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रायगढ़ के एक विरले पाठक से जुड़ीं स्मृतियाँ रतन सिंह विरदी (21 सितम्बर 1933-26 अप्रेल 2015)

रतन सिंह विरदी

(21 सितम्बर 1933-26  अप्रेल 2015)

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रतन सिंह विरदी जी को गुजरे 9 साल हो गए। आज  उनका जन्म दिवस है । वे रायगढ़ के उन विरले लोगों में से रहे जिन्हें किताबें पढ़ने का शौक जीवन के अंत तक  रहा। वे नई नई किताबें ढूंढकर पढ़ते थे और कई बार खरीदकर डाक से मंगवाते भी थे।अच्छी वैचारिक और साहित्यिक किताबें पढ़ने का शौक ही उन्हें भीड़ से अलगाता था। कई बार उनसे जिला लाइब्रेरी में मुलाकातें हो जातीं थीं। कई बार उनके नवागढ़ी राजापारा स्थित घर पर मिलने भी जाना होता। उनकी प्रेरणा से कई बार हम जैसे आलसी लोगों के माध्यम से रायगढ़ में वैचारिक  गोष्ठियां भी हुईं और उनके विचारों की दुनियां के करीब जाने का हमें अवसर भी मिला। कम संसाधनों के बावजूद किताबों से प्रेम करने वाले व्यक्ति मुझे बाहर और भीतर से हमेशा सुंदर लगते हैं । रतन सिंह उन्हीं लोगों में से थे जिनकी पूंजी किताबें हुआ करती हैं। ज्यादा कुछ तो नहीं, खुले शेल्फ में उनके घर में बस किताबें ही दिखाई देती थीं। उन्हें कहानी एवं कविताओं की बेहतर समझ थी। वे कहानी, कविता एवं अन्य वैचारिक मुद्दों पर भी अक्सर चर्चा किया करते थे। एक गंभीर , वैचारिक और स्वाभिमानी व्यक्ति के रूप में उनका व्यक्तित्व हमें  आकर्षित करता था। जीवन के अंत तक  शारीरिक श्रम करके अपने लिए रोजी रोटी जुटा लेने की मुहिम में उनके जीवन का संघर्ष हमेशा गतिमान रहा । एक साधारण आदमी के जीवन में जो संघर्ष होते हैं,  उन तमाम संघर्षों का उन्होंने अंत तक सामना किया। 75-77 की उम्र में वे समय निकाल कर अक्सर मेरे घर भी अपने बाईसकिल से आ जाया करते थे। उनका आना मुझे हमेशा अच्छा लगता रहा। उन्हें गंभीर और वैचारिक बातें ही पसंद आती थीं। इधर उधर की बातों में कभी उनका विश्वास नहीं रहा। उनका यह आचरण मुझे आकर्षित करता था। कई गंभीर मुद्दों पर वे स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में यदा-कदा आलेख भी लिखा करते थे , जिन्हें पढ़ते हुए हमें उस वक्त लगता था कि सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर उनकी कितनी पैनी नजर है।हमें उनकी उपस्थिति एक साहित्यिक माहौल के होने का आभास देती थी । उनके जाने के बाद हमारे भीतर का वह  आभास भी जैसे उनके साथ चला गया। आज जबकि वे नहीं हैं , उन जैसे सजग पाठकों की कमी हर समय महसूस होती है। रायगढ़ जैसे छोटे शहर में उनकी कमी को भर पाना कभी भी संभव नहीं है । उनके जन्म दिवस पर हार्दिक नमन

🙏💐

रमेश शर्मा

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गाँधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक

गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह...

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