हरिद्वार का नाम सुनते ही मन में एक आकर्षण पैदा होने लगता है । उत्तराखंड का एक सबसे सुंदर शहर, धार्मिक आस्था का शहर हरिद्वार । जब दिल्ली गए थे तो हम लोग हरिद्वार भी चले गए। उत्कल एक्सप्रेस रायगढ़ से सीधे हरिद्वार ले जाती है ।पर हम बीच में एक रात के लिए दिल्ली रुक गए थे। दूसरे दिन रात को दिल्ली से हमने ट्रेन पकड़ कर हरिद्वार के लिए यात्रा प्रारंभ की और सुबह-सुबह हरिद्वार पहुंच गए। हरिद्वार का रेलवे स्टेशन श्रद्धालु पर्यटकों से भरा हुआ था। गो आईबिबो के माध्यम से हमारी होटल की बुकिंग हो रखी थी, और हम सीधे अपने होटल में चले गए। हमने नहा धोकर थोड़ी देर होटल में विश्राम किया। बाहर निकले तो गलियों में बहुत सारे छोटे-छोटे रेस्टोरेंट हमें मिले। नाश्ता करते हुए लगभग 10 बजे का समय हो गया। फिर थोड़ा टहलते हुए आगे बढ़े और एक ऑटो रिक्शे में हम सीधे शांतिकुंज हरिद्वार के लिए निकल पड़े। वहां गेट पर भीड़ लगी थी , बताया गया कि प्रवेश के लिए आधार कार्ड का होना बहुत जरूरी है। हम अपना आधार कार्ड होटल में ही भूल कर आ गए थे ।
उस समय हमें थोड़ी परेशानी महसूस हुई। होटल जाकर फिर से वापस आना संभव नहीं लग रहा था। हमने रायगढ़ फोन लगाया तब पता चला कि रायगढ़ जिले के कुछ लोग यहां स्थाई रूप से शांतिकुंज हरिद्वार में रहते हैं। एक साहू जी का नंबर मिला । उनको मैंने फोन लगाया और अपनी परेशानी बताई, तब वे बाहर निकल कर गेट पर आ गए और उनके माध्यम से हमें अंदर जाने की अनुमति मिल गई। हमने शांतिकुंज हरिद्वार के भीतर बहुत सारी जगहों में जाकर उनका निरीक्षण किया। शांतिकुंज सचमुच में शांति का कुंज है , वहां पहुंचकर हमें जो मानसिक शांति मिली वह अवर्णनीय है। वहां जो सामूहिक भोजनालय है, वहां बैठकर हमने वहां का सादा भोजन भी ग्रहण किया।
बहुत से नए लोगों से बातचीत हुई। शांतिकुंज की व्यवस्था को हमने बहुत करीब से जानने समझने की कोशिश की। उनका खुद का स्कूल है ,उनका खुद का विश्वविद्यालय है, वहां बहुत सारे बच्चे पढ़ते हैं । वहां जो आरती होती है वह अद्वितीय है । लोगों का आपस में मिल जुल कर रहना , पूरी व्यवस्था को संभालना एक अद्भुत तंत्र को स्वमेव संचालित करने जैसा है। बिना त्याग और समर्पण के इस तरह की व्यवस्था संभव नहीं है, जैसा कि वहां हमें देखने के बाद महसूस हुआ। वहां करीब में स्थित एक सप्तऋषि आश्रम में भी घूमते घूमते चले गए । वह आश्रम हमें बहुत सुंदर लगा। उस आश्रम का एक बहुत बड़ा केम्पस है, यहां बहुत से छोटे-छोटे घर बने हुए हैं। इन घरों को कुटिया बोलते हैं जिनमें अलग-अलग ऋषियों के नाम अंकित हैं ।
इन छोटे-छोटे अलग-अलग घरों में रहने के लिए पूरी व्यवस्था है । गर्मियों में आकर लोग यहां महीनों इन छोटे-छोटे घरों को भाड़े में लेकर रहते हैं। इनमें कूलर वगैरा की पूरी व्यवस्था है। केम्पस हरा भरा होने के कारण बहुत सुंदर और मनोहारी लगता है।
वहां से घूम फिर कर हम दोपहर लगभग 3 बजे हर की पौड़ी पहुंच गए।
हर की पौड़ी जिसे हरि की पौड़ी भी कहा जाता है,धार्मिक नगरी हरिद्वार के सर्वाधिक पवित्र स्थलों में से एक है। इस स्थान के बारे में जानना हमें बहुत जरूरी लगा। यह वह स्थान है, जहाँ प्रतिदिन भारत के अलग-अलग जगहों से आए हुए लोगों के दर्शन होते हैं। यहां आए हुए लोगों को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह शहर एक लघु भारत में बदल गया है । जानकारी के मुताबिक 'हर की पौड़ी' को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। ये माना गया है कि यह वही स्थान है, जहाँ से गंगा नदी पहाड़ों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों की ओर मुड़ती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर बहती नदी के जल में पापों को धो डालने की अद्भुत शक्ति है । इसलिए यहां आए हुए लोग नदी में जरूर स्नान करते हैं । लोगों की मान्यता है कि यहाँ एक पत्थर में अंकित श्रीहरि के पदचिह्न इस बात का समर्थन करते हैं। यह घाट गंगा नदी की नहर के पश्चिमी तट पर है, जहाँ से नदी उत्तर दिशा की ओर मुड़ जाती है।
