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रमेश शर्मा की कहानी 'खाली जगह'


           हर से तीस किलोमीटर दूर जंगल के भीतर एक छोटा सा गांव कुरेमाल  जहां पिछले तीस  सालों से रामदीन  गुरुजी स्कूल मास्टरी करते हुए इतिहास बना चुके हैं। उनकी सेवा की जो उम्र है वही उम्र उनके इस स्कूल की भी है। न रामदीन  गुरुजी को अपने सेवाकाल में सरकार की ओर से कोई तरक्की मिली, न इस विद्यालय के इतिहास में तरक्की का कोई नया अध्याय जुड़ा.... हां इतना जरूर हुआ कि रामदीन गुरूजी के स्वयं के खर्चे से दूसरे दिन ही सही दूर के एक बस स्टैंड में उतर कर लोगों के हाथों से सरकते हुए इस गांव तक अखबार पहुंच जाता है जिससे देश दुनिया का हाल सबको वे बताते रहते हैं।शहर से ज्यादा दूर ना होकर भी अपनी भौगोलिक बनावट के कारण इस गांव को विकास के नक्शे में ढूंढ पाना अब तक यहां के लोगों के लिए एक सपना ही रहा है। शायद इसलिए यहां के सीधे-साधे लोग इस जमाने में भी सपनों की उड़ान नहीं भरते जहां से कोई कहानी शुरू हो सके।

 


      रामदीन  गुरुजी का एक सपना है कि कम से कम उनके रिटायरमेंट तक इस गांव की मेड़ें और पगडंडियाँ सड़कों का रूप ले सकें । शहर तक आसानी से लोगों का आना जाना हो सके । इस छोटे से गांव में जीवन की असीम संभावनाएं हैं पर यहां की गरीबी देखकर भी वे कभी-कभी अत्यंत दुखी एवं उदास हो उठते हैं ।अखबार में जब वे देश दुनिया की खबरें पढ़ते हैं तो उन्हें आश्चर्य होता है , यहां जबकि अभी भी एक वक्त की रोजी -मजूरी कमा कर लोग लाते हैं तभी घर का चूल्हा जलता है तो दूसरी तरफ कारपोरेट सेक्टर में महीनों में लाखों की तनख्वाह अर्जित करने वालों की दुनिया से भी वे परिचित होते हैं। इन तीस सालों की मास्टरी में असमानता की इतनी गहरी खाई को देखना उन्हें चकित करता है। हर आदमी के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की एक नदी बहती है जहां आदमी नहाता है, तैरता है और डूबकी भी लगाता है । कभी-कभी नदी उसे इतनी दूर बहा कर ले जाती है जहां से आदमी के लिए लौटना संभव नहीं। मास्टर जी के जीवन में बहने वाली नदी भी उन्हें कई कई बार दूर बहा कर ले जा चुकी है ।उनकी जीवटता ही है कि वे अब तक फिर से जीवन की ओर लौटते रहे हैं और अब तक इस गांव में डटे हुए हैं ... पर हाल ही की घटना ने मास्टर जी को तोड़ कर रख दिया है। मास्टर जी के जीवन में बहने वाली नदी उन्हें इतनी दूर बहा कर ले आई है कि शायद ही अब वे लौट सकें।

 

      घटना की शुरुआत वहां से होती है जब फूलमती नाम की एक छोटी सी बच्ची बीमार पड़ी । चौथी कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची जब कई कई दिनों तक स्कूल नहीं पहुंची तो मास्टर जी ने उसकी खोज खबर ली ।उन्हें पता चला कि कई दिनों से वह बुखार से पीड़ित है ।  गांव में चिकित्सा की कोई सुविधा ना होने के कारण बच्ची का बुखार क्रॉनिक हो गया है । फूलमती के घर की हालत यह है कि उसके पिता दिहाड़ी  पर काम करने वाला मजदूर है । एक वक्त का कमा कर लाता है तो कहीं घर का चूल्हा जलता है । बच्ची की हालत यह है कि अगर उसे शहर ले जाकर इलाज नहीं करवाया गया तो उसकी जान भी जा सकती है । सारी परिस्थितियों को देखते हुए मास्टर जी का दिल नहीं माना , वे फूलमती के पिता रामेश्वर के हाथ में 10 के 30 नोट थमाते हुए शहर के डॉक्टर दिवाकर मिश्रा को दिखाने की जिद करने लगे।

