सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

देवेश पथ सारिया की कवितायेँ : कविता संग्रह 'नूह की नाव' से चुनी हुईं कविताओं का पाठ.

दे वेश पथ सारिया हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कवियों में से एक हैं । हाल ही में भारतीय साहित्य अकादेमी  से उनकी कविताओं का एक संग्रह 'नूह की नाव' प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में बहुत सी कवितायेँ मुझे पसंद हैं । उनमें  से चुनी हुई छः कवितायेँ यहाँ प्रस्तुत हैं.  



"देवेश की कविताओं में मूर्तमान होती चीजों में भी एक तरह से अमूर्त सा लगने वाला अति सूक्ष्म विवेचन है जो अमूमन हमारी नज़रों से छूट जाता  है । उन छूटी हुई चीजों से देवेश हमारा परिचय कराते हैं । उनकी कविताओं में चेतन अचेतन रूप में फैले हुए मानवीय जीवन के राग-विराग सह्सा इस तरह आने लगते हैं कि कई बार चकित होना पड़ता है । कवि के पास जीवन और बदलते समय को देखने परखने की एक अलहदा दृष्टि भी है जो इन कविताओं को पुष्ट करती है । उनकी कहन शैली से भी कविताओं में भाषिक सौन्दर्य उत्पन्न होता है"-  रमेश शर्मा

 



एक पहिये की साइकिल वाला बच्चा


एक धूरी पर घूमती है सारी पृथ्वी

यह बेहद मामूली लेकिन जरूरी पाठ

मुझे फिर से याद आया था

उस ताईवानी बच्चे को देखकर

जो निकल पड़ा था

चिंग हुआ यूनिवर्सिटी की व्यस्त सड़क पर

अपनी एक पहिये की साइकिल लिए

जैसे टायफून के अभ्यस्त इस शहर में

उड़ रहा हो एक पक्षी , टायफून के दौरान

 

उस बच्चे के लिए

सड़क के सवारों ने ले लिया था विराम

थम गयी थी जल्दी जल्दी की बदहवास दौड़

ताकि एक बच्चा जी सके अपने स्वप्न को उन्मुक्त होकर

 

एक पहिये की उसकी सवारी में समाया था

जल थल और नभ तीनों की यात्राओं का आनंद

उस दिन मैंने देखा था

कागज की नाव को नूह की नाव बनते हुए

 

उस दिन उस बच्चे की वजह से मुझे याद आया

एक और बच्चा

जो बरसों पहले बिलकुल अलग परिवेश में

ऎसी ही स्वप्निल उड़ान पर था

जो एक छोटे से गाँव में दौड़ा जा रहा था

लकड़ी से ठेलते हुए साइकिल के एक पुराने टायर को

बेख़ौफ़ पोखर से लौट रही नुकीले सिंग वाली मरखनी भैसों से

बेखबर, अपने से आधी ऊंचाई की बकरियों के झुण्ड से

वह उसका पहला अनुभव था

दुनिया को एक पहिये की धुरी में समेट लाने का I

 

 

महामृत्यु में अनुनाद

 

महामारी के दौरान भी हो रहे होंगे निषेचन

बच्चे जो सामान्य परिस्थितियों में गर्भ में आते

आएँगे इस दुनिया में

कठिन काल में प्रेम की दस्तावेज़ बनकर


बड़े होने पर वही बच्चे

किंवदंती की तरह सुनेंगे

इस महामारी के बारे में

और विश्वास नहीं करेंगे इस पर


आज की काली सच्चाई का किंवदंती हो जाना

गहराता जाएगा आने वाली पीढ़ियों के साथ

जैसे हममें से बहुत

मिथक समझते थे प्लेग की महामारी को

जो लौटती रही अलग-अलग सदियों में,

अलग-अलग देशों में

उजाड़ती रही सभ्यताओं के अंश

पौराणिक गल्प-सा मानते थे हम

अकाल में भुखमरी से मरे लोगों को

येलो फीवर या ब्लैक डेथ को

(मानव महामृत्यु में भी रंग देखता है

यह कलात्मकता है या रंगभेद?)

