सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024 (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न

डेंटल चिकित्सा से जुड़े तीन महत्वपूर्ण ब्रांच OOO【Oral and Maxillofacial Surgery,Oral Pathology, Oral Medicine and Radiology】पर 21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024  (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न हुआ.

भारत के सिल्वर सिटी के नाम से प्रसिद्ध ओड़िसा के कटक शहर में 21st National OOO Symposium 2024  का सफल आयोजन 8 मार्च से 10 मार्च तक सम्पन्न हुआ। इसकी मेजबानी सुभाष चंद्र बोस डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक ओड़िसा द्वारा की गई। सम्मेलन का आयोजन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन ऑफ इंडिया, (AOMSI) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल पैथोलॉजिस्ट (IAOMP) के सहयोग से इंडियन एकेडमी ऑफ ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी (IAOMR) के तत्वावधान में किया गया।

Dr.Paridhi Sharma MDS (Oral Medicine and    Radiology)Student

एससीबी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक के ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की मेजबानी में संपन्न हुए इस नेशनल संगोष्ठी में ओरल मेडिसिन,ओरल रेडियोलॉजी , ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी और ओरल पैथोलोजी क्षेत्र से जुड़े देश के नामचीन डॉक्टर्स तथा पीजी स्टूडेंट्स शामिल हुए।

8 मार्च से 10 मार्च तक चले इस कांफ्रेंस में डेंटल क्षेत्र से जुड़े इन विषयों पर कई प्रोफेसर्स डॉक्टर्स एवं डेंटल के पीजी स्टूडेंट्स के लेक्चर्स हुए ।इन तीनों क्षेत्र की डेंटल चिकित्सा से जुड़ी चुनौतियों पर शोधपरक संवाद ने इस आयोजन की सार्थकता को प्रमाणित किया।


इस नेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने पहुंचीं रायगढ़ की डॉक्टर परिधि शर्मा जो वर्तमान में ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी में स्नातकोत्तर MDS की सेकेंड ईयर स्टूडेंट हैं,ने अपना अनुभव साझा करते हुए जानकारी दी है कि इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कांफ्रेंस में शामिल होकर बहुत सारी एकदम नई जानकारियां मिलीं। वर्तमान में डेंटल ट्रीटमेंट का क्षेत्र बहुत व्यापक हुआ है और दिनों दिन इसमें नई-नई चीजें जुड़ रही हैं। इस क्षेत्र में नित नए-नए शोध हो रहे हैं,नए नए महंगे तकनीकी यंत्रों का उपयोग इसमें किया जा रहा है , जिनकी जानकारियां इस तरह के कॉन्फ्रेंस में शामिल होकर ही हम अर्जित कर पाते हैं। ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी, मेक्सिलोफेसियल सर्जरी, ओरल पैथोलॉजी क्षेत्र से जुड़े देश के महत्वपूर्ण डॉक्टरों के लेक्चर्स सुनकर हमको बहुत लाभ हुआ है। कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज कैंपस में स्थित ब्रांच एससीबी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल द्वारा इस आयोजन की मेजबानी  बहुत शानदार ढंग से की गई । यहां शामिल होकर कई नए अनुभवों को हमने अर्जित किया । एक डॉक्टर की हैसियत से देश के अलग अलग जगहों से आए डेंटल पीजी स्टूडेंट्स से  मिलना जुलना, उनके अनुभव जानना भी चिकित्सकीय पेशे के लिए आज जरूरी है जो ऐसी जगहों से ही हमें हासिल हो पाता है।


टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

आईआईटीयन बाबा अभय सिंह कुम्भ के पर्याय बन गए हैं। यह भारतीय समाज के लिए क्या चिंतन का बिषय नहीं होना चाहिए?

