समर्पण के इस तरह की व्यवस्था संभव नहीं है, जैसा कि वहां हमें देखने के बाद महसूस हुआ। वहां करीब में स्थित एक सप्तऋषि आश्रम में भी घूमते घूमते चले गए । वह आश्रम हमें बहुत सुंदर लगा। उस आश्रम का एक बहुत बड़ा केम्पस है, यहां बहुत से छोटे-छोटे घर बने हुए हैं। इन घरों को कुटिया बोलते हैं जिनमें अलग-अलग ऋषियों के नाम अंकित हैं ।
इन छोटे-छोटे अलग-अलग घरों में रहने के लिए पूरी व्यवस्था है । गर्मियों में आकर लोग यहां महीनों इन छोटे-छोटे घरों को भाड़े में लेकर रहते हैं। इनमें कूलर वगैरा की पूरी व्यवस्था है। केम्पस हरा भरा होने के कारण बहुत सुंदर और मनोहारी लगता है।
वहां से घूम फिर कर हम दोपहर लगभग 3 बजे हर की पौड़ी पहुंच गए।
शांति कुञ्ज हरिद्वार
हर की पौड़ी जिसे हरि की पौड़ी भी कहा जाता है,धार्मिक नगरी हरिद्वार के सर्वाधिक पवित्र स्थलों में से एक है। इस स्थान के बारे में जानना हमें बहुत जरूरी लगा। यह वह स्थान है, जहाँ प्रतिदिन भारत के अलग-अलग जगहों से आए हुए लोगों के दर्शन होते हैं। यहां आए हुए लोगों को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह शहर एक लघु भारत में बदल गया है । जानकारी के मुताबिक 'हर की पौड़ी' को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। ये माना गया है कि यह वही स्थान है, जहाँ से गंगा नदी पहाड़ों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों की ओर मुड़ती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर बहती नदी के जल में पापों को धो डालने की अद्भुत शक्ति है । इसलिए यहां आए हुए लोग नदी में जरूर स्नान करते हैं । लोगों की मान्यता है कि यहाँ एक पत्थर में अंकित श्रीहरि के पदचिह्न इस बात का समर्थन करते हैं। यह घाट गंगा नदी की नहर के पश्चिमी तट पर है, जहाँ से नदी उत्तर दिशा की ओर मुड़ जाती है।
हर की पौड़ी से जुड़ा पौराणिक तथ्य
'हर की पौड़ी' उत्तराखण्ड राज्य की धार्मिक नगरी हरिद्वार का पवित्र और सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस के भीतर छुपा भाव है- "हरि यानी नारायण के चरण"। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद देवशिल्पी विश्वकर्मा अमृत के कलश को, जिसे पाने के लिए देवता तथा दानवों में घमासान मचा हुआ था,उन सबसे बचाकर ले जा रहे थे। उसी दरमियान भागा भागी में पृथ्वी पर अमृत की कुछ बूँदें कलश से छलक कर गिर गईं । अमृत के छलक कर गिरने की वजह से हरिद्वार में हर की पौड़ी धार्मिक महत्त्व वाला स्थान बन गया। यहाँ पर स्नान करना हरिद्वार आए हर श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहाँ पर स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हर की पौड़ी हरिद्वार

