सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गांधी के विचारों पर केंद्रित होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर परिचर्चा

 सन 1888 में गांधी जी कानून की पढाई करने जब लन्दन गए तब वहां उन्होंने वेजिटेरियन सोसायटी की सदस्यता ली । वेजिटेरियन सोसायटी से उनदिनों एक पत्रिका निकलती थी जिसका नाम था वेजिटेरियन । ‘वेजिटेरियन’ पत्रिका के लिए गांधी ने भारत के त्योहारों पर लेखों की एक श्रृंखला लिखी थी। इसी श्रृंखला में 25 अप्रैल, 1891 को एक आलेख उन्होंने ‘होली’ पर भी लिखा था। इसमें उन्होंने होली और दिवाली का एक सुंदर तुलनात्मक विश्लेषण किया था। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि होली के अवसर पर विशेषकर महिलाओं के प्रति अशोभनीय व्यवहार और अश्लील भाषा के इस्तेमाल की वजह से उन्होंने इसे विनोदपूर्ण भाषा में अंग्रेजी का ‘अनहोली’ (Unholy) या अपावन त्योहार कहा था । इस आलेख में यद्यपि उन्होंने उम्मीद जताई थी कि जैसे-जैसे भारतीयों में शिक्षा बढ़ेगी, वैसे-वैसे ये अश्लील प्रथाएं समाप्त होती जाएंगी ।

132 साल पहले गांधी जी ने जो उम्मीद जताई थी कि शिक्षा के साथ साथ महिलाओं को लेकर लोगों के नज़रिए में परिवर्तन आएगा , उस बात को हम बहुत पीछे छोड़ आए हैं। 

8 मार्च को जब होली त्यौहार भी है और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी है, इस विशेष अवसर पर उस परिवर्तन की एक तरह से पड़ताल करने की कोशिश में, अनुग्रह की ओर से हमने समाज के अलग अलग तबकों से आने वाली और अलग अलग क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं से बातचीत की । बातचीत के उन अंशों को हम पाठकों के सामने रख रहे हैं-

                          मेडम जागृति प्रभाकर

इस बातचीत के दौरान ब्लूमिंग बूड्स प्ले स्कूल रायगढ़ की डायरेक्टर और पूर्व में कई सीनियर सेकेंडरी कान्वेंट स्कूलों की प्राचार्य रह चुकीं मेडम जागृति प्रभाकर ने हमसे कहा कि इन 132 सालों में भी पुरूष सत्तात्मक सोच में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है । देश के अलग अलग क्षेत्रों में महिलाओं के साथ जिस तरह के जघन्य अपराध हो रहे हैं उससे महिलाओं के भीतर एक तरह से भय का विस्तार ही हुआ है । होली जैसे त्योहारों में महिलाएं अगर घर से बाहर निकलती भी हैं तो उनकी सीमाएं घर के आस पड़ोस तक ही सीमित होती हैं । परिस्थितियों को सामान्य रूप में देखें तो एक तरह से ऐसे त्योहारों में महिलाओं के लिए भय का ही माहौल होता है। एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगी कि विगत पांच दस सालों में लड़कों की जो एक शिक्षित पीढ़ी सामने आयी है उसका व्यवहार लड़कियों के प्रति दोस्ताना होकर थोड़ी उदारता और सम्मानित नज़रिए का रहा है इसलिए उनके साथ लड़कियां सहज होकर होली जैसे त्योहारों को सेलेब्रेट कर लेती हैं। इस सकारात्मक बदलाव के पीछे कुछ हद तक सोशल मीडिया की भूमिका जरूर कही जा सकती है।

