जीवन में कई चीजें बहुत परम्परागत तरीकों से चला करती हैं । ज्यादातर लोग होली या दीवाली जैसे त्योहारों को घर में ही मनाना पसंद करते हैं या यूं कहा जाए कि परम्पराओं से बाहर निकलने की दिशा में वे बहुत अधिक नहीं सोचते । इस तरह न सोचने की निरंतरता में कई बार ऐसा भी होने लगता है कि आदमी इन त्योहारों से ऊबने भी लगता है और इन्हें महज औपचारिकताओं की तरह निभाता चलता है । जीवन में ताजगी बनाये रखने के लिए कई बार हमें परम्पराओं से परे भी जाना पड़ता है । ऐसा हम कभी क्यों नहीं सोचते कि इस बार की दीवाली पिंक सिटी जयपुर में मनाया जाए । इस बार की होली कृष्ण की नगरी जगन्नाथपुरी जैसे खूबसूरत शहर में मनाया जाए । जीवन को खुशनुमा बनाये रखने के लिए इस तरह सोचा जाना भी बहुत आवश्यक है ।
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इस बार की होली में जब रायगढ़ के पर्यटकों को पुरी के समुद्र तट पर होली खेलते हुए देखा तो मेरे मन में इस तरह के कई कई विचार उठने लगे। मन ही मन मैं कल्पना करने लगा कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर में जहाँ कृष्ण स्वयं बसते हैं वहां होली के दृश्य कितने लोक लुभावन होंगे । रायगढ़ से इस बरस की होली मनाने अपने परिवार के साथ गए हमारे मित्र अनिल गुप्ता से आज ही फोन के माध्यम से इस बात को जानने की मैंने कोशिश भी की । उन्होंने बताया कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के परिसर की होली में पर्यटकों और भक्तों की संख्या पर्याप्त होती है । वहां हर चीज बहुत विधि विधान और सलीके से इस तरह होता है कि मन प्रसन्न हो उठता है । वास्तव में इस परिसर में होली जैसे त्योहार को जब हम एक पवित्र माहौल में बहुत शांति के साथ सेलेब्रेट करते हैं तो घर की होली फीकी लगने लगती है । न कोई शोर शराबा न कोई हुडदंग , सब कुछ एकदम शांत माहौल में संपन्न होता है। रंग गुलाल खेलने की परम्परा भी यहाँ एकदम शालीन तरीके से संपन्न होती है। चूँकि यहाँ की होली में आध्यात्म का भाव भी समाहित रहता है इसलिए होली त्यौहार को मनाते हुए भीतर से बहुत आत्मिक शांति भी मिलती है ।
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अनिल गुप्ता आगे बताते हैं कि समुद्र तट का रंग उत्सव भी बहुत शालीन तरीकों से मनाया जा रहा है । आज के होली उत्सव में भी अलग अलग राज्यों से आये हुए पर्यटकों की यहाँ भीड़ है। पर्यटकों की अपनी अपनी टोली है जो बिना किसी को डिस्टर्ब किये आपस में अपनी टोलियों के बीच ही रंग गुलाल खेल रहे हैं । समुद्र तट पर आज जगह जगह टेंट और कुर्सियां लगी हैं । पूरा सेट किराए पर लेकर पर्यटकों की टोलियां उस टेंट और कुर्सियों में जमी हैं । आपस में उनका खाना पीना भी चल रहा है , नाच गाने के साथ वे रंग गुलाल भी आपस में खेल रहे हैं । इस तरह के दर्जनों टेंट और दर्जनों टोलियों से समुद्र तट की होली के रंग बिरंगे दृश्य बहुत शानदार लग रहे हैं । इन सबके बीच समुद्र में उठती तेज लहरों की आवाजें और उनकी खूबसूरती आँखों को अपनी ओर बार बार खींच रही है । हमने जब अनिल गुप्ता से पूछा कि घर की होली और पुरी की होली में क्या फर्क अनुभव हो रहा है ? तब उन्होंने जो कहा, वह बात मुझे उनकी ओर खींच ले गयी । "मन तो करता है कि हर होली को इसी समुद्र तट पर ही हम आकर मनाएं" -अनिल की बातों से उनकी अतिरिक्त खुशी को मैं भीतर तक महसूस कर पाया । अनिल आगे यह भी बताते हैं कि होली त्यौहार के अवसर पर समुद्र के किनारे मछली और मदिरा सेवन करते हुए भी लोग दिख रहे हैं पर किसी तरह की कोई अप्रिय स्थिति यहाँ कहीं नज़र नहीं आ रही है । यहां का प्रशासन बहुत चुस्त और दुरुस्त है। पूरा वातावरण यहाँ का शांत है और होली का यह रंग उत्सव , एकदम उत्सव की तरह लग रहा है ।उत्सव फ्रेंडली माहौल में हम सब यहां होली मना रहे हैं।तो त्योहारों को इस तरह भी मनाया जा सकता है और जीवन में गुम होती ताजगी को फिर से अपने पास बुलाया जा सकता है।
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तो क्यों न जीवन की चली आ रही परम्पराओं से कभी कभार बाहर भी निकला जाए और अगले बरस की होली जगन्नाथ भगवान की नगरी पुरी में मनाया जाए।
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रमेश शर्मा
मो.7722975017
बहुत ही अलग दृष्टिकोण शानदार लेख
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनिल जी।
हटाएंजीवन की यह भी एक सच्चाई है कि परंपराओं से हमलोग परे नहीं जाते पर आपने जो बातें रखी हैं वह स्वागतयोग्य हैं।कभी कभी ऐसा भी किया जाना चाहिए । इस बहाने पर्यटन भी हो जाएगा और रिफ्रेशमेंट भी। आलेख अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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