भगत सिंह सोनी का नाम पुरानी पीढ़ी के महत्वपूर्ण कवियों में शुमार है. चुपचाप अपनी कविताएँ लिखकर कवि धर्म निभाते रहने वाले इस कवि पर यद्यपि कभी उस तरह चर्चा नहीं हुई जिस तरह की चर्चा उन पर होनी चाहिए थी. अपने आसपास की दुनिया को देखने का अनुभव उनकी कविताओं में बहुत बारीकी से एक तरल संवेदना में तब्दील होकर हम तक पहुंचता है. बहुत साधारण और कम शब्दों में अपने भीतर उठते भावबोध और जीवन दर्शन को मन में चुभने वाली एक असाधारण सी कविता में रचने की कला इस कवि के पास है. उनकी कविताओं को पढ़ते हुए अपने रोजमर्रा की जिन्दगी की प्रतिछवियों को जब हम वहां देखते हैं तो इस कवि को अपने आसपास ही पाते हैं. उनकी कविताओं में मनुष्य मनुष्य के बीच ,मनुष्य और प्रकृति के बीच व्याप्त रिश्तों की बिषमताओं को बड़ी सहजता के साथ जिस तरह देखा समझा गया है वह हमारा ध्यान खींचता है. उनके संग्रह 'पृथ्वी से क्या कहेंगे' से उनकी कुछ कवितायेँ यहाँ प्रस्तुत हैं
१.अंधियारे से बाहर
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कमल हमेशा कीचड़ में खिलते हैं
कोयले के गर्भ से निकलते हैं
हीरे
अंधियारे से निकलता है
चाँद.
देखते रहना मैं इसी तरह निकलूंगा
इस अंधियारे से बाहर .
२.फ्राक
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मैं जिस कपड़े का कमीज़ बनवाता
लड़की उसी कपड़े का फ्राक सिलवाती है
मैं यह जानना चाहते ही रह गया कि
उसकी फ्राक क्यों फट गयी.
पर हुआ यह
कि उसका सीना या फिर जोश
फ्राक से कूदकर सामने आ गया,
सोचता रहा कि उसके लिए
कितना जरूरी है फ्राक
या मेरे लिए कमीज़.
दुविधा में मैं
कुछ यहाँ वहाँ फँस गया
और एक पूरा दिन अधूरा रह गया.
अभी तक
कमीज़, कमीज़ की जगह है
फ्राक, फ्राक की ही जगह
और जोश शायद अब दुबक कर
वहीं होगा
जहाँ से जोश में उछला था.
३.अंधेरा
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वह अँधेरे के बीच है
मैं अँधेरा के बीच हूँ
नहीं नहीं
अंधेरा हम दोनों के बीच है
यदि अंधेरा हम दोनों के बीच है
तो क्या फर्क पड़ता है
आओ हम उसे प्लेट फॉर्म बना लें
थूंके उस पर
फेंके मूंगफल्ली के छिलके.
फिर हम एक दूसरे से फीता और केश जैसे लिपटें
फेंके सड़क पर मुस्कराहट.
मैं अँधेरे के बीच नहीं होऊंगा
तुम अँधेरे के बीच नहीं होओगी
अँधेरा हम दोनों के बीच होगा.
अँधेरा हमसे दूर होगा
हम अँधेरे से दूर होंगे.
४.शहरनामा
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शहर
कभी अपना नहीं होता,
हम शहर के होते हैं
जन्म से मृत्यु तक.
कल
जब मैं नहीं होऊंगा,
आप किससे मिलेंगे
किससे पूछँगे शहरनामा.
५.भूख
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दोपहर
खाना खाते हुए
मैं पढ़ रहा था,
'इण्डिया टुडे' में छपी खबर कि
भूख से सैकड़ों लोग मारे गए
मुझे बहुत भूख लग रही थी
और मैंने दूसरे दिनों की अपेक्षा
कुछ ज्यादा ही खा लिया था.
वह किस तरह का समय था या कि
भूतपूर्व समय था,
जब भूख से मर जाने की खबर का,
भूख पर कोई असर नहीं हुआ.
मैंने पेट पर
पानी, पानी चुपड़ते हुए कहा-
अहा !
६.अकस्मात्
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मैंने उससे कहा
किसी एक बड़े कवि का नाम लो
'मुक्तिबोध' उसने कहा.
मैंने फिर कहा
किसी जीवित कवि का नाम लो
अशोक, अशोक वाजपेयी- उसने तपाक से कहा.
मैं एक विशाल वृक्ष के पास खड़ा था
मुझे अकस्मात् याद आए
टी.एस.ईलियट.
छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण कवियों में से एक।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार।
बेहतरीन कविता हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी कविताओं में गहरे भाव समाहित हैं जो उनकी परिपक्व संवेदनशीलता का शब्दांकन है।