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चम्पारण्य (छत्तीसगढ़) की यात्रा : TRAVEL TO CHAMPARANYA C.G.

छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि  चम्पारण्य  champaranya छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्द धार्मिक पर्यटक स्थल है। मेरी स्मृति में यह बात आ रही है कि सन 1991-92 में, मैं वहां तब गया था जब धमतरी के निकट स्थित गाँव पलारी के खुमान प्रसाद आर्य गुरुजी मुझे जोर देकर वहां अपने साथ ले गए थे। उस समय रामायण के प्रसिद्द कथा  वाचक मोरारी बापू चंपारण आये हुए थे और उनकी कथा चल रही थी।उन दिनों मेरी उम्र 23 वर्ष की रही होगी। मुम्बई के बाबू भाई कणकिया ने विशाल क्षेत्र में फैले कथा स्थल में क्लोज सर्किट टीवी की व्यवस्था कर रखी थी। चंपारण की उस भूमि पर आज से तैतीस चौतीस साल पहले के सारे दृश्य अभी भी मेरी स्मृति में जीवंत रूप में विद्यमान हैं । गरमी के दिन थे पर उन दिनों भी वहां चारों तरफ घना जंगल जैसा लुक आता था । हरे भरे विशाल वृक्षों से सुसज्जित चंपारण के मंदिरों वाला कैंपस मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था। हाल ही में फरवरी 2021 में वहां मुझे पुनः जाने का अवसर हाथ लगा उस यात्रा को लेकर कुछ संस्मरण सुनने-सुनाने की इच्छा में, आप सबसे साझा करने की मेरी यह एक कोशिश है।


चम्पारण्य का यह प्रसिद्द स्थल मुख्यतः दो घटकों के लिए जाना जाता रहा है और लोग बतौर पर्यटक यहां आते रहे हैं । उन दो घटकों में पहला घटक है चम्पेश्वर महादेव
का मंदिर (champeshvar temple) और दूसरे  घटक के रूप में आते हैं पुष्टि वंश के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य जी (mahaprabhu vallabhacharya ji)।आध्यात्म के क्षेत्र में पंचकोशी यात्रा का जिक्र आता है । उस पंचकोशी यात्रा में पांच यात्राएं शामिल हैं , वे पांच यात्राएं हैं ..फणेश्वर, चम्पेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर और पटेश्वर । देश विदेश से पर्यटक तो यहाँ आते ही हैं उनके साथ साथ पंचकोशी यात्रा में जिनका भी विश्वास है, वे लोग भी पूरी श्रद्धा के साथ यहाँ आते हैं ।

चम्पारण्य नामक गाँव में स्थित यह प्रसिद्द स्थल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 50 किमी दक्षिण पूर्व में एवं राजिम से 15 किमी उत्तर-पूर्व में महानदी के पवित्र त्रिवेणी संगम तट पर स्थित है । यह ऋषि मुनियों की पावन  तपोभूमि भी रही है । लगभग 6 एकड़ में फैले चम्पेश्वर मंदिर वाला यह पवित्र स्थल आज भी बहुत शांत फिजाओं की गोद में है। यद्यपि बदलते समय का प्रभाव यहाँ भी दिखाई जरूर देता है । 34 साल पहले का वह प्राकृतिक सौन्दर्य अब यहाँ उस तरह मौजूद नहीं है जैसे पहले हुआ करता था। पुरानी दुनिया में आए इकोलॉजिकल इफेक्ट को यहां भी हम महसूस करते हैं। एक चीज आज भी यहाँ बची है और वह है यहाँ की स्वच्छता और यहाँ का शांत वातावरण। तपोभूमि होने के कारण शांति को यहाँ अधिक महत्व दिया जाता है। पिछले एक दो दशक के भीतर बने कुछ मंदिरों में आपको वाराणसी के मंदिरो जैसा डिजाइन और वास्तुकला भी यहाँ आपको देखने को मिलेगा।

यहां के लोगों से प्राप्त जानकारी और जनश्रुति के अनुसार चम्पेश्वर मंदिर का भी एक अपना इतिहास है ।