हर की पौड़ी से जुड़ा मिथक
इस स्थान से संबंधित कई मिथकों में से एक मिथक यह है कि वैदिक काल के दौरान भगवान विष्णु एवं शिव यहाँ प्रकट हुए थे। दूसरे अन्य मिथक अनुसार ब्रह्मा जी जिन्हें सृष्टि का सृजनकर्ता भी कहा जाता है, उन्होंने यहाँ एक यज्ञ किया था। यहाँ के घाट पर कुछ पदचिन्ह भी मौजूद हैं, इन पद चिन्हों के बारे में वहां के पंडितों ने बताया कि ये भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
हर की पौड़ी से जुड़ा ऐतिहासिक तथ्य
'हर की पौड़ी' का निर्माण प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया था। उन्होंने अपने भाई भतृहरि की याद में इसका निर्माण कराया था। भतृहरि गंगा नदी के घाट पर बैठकर काफ़ी लम्बे समय तक ध्यान किया करते थे।
हर की पौड़ी की धार्मिक मान्यता
हर की पौड़ी में सुबह शाम गंगा जी की आरती होती है। इस आरती में शामिल होना सौभाग्य का विषय इसलिए होता है क्योंकि आप दुनिया के सबसे खूबसूरत दृश्यों में से गिने चुने दृश्यों को उस समय देख रहे होते हैं। हमने भी शाम के समय हर की पौड़ी में उपस्थित रहकर गंगा आरती के दृश्यों का आनंद लिया। आस्था की दृष्टि से भी इसे देखें तो वहां की मौजूदगी एक गहरी संतुष्टि मन को प्रदान करती है ।हमें भी वहां रहकर एक मानसिक शांति मिली और बहुत आनंद का अनुभव हुआ। वहां के पंडित बार-बार इस बात को बताते हैं कि 'हर की पौड़ी' में एक बार डुबकी लगाने पर व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। लोग बड़ी संख्या में यहाँ कुछ प्रथाओं, जैसे- कि 'मुंडन' एवं 'उपनयन' को पूर्ण करने के लिए भी आते हैं। यह भी एक महत्व का बिषय है कि प्रत्येक 12 वर्ष के पश्चात् यहाँ 'कुंभ मेले' का आयोजन होता है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों भक्त यहाँ आते हैं।
शांति कुञ्ज हरिद्वार केम्पस में
शाम के समय यहाँ जो महाआरती आयोजित होती है उससे निर्मित गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा बेहद आकर्षक लगती है। शाम को होने वाली गंगा आरती ही हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है। हरिद्वार में बहुत सारे मंदिर और आश्रम हैं। जब हर शाम सूर्यास्त के समय साधु, संन्यासी गंगा आरती करते हैं, तब नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया हुआ दिखाई पड़ता है । इस मुख्य घाट के अतिरिक्त यहाँ नहर के किनारे बहुत से छोटे-छोटे घाट हैं जहां लोग नहाते हुए दिखाई पड़ जाते हैं। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर ही सन्तरी व सफ़ेद रंग के जीवन रक्षक टावर लगे हुए हैं, जो ये निगरानी रखते हैं कि कहीं कोई श्रद्धालु पर्यटक डूब तो नहीं रहा है।
कश्यप कुटी, सप्तऋषि आश्रम केम्पस में

हमने हर की पौड़ी का खूब आनंद लिया। वहां से निकलकर हम हरिद्वार के सड़कों पर कुछ देर चलते रहे वहां की आबोहवा इतनी सुंदर है कि मन को बहुत शांति मिलती है। हर की पौड़ी में हमारा स्नान तो नहीं हो सका क्योंकि हम वहां दोपहर को पहुंचे थे । यह स्नान हमने अगली बार की यात्रा के लिए रिजर्व कर लिया है यह सोचते हुए रात्रि 8 बजे हम अपने होटल की ओर लौट आए।
लाइक करें
कमेंट करें