   अगली सुबह रामेश्वर अपनी बेटी को साइकिल के कैरियर पर बिठा असिसते हुए 30 किलोमीटर की दूरी तय कर शहर पहुंचा है । उसकी साइकिल भी ऐसी कि पैडल के रबर पैड तक गायब।उसमें सिर्फ लोहे के बीच की नाल भर शेष थी जहां खाली पैर जोर लगाने से रामेश्वर के पांवों में दर्द भी हो रहा था।  

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      बाएं पैर की चप्पल की पट्टी रास्ते में टूट जाने के कारण चप्पलों को उसने अपने थैले में डाल रखा था । इतना कुछ तकलीफ उठा कर भी बेटी के इलाज की आस ने उसके भीतर थोड़ी ताकत पैदा कर दी थी ।भरी धूप  में बीमार बेटी को इस पुरानी साइकिल पर बिठा शहर के मिश्रा डॉक्टर के क्लीनिक तक पहुंचने का संतोष उसकी आंखों में साफ झलक रहा था।वह देख रहा था यहां काफी भीड़ है । एक बड़ा सा हॉल  है जहां बीस-तीस कुर्सियां लाइन से लगी हैं जिसमें पेशेंट बैठे हुए हैं।दीवारों पर लगी मानव सेवा की आदमकद तख्तियां सबकी नजरें अपनी ओर खींच रही हैं ।एक कोने में काले कांच की दीवारों से सुसज्जित एक ए.सी. कमरा है जहां डॉक्टर मिश्रा का चेंबर है। कमरे के बाहर पेशेंट के नामों का रजिस्टर लिए टेबल के पीछे चेयर लगाकर एक असिस्टेंट बैठा हुआ है जिसके चेहरे की बेरुखी वहां हॉल में इस तरह फैल रही है जैसे पेशेंट की आंखों में धूल या तिनका गिराने वाली हो । यह सब देखते हुए डरते डरते कोने की सबसे आखिरी सीट पर रामेश्वर बैठ गया ।उसने फूलमती को अपनी गोदी में बिठा लिया जो बुखार से निढाल सी हो रही थी | रामेश्वर को कुछ सूझ नहीं रहा कि वह क्या करे | बगल की सीट पर बैठे एक बीमार बुड्ढे से वह पूछ बैठा-  “क्या करना होगा?

“अरे मरीज का नाम लिखा दो और दो-तीन दिन तक दौड़ो, डॉक्टर से भेंट हो गई तो ठीक है नहीं तो तुम्हारी किस्मत !” -- बूढ़े की झल्लाहट  भरी आवाज सुनकर ऊँघ रही फूलमती जाग गई ।

“इसका नाम लिखाना है बाबू” -- आवाज सुनकर पहले तो वह असिस्टेंट रामेश्वर को घूर कर देखा फिर नाम लिखने के बजाय उसकी नजरें रामेश्वर के ऊपर इस तरह तैरने लगीं जैसे वे कुछ ढूंढ रही हों । मैले कुचैले कपड़े,सर पर गमछे की पगड़ी, शरीर पर मटमैली बनियान , बिना चप्पल वाले खुरदुरे पांवों को देखकर असिस्टेंट के चहरे की बेरूखी थोड़ी और बढ़ गई । कुछ भी ढूँढ़ पाने की नाउम्मीदी में वह घुड़कने के अंदाज में कहने लगा – “ बैठ जाओ अभी , थोड़ा टैम लगेगा !”

पता नहीं फिर उसे क्या सूझा कि फूलमती का नाम दर्ज करते हुए उसने रामेश्वर को बताया कि अगर इमरजेंसी है तो डॉक्टर की फीस पांच सौ रुपये या फिर दो सौ रूपये जमा कर दो और कल शाम तक देख लेना। अगर पारी आ जाए तो ठीक नहीं तो परसों आना पड़ेगा । वह सब कुछ इतनी आसानी से कह गया जैसे किसी के सामने ताश के पत्ते फेंट रहा हो ।

रामेश्वर ने अपने थैले में रखे पैसों को टटोला जहां मास्टरजी द्वारा दी गए दस दस के तीस नोट पड़े थे | कुछ मैले कुचैले दस दस के पांच नोट जो उसके पास थे ,उन्हें भी वह साथ ले आया था । डॉक्टर से इमरजेंसी मीटिंग की जरूरत तो सबसे ज्यादा उसे है पर पांच सौ रूपये ....? वह फूलमती की तरफ देखा जो निढाल होकर कुर्सी पर ही लेट गई थी ।