पौराणिक कथा अनुसार 800 वर्ष पूर्व घनघोर जंगल में गांव का एक ग्वाला, गायों को लेकर जंगल की ओर घास चराने के लिए रोज जाता था। एक दिन वह रोज की तरह गांव की सभी गायों को जंगल की तरफ ले गया था  लेकिन जब शाम हो जाने पर गायों को वापस गौशाला के लिए वह ला रहा था, तभी अचानक गायों के झुण्ड में से राधा नामक बांझोली गाय रम्भाती हुई घनघोर जंगल की ओर अचानक भाग निकली । उस वन में पेड़-पौधों की सघनता इतनी अधिक थी कि अगर वहां कोई घुस जाये तो उसे कुछ भी दिखाई न पड़े । राधा नामक बांझोली गाय रोज सुबह-शाम इसी तरह उस घनघोर जंगल में भाग जाया करती थी। ग्वाला की आँखों के सामने ही ऐसा घटित  हुए पूरा एक सप्ताह हो गया। गायों को हर रोज चराने ले जाने वाला ग्वाला सोच में पड़ गया कि आखिर यह गाय रोज जंगल की ओर क्यों भाग जाती हैं।


उसके मन में एक कौतुहल पैदा हो गया कि आखिर माजरा क्या है
? एक दिन वह ग्वाला उसके पीछे पीछे हो लिया। जंगल सघन और घनघोर होने और जगह जगह फैले लता-बेल की वजह से ग्वाले को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए ग्वाला ने देखा कि एक शमी वृक्ष के नीचे खड़ी बांझोली गाय राधा के थनों से दूध की सतत धार एक लिंग के ऊपर गिर रही है। उस ग्वाला ने गांव में जाकर इस घटना के बारे में सबकुछ बताया लेकिन किसी ने उसकी बातों पर यकीन नहीं किया । इस कथन को जांचने के लिए कुछ गांव वालों ने उस ग्वाले को  साथ लेकर घटना स्थल पर जाना सुनिश्चित किया । वहां जाकर उन्होंने देखा कि राधा नामक बांझोली गाय भगवान शिव के लिंग विग्रह पर जिस पर त्रिमूर्ति के रूप में महादेव, माता पार्वती एवं गणेश जी प्रतिबिंबित थे, अपने थनों से दूध की अजस्र धारा गिरा रही थी। इस दृश्य घटना के बाद लोगों द्वारा वहां मंत्रोच्चार और  पूजा आराधना भी की गई। कालांतर में गांव में लोगों ने निर्णय लेकर भगवान महादेव के उस त्रिमूर्ति लिंग स्थल को देवस्थल के रूप में विकसित किया गया । फिर बहुत बाद में झोपडीनुमा मन्दिर के स्थान पर पक्का मंदिर बनाया गया। जो प्राचीन तीर्थ स्थल श्री चम्पेश्वर महादेव मंदिर के नाम से अब प्रसिद्द है ।ग्वाले वाले इस घटना की प्रमाणिकता कितनी है इसके बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता पर लोगों आस्था के इतिहास के नज़रिए से लोग इसे प्रामाणिक मानते हैं ।

यहाँ आने वाले ज्यादातर पर्यटक इस महादेव मंदिर में महानदी का जल चढ़ाते हैं एवं पूजा-अर्चना करते हैं। यह Champeshwar Mahadev temple सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 3 बजे से शाम 7 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।  

यहाँ की दूसरी कथा महाप्रभु वल्लभाचार्य से जुड़ी है | 15वीं शताब्दी के महान दार्शनिक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली भी चम्पारण्य ही है । दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के तट पर स्तभाद्रि के निकट स्थित अग्रहार में अगस्त्य मुनि के वंशज कुम्भकार हुए । कालांतर में वे काकखंड में आकर बस गए तथा परिवार सहित तीर्थ यात्रा पर निकल कर काशी पहुंचे।

काशी पर मलेच्छों के आक्रमण के कारण वे सब वापस अपने मूल स्थान की ओर चल पड़े। मार्ग में राजिम नगरी के निकट चम्पारण्य  नामक गाँव में श्री चम्पेश्वर महादेव के दर्शनार्थ वे सब यहाँ पधारे थे। यही महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की माता वल्लमागारु ने संवत 1535 के वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी रविवार (ई. 1479) की रात्रि एक बालक को जन्म दिया। नवजात बालक के जीवित रह पाने की उम्मीद जब कम नज़र आने लगी तब  बालक को उसके माता पिता शमी पेड़ की कोटर में छोड़कर यात्रा में आगे निकल पड़े। फिर व्यग्रता में उन्होंने दूसरे दिन ही वापस आकर बालक को तलाशा तो देखा की स्वयं अग्निदेव ही उस बालक की रक्षा कर रहे हैं। वहां के लोग बताते हैं , इस बालक को चार नाम दिए गए – 1. देवनाम- कृष्ण प्रसाद, 2. मास नाम- जनार्दन, 3. नक्षत्र नाम- श्रविष्ठ, 4. प्रसिद्द नाम वल्लभ। यही बालक आगे चलकर श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य के नाम से प्रसिद्द हुए ।


