सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

चम्पारण्य (छत्तीसगढ़) की यात्रा : TRAVEL TO CHAMPARANYA C.G.

छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि  चम्पारण्य  champaranya छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्द धार्मिक पर्यटक स्थल है। मेरी स्मृति में यह बात आ रही है कि सन 1991-92 में, मैं वहां तब गया था जब धमतरी के निकट स्थित गाँव पलारी के खुमान प्रसाद आर्य गुरुजी मुझे जोर देकर वहां अपने साथ ले गए थे। उस समय रामायण के प्रसिद्द कथा  वाचक मोरारी बापू चंपारण आये हुए थे और उनकी कथा चल रही थी।उन दिनों मेरी उम्र 23 वर्ष की रही होगी। मुम्बई के बाबू भाई कणकिया ने विशाल क्षेत्र में फैले कथा स्थल में क्लोज सर्किट टीवी की व्यवस्था कर रखी थी। चंपारण की उस भूमि पर आज से तैतीस चौतीस साल पहले के सारे दृश्य अभी भी मेरी स्मृति में जीवंत रूप में विद्यमान हैं । गरमी के दिन थे पर उन दिनों भी वहां चारों तरफ घना जंगल जैसा लुक आता था । हरे भरे विशाल वृक्षों से सुसज्जित चंपारण के मंदिरों वाला कैंपस मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था। हाल ही में फरवरी 2021 में वहां मुझे पुनः जाने का अवसर हाथ लगा उस यात्रा को लेकर कुछ संस्मरण सुनने-सुनाने की इच्छा में, आप सबसे साझा करने की मेरी यह एक कोशिश है।


चम्पारण्य का यह प्रसिद्द स्थल मुख्यतः दो घटकों के लिए जाना जाता रहा है और लोग बतौर पर्यटक यहां आते रहे हैं । उन दो घटकों में पहला घटक है चम्पेश्वर महादेव
का मंदिर (champeshvar temple) और दूसरे  घटक के रूप में आते हैं पुष्टि वंश के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य जी (mahaprabhu vallabhacharya ji)।आध्यात्म के क्षेत्र में पंचकोशी यात्रा का जिक्र आता है । उस पंचकोशी यात्रा में पांच यात्राएं शामिल हैं , वे पांच यात्राएं हैं ..फणेश्वर, चम्पेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर और पटेश्वर । देश विदेश से पर्यटक तो यहाँ आते ही हैं उनके साथ साथ पंचकोशी यात्रा में जिनका भी विश्वास है, वे लोग भी पूरी श्रद्धा के साथ यहाँ आते हैं ।

चम्पारण्य नामक गाँव में स्थित यह प्रसिद्द स्थल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 50 किमी दक्षिण पूर्व में एवं राजिम से 15 किमी उत्तर-पूर्व में महानदी के पवित्र त्रिवेणी संगम तट पर स्थित है । यह ऋषि मुनियों की पावन  तपोभूमि भी रही है । लगभग 6 एकड़ में फैले चम्पेश्वर मंदिर वाला यह पवित्र स्थल आज भी बहुत शांत फिजाओं की गोद में है। यद्यपि बदलते समय का प्रभाव यहाँ भी दिखाई जरूर देता है । 34 साल पहले का वह प्राकृतिक सौन्दर्य अब यहाँ उस तरह मौजूद नहीं है जैसे पहले हुआ करता था। पुरानी दुनिया में आए इकोलॉजिकल इफेक्ट को यहां भी हम महसूस करते हैं। एक चीज आज भी यहाँ बची है और वह है यहाँ की स्वच्छता और यहाँ का शांत वातावरण। तपोभूमि होने के कारण शांति को यहाँ अधिक महत्व दिया जाता है। पिछले एक दो दशक के भीतर बने कुछ मंदिरों में आपको वाराणसी के मंदिरो जैसा डिजाइन और वास्तुकला भी यहाँ आपको देखने को मिलेगा।

यहां के लोगों से प्राप्त जानकारी और जनश्रुति के अनुसार चम्पेश्वर मंदिर का भी एक अपना इतिहास है ।