“बापू... पानी” उसे आते देखकर दूर से ही उसने आवाज दी । वह सुना और वहीं कोने पर रखे फ़िल्टर का नल खोलकर पास रखी एक पुरानी सी ग्लास में पानी ले आया ।उसने अपने थैले को टटोला , जिसमें घर से ही रखा पारले जी का एक बिस्किट पेकेट भी था जिसे फाड़कर उसने बेटी के हाथ में दिया। वहां से कुछ बिस्किट निकालकर फूलमती चबाने लगी ,जब वह थक गई तब उसे उसने पानी पिलाया और ग्लास को फिर वहीं रख आया। इस बीच उसकी नजरें फिर उस असिस्टेंट की तरफ चली गईं । संभ्रांत नजर आने वाले लोगों से वह बड़े अदब से बातें कर रहा था और इमरजेंसी मीटिंग की फीस लेकर डॉक्टर के चेंबर में जाने का इशारा कर रहा था।

 

     रामेश्वर को कुछ सूझ नहीं रहा था । वह कुछ देर बैठे बैठे सोचता रहा , अगर डॉक्टर साहब बाहर निकलें तो उनके पाँव पकड़ कर बेटी की इलाज की खातिर वह विनती करे ... पर उसकी यह आस भी टूट गई जब उनका असिस्टेंट यह कहकर सबको विदा करने लगा कि साहब लंच पर चले गए अब उनसे कल दस बजे मुलाक़ात होगी।शाम को किसी टूर पर हैं , आज फिर वे नहीं मिल सकेंगे । रामेश्वर थोड़ी देर अवाक रहकर इधर उधर पागलों की तरह झाँकने लगा , कहीं डॉक्टर साहब दिख जाएं , पर उसे क्या पता कि डॉक्टरों के चेंबर से उनके बेडरूम तक एक अंधेरी सुरंग भी बनी रहती है जिससे होकर लोगों से नजरें बचाते वे जब चाहे आ जा सकते हैं । जब पूरा हाल खाली हो गया तब भारी मन से अपनी बीमार बेटी को उसी साईकिल के कैरियर पर बिठा वह घर की ओर लौटने लगा । लौटते समय वह महसूस करता रहा कि शरीर और मन दोनों से वह थका हुआ है।उसके खाली पाँव पैडल पर मुश्किल से पड़ पा रहे हैं । उसके भीतर की ताकत जैसे धीरे धीरे मरती जा रही है । उनके घर पहुँचने के पहले सूरज भी थककर आसमान के पीछे जा चुका था ।

 

     दूसरे दिन फूलमती का बुखार थोड़ा और बढ़ गया था | इलाज की आस में वह फिर उसे साईकिल के कैरियर पर बिठा शहर की ओर निकल रहा था |आज धूप कल से भी तेज थी | निकलते समय वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर  रहा था ... कम से कम आज बिटिया का इलाज हो जाए तो उसे शान्ति मिले | उसके दवा दारू के खर्च की व्यवस्था पर वह चिंता करते जा रहा था | दो सौ रूपए तो डॉक्टर को ही वह दे चुका है | बचे डेढ़ सौ में ही उसे दवा-दारू करनी है | इतने में होगा या नहीं रात भर वह सोचता ही रहा था पर वह तो दो तीन दिन से काम पर भी नहीं गया , तो फिर पैसे ?उसकी चिंता ने उसके भीतर फिर थोड़ी ताकत पैदा कर दी थी | वह असिसते हुए फिर उसी जगह पहुँच आया जहाँ कल से थोड़ी ज्यादा भीड़ थी | कल तो उन्हें कम स कम बैठने की जगह मिल गयी थी, आज तो वह भी नहीं | वे दोनों कुर्सियों के बाद वाली फर्श की खाली जगह पर ही बैठकर अपनी पारी की प्रतीक्षा में असिस्टेंट की ओर कातर भाव से देखने लगे |  

 

