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'कोरोना की डायरी' का विमोचन

"समय और जीवन के गहरे अनुभवों का जीवंत दस्तावेजीकरण हैं ये विविध रचनाएं"    छत्तीसगढ़ मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन जिला इकाई रायगढ़ के अध्यक्ष सुशीला साहू के सम्पादन में प्रकाशित किताब 'कोरोना की डायरी' में 52 लेखक लेखिकाओं के डायरी अंश संग्रहित हैं | इन डायरी अंशों को पढ़ते हुए हमारी आँखों के सामने 2020 और 2021 के वे सारे भयावह दृश्य आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी रूप में हम सब की हिस्सेदारी रही है | किताब के सम्पादक सुश्री सुशीला साहू जो स्वयं कोरोना से पीड़ित रहीं और एक बहुत कठिन समय से उनका बावस्ता हुआ ,उन्होंने बड़ी शिद्दत से अपने अनुभवों को शब्दों का रूप देते हुए इस किताब के माध्यम से साझा किया है | सम्पादकीय में उनके संघर्ष की प्रतिबद्धता  बड़ी साफगोई से अभिव्यक्त हुई है | सुशीला साहू की इस अभिव्यक्ति के माध्यम से हम इस बात से रूबरू होते हैं कि किस तरह इस किताब को प्रकाशित करने की दिशा में उन्होंने अपने साथी रचनाकारों को प्रेरित किया और किस तरह सबने उनका उदारता पूर्वक सहयोग भी किया | कठिन समय की विभीषिकाओं से मिलजुल कर ही लड़ा जा सकता है और समूचे संघर्ष को लिखि

'भाप के घर में शीशे की लड़की' [ डायरी संग्रह, लेखिका :बाबुषा कोहली ] गूढ़ सांकेतिकता को बूझने का एक गंभीर उद्यम -रमेश शर्मा

बाबुषा कोहली की किताब ' भाप के घर में शीशे की लड़की ' पढ़ते हुए कई बार लगा कि निजी जीवन के अनुभवों को ही प्रतिछबियों में मैं देख पा रहा हूं। मेरी जगह कोई और भी पाठक होता तो संभव है उसे भी इसी किस्म के अनुभव होते। बाबुषा के पास आम जन जीवन /निजी जीवन में घटित घटनाओं को देख पाने की एक विरल दृष्टि है जो अमूमन बहुत कम लोगों के पास होती है। विजन की अद्वितीयता एक रचनाकार को दूसरे रचनाकारों से अलग रखते हुए उसे एक नई पहचान देती है । बाबुषा की इस किताब में जो कुछ भी है बहुत साधारण होते हुए भी एक असाधारण दृष्टि के साथ इस रूप में सामने आती है कि एक पाठक के रूप में हम अपने आप को अंतर संबंधित करने लगते हैं। किताब में संग्रहित गद्य में दृष्टि की अद्वितीयता के साथ-साथ जो भाषायी सौंदर्य और सूफियाना अंदाज में व्यक्त हुई गद्य का जो लालित्य है वह अप्रतिम है। एक अच्छी कवियत्री और अप्रतिम गद्य लेखिका होने के साथ-साथ बाबुषा पेशे से एक अध्यापिका भी हैं । अपने मित्रों , अपने विद्यार्थियों के साथ समय बिताते हुए बतौर रचनाकार और अध्यापिका के रूप में उनके दैनिक जीवन के जो अनुभव हैं और उन अनुभवों से उपजी जो

'भूरी आँखें घुंघराले बाल' अनुपमा तिवाड़ी के कहानी संग्रह की समीक्षा

जिन्दगी की ठोस सच्चाइयों का जीवंत दस्तावेज◆ कहानियों को पढ़ते हुए पाठकों को अपनी बाहरी और भीतरी दुनियां से साक्षात्कार होने जैसा कुछ न कुछ अनुभव होना चाहिए अर्थात कहानी को पढने के पूर्व और पढने के उपरान्त मानसिक अनुभवों का जो अंतर है, उस अन्तर का इन दोनों ही दुनियाओं से ठहरकर सीधा संवाद होना चाहिए |अनुपमा तिवाड़ी की कहानियों को पढ़ने के उपरान्त उपरोक्त वर्णित इस शर्त की कसौटी पर उन्हें कसे जाने की अगर बात हो, तो मेरा खुद का अपना   अनुभव यह कहता है कि उनके संग्रह 'भूरी आँखें घुंघराले बाल' की ज्यादातर कहानियाँ हमारी भीतरी और बाहरी दुनियाओं से   भरपूर संवाद करती हैं | इन कहानियों को पढ़कर हम यूं ही आगे नहीं बढ़ जाते बल्कि एक लम्बे समय तक इन कहानियों के भीतर रंगे-घुले जिन्दगी के असल पात्रों के दुःख दर्द और उनके संघर्ष को हम करीब से महसूस करते हैं | ये कहानियाँ कहीं से भी कहानी न लगते हुए जिन्दगी की ठोस सच्चाइयों का एक जीवंत दस्तावेज लगती हैं जिसे लेखिका ने सामाजिक जिम्मेदारियों से भरे अपने यायावरी जीवन के बीच से खोज निकाला है |  बहुत करीब से देखी परखी गयीं सामाजिक घटनाओं को लेकर जब स