महामारी के दौरान मरे लोग

सिर्फ़ एक संख्या होते हैं

जैसे होते हैं, युद्ध में मरे लोग

और हमेशा कम होता है आधिकारिक आँकड़ा

कोई नहीं याद रखता

कि उनमें से कितने कलाकार थे, कितने चित्रकार, कितने कवि

कौन-सी अगली कविता लिखना या अगला चित्र बनाना चाहते थे वे

व्यापारी कितना और कमाना चाहते थे

कितने जहाज़ी अभी घर नहीं लौटे थे

कौन-कौन समुद्र में किसी अज्ञात निर्देशांक पर मारा गया

कितने बुज़ुर्ग अभी जीने की ज़िद नहीं छोड़ना चाहते थे

कितने शादीशुदा जोड़ों की सेज पर

अभी आकाश से टपक रहा था शहद

कितने नवजात बच्चों ने अभी नहीं चखा था

माँ के दूध के अलावा कुछ और

इनमें से कितने गिने भी नहीं गए आधिकारिक आँकड़ों में

सरकारों-हुक्मरानों के मुताबिक़ सदियों बाद भी ज़िंदा होना चाहिए उन्हें


महामारी से, या महामारी के कुछ दशक बाद मरकर

हममें से प्रत्येक, संख्या में एक का ही इज़ाफ़ा करेगा

भीड़ का हिस्सा या भीड़ से अलग ख़ुद को मानते रहने वाले हम

गिनती में सिर्फ़ एक मनुष्य होते हैं


हममें से अधिकांश कवि गुमनाम मरेंगे

और यदि जी पाई हमारी कोई कविता, कोई पंक्ति

भविष्य में उसे उद्धृत करते हुए कोई इतना भर कहेगा

किसी कवि ने कहा था

कहीं कहीं

इस समय लिखी जा रही सभी रचनाओं में निहित है

विषाणु, पलायन, अवसाद, एकात्मकता


अंधकार की सभी कविताएँ

जो फ़िलवक़्त बड़ी आसानी से समझ जाती हैं

अपने बिंबों की विस्तृत परिभाषाएँ माँगेंगी भविष्य में

किंवदंती का पुष्ट-अपुष्ट आधार बनेंगी


'किसी कवि' में समाहित सभी कवियों

आओ, खड़े होते हैं

महामारी से बचने को अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए

एक नहीं, तीन-तीन मीटर दूर घेरों में

या मान लेते हैं

एक आभासी दुनिया में ठहरे हुए काल्पनिक घेरे

और बारी-बारी गाते हैं

प्लेग और अकाल आदि में मर गए

पुरखों के स्मृति-गीत

सुनाते हैं अपनी कविताएँ


उसके बाद

उम्मीद भरी समवेत हँसी हँसते हैं


ठहाकों का अनुनाद

एक कालजयी कविता है।


मॉस्को की लड़की

मॉस्को में एक लड़की

जिससे मेट्रो रेल की आपाधापी में

छू गया था मेरा पैर


जैसी कि आदत डाली गई है

'लड़कियों से पैर नहीं छुआते'

तत्क्षण, उसके साथ से अपनी हथेली छुआकर

माथे से लगा ली थी मैंने


यह बस अपने आप हुआ,

एक आदत के तहत

सोच सकने से भी पहले


बहरहाल, अब सोचता हूँ

उसके देश में क्या ऐसा करता होगा कोई

वह मुझे अजीब समझती होगी

या शायद अवसरवादी बदनीयत

उसे मेरी भाषा आती थी

ही मैं रूसी जानता था

तो हम दोनों मौन रहे

बस इतना याद है

वह मुझ पर हँसी नहीं थी

और अपना स्टेशन आने तक

देखती रही थी मुझे।

 

गड़रिया

वह एक गड़रिया है
जंगल से सटे गाँव का गड़रिया
अपना रेवड़ लिए
गाँव से जंगल की पगडंडी पर
लाठी खड़काते घूमता है वह

कान में बाली,
भरे चेहरे पर घनी मूँछें
गँवई भाषा
उसके गीतों में
लोकदेवताओं की स्तुति है
जो रेवड़ के लिए संगीत है
और भेड़ों के गले की घंटियाँ
गड़रिये के लिए संगीत