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ओमा द अक ने

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सोचना

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज

गाँधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक

गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह

'कोरोना की डायरी' का विमोचन

"समय और जीवन के गहरे अनुभवों का जीवंत दस्तावेजीकरण हैं ये विविध रचनाएं"    छत्तीसगढ़ मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन जिला इकाई रायगढ़ के अध्यक्ष सुशीला साहू के सम्पादन में प्रकाशित किताब 'कोरोना की डायरी' में 52 लेखक लेखिकाओं के डायरी अंश संग्रहित हैं | इन डायरी अंशों को पढ़ते हुए हमारी आँखों के सामने 2020 और 2021 के वे सारे भयावह दृश्य आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी रूप में हम सब की हिस्सेदारी रही है | किताब के सम्पादक सुश्री सुशीला साहू जो स्वयं कोरोना से पीड़ित रहीं और एक बहुत कठिन समय से उनका बावस्ता हुआ ,उन्होंने बड़ी शिद्दत से अपने अनुभवों को शब्दों का रूप देते हुए इस किताब के माध्यम से साझा किया है | सम्पादकीय में उनके संघर्ष की प्रतिबद्धता  बड़ी साफगोई से अभिव्यक्त हुई है | सुशीला साहू की इस अभिव्यक्ति के माध्यम से हम इस बात से रूबरू होते हैं कि किस तरह इस किताब को प्रकाशित करने की दिशा में उन्होंने अपने साथी रचनाकारों को प्रेरित किया और किस तरह सबने उनका उदारता पूर्वक सहयोग भी किया | कठिन समय की विभीषिकाओं से मिलजुल कर ही लड़ा जा सकता है और समूचे संघर्ष को लिखि

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था जहाँ आने

प्रीति प्रकाश की कहानी : राम को जन्म भूमि मिलनी चाहिए

प्रीति प्रकाश की कहानी 'राम को जन्म भूमि मिलनी चाहिए' को वर्ष 2019-20 का राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान मिला है, इसलिए जाहिर सी बात है कि इस कहानी को पाठक पढ़ना भी चाहते हैं | हमने उनकी लिखित अनुमति से इस कहानी को यहाँ रखा है | कहानी पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि यह कहानी एक संवेदन हीन होते समाज के चरित्र के दोहरेपन, ढोंग और उसके एकतरफा नजरिये को  किस तरह परत दर परत उघाड़ती चली जाती है | समाज की आस्था वायवीय है, वह सच के राम जिसके दर्शन किसी भी बच्चे में हो सकते हैं  , जो साक्षात उनकी आँखों के सामने  दीन हीन अवस्था में पल रहा होता है , उसके प्रति समाज की न कोई आस्था है न कोई जिम्मेदारी है | "समाज की आस्था एकतरफा है और निरा वायवीय भी " यह कहानी इस तथ्य को जबरदस्त तरीके से सामने रखती है | आस्था में एक समग्रता होनी चाहिए कि हम सच के मूर्त राम जो हर बच्चे में मौजूद हैं , और अमूर्त राम जो हमारे ह्रदय में हैं , दोनों के प्रति एक ही नजरिया रखें  | दोनों ही राम को इस धरती पर उनकी जन्म भूमि  मिलनी चाहिए, पर समाज वायवीयता के पीछे जिस तरह भाग रहा है, उस भागम भाग से उपजी संवेदनहीनता को

कोइलिघुगर वॉटरफॉल तक की यात्रा रायगढ़ से

    अपने दूर पास की भौगौलिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों को जानने समझने के लिए पर्यटन एक आसान रास्ता है । पर्यटन से दैनिक जीवन की एकरसता से जन्मी ऊब भी कुछ समय के लिए मिटने लगती है और हम कुछ हद तक तरोताजा भी महसूस करते हैं । यह ताजगी हमें भीतर से स्वस्थ भी करती है और हम तनाव से दूर होते हैं । रायगढ़ वासियों को पर्यटन करना हो वह भी रायगढ़ के आसपास तो झट से एक नाम याद आता है कोयलीघोघर! कोयलीघोघर ओड़िसा के झारसुगड़ा जिले का एक प्रसिद्द पिकनिक स्पॉट है जहां रायगढ़ से एक घंटे में सड़क मार्ग की यात्रा कर बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है । शोर्ट कट रास्ता अपनाते हुए रायगढ़ से लोइंग, बनोरा, बेलेरिया होते ओड़िसा के बासनपाली गाँव में आप प्रवेश करते हैं फिर वहां से निकल कर भीखमपाली के पूर्व पड़ने वाले एक चौक पर जाकर रायगढ़ झारसुगड़ा मुख्य सड़क को पकड लेते हैं। इस मुख्य सड़क पर चलते हुए भीखम पाली के बाद पचगांव नामक जगह आती है जहाँ खाने पीने की चीजें मिल जाती हैं।  यहाँ के लोकल बने पेड़े बहुत प्रसिद्द हैं जिसका स्वाद कुछ देर रूककर लिया जा सकता है । पचगांव से चलकर आधे घंटे बाद कुरेमाल का ढाबा पड़ता है , वहां र

