सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हेमसुंदर गुप्ता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली : एक सुसंस्कृत छवि बिखेरता विद्यालय


बहुत दिन अभी नहीं हुए , सन 2022 का दिसम्बर महीना अभी अभी ही बीता है। वह दिन मेरी स्मृतियों में शेष है । रविवार का दिन था वह और स्व.हेमसुन्दर गुप्त शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली, रायगढ़ के प्रांगण में लगभग 1000 लोग एकत्रित हुए थे। अवसर था इस विद्यालय में पूर्व और वर्तमान में अध्ययनरत विद्यार्थियों और वहां पूर्व और वर्तमान में पदस्थ शिक्षकों के आपसी समागम का।

इस समागम में चार पीढ़ी के लोग शामिल हुए। निमंत्रण पाकर बहुत व्यस्त समय के बावजूद दूर दराज से जिस उत्साह के साथ सम्मेलन में भाग लेने यहां के भूतपूर्व छात्र, यहां की भूतपूर्व छात्राएं, और यहां के भूतपूर्व शिक्षको का आगमन हुआ, उनका यह आगमन विद्यालय के प्रति उनकी श्रद्धा और उनके प्रेम का प्रमाण है। अन्यत्र विवाही गईं यहां पढ़ने वाली पूर्व छात्राओं का उत्साह देखिए कि अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ वे भी यहां दौड़ी चली आईं। छत्तीसगढ़ के कोने कोने जशपुर, जांजगीर, कोरबा से लोग दौड़े चले आए । अपने पुराने सहपाठियों और भूतपूर्व शिक्षकों से मिलने की तीव्र इच्छा ने उनके भीतर की ऊर्जा को उड़ान देकर इस विद्यालय के प्रांगण में उन्हें जैसे उड़न खटोले की तरह उतार दिया।

मैं पूर्व में इसी विद्यालय का छात्र रहा ।सत्र 1980-81,1981-82,1982-83 में मैंने 9वीं से लेकर हायर सेकेंडरी 11वीं की परीक्षा यहां से उत्तीर्ण की ।

नौकरी में आने के बाद कालांतर में स्थानांतरित होकर सन 1992 से 2004 तक हायर सेकेंडरी शिक्षक के रूप में भी मैंने अपनी सेवाएं यहां दी हैं।

जब मैं पहली बार यहां पदस्थ हुआ तो मेरे प्राचार्य डॉक्टर बलदेव थे । उनके जैसा उदारमना एक वरिष्ठ साहित्यकार का सान्निध्य मेरे लिए अत्यंत सुखकर रहा।

दो अलग-अलग कालखंडों  में दो अलग-अलग किस्म के अनुभवों की संपदा मेरे हिस्से इस विद्यालय को लेकर हैं।



कल जब मैं यहां मंच पर उपस्थित था तो मेरी आंखों के सामने चार पीढ़ियां नजर आ रही थीं। मैं बहुत अर्से बाद उनको देख रहा था और उनसे मिलने की तीव्र इच्छा मेरे भीतर उठने लगी थी। यह इच्छा एकतरफा नहीं थी। कुछ समय बाद जब मैं सब से मिलने लगा तो मिलकर लगा कि मुझसे अधिक उत्सुकता मेरे प्रिय विद्यार्थियों और गुरुजनों के भीतर मौजूद है। यह उत्सुकता अमूर्त थी, पर उस अमूर्त उत्सुकता की तीव्रता को, प्रेम में डूबी हुई उसकी गहराई को, मैं बारम्बार महसूस कर रहा था।

मेरी स्थिति तो यह थी कि मैं किसी से बात करने लगता था तब हमारी बात पूरी भी नहीं हुई रहती कि कई कई हाथ चरण स्पर्श करने लगते थे और कई कई मुस्कुराते चेहरे मुझे घेर लेते थे। सबसे मिलने के क्रम में हम आपस में ज्यादा बोल बतिया नहीं पा रहे थे पर उन चेहरों में जो प्रसन्नता और आनंद का भाव था वही हमारे संवाद का माध्यम था।