हर की पौड़ी से जुड़ा पौराणिक तथ्य
'हर की पौड़ी' उत्तराखण्ड राज्य की धार्मिक नगरी हरिद्वार का पवित्र और सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस के भीतर छुपा भाव है- "हरि यानी नारायण के चरण"। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद देवशिल्पी विश्वकर्मा अमृत के कलश को, जिसे पाने के लिए देवता तथा दानवों में घमासान मचा हुआ था,उन सबसे बचाकर ले जा रहे थे। उसी दरमियान भागा भागी में पृथ्वी पर अमृत की कुछ बूँदें कलश से छलक कर गिर गईं । अमृत के छलक कर गिरने की वजह से हरिद्वार में हर की पौड़ी धार्मिक महत्त्व वाला स्थान बन गया। यहाँ पर स्नान करना हरिद्वार आए हर श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहाँ पर स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हर की पौड़ी से जुड़ा मिथक
इस स्थान से संबंधित कई मिथकों में से एक मिथक यह है कि वैदिक काल के दौरान भगवान विष्णु एवं शिव यहाँ प्रकट हुए थे। दूसरे अन्य मिथक अनुसार ब्रह्मा जी जिन्हें सृष्टि का सृजनकर्ता भी कहा जाता है, उन्होंने यहाँ एक यज्ञ किया था। यहाँ के घाट पर कुछ पदचिन्ह भी मौजूद हैं, इन पद चिन्हों के बारे में वहां के पंडितों ने बताया कि ये भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
हर की पौड़ी से जुड़ा ऐतिहासिक तथ्य
'हर की पौड़ी' का निर्माण प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया था। उन्होंने अपने भाई भतृहरि की याद में इसका निर्माण कराया था। भतृहरि गंगा नदी के घाट पर बैठकर काफ़ी लम्बे समय तक ध्यान किया करते थे।
हर की पौड़ी की धार्मिक मान्यता
हर की पौड़ी में सुबह शाम गंगा जी की आरती होती है। इस आरती में शामिल होना सौभाग्य का विषय इसलिए होता है क्योंकि आप दुनिया के सबसे खूबसूरत दृश्यों में से गिने चुने दृश्यों को उस समय देख रहे होते हैं। हमने भी शाम के समय हर की पौड़ी में उपस्थित रहकर गंगा आरती के दृश्यों का आनंद लिया। आस्था की दृष्टि से भी इसे देखें तो वहां की मौजूदगी एक गहरी संतुष्टि मन को प्रदान करती है ।हमें भी वहां रहकर एक मानसिक शांति मिली और बहुत आनंद का अनुभव हुआ। वहां के पंडित बार-बार इस बात को बताते हैं कि 'हर की पौड़ी' में एक बार डुबकी लगाने पर व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। लोग बड़ी संख्या में यहाँ कुछ प्रथाओं, जैसे- कि 'मुंडन' एवं 'उपनयन' को पूर्ण करने के लिए भी आते हैं। यह भी एक महत्व का बिषय है कि प्रत्येक 12 वर्ष के पश्चात् यहाँ 'कुंभ मेले' का आयोजन होता है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों भक्त यहाँ आते हैं।
शाम के समय यहाँ जो महाआरती आयोजित होती है उससे निर्मित गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा बेहद आकर्षक लगती है। शाम को होने वाली गंगा आरती ही हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है। हरिद्वार में बहुत सारे मंदिर और आश्रम हैं। जब हर शाम सूर्यास्त के समय साधु, संन्यासी गंगा आरती करते हैं, तब नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया हुआ दिखाई पड़ता है । इस मुख्य घाट के अतिरिक्त यहाँ नहर के किनारे बहुत से छोटे-छोटे घाट हैं जहां लोग नहाते हुए दिखाई पड़ जाते हैं। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर ही सन्तरी व सफ़ेद रंग के जीवन रक्षक टावर लगे हुए हैं, जो ये निगरानी रखते हैं कि कहीं कोई श्रद्धालु पर्यटक डूब तो नहीं रहा है।
हमने हर की पौड़ी का खूब आनंद लिया। वहां से निकलकर हम हरिद्वार के सड़कों पर कुछ देर चलते रहे वहां की आबोहवा इतनी सुंदर है कि मन को बहुत शांति मिलती है। हर की पौड़ी में हमारा स्नान तो नहीं हो सका क्योंकि हम वहां दोपहर को पहुंचे थे । यह स्नान हमने अगली बार की यात्रा के लिए रिजर्व कर लिया है यह सोचते हुए रात्रि 8 बजे हम अपने होटल की ओर लौट आए।
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