पौराणिक कथा अनुसार 800 वर्ष पूर्व घनघोर जंगल में गांव का एक ग्वाला, गायों को लेकर जंगल की ओर घास चराने के लिए रोज जाता था। एक दिन वह रोज की तरह गांव की सभी गायों को जंगल की तरफ ले गया था  लेकिन जब शाम हो जाने पर गायों को वापस गौशाला के लिए वह ला रहा था, तभी अचानक गायों के झुण्ड में से राधा नामक बांझोली गाय रम्भाती हुई घनघोर जंगल की ओर अचानक भाग निकली । उस वन में पेड़-पौधों की सघनता इतनी अधिक थी कि अगर वहां कोई घुस जाये तो उसे कुछ भी दिखाई न पड़े । राधा नामक बांझोली गाय रोज सुबह-शाम इसी तरह उस घनघोर जंगल में भाग जाया करती थी। ग्वाला की आँखों के सामने ही ऐसा घटित  हुए पूरा एक सप्ताह हो गया। गायों को हर रोज चराने ले जाने वाला ग्वाला सोच में पड़ गया कि आखिर यह गाय रोज जंगल की ओर क्यों भाग जाती हैं।


उसके मन में एक कौतुहल पैदा हो गया कि आखिर माजरा क्या है
? एक दिन वह ग्वाला उसके पीछे पीछे हो लिया। जंगल सघन और घनघोर होने और जगह जगह फैले लता-बेल की वजह से ग्वाले को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए ग्वाला ने देखा कि एक शमी वृक्ष के नीचे खड़ी बांझोली गाय राधा के थनों से दूध की सतत धार एक लिंग के ऊपर गिर रही है। उस ग्वाला ने गांव में जाकर इस घटना के बारे में सबकुछ बताया लेकिन किसी ने उसकी बातों पर यकीन नहीं किया । इस कथन को जांचने के लिए कुछ गांव वालों ने उस ग्वाले को  साथ लेकर घटना स्थल पर जाना सुनिश्चित किया । वहां जाकर उन्होंने देखा कि राधा नामक बांझोली गाय भगवान शिव के लिंग विग्रह पर जिस पर त्रिमूर्ति के रूप में महादेव, माता पार्वती एवं गणेश जी प्रतिबिंबित थे, अपने थनों से दूध की अजस्र धारा गिरा रही थी। इस दृश्य घटना के बाद लोगों द्वारा वहां मंत्रोच्चार और  पूजा आराधना भी की गई। कालांतर में गांव में लोगों ने निर्णय लेकर भगवान महादेव के उस त्रिमूर्ति लिंग स्थल को देवस्थल के रूप में विकसित किया गया । फिर बहुत बाद में झोपडीनुमा मन्दिर के स्थान पर पक्का मंदिर बनाया गया। जो प्राचीन तीर्थ स्थल श्री चम्पेश्वर महादेव मंदिर के नाम से अब प्रसिद्द है ।ग्वाले वाले इस घटना की प्रमाणिकता कितनी है इसके बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता पर लोगों आस्था के इतिहास के नज़रिए से लोग इसे प्रामाणिक मानते हैं ।

यहाँ आने वाले ज्यादातर पर्यटक इस महादेव मंदिर में महानदी का जल चढ़ाते हैं एवं पूजा-अर्चना करते हैं। यह Champeshwar Mahadev temple सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 3 बजे से शाम 7 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।  

यहाँ की दूसरी कथा महाप्रभु वल्लभाचार्य से जुड़ी है | 15वीं शताब्दी के महान दार्शनिक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली भी चम्पारण्य ही है । दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के तट पर स्तभाद्रि के निकट स्थित अग्रहार में अगस्त्य मुनि के वंशज कुम्भकार हुए । कालांतर में वे काकखंड में आकर बस गए तथा परिवार सहित तीर्थ यात्रा पर निकल कर काशी पहुंचे।

काशी पर मलेच्छों के आक्रमण के कारण वे सब वापस अपने मूल स्थान की ओर चल पड़े। मार्ग में राजिम नगरी के निकट चम्पारण्य  नामक गाँव में श्री चम्पेश्वर महादेव के दर्शनार्थ वे सब यहाँ पधारे थे। यही महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की माता वल्लमागारु ने संवत 1535 के वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी रविवार (ई. 1479) की रात्रि एक बालक को जन्म दिया। नवजात बालक के जीवित रह पाने की उम्मीद जब कम नज़र आने लगी तब  बालक को उसके माता पिता शमी पेड़ की कोटर में छोड़कर यात्रा में आगे निकल पड़े। फिर व्यग्रता में उन्होंने दूसरे दिन ही वापस आकर बालक को तलाशा तो देखा की स्वयं अग्निदेव ही उस बालक की रक्षा कर रहे हैं। वहां के लोग बताते हैं , इस बालक को चार नाम दिए गए – 1. देवनाम- कृष्ण प्रसाद, 2. मास नाम- जनार्दन, 3. नक्षत्र नाम- श्रविष्ठ, 4. प्रसिद्द नाम वल्लभ। यही बालक आगे चलकर श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य के नाम से प्रसिद्द हुए ।