आईआईटीयन बाबा अभय सिंह कुम्भ के पर्याय बन गए हैं। यह भारतीय समाज के लिए क्या चिंतन का बिषय नहीं होना चाहिए? - रमेश शर्मा भारतीय समाज का आधुनिक नज़रिया भौतिक सुख सुविधाओं को , संसाधनों को जीवन के एक बड़े विकल्प के रूप में देखता है। इनके जो स्त्रोत होते हैं उस पर उसकी गहरी नज़र होती है। जब भौतिक संसाधनों एवं अर्थ संसाधनों के इन स्त्रोतों को कहीं अस्वीकृत होते हुए वह देखता है तो उसका पूरा ध्यान वहीं केंद्रित हो जाता है मानों कोई अचंभित घटना घटित हो गयी है। IIT, IIM, AIIMS या ICAI जैसे संस्थानों से पढ़कर निकले युवाओं को यह समाज आर्थिक संसाधनों, तमाम सुख सुविधाओं के स्त्रोतों के रूप में देखता है इसलिए इस तरफ दौड़ने की एक होड़ सी मची रहती है। बहुत से युवा यहाँ से पढ़ लिखकर कुछ समय नौकरी करते हैं, फिर उनमें जीवन के प्रति एक विरक्ति का भाव उत्पन्न होने लगता है।आर्थिक संसाधनों तथा सुख सुविधाओं के स्रोतों के रूप में देखे जा रहे इस दुनिया से  विरक्त होकर जब युवा आध्यात्मिक दुनिया की ओर पलायन करते हैं तो एक तरह से इस दुनिया के प्रति  उनकी अस्वीकृति सामने आती है।इस अस्वीकृति से भारतीय समाज के उस ...

गजेंद्र रावत की कहानी : उड़न छू

गजेंद्र रावत की कहानी उड़न छू कोरोना काल के उस दहशतजदा माहौल को फिर से आंखों के सामने खींच लाती है जिसे अमूमन हम सभी अपने जीवन में घटित होते देखना नहीं चाहते। अम्मा-रुक्की का जीवन जिसमें एक दंपत्ति के सर्वहारा जीवन के बिंदास लम्हों के साथ साथ एक दहशतजदा संघर्ष भी है वह इस कहानी में दिखाई देता है। कोरोना काल में आम लोगों की पुलिस से लुका छिपी इसलिए भर नहीं होती थी कि वह मार पीट करती थी, बल्कि इसलिए भी होती थी कि वह जेब पर डाका डालने पर भी ऊतारू हो जाती थी। श्रमिक वर्ग में एक तो काम के अभाव में पैसों की तंगी , ऊपर से कहीं मेहनत से दो पैसे किसी तरह मिल जाएं तो रास्ते में पुलिस से उन पैसों को बचाकर घर तक ले आना कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी। उस चुनौती को अम्मा ने कैसे स्वीकारा, कैसे जूतों में छिपाकर दो हजार रुपये का नोट उसका बच गया , कैसे मौका देखकर वह उड़न छू होकर घर पहुँच गया, सारी कथाएं यहां समाहित हैं।कहानी में एक लय भी है और पठनीयता भी।कहानी का अंत मन में बहुत उहापोह और कौतूहल पैदा करता है। बहरहाल पूरी कहानी का आनंद तो कहानी को पढ़कर ही लिया जा सकता है।       ...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी : हम दोनों

स्व.रघुनंदन त्रिवेदी मेरे प्रिय कथाकाराें में से एक रहे हैं ! आज 17 जनवरी उनका जन्म दिवस है।  आम जन जीवन की व्यथा और मन की बारिकियाें काे अपनी कहानियाें में मौलिक ढंग से व्यक्त करने में वे सिद्धहस्त थे। कम उम्र में उनका जाना हिंदी के पाठकों को अखरता है। बहुत पहले कथादेश में उनकी काेई कहानी पढी थी जिसकी धुंधली सी याद मन में है ! आदमी काे अपनी चीजाें से ज्यादा दूसराें की चीजें  अधिक पसंद आती हैं और आदमी का मन खिन्न हाेते रहता है ! आदमी घर बनाता है पर उसे दूसराें के घर अधिक पसंद आते हैं और अपने घर में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! आदमी शादी करता है पर किसी खूबसूरत औरत काे देखकर अपनी पत्नी में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! इस तरह की अनेक मानवीय मन की कमजाेरियाें काे बेहद संजीदा ढंग से कहानीकार पाठकाें के सामने प्रस्तुत करते हैं ! मनुष्य अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं रहता, उसे हमेशा लगता है कि दुनियां थाेडी इधर से उधर हाेती ताे कितना अच्छा हाेता !आए दिन लाेग ऐसी मन: स्थितियाें से गुजर रहे हैं , कहानियां भी लाेगाें काे राह दिखाने का काम करती हैं अगर ठीक ढंग से उन पर हम अपना ध्यान केन्...

परिधि शर्मा की कहानी : मनीराम की किस्सागोई

युवा पीढ़ी की कुछेक   नई कथा लेखिकाओं की कहानियाँ हमारा ध्यान खींचती रही हैं । उन कथा लेखिकाओं में एक नाम परिधि शर्मा का भी है।वे कम लिखती हैं पर अच्छा लिखती हैं। उनकी एक कहानी "मनीराम की किस्सागोई" हाल ही में परिकथा के नए अंक सितंबर-दिसम्बर 2024 में प्रकाशित हुई है । यह कहानी संवेदना से संपृक्त कहानी है जो वर्तमान संदर्भों में राजनीतिक, सामाजिक एवं मनुष्य जीवन की भीतरी तहों में जाकर हस्तक्षेप करती हुई भी नज़र आती है। कहानी की डिटेलिंग इन संदर्भों को एक रोचक अंदाज में व्यक्त करती हुई आगे बढ़ती है। पठनीयता के लिहाज से भी यह कहानी पाठकों को अपने साथ बनाये रखने में कामयाब नज़र आती है। ■ कहानी : मनीराम की किस्सागोई    -परिधि शर्मा  मनीराम की किस्सागोई बड़ी अच्छी। जब वह बोलने लगता तब गांव के चौराहे या किसी चबूतरे पर छोटी मोटी महफ़िल जम जाती। लोग अचंभित हो कर सोचने लगते कि इतनी कहानियां वह लाता कहां से होगा। दरअसल उसे बचपन में एक विचित्र बूढ़ा व्यक्ति मिला था जिसके पास कहानियों का भंडार था। उस बूढ़े ने उसे फिजूल सी लगने वाली एक बात सिखाई थी कि यदि वर्तमान में हो रही समस्याओं क...

डॉक्टर परिधि शर्मा की कहानी - ख़त

  शिवना नवलेखन पुरस्कार 2024 अंतर्गत डॉक्टर परिधि शर्मा के कहानी संग्रह 'प्रेम के देश में' की पाण्डुलिपि अनुसंशित हुई है। इस किताब का विमोचन फरवरी 2025 के नयी दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में शिवना प्रकाशन के स्टाल पर  किया जाएगा । यहाँ प्रस्तुत है उनकी कहानी  'ख़त' कहानी:    ख़त डॉ . परिधि शर्मा _______________ रात की सिहरन के बाद की उदासी ठंडे फर्श पर बूंद बनकर ढुलक रही थी। रात के ख़त के बाद अब कोई बात नहीं बची थी। खुद को संभालने का साहस भी मात्र थोड़ा-सा बच गया था। ख़त जिसमें मन की सारी बातें लिखी गईं थीं। सारा आक्रोश , सारे जज़्बात , सारी भड़ास , सारी की सारी बातें जो कही जानी थीं , पूरे दम से आवेग के साथ उड़ेल दी गईं थीं। ख़त जिसे किसी को भी भेजा नहीं जाना था। ख़त जिसे किसी को भेजने के लिए लिखा गया था। कुछ ख़त कभी किसी को भेजे नहीं जाते बस भेजे जाने के नाम पर लिखे जाते हैं। खिड़की के कांच के उस ओर खुली हवा थी। हवा के ऊपर आकाश। पेड़ पौधे सबकुछ। आजादी। प्रेम में विफल हो जाने के बाद की आजादी की तरह। खिड़की के पास बैठे हुए आकाश कांच के पार से उतना नंगा नहीं...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...