रायगढ़ पूर्वांचल के गांवों में आते जाते
, मेरे बाद की पीढ़ी के अपने प्रिय छात्र छात्राओं से कभी कभार जब भी मैं मिलता हूँ , उनके व्यवहार की नम्रता,उनकी उदारता, सम्मान के भाव से भरा उनका प्रेम मुझे भावुक कर देता है। सच कहते हुए मुझे गर्व होता है कि आज की बिषम परिस्थितियों में भी अपने कल्चर्ड और क्रिएटिव होने का प्रमाण वे समाज को दे रहे हैं।

उस दिन  का आयोजन पूर्वांचल के युवाओं और उनके मार्गदर्शक गुरुओं की रचनात्मकता का जीवंत उदाहरण है। सांगठनिक तौर पर जिस कर्मठता का परिचय आयोजन समिति की पूरी टीम ने दिया और इतने बड़े आयोजन को सफल कर दिखाया वह सचमुच ऐतिहासिक था ।

सच कहूं तो इस विद्यालय की मिट्टी में ही ऐसा कुछ है कि कुछ अच्छा करने को यह विद्यालय क्षेत्र के लोगों को प्रेरित करता है।


इस मिट्टी का ही चमत्कार है कि उस जमाने में जबकि लड़कियां दूर दराज जाकर पढ़ लिख नहीं पाती थीं
, महापल्ली ग्राम के हेमसुन्दर गुप्त जी ने भूमि दान कर मुष्ठी फण्ड के सहयोग से विद्यालय का भवन खड़ा करवा दिया और फिर हाई स्कूल की शुरुआत हो गयी।

क्षेत्र की मिट्टी का ही कमाल है कि शशिधर पंडा सर ने सांगठनिक शक्ति का प्रयोग करते हुए जन सहयोग से कॉलेज की आधारशिला रख दी और जनसहयोग से आज वह कॉलेज फल फूल रहा है।

उस दिन के आयोजन में जो जन सहयोग मिला , चाहे वह श्रम का सहयोग हो चाहे वह धन का सहयोग हो, वह सहयोग भी अद्भुत है । इस तरह का सहयोग वहीं संभव हो पाता है जहां लोगों के बीच जीवन मूल्य जीवित हों।



चूंकि इस विद्यालय को लेकर मेरे हिस्से दो प्रकार के लंबे अनुभव हैं , इन अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि इन जीवन मूल्यों के जीवित होने के पीछे पूरा श्रेय इस विद्यालय का ही है। उस दिन के आयोजन को सफल बनाने में वर्तमान में अध्ययनरत विद्यार्थियों की रचनात्मकता ने भी इस बात को सबके सामने उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया होगा कि इस विद्यालय ने जीवन मूल्यों की जड़ को आज भी सिंचित कर रखा है। आज भी यहां के विद्यार्थी और शिक्षक कल्चर्ड हैं।

फिलहाल मेरी उम्र 56 साल है । इस उम्र में आकर अब मुझे अनुभव होता है कि विद्यार्थी के रूप में पढ़ाई करते हुए और शिक्षक के रूप में अध्यापन की सेवा करते हुए जीवन के सबसे बेहतरीन वर्ष मैंने इस विद्यालय में व्यतीत किये ।एक शिक्षक की पूंजी उसके पढ़ाए हुए विद्यार्थी ही होते हैं । बेहतर और जिम्मेदार नागरिक के रूप में अगर समाज में उनका प्रतिनिधित्व बेहतर है तो शिक्षक अपने आपको भाग्यशाली समझता है।

मैं भी अपने को उन्हीं भाग्यशाली शिक्षकों में शामिल पाता हूं क्योंकि मेरे सभी विद्यार्थी, जिनसे एक एक कर उस दिन मेरी मुलाकातें हुईं, सबने मुझे अपने उदारमना कर्तब्यनिष्ठ आचरण और मृदु व्यवहार से मुझे आश्वस्त किया कि सामाजिक और पारिवारिक जीवन में उनकी दिशा उसी तरफ है जहां उन्हें होना चाहिए।सबने अपने लिए समाज में एक अच्छी जगह बनाई है।मुझे न जाने क्यों लगता है कि एक विद्यालय के इर्द गिर्द ही जीवन की सांस्कृतिक यात्राएं गतिमान रहती हैं , इसका अंदाज तो तब होता है जब हम किसी दिन जाकर थोड़ा समय वहां बिताते हैं | मैं अब भी कहता हूँ कि कभी जीवन में निराशा हो , कभी थकान महसूस करें तो अपने पढ़े हुए किसी पसंदीदा विद्यालय की दीवारों को जाकर छू आएं , मुझे विश्वास है आपको शुकून मिलेगा |