                          तुलसी सुकरा


श्रीमती तुलसी सुकरा रायगढ़ शहर के एक सरकारी संस्थान में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं , जिनका मूल निवास स्थान तमनार के निकट नागरा मुड़ा नामक गाँव है। एक विधवा स्त्री के रूप में उनका जीवन संघर्षों से भी भरा हुआ है। इस बातचीत का हिस्सा बनते हुए उन्होंने बताया कि हमारे गाँव में होली त्यौहार स्त्री पुरुष , लड़के लड़की सब एक साथ मनाते हैं । मेरा अनुभव ऐसा कभी नहीं रहा कि किसी पुरूष ने किसी स्त्री के साथ होली त्यौहार के अवसर पर कभी गलत व्यवहार किया हो । हाँ यह जरूर है कि शहरों में इस तरह की घटनाएं आज हमें सुनने को मिलती हैं । ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए ।


                           कनक चौहान

सुश्री कनक चौहान शहर के एक सरकारी विद्यालय में शिक्षिका हैं और उनका निवास स्थल सोनूमुड़ा क्षेत्र अंतर्गत आता है । एक रचनात्मक और अध्ययन शील शिक्षिका के रूप में बच्चों के बीच उनकी पहचान है । बातचीत के दौरान कनक ने बताया कि सोनूमुड़ा क्षेत्र में होली त्यौहार के अवसर पर हम तीन दिन घर से बाहर नहीं निकल पाते क्योंकि क्षेत्र का माहौल बहुत दूषित रहता है । बहुत जरूरी काम से निकलना भी पड़ा तो मन में भय व्याप्त रहता है । कई बार अप्रिय स्थितियों का सामना भी करना पड़ जाता है । इन 132 सालों में भी गांधी जी ने महिलाओं के साथ व्यवहार को लेकर बदलाव की जो उम्मीद जतायी थी वह अभी भी पूरी नहीं हो सकी है।



                               ऋतु बसंत साव

श्रीमती ऋतु बसंत साव शहर के पास स्थित गोवर्धनपुर गाँव के सरकारी स्कूल की रचनात्मक और जागरूक शिक्षिका हैं। आकाशवाणी रायगढ़ में नैमित्तिक उद्घोषिका के रूप में भी उन्होंने काम किया है। उनसे भी हमने इस सम्बन्ध में बात की । उनका कहना था कि विगत दस पंद्रह सालों में एक परिवर्तन जरूर आया है कि अब लडकियां भी अपने आस पड़ोस में होली खेल लेती हैं । पर आज भी उनके लिए ऐसा कोई स्वस्थ माहौल नहीं है कि वे घर से थोड़ा दूर जाकर होली त्यौहार को अपनों के साथ सेलेब्रेट कर सकें । इसके पीछे एक कारण यह भी समझ में आता है कि माता पिता लड़कियों के मन के भीतर बसे भय को निकालने की कोशिश के बजाय टोका टाकी करके उसे बनाये रखने का माहौल ही पैदा करते हैं। होली जैसे त्यौहार को सेलेब्रेट करने के लिए लड़कियों के माता पिता को उनके साथ सहयोगात्मक व्यवहार जरूर करना चाहिए,इससे परिस्थितियां बदलेंगी।

                            प्रतिमा शर्मा

प्रतिमा शर्मा एक कुशल गृहिणी हैं और उनका निवास शहर के बोईरदादर क्षेत्र के एक कालोनी अंतर्गत  है । इस बातचीत का हिस्सा बनते हुए प्रतिमा शर्मा ने अपना पुराना अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस इलाके के दूरदराज के निचले मोहल्लों में होली त्यौहार पर बहुत खराब माहौल रहता है । लोगों को , खासकर अशिक्षित युवा पीढ़ी को शराब के नशे में धुत्त रहकर महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करते हुए आज भी देखा जा सकता है ।हाँ,  समय के साथ कुछ बदलाव जरूर हुए हैं । लडकियाँ भी अपनी सुरक्षा और अधिकार  को लेकर थोड़ा सचेत हुई हैं।सूचना तंत्र का एक हल्का सा दबाव भी अपराधों को रोकने के लिए निर्मित हुआ है,फिर भी जिस तरह का स्वस्थ माहौल त्योहारों के समय होना चाहिए,वैसा वातावरण इन 132 सालों में हम नहीं बना पाए हैं।