वल्लभाचार्य बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। लोग उन्हें सरस्वती पुत्र के नाम से भी बुलाते थे । आगे चलकर गुरु विष्णुचित से उन्होंने यजुर्वेद
का ज्ञान लिया । तुरुमल दीक्षित से ऋग्वेद का ज्ञान लिया । अपने पिता से अथर्व वेद व उपनिषदों की शिक्षा उन्होंने ग्रहण की । धार्मिक दृष्टि से भारत में उस समय अनेक मतों का प्रचलन था। श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य ने भागवत पुराण के आधार पर शुध्द द्वैत मतानुसार पुष्टि मार्ग का प्रवर्तन भी किया। महाप्रभु वल्लभाचार्य के समकालीनों में  श्री रामानंद जी, कबीर, गुरुनानक देव, श्री रामदास, संत तुकाराम, मीरा बाई , श्री चैतन्य महाप्रभु का नाम आता है ।

श्री कृष्ण के अनन्य भक्त महाप्रभु वल्लभाचार्य ने सम्पूर्ण भारत की तीन बार पैदल यात्रा भी की तथा इस पैदल परिक्रमा के दौरान भागवत सप्ताह का पठन पाठन किया। पैदल भ्रमण के दौरान देश के अनेक जगहों में जहाँ जहाँ भी उन्होंने भागवत का पाठ किया उसे महाप्रभु के बैठक स्थल के रूप में चिन्हित भी किया गया है । इस तरह के 84 बैठक स्थलों का जिक्र धर्म ग्रंथों में मिलता है ।


चम्पारण में भी उनके  दो बैठक स्थल चिन्हित हैं। पहला बैठक स्थल शमी वृक्ष के नीचे उनकी जन्मस्थली पर है तथा दूसरा बैठक स्थल छठी पूजन के स्थान पर स्थित है। यह भी उल्लेखनीय है कि यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जनश्रुति भी प्रचलित है कि वल्लभाचार्य के भक्त यहाँ पर स्थित महानदी को यमुना नदी का रूप मानते हैं।

चूँकि श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग की स्थापना की थी इसी कारण यह स्थान वैष्णव संप्रदाय के पुष्टि मार्गीय अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल भी माना जाता है।

प्रत्येक वर्ष वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी को यहाँ मेला भी लगता है। यह दिन वल्लभाचार्य जी का प्राकट्य दिवस है।  उनके जन्म दिन पर आयोजित इस मेले में देश-विदेश के अनेक श्रध्दालु भाग लेते हैं और भव्य रूप में आयोजित  चम्पारण मेले का आनंद उठाते हैं। सावन महीने में भी यहाँ लोगों का खूब आना जाना लगा रहता है। सावन महीने में शिव के भक्तगण चम्पेश्वर महादेव में जल अभिषेक करने हजारों की संख्या में यहाँ आते हैं।


 
चम्पारण्य Champarany में यहाँ के स्थानीय ट्रस्ट द्वारा संचालित साधारण विश्राम गृह भी हैं जहां पर्यटक रूक सकते हैं । भोजन व्यवस्था मंदिर के ट्रस्ट द्वारा लगभग 50 रु. की दर से प्रदान किया जाता है।

यहाँ का निकटतम शहर राजिम है वहां जाकर भी लॉज होटल वगैरह में रूका जा सकता है । अगर अत्याधुनिक होटलों में रूकने की इच्छा हो तो 50 किलोमीटर दूर राजधानी रायपुर में इसका आनंद लिया जा सकता है।

 

How to Reach – यहाँ पहुंचने के लिए छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग के माध्यम से बुकिंग भी कराया जा सकता है। चम्पारण्य पहुँचने के लिए सर्वप्रथम आपको छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुँचना होगा। रायपुर पहुँचने के लिए निम्न साधनों पर विचार किया जा सकता है

  • वायु मार्ग – छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शहर से 12 किमी की दूरी पर रायपुर का स्वामी विवेकानन्द हवाई अड्डा है जो देश के अधिकाँश शहरों से जुड़ा है। 
  • रेलमार्ग – हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर रायपुर रेलवे स्टेशन स्थित है जहाँ रेल के माध्यम से आप आसानी से पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग – रायपुर शहर से निजी वाहन , कैब अथवा नियमित चलने वाले निजी परिवहन बसों द्वारा चम्पारण्य Champarany तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। 

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 (चम्पारण्य से लौटकर) 

 

 

 

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