उसके रेवड़ में कोई सौ भेड़ हैं
जिनमें से हर एक को
अलग-अलग पहचानता है गड़रिया

भेड़ें उसकी आवाज़ पर चलती हैं
उसके संकेत पर मुड़ती हैं
उसकी ललकार पर रुकती हैं
मैने उसे देखा है
लाठी लिए हुए,
लाठी खड़काते हुए
पर किसी ने उसे,
कभी नही देखा
किसी भेड़ पर लाठी उठाते हुए

हर गड़रिये का
अपना अलग इशारा होता है
लाठी खड़काने का अलग अंदाज़
जिससे वह नियंत्रित करता है
अपना रेवड़ का साम्राज्य

इन दिनों,
सिकुड़ चुका है जंगल
सिमट गये हैं चरागाह
उसका रेवड़ छोटा हो रहा है
गड़रिये का भविष्य संशय में है
और वह आज के बचे-खुचे चरागाह में
बेफ़िक्र भेड़ चरा रहा है
कल की चिंता नहीं करता गड़रिया।

 

सबसे खुश दो लोग

 

लड़के और लड़की की

अपने-अपने घरों में

इतनी भी नहीं चलती थी

कि पर्दों का रंग चुनने तक में

उनकी राय ली जाती


उनकी ज़ेबों की हालत ऐसी थी

कि आधी-आधी बाँटते थे पाव-भाजी

अतिरिक्त पाव के बारे में सोच भी नहीं सकते थे


अभिजात्य सपने देखने के मामले में

बहुत सँकरी थी

उनकी पुतलियाँ


फिर भी

वे शहर के

सबसे ख़ुश दो लोग थे


क्योंकि वे

घास के एक विस्तृत मैदान में

धूप सेंकते हुए

आँखों पर किताब की ओट कर

कह सकते थे

कि उन्हें प्रेम है एक-दूसरे से।

 

प्रेम को झुर्रियाँ नहीं आतीं

बुढ़िया ने गोद में रखा

अपने बुड्ढे का सर

और मालिश करने लगी

सर के उस हिस्से में भी

जहाँ से बरसों पहले

विदा ले चुके थे बाल


दोनों को याद आया

कि शैतान बच्चे टकला कहते हैं बुड्ढे को

और मन ही मन टिकोला मारना चाहते हैं

उसके गंजे सर पर


दोनों हँसे

अपने बचे हुए दाँत दिखाते हुए

बुढ़िया ने हँसते हुए टिकाना चाहा

(जितना वह झुक पाई)

झुर्रियों भरा अपना गाल बुड्ढे के माथे पर


बैलगाड़ी के एक बहुत पुराने पहिए ने

याददाश्त सँभालते हुए गर्व से बताया :

मैं ही लेकर आया था इनकी बारात।

---------------------- 

(कवि देवेश पथ सरिया ताइवान के शिनचू शहर में खगोल विज्ञान में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो हैं इनकी यूनिवर्सिटी का नाम नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी है जहां ये अगस्त 2015 से कार्यरत हैं. इनका शोध का विषय Extrasolar planets और Star Clusters पर केंद्रित है. राजस्थान के अलवर जिले के राजगढ़ तहसील से बी. एस. सी. करने के बाद इन्होंने अलवर से 2008 में भौतिक शास्त्र में एम. एस. सी. की. उसके बाद ARIES वेधशाला, नैनीताल से पी. एच. डी. की. कई साहित्यिक पत्रिकाओं, ब्लॉग्स और समाचार पत्रों में इनकी कविताएँ प्रकाशित हुई हैं)

 

ईमेल: deveshpath@gmail.com

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

टिप्पणियाँ

  1. अनुग्रह के माध्यम से बहुत अच्छी कविताएं पढ़ने को मिलीं। कविताओं को पढ़कर कवि के अन्य कविताओं को लेकर भी मन में जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है। गडरिया कभी भी अपने भेड़ों पर लाठी से वार नहीं करता यह एक मार्के की बात कवि ने पकड़ी है।अन्य कविताओं में भी बहुत सूक्ष्मता से नई बातें सामने आती हैं।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