     कुछ ही देर बाद कार से उतर कर एक जवान दंपत्ति भी वहां आ पहुंचे | उनके आने से उस हॉल में दवाइयों की उठने वाली गंध की जगह परफ्यूम की तेज सुगंध फैल गई| वह महिला जो पेशेंट कम और तरोताजा ज्यादा लग रही थी हाल के मरीजों को देख कर नाक भौं सिकोड़ रही थी | उन्हें देखकर डॉक्टर का असिस्टेंट थोड़ा परेशान हो उठा |  वह उन से कातर भाव से निवेदन करते हुए बस पाँच मिनट में डॉक्टर से मिलवाने की बात कर रहा था | उनके चेहरे से ऐसे भाव उठ रहे थे जैसे पाँच मिनट भी उन पर भारी पड़ रहे हों  और ठीक पाँच  मिनट बाद बेल बजते ही वे डॉक्टर के चेंबर में प्रवेश कर रहे थे | कांच का वह काला दरवाजा फिर बंद हो गया जिसके खुलने की प्रतीक्षा में रामेश्वर बेचैन हो रहा था | थोड़ी देर बाद बाहर से चाय की दो प्यालियाँ भी अंदर भेजी जा रही थीं | वह मन ही मन ईश्वर को फिर से याद करने लगा | आधे घंटे बाद संभ्रांत दंपति विजेता की तरह बाहर आ रहे थे, उनके पीछे कोई तीसरा भी था जो उन्हें विदा कर रहा था | रामेश्वर अंदाज लगा रहा था कि शायद यही डॉक्टर साहब हैं जिनका चेहरा आज वह देख सका है | उसके भीतर की छटपटाहट थोड़ी और बढ़ गई थी जो फूलमती का नाम पुकारे जाने पर अब कहीं शांत हुई थी |

रामेश्वर बेटी को साथ लेकर दबे सकुचाते डॉक्टर के चेंबर में प्रवेश कर रहा है | उन्हें जाते हुए डॉक्टर का असिस्टेंट फिर घूरने लगा है | ऐसे मरीजों से बख्शीश में दो पैसे मिल पाने की नाउम्मीदी से उसकी झल्लाहट थोड़ी बढ़ गई है |

“हां बोलो क्या हुआ है?”

“इस को बुखार है डॉक्टर साहब”

“कब से?”

“जी सप्ताह भर हो गए!”

“और तुम आज इसे लेकर आ रहे हो... कम से कम 24 घंटे पहले आना था !”

“जी कल भी आया था साहब पर आप...!” बोलते बोलते रामेश्वर देख रहा था जो चेहरा फूलमती को चेकअप करते उसके पीछे था अचानक उसकी ओर  तन गया है

“तुम मुझ पर इल्जाम लगा रहे हो बेवकूफ!”

“जी साहब ऐसी बात नहीं है मैं तो...”

“कितने पैसे लाए हो? इसका तो मलेरिया ब्रेन में चढ़ चुका है!”

“ फीस के दो सौ देने के बाद डेढ़ सौ बचे हैं साहब!”

“ ओह्ह शीट्! क्या तमाशा है ?” बोलते बोलते डॉक्टर एक हाथ से दवाईयों की पर्ची लिखता रहा और दूसरे हाथ से काल बेल बजा दिया | इससे पहले रामेश्वर बेटी को साथ लेकर बाहर निकले एक दूसरा पेशेंट उनकी जगह आ धमका | रामेश्वर के मन में कई प्रश्न तैरने लगे , आखिर डॉक्टर उससे चाहता क्या था ? कहीं खतरे की बात तो नहीं ? डॉक्टर का तेवर देखकर आगे कुछ पूछने की हिम्मत उसकी नहीं हुई | वह बेटी को साथ लेकर पास के एक मेडिकल स्टोर्स में पहुंचा |

“ देखना साहब दवाईयां कितने की हैं ?”

दस दिन का लिखा है चार सौ रुपये की आएगी”-- पर्ची देखकर दुकानदार ने रामेश्वर से कहा और इशारे से पूछा -- दूँ ?

“जी ! तीन  दिन का अभी दे दीजिए, डेढ़ सौ में तो आ जाएंगी न ?

दुकानदार कुछ जवाब दिए बिना ही दवाइयां थमा कर बाकी के बचे पैसे लौटाने लगा |

“दवाइयां लेकर उन्हें अब गांव की ओर लौटना है | तीस किलोमीटर की दूरी भी तय करनी है |” --- रामेश्वर फूलमती को कैरियर पर बिठाते हुए सोचता रहा |

वह दो दिनों से कुछ न कुछ सोच ही तो रहा है | बिटिया ठीक हो जाएगी वह काम पर फिर से जाने लगेगा | फिर  मास्टरजी के पैसे धीरे धीरे लौटा देगा |

“बापू आज आप खुश तो हो ना?” क्योंकि डॉक्टर से हमारी मुलाकात हो गई |

“बापू डॉक्टर क्यों ऐसा कह रहा था कि 24 घंटे पहले आना था हम तो कल भी आए थे ना !”

