रायगढ़ अनेक प्रतिभाओं को जन्म देने वाली भूमि रही है। रायगढ़ से लगभग 15 किलोमीटर दूर झलमला नामक गांव में जन्मे प्रोफेसर डॉ दर्शन सिंह बल उन्हीं प्रतिभाओं में से एक रहे हैं जिन्होंने इस भूमि को थोड़ा और समृद्ध किया। तकनीकी क्षेत्र में अध्यापन की विशेषज्ञता के साथ साथ उनके भीतर की वैचारिकी भी उनकी एक खास विशेषता रही है।आज 17 मार्च को उनका जन्म दिन है।उनकी किताब मैं हूँ कौन की वैचारिकी के बहाने उनकी स्मृतियों पर प्रकाश डाल रहे हैं प्रोफेसर हेमचन्द्र पांडेय !
प्रोफेसर हेमचंद्र पांडेय की पहचान लेखक होने के साथ साथ साहित्य के एक गम्भीर अध्येता के रूप में हमेशा से हम सबके बीच रही है।उनकी ओर से लिखे गए इस आलेख के माध्यम से डॉ.दर्शन सिंह बल के व्यक्तित्व और कृतित्व को समझना हमारे लिए थोड़ा और आसान हुआ है। - रमेश शर्मा, संपादक: अनुग्रह.
कोविड की महामारी ने जब हम से उन्हें छीन लिया, तब ऐसा लगा जैसे निविड़ अंधकार में अपने प्रकाश से पथ- प्रदर्शित करने वाले किसी लाइट हाउस की बत्ती अचानक गुल हो गई हो।
बीसवीं सदी के उत्तरार्ध और इक्कीसवीं सदी के पूर्वार्ध के रायगढ़ जिले का इतिहास जिन सपूतों के उल्लेख के बिना अधूरा रहेगा, बल सर उनमें से एक थे। उनके संपर्क में रहे अधिकांश लोगों की तरह मैं भी उन्हें 'बल सर' ही कहता था। देश विदेश में बिखरे उनके बेशुमार शिष्यों, मित्रों और परिचितों के लिए वे 'आदरणीय' अधिक थे या 'प्रेमास्पद' अधिक, यह तय कर पाना मुश्किल है। शायद, इनमें से अधिकतर लोग उन्हें अपने फ्रेंड, फिलासफर और गाइड की तरह याद करना चाहेंगे।
आज, 17 मार्च, उनका जन्म-दिवस है। विगत वर्ष, 2022 को, आज ही के दिन उनकी कविताओं का एक लघु संग्रह प्रकाशित हुआ था; शीर्षक था-'मैं हूं कौन'।
यहां, इस संग्रह की कविताओं की चर्चा करने का उद्देश्य इन कविताओं की समीक्षा करना कदापि नहीं है। लक्ष्य, बस इन कविताओं पर बात करने के बहाने, बल सर के, 'फ्रेंड फिलॉसफर और गाइड' की विशेषताओं वाले, विराट व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं को जिक्र के दायरे में लाना भर है।इस संग्रह की कविताओं में फ्रेंड की तरह 'दोस्ताना' है, फिलासफर की तरह 'चिंतन' है और गाइड की तरह 'मार्गदर्शन' है। बल सर उन थोड़े से लोगों में से थे जो जीवन को ही कलाकृति बना देने में विश्वास रखते हैं। ये कविताएं, उनकी 'साहित्यिकता' से अधिक 'जीवन को ही कला बना देने के उनके दृष्टिकोण' की द्योतक हैं। इस संग्रह की 'संबंध' शीर्षक कविता में उन्होंने यह सवाल उठाया है कि- हमारे संबंध/ इतने घनिष्ठ होते हुए भी/ क्या आल्हादकारी हैं?/ बार-बार/ कलह-सुलह के सिवा/ हमें अब तक क्या मिला है? -इस प्रश्न का समाधान देते हुए भी उन्हें हम देखते हैं-
तो क्यों नहीं/ अपने मन को हम/ इतना सहज सरल कर लेते/ कि एक दूसरे को/ अपनी बाहों में भर लेते।
वे इस सवाल की और गहराई से पड़ताल भी करते हैं- 'मैं हूं कौन' शीर्षक कविता में वे लिखते हैं- नक्षत्र बुझ गए हैं/ दिखता है/ सिर्फ धूमकेतु/ एकाएक हो चले हैं रिश्ते/ सभी बेमानी/ भला कैसे कोई निभाए/ सामने हो जब/ अपना ही क्लोन।
कुल जमा 29 कविताओं के इस संग्रह का आकार भ्रमित करने वाला है। संवेदना और अर्थ की, इतनी गहराई और व्याप्ति है कि गागर में सागर जैसी स्थिति है। 'रावण का दुख' एक अच्छा उदाहरण है- रावण का दुख/ राम के हाथों मरना पड़ा/ या/ राम के हाथों मरने के लिए/ अबला सीता का अपहरण करना पड़ा!
रामायण और महाभारत हमारी साहित्यिक विरासत के शाश्वत महत्त्व के ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों के अनेक पात्रों पर इस संग्रह में बल सर ने अत्यंत छोटी किंतु, अर्थ- पूर्ण कविताएं लिखी हैं। 'ममता' शीर्षक कविता में वे लिखते हैं- न होती/ कैकेई जैसी माता/ तो भरत/ भरत का यश कैसे पाता।
इसी तरह 'अतीत' शीर्षक वाली यह क्षणिका उल्लेखनीय है- कुंती कर्ण संवाद/ पुराने घाव से/ रिसता हुआ मवाद।
कभी-कभी वे शब्दों से खेलते हुए भी दिखते हैं; 'अपभ्रंश' कविता में वे लिखते हैं- युधिष्ठिर/ या/ बुद्धि स्थिर !