*

रमेश शर्मा  

 

 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर आलेख ,सचमुच उसदिन का वह दृश्य जिसने भी सशरीर उपस्थिति दी ,कितना गौरवपूर्ण क्षण होगा वह जिसका आपने चित्रण किया ।काबिलेतारीफ

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ ■सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह चलो फिर से शुरू करें ■रमेश शर्मा  -------------------------------------- सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘चलो फिर से शुरू करें’ पाठकों तक पहुंचने के बाद चर्चा में है। संग्रह की कहानियाँ भारतीय अप्रवासी जीवन को जिस संवेदना और प्रतिबद्धता के साथ अभिव्यक्त करती हैं वह यहां उल्लेखनीय है। संग्रह की कहानियाँ अप्रवासी भारतीय जीवन के स्थूल और सूक्ष्म परिवेश को मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में बड़ी तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि उनके दृश्य आंखों के सामने बनते हुए दिखाई पड़ते हैं। हमें यहां रहकर लगता है कि विदेशों में ,  खासकर अमेरिका जैसे विकसित देशों में अप्रवासी भारतीय परिवार बहुत खुश और सुखी होते हैं,  पर सुधा जी अपनी कहानियों में इस धारणा को तोड़ती हुई नजर आती हैं। वास्तव में दुनिया के किसी भी कोने में जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन में सुख-दुख और संघर्ष का होना अवश्य संभावित है । वे अपनी कहानियों के माध्यम से वहां के जीवन की सच्चाइयों से हमें रूबरू करवात...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

ज्ञान प्रकाश विवेक, तराना परवीन, महावीर राजी और आनंद हर्षुल की कहानियों पर टिप्पणियां

◆ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी "बातूनी लड़की" (कथादेश सितंबर 2023) उसकी मृत्यु के बजाय जिंदगी को लेकर उसकी बौद्धिक चेतना और जिंदादिली अधिक देर तक स्मृति में गूंजती हैं।  ~~~~~~~~~~~~~~~~~ ज्ञान प्रकाश विवेक जी की कहानी 'शहर छोड़ते हुए' बहुत पहले दिसम्बर 2019 में मेरे सम्मुख गुजरी थी, नया ज्ञानोदय में प्रकाशित इस कहानी पर एक छोटी टिप्पणी भी मैंने तब लिखी थी। लगभग 4 साल बाद उनकी एक नई कहानी 'बातूनी लड़की' कथादेश सितंबर 2023 अंक में अब पढ़ने को मिली। बहुत रोचक संवाद , दिल को छू लेने वाली संवेदना से लबरेज पात्र और कहानी के दृश्य अंत में जब कथानक के द्वार खोलते हैं तो मन भारी होने लग जाता है। अंडर ग्रेजुएट की एक युवा लड़की और एक युवा ट्यूटर के बीच घूमती यह कहानी, कोर्स की किताबों से ज्यादा जिंदगी की किताबों पर ठहरकर बातें करती है। इन दोनों ही पात्रों के बीच के संवाद बहुत रोचक,बौद्धिक चेतना के साथ पाठक को तरल संवेदना की महीन डोर में बांधे रखकर अपने साथ वहां तक ले जाते हैं जहां कहानी अचानक बदलने लगती है। लड़की को ब्रेन ट्यूमर होने की जानकारी जब होती है, तब न केवल उसके ट्यूटर ...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