                               सुप्रिया देवांगन 

स्थानीय प्रोडक्शन की यू ट्यूब फिल्मों  और वीडियो एल्बम में बतौर अभिनेत्री काम करते हुए रायगढ़ शहर में चर्चित सुप्रिया देवांगन से भी हमने बात की।उन्होंने कहा कि समय के साथ बदलाव तो जरूर आया है।पुरूषों के साथ  काम करते हुए अब उतनी असहजता महसूस नहीं होती जैसी असहजता आज से बीस साल पहले महिलाओं के मन में हुआ करती थी । इसके बावजूद लड़कियों को लेकर लोगों के नज़रिए में और बदलाव की जरूरत है। होली जैसे त्योहारों पर आज भी महिलाएं भयग्रस्त रहती हैं । वे स्वछंदता के साथ खुले मन से आज भी घर से नहीं निकल पातीं जो कि एक चिंतन का बिषय होना चाहिए। क्या हम सब मिलकर एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण नहीं कर सकते? क्या हममें वो इच्छा शक्ति अब नहीं रह गई है? मेरे मन में ये कुछ सवाल हैं, जो अनुग्रह के माध्यम से मैं लोगों के ऊपर छोड़ती हूं।

-------

प्रस्तुति: रमेश शर्मा , मो.7722975017

टिप्पणियाँ

  1. ब्लॉग बहुत सुंदर और गुणवत्ता पूर्ण सामग्री से सुसज्जित है। यह परिचर्चा बहुत वैचारिक और उच्च स्तर की है। इस तरह की परिचर्चाओं से समाज में एक बदलाव भी आता है। बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार। हमेशा की तरह आपने हमारा हौसला बढ़ाया और रचनात्मक रूप से हमें प्रेरणा दी।

      हटाएं
  2. विश्व महिला दिवस पर एक सार्थक पहल बधाई भईया💐💐💐💐💐💐

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. विवेक भाई साहब हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है ।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इन्हें भी पढ़ते चलें...

डॉ. चंद्रिका चौधरी की कहानी : घास की ज़मीन

  डॉ. चंद्रिका चौधरी हमारे छत्तीसगढ़ से हैं और बतौर सहायक प्राध्यापक सरायपाली छत्तीसगढ़ के एक शासकीय कॉलेज में हिंदी बिषय का अध्यापन करती हैं । कहानियों के पठन-पाठन में उनकी गहरी अभिरुचि है। खुशी की बात यह है कि उन्होंने कहानी लिखने की शुरुआत भी की है । हाल में उनकी एक कहानी ' घास की ज़मीन ' साहित्य अमृत के जुलाई 2023 अंक में प्रकाशित हुई है।उनकी कुछ और कहानियाँ प्रकाशन की कतार में हैं। उनकी लिखी इस शुरुआती कहानी के कई संवाद बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं । चाहे वह घास और जमीन के बीच रिश्तों के अंतर्संबंध के असंतुलन को लेकर हो , चाहे बसंत की विदाई के उपरांत विरह या दुःख में पेड़ों से पत्तों के पीले होकर झड़ जाने की बात हो , ये सभी संवाद एक स्त्री के परिवार और समाज के बीच रिश्तों के असंतुलन को ठीक ठीक ढंग से व्याख्यायित करते हैं। सवालों को लेकर एक स्त्री की चुप्पी ही जब उसकी भाषा बन जाती है तब सवालों के जवाब अपने आप उस चुप्पी में ध्वनित होने लगते हैं। इस कहानी में एक स्त्री की पीड़ा अव्यक्त रह जाते हुए भी पाठकों के सामने व्यक्त होने जैसी लगती है और यही इस कहानी की खूबी है। घटनाओ...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

डॉक्टर उमा अग्रवाल और डॉक्टर कीर्ति नंदा : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर रायगढ़ शहर के दो होनहार युवा महिला चिकित्सकों से जुड़ी बातें

