1.मीठा जादूगर
छुट्टी का दिन था |
गाँव के बच्चे मैदान में खेल रहे थे | अचानक डमरू की आवाज सुनाई पड़ी तो बच्चे
उछलकर चिल्लाने लगे - "जादू वाला आया ...जादू वाला आया |"
बच्चे उसकी ओर दौड़
पड़े | बच्चों ने उसे घेर लिया | बच्चे उसने कहने लगे - "बिसरन बाबा जादू
दिखाओ ... बिसरन बाबा जादू दिखाओ |
अचानक रामू ने
जादूगर से पूछा - "बिसरन बाबा आप इतने दिनों तक कहाँ थे ?"
"बिसरन बाबा
क्या आपको हम बच्चों की याद नहीं आयी ?" - सुबोध ने बाबा से दूसरा सवाल कर
दिया
जादूगर बहुत थका हुआ
दिख रहा था | इस बार उसके शरीर पर साफ सुथरे कपड़े भी नहीं थे | वह देखने से बीमार
भी लग रहा था | उसके पैरों में टूटी हुई चप्पल देखकर मीना को तकलीफ हुई | वह भीतर से थोड़ा उदास महसूस करने लगी |
ज्यादातर बच्चों को
जादू देखने से मतलब था | पर मीना चाह रही थी कि इस बार बिसरन बाबा को बच्चों की ओर
से थोड़े पैसे मिल जाएं |
मीना ने सुनीता की
तरफ इशारा करते हुए कहा - जादू देखने से पहले चलो हम सभी अपने-अपने घरों से कुछ
पैसे ले आएं |
सुनीता ने बाक़ी
बच्चों से भी घर से कुछ पैसे लाने को कहा |
उसकी बातें सुन कुछ बच्चे
घर की ओर दौड़े | कुछ बच्चे मैदान पर ही जमे रहे | उन्हें तो बस जादू देखने से ही
मतलब था | इस बीच बिसरन बाबा ने अपना गमछा बिछाकर वहीं मैदान में अपना आसन बिछा
लिया और वे थोड़ी देर वहीं लेट गए |
मीना घर से लौट आयी
थी |
वहीं पास में दो बड़े
बच्चे बातें कर रहे थे - "जादू देखने के लिए भला कौन पैसे देगा? हमने तो नहीं
बुलाया | बिसरन बाबा अपनी इच्छा से गाँव आते हैं और जादू दिखाते हैं "
मीना ने उनकी बातें
सुनीं | सुनकर उसे थोड़ा दुःख हुआ |
वह उन बच्चों से
कहने लगी - " बिसरन बाबा गरीब हैं |
जरूरत मंद व्यक्ति हैं | जादू दिखाते हैं तो उसमें भी उन्हें मेहनत लगती है| मेहनत
के बदले कुछ तो उन्हें मिलना चाहिए |"
इस बीच गोपाल आ गया
| उसके हाथ में पांच रूपये का सिक्का था | मीना से वह कहने लगा - दीदी दीदी ! आज
मैंने चाकलेट नहीं खरीदा |यह पैसे मैं बिसरन बाबा को दूँगा | उनका जादू मुझे अच्छा
लगता है |
और भी बच्चे अपने
अपने घरों से लौटने लगे | सबके हाथों में कुछ न कुछ पैसे थे | बिसरन बाबा ने अपना
जादू का पिटारा खोल लिया |
उसने सबसे पहले रूमाल
निकाला और कहने लगा - "जादू की रानी ! चल सभी बच्चों के लिए इस रूमाल से एक
एक चाकलेट निकाल |"
बिसरन बाबा ने रूमाल
पकड़कर अपने हाथों को घुमाया | उस रूमाल से
सचमुच तीस चालीस चाकलेट निकल आए |बच्चों को बहुत मजा आया | बच्चे जोर से ताली
बजाने लगे |बिसरन बाबा ने सब बच्चों के हाथों में एक एक चाकलेट दिया और खाने को
कहा | बच्चे चाकलेट खाने लगे | चाकलेट खाकर मीना जान गयी कि यह जादू नहीं है | यह
सचमुच के चाकलेट हैं जो बिसरन बाबा बच्चों के लिए शहर से लेकर आए थे | सारे के
सारे चाकलेट बच्चों से उनके प्रेम को दर्शा रहे थे | बच्चों और बिसरन बाबा के बीच का प्रेम कितना
मीठा हो गया था |
मीना ने बिसरन बाबा
की तरफ देखकर कहा - "चाकलेट कितने मीठे हैं बाबा | आप तो एकदम मीठे जादूगर
निकले |"
2.लापरवाह दोस्त
अनुराग को मम्मी ने कई बार समझाया कि परीक्षा के