'नेलकटर' उदयप्रकाश की लिखी मेरी पसंदीदा कहानी का पुनर्पाठ

उ दय प्रकाश मेरे पसंदीदा कहानी लेखकों में से हैं जिन्हें मैं सर्वाधिक पसंद करता हूँ। उनकी कई कहानियाँ मसलन 'पालगोमरा का स्कूटर' , 'वारेन हेस्टिंग्ज का सांड', 'तिरिछ' , 'रामसजीवन की प्रेम कथा' इत्यादि मेरी स्मृति में आज भी जीवंत रूप में विद्यमान हैं । हाल के दो तीन वर्षों में मैंने उनकी कहानी ' नींबू ' इंडिया टुडे साहित्य विशेषांक में पढ़ी थी जो संभवतः मेरे लिए उनकी अद्यतन कहानियों में आखरी थी । उसके बाद उनकी कोई नयी कहानी मैंने नहीं पढ़ी।वे हमारे समय के एक ऐसे कथाकार हैं जिनकी कहानियां खूब पढ़ी जाती हैं। चाहे कहानी की अंतर्वस्तु हो, कहानी की भाषा हो, कहानी का शिल्प हो या दिल को छूने वाली एक प्रवाह मान तरलता हो, हर क्षेत्र में उदय प्रकाश ने कहानी के लिए एक नई जमीन तैयार की है। मेर लिए उनकी लिखी सर्वाधिक प्रिय कहानी 'नेलकटर' है जो मां की स्मृतियों को लेकर लिखी गयी है। यह एक ऐसी कहानी है जिसे कोई एक बार पढ़ ले तो भाषा और संवेदना की तरलता में वह बहता हुआ चला जाए। रिश्तों में अचिन्हित रह जाने वाली अबूझ धड़कनों को भी यह कहानी बेआवाज सुनाने लग...

फादर्स डे पर परिधि की कविता : "पिता की चप्पलें"

  आज फादर्स डे है । इस अवसर पर प्रस्तुत है परिधि की एक कविता "पिता की चप्पलें"।यह कविता वर्षों पहले उन्होंने लिखी थी । इस कविता में जीवन के गहरे अनुभवों को व्यक्त करने का वह नज़रिया है जो अमूमन हमारी नज़र से छूट जाता है।आज पढ़िए यह कविता ......     पिता की चप्पलें   आज मैंने सुबह सुबह पहन ली हैं पिता की चप्पलें मेरे पांवों से काफी बड़ी हैं ये चप्पलें मैं आनंद ले रही हूं उन्हें पहनने का   यह एक नया अनुभव है मेरे लिए मैं उन्हें पहन कर घूम रही हूं इधर-उधर खुशी से बार-बार देख रही हूं उन चप्पलों की ओर कौतूहल से कि ये वही चप्पले हैं जिनमें होते हैं मेरे पिता के पांव   वही पांव जो न जाने कहां-कहां गए होंगे उनकी एड़ियाँ न जाने कितनी बार घिसी होंगी कितने दफ्तरों सब्जी मंडियों अस्पतालों और शहर की गलियों से गुजरते हुए घर तक पहुंचते होंगे उनके पांव अपनी पुरानी बाइक को न जाने कितनी बार किक मारकर स्टार्ट कर चुके होंगे इन्हीं पांवों से परिवार का बोझ लिए जीवन की न जाने कितनी विषमताओं से गुजरे होंगे पिता के पांव ! ...

परिधि शर्मा की कहानी : मनीराम की किस्सागोई

युवा पीढ़ी की कुछेक   नई कथा लेखिकाओं की कहानियाँ हमारा ध्यान खींचती रही हैं । उन कथा लेखिकाओं में एक नाम परिधि शर्मा का भी है।वे कम लिखती हैं पर अच्छा लिखती हैं। उनकी एक कहानी "मनीराम की किस्सागोई" हाल ही में परिकथा के नए अंक सितंबर-दिसम्बर 2024 में प्रकाशित हुई है । यह कहानी संवेदना से संपृक्त कहानी है जो वर्तमान संदर्भों में राजनीतिक, सामाजिक एवं मनुष्य जीवन की भीतरी तहों में जाकर हस्तक्षेप करती हुई भी नज़र आती है। कहानी की डिटेलिंग इन संदर्भों को एक रोचक अंदाज में व्यक्त करती हुई आगे बढ़ती है। पठनीयता के लिहाज से भी यह कहानी पाठकों को अपने साथ बनाये रखने में कामयाब नज़र आती है। ■ कहानी : मनीराम की किस्सागोई    -परिधि शर्मा  मनीराम की किस्सागोई बड़ी अच्छी। जब वह बोलने लगता तब गांव के चौराहे या किसी चबूतरे पर छोटी मोटी महफ़िल जम जाती। लोग अचंभित हो कर सोचने लगते कि इतनी कहानियां वह लाता कहां से होगा। दरअसल उसे बचपन में एक विचित्र बूढ़ा व्यक्ति मिला था जिसके पास कहानियों का भंडार था। उस बूढ़े ने उसे फिजूल सी लगने वाली एक बात सिखाई थी कि यदि वर्तमान में हो रही समस्याओं क...

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहान...