दिल्ली। 23 सितंबर 2023।शनिवार।
साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित राजकमल चौधरी सम्मान इस बार हमारे समय के महत्वपूर्ण, सम्मानित वरिष्ठ कथाकार एवं परिकथा जैसी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका के संपादक शंकर जी को प्रदान किया गया । यह आयोजन गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में शनिवार को सम्पन्न हुआ।
मंचस्थ लोगों में अध्यक्ष डाॅ.विश्वनाथ त्रिपाठी, जानकी प्रसाद शर्मा, नीलमाधव चौधरी, राजकुमार शर्मा, पुरस्कृत कथाकार शंकर और हरियश राय थे। मंच का सफल संचालन कथाकार महेश दर्पण ने किया।
आरंभ राजकमल चौधरी की कविताओं से हुआ, जिसका वाचन उनके पुत्र नीलमाधव चौधरी ने किया। इसबार के निर्णायक जानकी प्रसाद शर्मा ने शंकर जी के व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। अमूमन अध्यक्ष का भाषण सबसे आखीर में होता है, लेकिन विश्वनाथ त्रिपाठी जी ने बीच में ही अपना आशीर्वचन दे दिया और वे चले गए। 92 वर्ष की उम्र में उनका आ जाना ही बङी बात थी।
वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि शंकर ने अपने रचनाकाल में बहुत से लोगों से बहुत कुछ संग्रह किया है।यह विशेषता शंकर के लेखन को खास बनाती है।तमाम रचनाकारों और घटनाक्रमों से कुछ न कुछ संग्रह करते हुए भी शंकर अपनी रचनाओं में शंकर बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि शंकर की रचनाओं को पढ़ते हुए ना तो शिल्प के बारे में पता चल पाता है और ना ही लेखक की धारणा का।ऐसा करना हर किसी लेखक के बस की बात नहीं है।
गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित इस समारोह में वरिष्ठ आचोलक विश्वनाथ त्रिपाठी, साहित्यकार राजकुमार शर्मा और जानकी प्रसाद शर्मा ने स्मृति चिह्न, अंगवस्त्र और 21,000 रुपये की सम्मान राशि प्रदान करके कहानीकार शंकर को सम्मानित किया।
कथाकार शंकर ने सम्मान पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि यह उनके जीवन का पहला पुरस्कार है और इसे पाकर वे गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. अपने लेखन के बारे में शंकर ने कहा कि शुरूआती दिनों में वे चेखव की कहानियों से बहुत प्रभावित हुए।चेखव को पढ़ते हुए उन्होंने तय किया कि वे चेखव की तरह चुस्त कहानी लिखेंगे। रचना को बेवजह विस्तार नहीं देंगे।शंकर ने कहा कि वे उर्दू कहानियों के पाठक रहे हैं।उर्दू कहानियों से उन्होंने भाषा और संवाद की रवानगी को आत्मसाथ किया।मोहन राकेश से उन्होंने रचनाओं में विजुअल पैदा करना सीखा। इस तरह शंकर ने अपनी रचनाओं के लिए चेखव से संक्षिप्ता, उर्दू से भाषा और मोहन राकेश से रचना में दृश्य को सजग करने की कला सीखी।
शंकर की कहानियों पर कथाकार हरियश राय ने विशेष टिप्पणी करते हुए कहा कि वह मौजूदा दौर के एक ऐसे जरूरी रचनाकार हैं जिनसे नई पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है।
अंत में महेश दर्पण ने सबके प्रति आभार व्यक्त करते हुए यह कहा कि जो रचेगा वही बचेगा।
कार्यक्रम के बाद बातचीत में मदन कश्यप ने कहा कि कोरोना के बाद अब सबकुछ बदल गया है। अब तो जो बचेगा वही रचेगा। इस अवसर पर डाॅ.अमरेंद्र मिश्र ने भी अपनी बातें रखीं। डाॅ. अब्दुल बिस्मिल्लाह, प्रेम तिवारी, गौरीनाथ, राधेश्याम मंगोलपुरी, नील माधव चौधरी, राकेश रेणु, अशोक मिश्र, आनंदक्राति वर्धन, प्रताप अनम, मुकेशचंद, कमलेश भट्ट कमल, सादतपुर के महेश दर्पण के अलावा रामकुमार कृषक, हीरालाल नागर, निर्दोष त्यागी, राधेश्याम तिवारी, कौशल कुमार आदि भी चर्चा में उपस्थित थे।
राजकमल चौधरी सम्मान और कथाकार शंकर का चयन
कवि-संपादक विष्णु चंद्र शर्मा द्वारा मित्रनिधि के माध्यम से प्रारम्भ किया गया यह सम्मान दो वर्ष के अंतराल में प्रदान किया जाता है।यह सम्मान अब तक इब्बार रब्बी, पंकज बिष्ट और विजेन्द्र को प्रदान किया जा चुका है।
इस बार के निर्णायक वरिष्ठ आलोचक जानकी प्रसाद शर्मा का कहना था -
"वरिष्ठ कथाकार शंकर विगत पाँच दशकों से सृजनरत हैं। आठवें दशक के साथ शुरूआत करने वाले प्रगतिशील धारा के कहानीकारों में उनका अहम मक़ाम है। अब तक उनके छह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। 1988 में प्रकाशित पहले कहानी-संग्रह 'पहिए' ने उन्हें एक व्यापक जन सरोकारों के कथाकार के रूप में शिनाख़्त दी। इसके बाद 'मरता हुआ पेड़' (2001), 'जगो देवता जगो' (2019), 'एक बटा एक' (2021), 'बत्तियाँ' (2022) और 'सैल्यूट' (2023) संग्रह प्रकाश में आये। सत्तर के दशक की उनकी आरंभिक कहानियों में प्रतिरोध का जो स्वर विद्यमान है, वह आगे की यात्रा में और प्रखर होता गया है। उनके पास नये बनते हुए सामाजिक यथार्थ की जटिलताओं को समझने की अंतर्दृष्टि है। विशेषतया बदलते हुए कृषि-संबंधों को अपने जाने-पहचाने पात्रों के जीवन के माध्यम से तरजीह देने वाले चंद श्रेष्ठ कहानीकारों में उनका शुमार किया जाता है। एक वस्तुपरक दृष्टि और प्रयोजन के साथ सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य का निरीक्षण और उसकी प्रभावशाली कलात्मक अभिव्यक्ति उनकी कहानियों की बड़ी विशेषता है। वे अपनी रचनाओं में कथा-कथन के नये प्रयोगों के प्रति स्वयं को खुला रखते हुए कहानी के माध्यमगत वैशिष्ट्य का पूरा ध्यान रखते हैं। निश्चय ही उनके लेखन ने कहानी की सृजन परंपरा में कुछ नये आयामों का इज़ाफ़ा किया है। शंकर के रचनाकार व्यक्तित्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि वे विगत पचास वर्षों से लघु पत्रिका आंदोलन से जुड़े रहे हैं।नियतकालीन और अनियतकालीन सभी साहित्यिक लघु पत्रिकाओं ने जनतांत्रिक साहित्यिक संस्कृति की फ़िज़ा बनाने में जो योगदान दिया, वह अविस्मरणीय है। इस फ़िज़ा के निर्माण की प्रक्रिया में हमारे समय के अन्य प्रतिबद्ध लेखक-संपादकों की भाँति शंकर की भी अहम भूमिका रही है।"
अनुग्रह की ओर से वरिष्ठ कथाकार शंकर को बधाई।
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