समय अपना नोटबुक किसी को नहीं दिया करते | उसने मम्मी की बातों को हमेशा हल्के में
लिया |उसके कई दोस्त ऐसे थे जो नोटबुक बनाने में पूरी तरह लापरवाह थे|परीक्षा के
ठीक पहले उन्हें याद आता कि पढ़ने के लिए नोटबुक कितने जरूरी हैं |
परीक्षा जब नजदीक आती तो लापरवाह दोस्तों को अनुराग
याद आने लगता |
वे उससे नोटबुक लेते और फोटो कॉपी करवा कर झट से लौटा
देते |
जल्दी लौटा देने के कारण उसे भी दोस्तों को नोटबुक
देने में कोई असुविधा महसूस नहीं होती थी | आखिर वे सभी उसके करीबी दोस्त थे |
दोस्तों की सहायता करनी चाहिए यह बात उसने अपनी दादी से सुन रखी थी |
दादी ने उसे कई किस्से सुना रखे थे | उनमें एक
किस्सा यह था कि एक बार एक लड़की अपनी परीक्षा फीस भर नहीं पा रही थी तो सब सहेलियों
ने मिलकर उसकी फीस भर दी थी | वह एक जिम्मेदार लड़की थी |उसे सब चाहते थे |वह अपना हर काम बड़ी जिम्मेदारी से करती थी | ठीक
परीक्षा के कुछ दिन पहले उसके पिता की जब मृत्यु हो गयी तो उस पर विपत्ति का पहाड़
टूट पड़ा| परिवार में कमाने वाला चला गया | घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी |
सहेलियों ने उसकी आर्थिक सहायता की थी और उस लड़की का भला हो गया था |यह किस्सा
अनुराग के मन में घर कर गया था |उसके मन पर इस किस्सा का प्रभाव इतना गहरा था कि
अपने साथियों की सहायता करना वह जरूरी समझने लगा था |
आखिर मम्मी नोटबुक देने से क्यों मना करती है ?
यह सवाल उसे बेतुका लगता | किसी की सहायता कर देने में क्या बुराई है यह सोचकर वह
मम्मी की बातें हमेशा टाल देता |
इस बार वह धोखा खा गया था | मम्मी की बातें आज
उसे याद आने लगीं थीं | दादी भी अपनी जगह सही थी और मम्मी भी अपने जगह सही थी |बस
उसने ही दोनों की बातों को ठीक से नहीं समझा था |
इस साल की वार्षिक परीक्षा के कुछ दिनों पूर्व एक
दोस्त उसका नोटबुक मांगकर ले गया था | उसकी लापरवाही के कारण उसके घर के एक छोटे बच्चे के हाथ वह नोटबुक लगी और उसने उस
नोटबुक को खेलते-खेलते पास के कुँए में फेंक दिया | नोटबुक कुँए के पानी में भीगकर
पानी के अन्दर चला गया था |
अनुराग की पूरी मेहनत पानी में मिल गयी थी |
दोस्त का तो कोई नुकसान नहीं हुआ पर नोटबुक नष्ट हो जाने की वजह से अनुराग परेशान
हो उठा था |
उसे इस घटना से सबक मिली कि सहायता जरूर करो पर
उसकी सहायता करो जो उस सहायता के योग्य हो |
दादी के किस्से में सहायता करने की बात जरूर थी
पर उस किस्से में यह बात भी छुपी थी कि सहायता हमेशा योग्य व्यक्ति की ही की जानी चाहिए जो उसका
हकदार हो | मम्मी की बातों में यह रहस्य था कि सहायता करने में कहीं ऐसा न हो कि
हम खुद का कोई नुकसान करा बैठें | बिना सोचे समझे सहायता करने की वजह से अनुराग ने
आज खुद का नुकसान करा लिया था |
आज उसके खुद के अनुभव ने मम्मी और दादी की बातों
को गहराई से समझने की एक नयी दृष्टि उसे दे दी थी |
उसने सोचा कि आगे वह उन्हीं दोस्तों की
सहायता करेगा जो जिम्मेदारी पूर्वक उस सहायता की इज्जत रखेंगे |
- रमेश शर्मा
92 श्रीकुंज , बोईरदादर , रायगढ़
(छत्तीसगढ़) पिन 496001
मो. 7722975017
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