गंगाधर मेहेर : ओड़िया के लीजेंड कवि gangadhar meher : odiya ke legend kavi

हम हिन्दी में पढ़ने लिखने वाले ज्यादातर लोग हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के कवियों, रचनाकारों को बहुत कम जानते हैं या यह कहूँ कि बिलकुल नहीं जानते तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।  इसका एहसास मुझे तब हुआ जब ओड़िसा राज्य के संबलपुर शहर में स्थित गंगाधर मेहेर विश्वविद्यालय में मुझे एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर वक्ता वहां जाकर बोलने का अवसर मिला ।  2 और 3  मार्च 2019 को आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में शामिल होने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जिस शख्श के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नामकरण हुआ है वे ओड़िसा राज्य के ओड़िया भाषा के एक बहुत बड़े कवि हुए हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से  ओड़िसा राज्य को देश के नक़्शे में थोड़ा और उभारा है। वहां जाते ही इस कवि को जानने समझने की आतुरता मेरे भीतर बहुत सघन होने लगी।वहां जाकर यूनिवर्सिटी के अध्यापकों से , वहां के विद्यार्थियों से गंगाधर मेहेर जैसे बड़े कवि की कविताओं और उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी जुटाना मेरे लिए बहुत जिज्ञासा और दिलचस्पी का बिषय रहा है। आज ओड़िया भाषा के इस लीजेंड कवि पर अपनी बात रखते हुए मुझे जो खु...

तीन महत्वपूर्ण कथाकार राजेन्द्र लहरिया, मनीष वैद्य, हरि भटनागर की कहानियाँ ( कथा संग्रह सताईस कहानियाँ से, संपादक-शंकर)

  ■राजेन्द्र लहरिया की कहानी : "गंगा राम का देश कहाँ है" --–-----------------------------  हाल ही में किताब घर प्रकाशन से प्रकाशित महत्वपूर्ण कथा संग्रह 'सत्ताईस कहानियाँ' आज पढ़ रहा था । कहानीकार राजेंद्र लहरिया की कहानी 'गंगा राम का देश कहाँ है' इसी संग्रह में है। सत्ता तंत्र, समाज और जीवन की परिस्थितियाँ किस जगह जा पहुंची हैं इस पर सोचने वाले अब कम लोग(जिसमें अधिकांश लेखक भी हैं) बचे रह गए हैं। रेल की यात्रा कर रहे सर्वहारा समाज से आने वाले गंगा राम के बहाने रेल यात्रा की जिस विकट स्थितियों का जिक्र इस कहानी में आता है उस पर सोचना लोगों ने लगभग अब छोड़ ही दिया है। आम आदमी की यात्रा के लिए भारतीय रेल एकमात्र सहारा रही है। उस रेल में आज स्थिति यह बन पड़ी है कि जहां एसी कोच की यात्रा भी अब सुगम नहीं रही ऐसे में यह विचारणीय है कि जनरल डिब्बे (स्लीपर नहीं) में यात्रा करने वाले गंगाराम जैसे यात्रियों की हालत क्या होती होगी जहाँ जाकर बैठने की तो छोडिये खड़े होकर सांस लेने की भी जगह बची नहीं रह गयी है। साधन संपन्न लोगों ने तो रेल छोड़कर अपनी निजी गाड़ियों के जरिये सड़क मा...

समकालीन कहानी के केंद्र में इस बार: नर्मदेश्वर की कहानी : चौथा आदमी। सारा रॉय की कहानी परिणय । विनीता परमार की कहानी : तलछट की बेटियां

यह चौथा आदमी कौन है? ■नर्मदेश्वर की कहानी : चौथा आदमी नर्मदेश्वर की एक कहानी "चौथा आदमी" परिकथा के जनवरी-फरवरी 2020 अंक में आई थी ।आज उसे दोबारा पढ़ने का अवसर हाथ लगा। नर्मदेश्वर, शंकर और अभय के साथ के कथाकार हैं जो सन 80 के बाद की पीढ़ी के प्रतिभाशाली कथाकारों में गिने जाते हैं। दरअसल इस कहानी में यह चौथा आदमी कौन है? इस आदमी के प्रति पढ़े लिखे शहरी मध्यवर्ग के मन में किस प्रकार की धारणाएं हैं? किस प्रकार यह आदमी इस वर्ग के शोषण का शिकार जाने अनजाने होता है? किस तरह यह चौथा आदमी किसी किये गए उपकार के प्रति हृदय से कृतज्ञ होता है ? समय आने पर किस तरह यह चौथा आदमी अपनी उपयोगिता साबित करता है ? उसकी भीतरी दुनियाँ कितनी सरल और सहज होती है ? यह दुनियाँ के लिए कितना उपयोगी है ? इन सारे सवालों को यह छोटी सी कहानी अपनी पूरी संवेदना और सम्प्रेषणीयता के साथ सामने रखती है। कहानी बहुत छोटी है,जिसमें जंगल की यात्रा और पिकनिक का वर्णन है । इस यात्रा में तीन सहयात्री हैं, दो वरिष्ठ वकील और उनका जूनियर विनोद ।यात्रा के दौरान जंगल के भीतर चौथा आदमी कन्हैया यादव उन्हें मिलता है जो वर्मा वकील स...

रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी : हम दोनों

स्व.रघुनंदन त्रिवेदी मेरे प्रिय कथाकाराें में से एक रहे हैं ! आज 17 जनवरी उनका जन्म दिवस है।  आम जन जीवन की व्यथा और मन की बारिकियाें काे अपनी कहानियाें में मौलिक ढंग से व्यक्त करने में वे सिद्धहस्त थे। कम उम्र में उनका जाना हिंदी के पाठकों को अखरता है। बहुत पहले कथादेश में उनकी काेई कहानी पढी थी जिसकी धुंधली सी याद मन में है ! आदमी काे अपनी चीजाें से ज्यादा दूसराें की चीजें  अधिक पसंद आती हैं और आदमी का मन खिन्न हाेते रहता है ! आदमी घर बनाता है पर उसे दूसराें के घर अधिक पसंद आते हैं और अपने घर में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! आदमी शादी करता है पर किसी खूबसूरत औरत काे देखकर अपनी पत्नी में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! इस तरह की अनेक मानवीय मन की कमजाेरियाें काे बेहद संजीदा ढंग से कहानीकार पाठकाें के सामने प्रस्तुत करते हैं ! मनुष्य अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं रहता, उसे हमेशा लगता है कि दुनियां थाेडी इधर से उधर हाेती ताे कितना अच्छा हाेता !आए दिन लाेग ऐसी मन: स्थितियाें से गुजर रहे हैं , कहानियां भी लाेगाें काे राह दिखाने का काम करती हैं अगर ठीक ढंग से उन पर हम अपना ध्यान केन्...

गजेंद्र रावत की कहानी : उड़न छू

गजेंद्र रावत की कहानी उड़न छू कोरोना काल के उस दहशतजदा माहौल को फिर से आंखों के सामने खींच लाती है जिसे अमूमन हम सभी अपने जीवन में घटित होते देखना नहीं चाहते। अम्मा-रुक्की का जीवन जिसमें एक दंपत्ति के सर्वहारा जीवन के बिंदास लम्हों के साथ साथ एक दहशतजदा संघर्ष भी है वह इस कहानी में दिखाई देता है। कोरोना काल में आम लोगों की पुलिस से लुका छिपी इसलिए भर नहीं होती थी कि वह मार पीट करती थी, बल्कि इसलिए भी होती थी कि वह जेब पर डाका डालने पर भी ऊतारू हो जाती थी। श्रमिक वर्ग में एक तो काम के अभाव में पैसों की तंगी , ऊपर से कहीं मेहनत से दो पैसे किसी तरह मिल जाएं तो रास्ते में पुलिस से उन पैसों को बचाकर घर तक ले आना कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी। उस चुनौती को अम्मा ने कैसे स्वीकारा, कैसे जूतों में छिपाकर दो हजार रुपये का नोट उसका बच गया , कैसे मौका देखकर वह उड़न छू होकर घर पहुँच गया, सारी कथाएं यहां समाहित हैं।कहानी में एक लय भी है और पठनीयता भी।कहानी का अंत मन में बहुत उहापोह और कौतूहल पैदा करता है। बहरहाल पूरी कहानी का आनंद तो कहानी को पढ़कर ही लिया जा सकता है।       ...

जीवन प्रबंधन को जानना भी क्यों जरूरी है

            जीवन प्रबंधन से जुड़ी सात बातें