समीक्षा- कहानी संग्रह "मुझे पंख दे दो" लेखिका: इला सिंह

शिवना साहित्यिकी के नए अंक में प्रकाशित समीक्षा स्वरों की धीमी आंच से बदलाव के रास्तों  की खोज  ■रमेश शर्मा ------------------------------------------------------------- इला सिंह की कहानियों को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि इला सिंह जीवन में अनदेखी अनबूझी सी रह जाने वाली अमूर्त घटनाओं को कथा की शक्ल में ढाल लेने वाली कथा लेखिकाओं में से एक हैं। उनका पहला कहानी संग्रह 'मुझे पंख दे दो' हाल ही में प्रकाशित होकर पाठकों तक पहुंचा है। इस संग्रह में सात कहानियाँ हैं। संग्रह की पहली कहानी है अम्मा । अम्मा कहानी में एक स्त्री के भीतर जज्ब सहनशील आचरण , धीरज और उदारता को बड़ी सहजता के साथ सामान्य सी लगने वाली घटनाओं के माध्यम से कथा की शक्ल में जिस तरह इला जी ने प्रस्तुत किया है , उनकी यह प्रस्तुति कथा लेखन के उनके मौलिक कौशल को हमारे सामने रखती है और हमारा ध्यान आकर्षित करती है । अम्मा कहानी में दादी , अम्मा , भाभी और बहनों के रूप में स्त्री जीवन के विविध रंग विद्यमान हैं । इन रंगों में अम्मा का जो रंग है वह रंग सबसे सुन्दर और इकहरा है । कहानी एक तरह से यह आग्रह करती है कि स्त्री का

परदेसी राम वर्मा की चर्चित कहानी : दीया न बाती

आज हम एक महत्वपूर्ण कथाकार परदेशी राम वर्मा जी पर चर्चा को केंद्रित करेंगे। 18 जुलाई 1947 को दुर्ग छत्तीसगढ़ के लिमतरा गांव में जन्मे परदेशी राम वर्मा देश के महत्वपूर्ण कथाकारों में से एक हैं ।वे पूर्व में सेना में भी रहे हैं और भिलाई स्टील प्लांट में भी उन्होंने काम किया है। रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से मानद डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त परदेशी राम वर्मा की अनेक किताबें प्रकाशित हुई हैं उनमें सात कथा संग्रह एवम तीन उपन्यास प्रमुख हैं । वे हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही भाषाओं में सम गति से लेखन करते हैं ।वर्तमान में वे अगासदिया नामक त्रैमासिक पत्रिका के संपादक भी हैं।उनकी कहानियों की देशजता और जनवादी तेवर उन्हें प्रेमचंद की परंपरा के कहानीकार के रूप में स्थापित करता है। उनकी इस कहानी को हमने हंस के जुलाई 2019अंक से लिया है। सत्ता और कॉर्पोरेट तंत्र की मिलीभगत और उनके षड्यंत्र से गांव आज कैसे प्रभावित हैं  कहानी इसे आख्यान की तरह हुबहू सुनाती है । सारे दृश्य आंखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगते हैं। ग्रामीणों को विकास का सपना दिखाकर उनकी जमीनों को छीनना आज का नया खेल है। इस खेल में