वल्लभाचार्य बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। लोग उन्हें सरस्वती पुत्र के नाम से भी बुलाते थे । आगे चलकर गुरु विष्णुचित से उन्होंने यजुर्वेद
का ज्ञान लिया । तुरुमल दीक्षित से ऋग्वेद का ज्ञान लिया । अपने पिता से अथर्व वेद व उपनिषदों की शिक्षा उन्होंने ग्रहण की । धार्मिक दृष्टि से भारत में उस समय अनेक मतों का प्रचलन था। श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य ने भागवत पुराण के आधार पर शुध्द द्वैत मतानुसार पुष्टि मार्ग का प्रवर्तन भी किया। महाप्रभु वल्लभाचार्य के समकालीनों में  श्री रामानंद जी, कबीर, गुरुनानक देव, श्री रामदास, संत तुकाराम, मीरा बाई , श्री चैतन्य महाप्रभु का नाम आता है ।

श्री कृष्ण के अनन्य भक्त महाप्रभु वल्लभाचार्य ने सम्पूर्ण भारत की तीन बार पैदल यात्रा भी की तथा इस पैदल परिक्रमा के दौरान भागवत सप्ताह का पठन पाठन किया। पैदल भ्रमण के दौरान देश के अनेक जगहों में जहाँ जहाँ भी उन्होंने भागवत का पाठ किया उसे महाप्रभु के बैठक स्थल के रूप में चिन्हित भी किया गया है । इस तरह के 84 बैठक स्थलों का जिक्र धर्म ग्रंथों में मिलता है ।


चम्पारण में भी उनके  दो बैठक स्थल चिन्हित हैं। पहला बैठक स्थल शमी वृक्ष के नीचे उनकी जन्मस्थली पर है तथा दूसरा बैठक स्थल छठी पूजन के स्थान पर स्थित है। यह भी उल्लेखनीय है कि यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जनश्रुति भी प्रचलित है कि वल्लभाचार्य के भक्त यहाँ पर स्थित महानदी को यमुना नदी का रूप मानते हैं।

चूँकि श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग की स्थापना की थी इसी कारण यह स्थान वैष्णव संप्रदाय के पुष्टि मार्गीय अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल भी माना जाता है।

प्रत्येक वर्ष वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी को यहाँ मेला भी लगता है। यह दिन वल्लभाचार्य जी का प्राकट्य दिवस है।  उनके जन्म दिन पर आयोजित इस मेले में देश-विदेश के अनेक श्रध्दालु भाग लेते हैं और भव्य रूप में आयोजित  चम्पारण मेले का आनंद उठाते हैं। सावन महीने में भी यहाँ लोगों का खूब आना जाना लगा रहता है। सावन महीने में शिव के भक्तगण चम्पेश्वर महादेव में जल अभिषेक करने हजारों की संख्या में यहाँ आते हैं।


 
चम्पारण्य Champarany में यहाँ के स्थानीय ट्रस्ट द्वारा संचालित साधारण विश्राम गृह भी हैं जहां पर्यटक रूक सकते हैं । भोजन व्यवस्था मंदिर के ट्रस्ट द्वारा लगभग 50 रु. की दर से प्रदान किया जाता है।

यहाँ का निकटतम शहर राजिम है वहां जाकर भी लॉज होटल वगैरह में रूका जा सकता है । अगर अत्याधुनिक होटलों में रूकने की इच्छा हो तो 50 किलोमीटर दूर राजधानी रायपुर में इसका आनंद लिया जा सकता है।

 

How to Reach – यहाँ पहुंचने के लिए छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग के माध्यम से बुकिंग भी कराया जा सकता है। चम्पारण्य पहुँचने के लिए सर्वप्रथम आपको छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुँचना होगा। रायपुर पहुँचने के लिए निम्न साधनों पर विचार किया जा सकता है

  • वायु मार्ग – छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शहर से 12 किमी की दूरी पर रायपुर का स्वामी विवेकानन्द हवाई अड्डा है जो देश के अधिकाँश शहरों से जुड़ा है। 
  • रेलमार्ग – हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर रायपुर रेलवे स्टेशन स्थित है जहाँ रेल के माध्यम से आप आसानी से पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग – रायपुर शहर से निजी वाहन , कैब अथवा नियमित चलने वाले निजी परिवहन बसों द्वारा चम्पारण्य Champarany तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। 

 -------------------------------------------------

 (चम्पारण्य से लौटकर) 

 

 

 

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

शिक्षकों की इन समस्याओं को है समाधान की दरकार : “शालेय शिक्षक संघ ने जतायी उम्मीद, शिक्षकों को निराश नहीं करेगी विष्णुदेव सरकार”..

