■क्या पेट्स हमें जीवन जीना सिखाते हैं
पेट्स को लेकर अलग-अलग समय में अलग-अलग किस्म के अनुभव मेरे पास संचित होते रहे हैं । एक अनुभव का जिक्र करना यहां बहुत जरूरी समझ रहा हूं । एक बार एक सज्जन आए थे मेरे घर । पढ़े लिखे हैं और स्कूल में व्याख्याता के रूप में उनकी तैनाती है। मेरे घर में पेट्स टोक्यो को देखकर कहने लगे कि घर में डॉगी कभी नहीं पालना चाहिए । घर में जितने भी पूजा पाठ होते हैं उनका फल इनके रहने से घर वालों को नहीं मिल पाता। कोई दीगर बात अगर वे करते, मसलन इस संदर्भ से जुड़ी परेशानियों का जिक्र करते तो बात हजम भी होती। उनकी बातें घोर अवैज्ञानिक बातें थीं और पेट्स के प्रति घृणा से भी भरी हुई थीं। अगर आपके जीवन में प्रेम है, आप लोगों से,अपने परिजनों से प्रेम करते हैं तो इस तरह किसी जानवर से घृणा नहीं कर सकते । उनकी बातें मुझे असंवेदनशील सी महसूस हुईं। उनके मन में पेट्स को लेकर एक किस्म का पूर्वाग्रह था जो बिना अनुभव के दूर नहीं हो सकता था ।पेट्स को पालने से कुछ परेशानियाँ जरूर होती हैं पर इसके बावजूद उनके प्रति घृणा का भाव उचित नहीं लगता।
पेट्स हमारी संवेदना को जगाते हैं, पेट्स हमारी दिनचर्या को अनुशासित करते हैं , पेट्स हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं इस बात की जानकारी भी हमको होनी चाहिए ।पेट्स की उपयोगिता को नकारा भी नहीं जा सकता। ऊपर वर्णित घटना मेरे लिए एक अजीब सा अनुभव लेकर आया था। मुझे लगा कि यह आदमी अपने परिजनों से भी इसी तरह घृणा का भाव रखता होगा । मैंने उस आदमी के समूचे जीवन को खंगालने की कोशिश भी की । वह आदमी अपने भाइयों से दुश्मनी रखता था। जब उसकी मां की मृत्यु हुई तो क्रिया कर्म एक साथ न करके भाइयों ने अलग-अलग किया । यहां आशय इतना भर है कि जब आप प्रेम करते हैं तो सबसे प्रेम करते हैं और जब आप घृणा करते हैं तो लगभग सभी से घृणा आपके भीतर घर करने लग जाती है।
किसी ने एक जगह लिखा था कि आज इंटरनेशनल डॉग डे है । मुझे आश्चर्य हुआ कि फरी फ्रेंड्स के लिए भी इस तरह कोई दिवस सेलेब्रेट किया जाता है।
मैं आज टोक्यो को ओलिव की कथा सुना रहा था। जब मैं उसके बारे में कह रहा था वह बहुत ध्यान से सुन भी रही थी। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि एक भाषा से व्यक्त हुए भावों को वह कैसे समझ लेती है।
'प्रिय ओलिव' डॉ आर डी सैनी की एक चर्चित किताब है जिसकी रचना उन्होंने अपने पेट्स ओलिव के पालन पोषण,उसकी सेहत को लेकर आने वाली परेशानियों, संघर्षों से जुड़े मार्मिक संस्मरणों के माध्यम से किया है।
राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक रह चुके डॉक्टर सैनी साहित्यकार हैं, शिक्षाविद हैं । डॉ सैनी की इस किताब 'प्रिय ओलिव' के प्रकाशन के पूर्व उनकी कुछ किताबें जिसमें दो कविता संग्रह 'कथा शुरू होती है' , 'गुन रहा है गांव' , एवं एक उपन्यास 'बच्चों की हथेली पर' प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रिय ओलिव को पढ़ते हुए महसूस होता है कि परिवार में बच्चे पेट्स को बहुत पसंद करते हैं पर उनकी देखरेख की जिम्मेदारी अंततःपेरेंट्स के जिम्मे ही आ जाती है। मेरा स्वयं का अनुभव भी कुछ-कुछ यही है। परिवार के सदस्यों का लगाव पेट्स के प्रति इस तरह होने लगता है जैसे कि वे परिवार के सदस्य ही हैं। इस किताब में ओलिव के अडॉप्ट होने के बाद उसके बचपन से लेकर आगे की देखरेख एवं उसके पालन पोषण की कथा दर्ज है।इस कथा में समस्या से जुड़े संस्मरणों का मार्मिक लेखा-जोखा है।पेट्स को लेकर जो सबसे बड़ी समस्या है, उसके बीमार पड़ने और उसके इलाज में आने वाली बाधाओं को लेकर है। डॉक्टर सैनी ने बहुत बारीकी और मार्मिकता के साथ संस्मरणों का जो एक दृश्य रचा है, उन दृश्यों में पेट्स और पेट्स मालिकों के परिवार के बीच गहरे भावनात्मक संबंधों की अमूर्तता को भी हम बहुत मूर्त रूप में महसूस करते हैं । हमारे अपने अनुभव उनके संस्मरणों के साथ जुड़ते चले जाते हैं। बीमार पेट्स के इलाज के दरमियान उसके ठीक होने तक परिवार किस तरह की बेचैनियों से गुजरता है, उस बेचैनी को हम इस किताब में महसूस कर सकते हैं। लंबे समय तक बीमार ओलिव के इलाज से जुड़ी कथा/संस्मरण में जयपुर जैसे बड़े शहरों में भी पेट्स के इलाज के लिए अच्छे चिकित्सक एवम चिकित्सकीय सुविधाओं के नितांत अभाव का जिक्र आता है। यह निर्मम सा सच है कि जानवरों के इलाज के लिए चिकित्सकीय सुविधाओं का अभाव आज भी हमारे देश में है। इस दिशा में गम्भीर किस्म की कोई चिंता भी कभी नहीं की गई है। अनगढ़ पशु चिकित्सकों के गलत इलाज के कारण भी पशुओं के मौत की संभावना बनी रहती है। बेजुबान जीव नाज़ुक होते हैं , उनके बहुत जल्द बीमार पड़ने की स्थितियां बनती रहती हैं, पर बहुत जल्द स्वस्थ होने की स्थितियां उसके ठीक विपरीत हैं।
डॉक्टर आर डी सैनी की लिखी इस किताब में अपने पेट्स ऑलिव के प्रति उनकी पत्नी डॉक्टर इंदिरा , पुत्र ऋत्विक एवं उनके स्वयं का मानवीय प्रेम गहरे स्तर पर हमें महसूस होता है, वह प्रेम पेट्स के प्रति मन में दया और करूणा का भाव भी जगाता है।
इस किताब में एक जगह वे लिखते हैं -
"पेट्स दिल बहलाने के लिए नहीं होते। वह ना तो खिलौने हैं और ना ही स्टेटस सिंबल। वे हाड़ मांस के प्राणी हैं।उनका प्यार निः स्वार्थ होता है । उनकी सबसे बड़ी खूबी है कि वे आपका विकल्प नहीं ढूंढते। पेट्स पालने वालों को चाहिए कि अपने पैट की उस वक्त तन मन धन से सेवा करें जब वह बीमार हो ,दुर्घटनाग्रस्त हो गया हो या उम्र पाकर असहाय हो गया हो।
यह किताब बुक विलेज इंडिया जयपुर नामक प्रकाशन से प्रकाशित हुई है । इसकी कीमत 100 रुपये है ।
इस किताब को पढ़ने के उपरांत पेट्स को लेकर परंपरागत पूर्वाग्रहों से बाहर निकलने के रास्ते भी हमें दिखाई पड़ते हैं। कोई किताब, जड़ताओं को तोड़ते हुए मानवीय होने का रास्ता दिखाए तो उसकी सार्थकता असंदिग्ध होती है।
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रमेश शर्मा
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