आज 8 मार्च है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस । आज के दिन उन महिलाओं की चर्चा होती है जो अमूमन चर्चा से बाहर होती हैं और चर्चा से बाहर होने के बावजूद अपने कार्यों को बहुत गम्भीरता और कमिटमेंट के साथ नित्य करती रहती हैं। डॉ कीर्ति नंदा एवं डॉ उमा अग्रवाल  वर्तमान में हम देखें तो चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला चिकित्सकों की संख्या में  पहले से बहुत बढ़ोतरी हुई है ।इस पेशे पर ध्यान केंद्रित करें तो महसूस होता है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला डॉक्टरों के साथ बहुत समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। उन पर काम का बोझ अत्यधिक होता है और साथ ही साथ अपने घर परिवार, बच्चों की जिम्मेदारियों को भी उन्हें देखना संभालना होता है। महिला चिकित्सक यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ है और किसी क्षेत्र विशेष में  विशेषज्ञ सर्जन है तो  ऑपरेशन थिएटर में उसे नित्य मानसिक और शारीरिक रूप से संघर्ष करना होता है। किसी भी डॉक्टर के लिए पेशेंट का ऑपरेशन करना बहुत चुनौती भरा काम होता है । कहीं कोई चूक ना हो जाए इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है । इस चूक में  पेशेंट के जीवन और मृत्यु का मसला जुड़ा होता है।ऑपरेशन ...

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन 15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन  15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में  हक की आवाज़ और एकजुटता के  संकल्प के साथ जुटेंगे संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी रायगढ़। 14 अप्रैल 2025:  छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी, अपने हक और सम्मान की लड़ाई को एक नया आयाम देने जा रहे हैं। दिनांक *15 अप्रैल 2025, मंगलवार को स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल सभागृह, बिलासपुर* में आयोजित होने वाले *राज्य स्तरीय महासम्मेलन* में प्रदेश के 33 जिलों से हजारों कर्मचारी एकत्र होंगे। यह महासम्मेलन केवल एक सभा नहीं, बल्कि वर्षों की उपेक्षा, आश्वासनों की थकान और अनसुनी मांगों का साहसिक जवाब है। माननीयों का स्वागत, मांगों का आह्वान इस ऐतिहासिक आयोजन में छत्तीसगढ़ के यशस्वी स्वास्थ्य मंत्री *श्री श्याम बिहारी जयसवाल जी, श्री अमर अग्रवाल जी, श्री धरमलाल कौशिक जी, श्री धर्मजीत सिंह जी, श्री सुशांत शुक्ला* जी सहित अन्य गणमान्य विधायकों और जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। इनके समक्ष संविदा कर्मचारी अपनी मांगो...

गाँधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक

गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह...

21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024 (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न

डेंटल चिकित्सा से जुड़े तीन महत्वपूर्ण ब्रांच OOO【Oral and Maxillofacial Surgery,Oral Pathology, Oral Medicine and Radiology】पर 21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024  (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न हुआ. भारत के सिल्वर सिटी के नाम से प्रसिद्ध ओड़िसा के कटक शहर में 21st National OOO Symposium 2024  का सफल आयोजन 8 मार्च से 10 मार्च तक सम्पन्न हुआ। इसकी मेजबानी सुभाष चंद्र बोस डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक ओड़िसा द्वारा की गई। सम्मेलन का आयोजन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन ऑफ इंडिया, (AOMSI) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल पैथोलॉजिस्ट (IAOMP) के सहयोग से इंडियन एकेडमी ऑफ ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी (IAOMR) के तत्वावधान में किया गया। Dr.Paridhi Sharma MDS (Oral Medicine and    Radiology)Student एससीबी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक के ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की मेजबानी में संपन्न हुए इस नेशनल संगोष्ठी में ओरल मेडिसिन,ओरल रेडियोलॉजी , ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी और ओरल प...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...