  शिक्षकों की इन समस्याओं को है समाधान की दरकार : “शालेय शिक्षक संघ ने जतायी उम्मीद, शिक्षकों को निराश नहीं करेगी विष्णुदेव सरकार”.. छ्ग कैबिनेट से प्रदेश के कर्मचारियों को है बड़ी उम्मीदें, क्योंकि अब तक कर्मचारी लाभ से रहे वँचित Facebook रायपुर 5 मार्च 2024।  शालेय शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष वीरेंद्र दुबे के नेतृत्व मे संगठन का प्रदेश प्रतिनिधिमंडल जिनमें प्रांतीय महासचिव धर्मेश शर्मा, प्रदेश कार्यकारिणी अध्यक्ष चंद्रशेखर तिवारी एवं प्रदेश मीडिया प्रभारी जितेंद्र शर्मा ने छ्ग शासन को प्रदेश के शिक्षकों की विभिन्न समस्याओं को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और शिक्षामंत्री बृजमोहन अग्रवाल तथा वित्तमंत्री ओ पी चौधरी के समक्ष रखते हुए इन मांगो को यथाशीघ्र पूर्ण करने का आग्रह किया है। प्रांताध्यक्ष वीरेंद्र दुबे ने जिन समस्याओ को शासन के समक्ष रखा वे निम्नांकित हैं – उच्चतर वेतनमान:-  शिक्षक एल बी संवर्ग के लिए उच्चतर वेतनमान – क्रमोन्नत/समयमान की पात्रता के लिए कुल सेवा अवधि की गणना संविलियन दिनांक से की जा रही है अतः 1994-95 से लगातार अपनी सेवाएं दे रहे कर्मचारी अभी भी उच्चतर व...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

रायगढ़ जिले के विभिन्न आयोजनों में शामिल होंगे वित्त मंत्री ओम प्रकाश चौधरी। महापल्ली में उनके हाथों स्व.हेमसुंदर गुप्त की मूर्ति का होगा अनावरण

रायगढ़ । रायगढ़ विधायक एवम  सूबे के वित्त मंत्री ओपी चौधरी गुरुवार 7 मार्च 2024 को रायगढ़ जिले के विभिन्न आयोजनों में शामिल होंगे। निर्धारित दौरे के मुताबिक इन आयोजनों में शामिल होने के लिए वे प्रातः 8 बजे रायपुर से सड़क मार्ग द्वारा कार से रवाना होकर 12 बजे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का लोकार्पण करने के लिए पुसौर पहुंचेंगे।आयोजन उपरांत पुसौर से रायगढ़ के लिए वे रवाना हो जाएंगे और एक बजे रायगढ़ मिनी स्टेडियम में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना कार्यक्रम में शामिल होंगे।रायगढ़ में ही अपरान्ह 1.30 बजे डिग्री कॉलेज रायगढ़ के वार्षिकोत्सव आयोजन में वे शामिल होकर विद्यार्थियों का मनोबल बढ़ाएंगे। रायगढ़ से ग्राम जुरडा के लिए वे फिर रवाना हो जाएंगे और अपरान्ह 3 बजे ग्राम जुरडा में आयोजित जिला स्तरीय पशु मेला कार्यक्रम में शामिल होंगे और ग्रामीणों से संवाद भी करेंगे। कल के उनके व्यस्त कार्यक्रम में जो अंतिम कार्यक्रम है वह महापल्ली ग्राम में सम्पन्न होगा जहां वे  स्वर्गीय हेमसुंदर गुप्त की मूर्ति का अनावरण करेंगे और साथ ही सभा को संबोधित करेंगे। महापल्ली के इस आयोजन में उनके साथ पूर्व विध...

रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी : हम दोनों

स्व.रघुनंदन त्रिवेदी मेरे प्रिय कथाकाराें में से एक रहे हैं ! आज 17 जनवरी उनका जन्म दिवस है।  आम जन जीवन की व्यथा और मन की बारिकियाें काे अपनी कहानियाें में मौलिक ढंग से व्यक्त करने में वे सिद्धहस्त थे। कम उम्र में उनका जाना हिंदी के पाठकों को अखरता है। बहुत पहले कथादेश में उनकी काेई कहानी पढी थी जिसकी धुंधली सी याद मन में है ! आदमी काे अपनी चीजाें से ज्यादा दूसराें की चीजें  अधिक पसंद आती हैं और आदमी का मन खिन्न हाेते रहता है ! आदमी घर बनाता है पर उसे दूसराें के घर अधिक पसंद आते हैं और अपने घर में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! आदमी शादी करता है पर किसी खूबसूरत औरत काे देखकर अपनी पत्नी में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! इस तरह की अनेक मानवीय मन की कमजाेरियाें काे बेहद संजीदा ढंग से कहानीकार पाठकाें के सामने प्रस्तुत करते हैं ! मनुष्य अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं रहता, उसे हमेशा लगता है कि दुनियां थाेडी इधर से उधर हाेती ताे कितना अच्छा हाेता !आए दिन लाेग ऐसी मन: स्थितियाें से गुजर रहे हैं , कहानियां भी लाेगाें काे राह दिखाने का काम करती हैं अगर ठीक ढंग से उन पर हम अपना ध्यान केन्...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

'नेलकटर' उदयप्रकाश की लिखी मेरी पसंदीदा कहानी का पुनर्पाठ

उ दय प्रकाश मेरे पसंदीदा कहानी लेखकों में से हैं जिन्हें मैं सर्वाधिक पसंद करता हूँ। उनकी कई कहानियाँ मसलन 'पालगोमरा का स्कूटर' , 'वारेन हेस्टिंग्ज का सांड', 'तिरिछ' , 'रामसजीवन की प्रेम कथा' इत्यादि मेरी स्मृति में आज भी जीवंत रूप में विद्यमान हैं । हाल के दो तीन वर्षों में मैंने उनकी कहानी ' नींबू ' इंडिया टुडे साहित्य विशेषांक में पढ़ी थी जो संभवतः मेरे लिए उनकी अद्यतन कहानियों में आखरी थी । उसके बाद उनकी कोई नयी कहानी मैंने नहीं पढ़ी।वे हमारे समय के एक ऐसे कथाकार हैं जिनकी कहानियां खूब पढ़ी जाती हैं। चाहे कहानी की अंतर्वस्तु हो, कहानी की भाषा हो, कहानी का शिल्प हो या दिल को छूने वाली एक प्रवाह मान तरलता हो, हर क्षेत्र में उदय प्रकाश ने कहानी के लिए एक नई जमीन तैयार की है। मेर लिए उनकी लिखी सर्वाधिक प्रिय कहानी 'नेलकटर' है जो मां की स्मृतियों को लेकर लिखी गयी है। यह एक ऐसी कहानी है जिसे कोई एक बार पढ़ ले तो भाषा और संवेदना की तरलता में वह बहता हुआ चला जाए। रिश्तों में अचिन्हित रह जाने वाली अबूझ धड़कनों को भी यह कहानी बेआवाज सुनाने लग...

डॉक्टर परिधि शर्मा की कहानी - ख़त

  शिवना नवलेखन पुरस्कार 2024 अंतर्गत डॉक्टर परिधि शर्मा के कहानी संग्रह 'प्रेम के देश में' की पाण्डुलिपि अनुसंशित हुई है। इस किताब का विमोचन फरवरी 2025 के नयी दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में शिवना प्रकाशन के स्टाल पर  किया जाएगा । यहाँ प्रस्तुत है उनकी कहानी  'ख़त' कहानी:    ख़त डॉ . परिधि शर्मा _______________ रात की सिहरन के बाद की उदासी ठंडे फर्श पर बूंद बनकर ढुलक रही थी। रात के ख़त के बाद अब कोई बात नहीं बची थी। खुद को संभालने का साहस भी मात्र थोड़ा-सा बच गया था। ख़त जिसमें मन की सारी बातें लिखी गईं थीं। सारा आक्रोश , सारे जज़्बात , सारी भड़ास , सारी की सारी बातें जो कही जानी थीं , पूरे दम से आवेग के साथ उड़ेल दी गईं थीं। ख़त जिसे किसी को भी भेजा नहीं जाना था। ख़त जिसे किसी को भेजने के लिए लिखा गया था। कुछ ख़त कभी किसी को भेजे नहीं जाते बस भेजे जाने के नाम पर लिखे जाते हैं। खिड़की के कांच के उस ओर खुली हवा थी। हवा के ऊपर आकाश। पेड़ पौधे सबकुछ। आजादी। प्रेम में विफल हो जाने के बाद की आजादी की तरह। खिड़की के पास बैठे हुए आकाश कांच के पार से उतना नंगा नहीं...