“बापू डॉक्टर कह रहा था कि मलेरिया ब्रेन में चढ़  गया है | यह मलेरिया क्या होता है बापू ?”

“बापू ओ पैसों के बारे में क्यों पूछ रहा था आपसे?”

दो दिनों से चुप सी रहने वाली फूलमती अचानक सवाल पर सवाल किए जा रही थी | रामेश्वर तेजी से साईकिल असिसने लगा | इससे पहले कि सूरज बादलों की ओट में जा कर छुपे वह गांव पहुंच जाना चाहता था | वे गांव के छोर पर पहुंच भी गए थे |

“बापू मुझे चक्कर आ रहा है बाबू !” कुछ देर चुप रहने वाली बिटिया की आवाज फिर उसे सुनाई पड़ी |

वह सुन पाता इससे पहले ही वह एक तरफ झुक कर गिरने लगी थी जिसे अचानक साईकिल रोककर उसने अपनी छाती से रोका | उस वक्त तेज हवा भी चलने लगी थी | वह साइकिल वहीं छोड़ कर उसे अपनी छाती से चिपका गांव की तरफ दौड़ने लगा | उसकी गति हवा से भी तेज हो गई थी |  घर पहुंच कर उसने बेटी को आंगन में पड़ी खाट पर लिटा दिया,  तब तक उसकी पत्नी भी वहां आ पहुंची थी | उसने बेटी को बाहों में भर लिया जो अब बेहोश पड़ी थी | उसकी आंखें धीरे धीरे एक तरफ झुक आई थीं | वहां अब लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी | मास्टर जी भी वहां आ पहुंचे | उन्होंने फूलमती की नाड़ियों को छूकर देखा जो बंद हो चुकी थीं |

“रामेश्वर तुमने देर कर दी!” --मास्टर जी की आवाज सबने सुनी जो आंगन के उस पेड़ की पत्तियों को देख रहे थे जिन पर घना अंधेरा पसरने लगा था और जो अब पत्तियों और सबके चेहरों पर पसरते  हुए फूलमती के चेहरे पर सदा के लिए पसर जाएगा | रामेश्वर मास्टर जी के पैरों को पकड़ कर रो रहा था और दो दिन की आपबीती सुना रहा था |  इस आपबीती  में रुदन कम और वेदना ज्यादा थी जो मास्टर जी के दिल को बेधती चली जा रही थी | घर लौटते वक्त मास्टर जी के मन में बहुत से सवाल उठ रहे थे | काश वह रामेश्वर को कुछ और पैसे की सहायता कर पाए होते... कम से कम डॉक्टर की इमरजेंसी फीस के बराबर, पर उन्हें क्या पता था कि शहर का इतना मशहूर डॉक्टर इमरजेंसी मरीज की जगह इमरजेंसी फीस की एक नई परिभाषा चिकित्सा सेवा में जोड़ चुका है | डॉ. मिश्रा की तारीफ में अखबारों में आने वाली खबरें क्या महज  प्रचार प्रसार के स्टंट भर नहीं हैं जहां से और धन कमाया जा सके | क्या लोगों की संवेदना इस हद तक मर चुकी है? ऐसे प्रश्न मास्टरजी की नींद उड़ा दिया करते हैं | उन्हें पता है कि आज वे सोएंगे नहीं , देर रात तक जागते रहेंगे |

मास्टरजी अगली सुबह स्कूल की कक्षा में उदास बैठे हुए थे | कक्षा के कोने में उनकी कुर्सी लगी हुई थी जहां बैठे बैठे उनका ध्यान उस जगह पर  बार बार जा रहा था जो बीमार फूलमती के न आने से कई दिनों से खाली थी और अब खाली ही रहेगी | वे एक दूसरी बच्ची को उस जगह बैठ जाने का इशारा करने लगे | ऐसा करते हुए उनके मन में एक सवाल हथौड़े की तरह चोट करने लगा –

“ क्या खाली जगहें कभी भरी जा सकती हैं ?”