इस छोटे से संग्रह में विषयों का इतना अधिक वैविध्य है कि एक तरफ तो निर्मल हास्य उत्पन्न करने वाली कविताएं हैं तो दूसरी तरफ हमारे समय की प्रमुख समस्याओं पर चिंता और चिंतन करती हुई रचनाएं भी हैं। हास्य की बानगी देखिए - पत्नी को दुखी देख/ अम्मा ने स्नेह से पूछा/ बहू /उदास क्यों हो/ पत्नी बोली/ पड़ोसन की सास मर गई है/ वैसे ही पड़ोसन सुखी थी/ मुई उसे और सुखी कर गई है।
शिक्षा जगत की विरुपताओं-विसंगतियों की परतें उधेड़ते हुए वे अद्भुत हास्य और व्यंग्य की सृष्टि करते हैं। उनकी वह लंबी हास्य कविता 'अनुदान' तो संग्रह से ही पढ़ने लायक है जिसमें जंचने आईं उत्तर- पुस्तिकाओं के बंडल के कपड़े से बनियान और चड्डी बनवाकर पहने हुए प्रोफेसर साहब मौजूद हैं !
व्यंग्य की तीखी धार 'साम्यवाद' शीर्षक कविता में मिलती है- शिक्षक/ क्लासलेस सोसाइटी के आदी/और छात्र/ पक्के मार्क्सवादी।
इस छोटे से संग्रह की कविताएं बल सर के बहुआयामी व्यक्तित्व का मानों रचनात्मक साक्ष्य हैं।
वही थे, जो एक तरफ लिख सकते थे- जब से नारी/ इस पृथ्वी पर/ आई है/ पुरुष ने/ अपने प्यार की इकाई पाई है - और दूसरी तरफ, हृदय बने ब्रह्मांड असीम/ बन जाए वसुधा बिंदु/ ममता की धारा दृष्टि में/आंखों में हो करुणा सिंधु।-भी लिखते थे।
कितना भी लिखूं, जानता हूं, बात पूरी हो न सकेगी ! अस्तु, आज उनके जन्मदिवस पर, सदैव संबल देने वाली,उनकी प्रेरक स्मृतियों को सादर नमन।
-हेमचंद्र पाण्डेय
हंडी चौक , रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ दर्शन सिंह बल जी को सादर नमन।
जवाब देंहटाएंदर्शन सिंह बल को उनके जन्मदिन पर इस रूप में याद करना बहुत स्तुत्य कार्य है। लेखक हेमचन्द्र जी एवम अनुग्रह परिवार का आभार कि उन्होंने एक गम्भीर शख्सियत से हमें परिचित करवाया।
जवाब देंहटाएंअनुग्रह के संपादक और हेमचन्द्र जी का विशेष आभार .........पिताजी के कृतियाँ अपने आप में एक युग के दस्तावेज हैं...आगामी 7 मई को उनकी आत्मकथा भी आने वाली है... उनके रायगढ़ के इतिहास और उनके स्कूल जीवन के आलेख हमें रायगढ़ की जीवंत यात्रा की ओर ले जाते हैं .......... उनकी आँखों से रायगढ़ को देखना अद्भुत है...
जवाब देंहटाएंआदरणीय बल सर जैसे प्रेरक व्यतित्व की कृति पर आपका आलेख पठनीय है। साधुवाद 🌹🌹
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित समीक्षा बल सर के व्यक्तित्व व कृतित्व पर हेमचन्द्र जी ने की है।अनुग्रह का इस तरह का प्रयास उन लोगों को जानने में सार्थक साबित हो रहा है जिनके बारे में हम नहीं जान पाते। जिनके बारे में कहीं चर्चा भी नहीं होती हेमचंद्र जी और अनुग्रह संपादक का बहुत-बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंश्री हेमचंद्र पाण्डेय जी के साथ दो तीन बार बल सर से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे अत्यंत सहज सरल, हास्य प्रेमी और वैज्ञानिक सोच तथा मानव जीवन मे गहरी पैठ वाले मिले। विलक्षण व्यक्तित्व के धनी श्री बल सर को विनम्र श्रद्धांजली और नमन।
जवाब देंहटाएंडॉक्टर प्रशांत बैस जी शुक्रिया
हटाएंबल सर के बारे में यह आलेख गागर में सागर है।
जवाब देंहटाएंउनसे मेरी पहली मुलाक़ात जब मैं बिलासपुर कोनी में गुरु घासीदास वि वि में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा था। तब हुई इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों से हमारे हॉस्टल के छात्रों के साथ कुछ मनमुटाव हो गया। बात बल सर तक पहुँची। यूनिवर्सिटी के छात्रों के प्रतिनिधि मण्डल में मैं भी था, तब बल सर ने मेरी उपस्थिति भर से सभी को कन्विंस करके मामले को आगे बढ़ने से न केवल रोका अपितु ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो इस हेतु मुझे सतत संपर्क में रहने के लिए भी कहा। उनकी यह प्रवृत्ति विरलों में पाई जाती है।बल सर जैसी विभूति को सादर नमन🙏🙏🙏🙏
अवस्थी जी शुक्रिया।
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