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रमेश शर्मा

92 श्रीकुंज , बोईरदादर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

मोबाइल 7722975017,  9752685148

 

टिप्पणियाँ

  1. ओह्ह्ह्ह यथार्थ ऊकेरती बेहद मार्मिक रचना, साधुवाद!
    -नन्दलाल सिंह

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  2. अत्यंत मार्मिक कहानी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत शानदार कहानी। बहुत मार्मिकता से लबरेज कहानी।

    जवाब देंहटाएं

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गांधीवादी विचारों को समर्पित मासिक पत्रिका "गाँधीश्वर" एक लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ के कोरबा से प्रकाशित होती आयी है।इसके अब तक कई यादगार अंक प्रकाशित हुए हैं।  प्रधान संपादक सुरेश चंद्र रोहरा जी की मेहनत और लगन ने इस पत्रिका को एक नए मुकाम तक पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा की है। रायगढ़ के वरिष्ठ कथाकार , आलोचक रमेश शर्मा जी के कुशल अतिथि संपादन में गांधीश्वर पत्रिका का जून 2024 अंक बेहद ही खास है। यह अंक डॉ. टी महादेव राव जैसे बेहद उम्दा शख्सियत से  हमारा परिचय कराता है। दरअसल यह अंक उन्हीं के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। राव एक उम्दा व्यंग्यकार ही नहीं अनुवादक, कहानीकार, कवि लेखक भी हैं। संपादक ने डॉ राव द्वारा रचित विभिन्न रचनात्मक विधाओं को वर्गीकृत कर उनके महत्व को समझाने की कोशिश की है जिससे व्यक्ति विशेष और पाठक के बीच संवाद स्थापित हो सके।अंक पढ़कर पाठकों को लगेगा कि डॉ राव का साहित्य सामयिक और संवेदनाओं से लबरेज है।अंक के माध्यम से यह बात भी स्थापित होती है कि व्यंग्य जैसी शुष्क बौद्धिक शैली अपनी समाजिक सरोकारिता और दिशा बोध के लिए कितनी प्रतिबद्ध दिखाई देती ह...

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन 15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का महासम्मेलन  15 अप्रैल 2025 को बिलासपुर में  हक की आवाज़ और एकजुटता के  संकल्प के साथ जुटेंगे संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी रायगढ़। 14 अप्रैल 2025:  छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी, अपने हक और सम्मान की लड़ाई को एक नया आयाम देने जा रहे हैं। दिनांक *15 अप्रैल 2025, मंगलवार को स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल सभागृह, बिलासपुर* में आयोजित होने वाले *राज्य स्तरीय महासम्मेलन* में प्रदेश के 33 जिलों से हजारों कर्मचारी एकत्र होंगे। यह महासम्मेलन केवल एक सभा नहीं, बल्कि वर्षों की उपेक्षा, आश्वासनों की थकान और अनसुनी मांगों का साहसिक जवाब है। माननीयों का स्वागत, मांगों का आह्वान इस ऐतिहासिक आयोजन में छत्तीसगढ़ के यशस्वी स्वास्थ्य मंत्री *श्री श्याम बिहारी जयसवाल जी, श्री अमर अग्रवाल जी, श्री धरमलाल कौशिक जी, श्री धर्मजीत सिंह जी, श्री सुशांत शुक्ला* जी सहित अन्य गणमान्य विधायकों और जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। इनके समक्ष संविदा कर्मचारी अपनी मांगो...

21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024 (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न

डेंटल चिकित्सा से जुड़े तीन महत्वपूर्ण ब्रांच OOO【Oral and Maxillofacial Surgery,Oral Pathology, Oral Medicine and Radiology】पर 21वें राष्ट्रीय ट्रिपल ओ संगोष्ठी 2024  (21st National OOO Symposium 2024) का आयोजन देश के सिल्वर सिटी के नाम से ख्यात ओड़िसा के कटक में सम्पन्न हुआ. भारत के सिल्वर सिटी के नाम से प्रसिद्ध ओड़िसा के कटक शहर में 21st National OOO Symposium 2024  का सफल आयोजन 8 मार्च से 10 मार्च तक सम्पन्न हुआ। इसकी मेजबानी सुभाष चंद्र बोस डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक ओड़िसा द्वारा की गई। सम्मेलन का आयोजन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन ऑफ इंडिया, (AOMSI) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल पैथोलॉजिस्ट (IAOMP) के सहयोग से इंडियन एकेडमी ऑफ ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी (IAOMR) के तत्वावधान में किया गया। Dr.Paridhi Sharma MDS (Oral Medicine and    Radiology)Student एससीबी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कटक के ओरल मेडिसिन एंड रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट की मेजबानी में संपन्न हुए इस नेशनल संगोष्ठी में ओरल मेडिसिन,ओरल रेडियोलॉजी , ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी और ओरल प...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...