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अनूप लाल मंडल के उपन्यासों में गांधी दर्शन

अर्य संदेश पत्रिका का मार्च 2023 अंक बिहार के प्रेमचंद के रूप में ख्यात उपन्यासकार स्व. अनूप लाल मंडल पर विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ है।इस अंक में उनके लिखे दर्जनों उपन्यासों को केंद्र में रखकर उन पर बातचीत हुई है। इस अंक से यह आलेख यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है-- 

     अनूप लाल मंडल के उपन्यासों में गांधी दर्शन


अनूप लाल मंडल का औपन्यासिक रचना संसार बहुत व्यापक है । उनके उपन्यासों को पढ़कर लगता है कि उनकी रचना प्रक्रिया में लेखक को अपनी  भीतरी दुनिया में खुद से ही वैचारिक स्तरों पर सघन रूप में कितना तो जूझना पड़ा होगा । लेखक का यह आत्म संघर्ष उनके औपन्यासिक संसार को न केवल पुष्ट करता है बल्कि पाठकों के समक्ष उसे विश्वसनीय भी बनाता है । अंग्रेजी शासन द्वारा पोषित हो रहे तत्कालीन समाज में व्याप्त सामंतशाही व्यवस्था, जहां नारियों को भोग विलाश की वस्तु से अधिक कुछ भी नहीं समझा जाता था , जहाँ उनके लिए समाज में कोई स्पेस ही नहीं था , उस समाज से वैचारिक स्तर पर जूझना भी कम हिम्मत का काम नहीं । अनूप लाल मंडल के उपन्यास जिन संदर्भो को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं वह वैचारिक स्तर पर एक किस्म के  स्वतंत्रता आन्दोलन से कम नहीं है । भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन न केवल अंग्रेजी सत्ता के बिरूद्ध लड़ाई थी बल्कि  स्वतंत्रता पूर्व भारत देश में जो सामाजिक बुराईयाँ सघन रूप में विद्यमान थीं उन  सामाजिक बुराइयों के बिरूद्ध भी एक सशक्त संघर्ष था।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में गांधी जी की केन्द्रीय भूमिका रही । सत्य अहिंसा और प्रेम के माध्यम से अंग्रेजों के बिरूद्ध भारत में जिस लड़ाई का उन्होंने शंखनाद किया , कहना न होगा कि अनूप लाल मंडल जैसे समकालीन रचनाकारों पर भी उसका गहरा असर पड़ा । उदाहरण के तौर पर अनूप लाल मंडल द्वारा रचित कई उपन्यासों में से एक चर्चित उपन्यास 'समाज की वेदी पर' को केंद्र में रखकर गांधी जी के दर्शन के संदर्भ में चर्चा को आगे बढाएं तो बतौर पाठक हम कई अनुभवों से होकर गुजरते हैं । गाँधी जी एक तरफ जमीनी स्तर पर अंग्रेजी सत्ता और तत्कालीन भारत की सामाजिक बुराइयों के बिरूद्ध सड़क की लड़ाई लड़ रहे थे वहीं अनूप लाल मंडल जैसे रचनाकार लेखन के माध्यम से उसी लड़ाई को वैचारिक स्तर पर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध थे । सत्य अहिंसा और प्रेम के प्रति प्रतिबद्धता, जमीनी और वैचारिक दोनों ही स्तर की लड़ाइयों में विद्यमान है क्योंकि उनके बिना किसी भी लड़ाई की धार लोगों में न संप्रेषित हो पाती है न उसका प्रतिफल समाज में परिलक्षित हो पाता है । 'समाज की वेदी पर' जैसे उपन्यास के लेखक अनूप लाल मंडल को समाज में व्याप्त तत्कालीन बिषम परिस्थितियों ने कई स्तरों पर प्रोवोक किया होगा इसलिए भी वे इसकी रचना कर सके।लेखक में गहरी संवेदना हो , वह अन्याय के बिरूद्ध टकराने का माद्दा रखता हो , पीड़ित जन के प्रति वह अपनी जिम्मेदारियों को समझता हो , सबके प्रति उसमें प्रेम का भाव हो तो ये अच्छे लेखक और अच्छे मनुष्य के नैसर्गिक गुण होते हैं । इस अर्थ में भी परखें तो इस तरह का कोई भी संवेदनशील लेखक गांधी दर्शन के बहुत करीब होता है, गांधी दर्शन एक प्रकृति प्रदत्त दर्शन है जो उसे प्रकृति से उपहार स्वरूप प्राप्त होता है । अनूप लाल मंडल में भी यह दर्शन नैसर्गिक रूप में विद्यमान है जो उनके रचना संसार में हर जगह दिखाई पड़ता है ।

समाज की वेदी पर उपन्यास में मुख्यतः तीन ऐसे केन्द्रीय पात्र हैं जिनके माध्यम से पुख्ता तौर पर गांधी दर्शन के प्रभाव को बतौर पाठक महसूसा जा सकता है ।

इन पात्रों में प्रोफेसर धीरेन्द्र कुमार का जीवन चरित्र एक ऐसे इंसान के जीवन संघर्ष को हमारे सामने रखता है जिसके जीवन में अनगिनत संघर्ष हैं पर बिना किसी भय या विचलन के वह पूर्ण प्रतिबद्धता  के साथ सत्य और प्रेम का निर्वहन करता हुआ दिखाई देता है । समाज में व्याप्त अन्याय और कुरूतियों के बिरूद्ध जूझने का माद्दा उसी इंसान में हो सकता है जो निर्भय हो, दूसरों के दुःख दर्द को अपना दुःख दर्द समझ पाने लायक उसमें संवेदना हो, जो किसी से उपहार में मिले प्रेम जैसे जीवन तत्व का सम्मान करते हुए बदले में प्रेम लौटाकर उस प्रेम को आजीवन निर्वाह करना जानता हो..... और एक ऐसे ही इंसान के रूप में प्रो.धीरेन्द्र कुमार नामक पात्र उपन्यास में मौजूद है । 

वेश्यावृत्ति समाज की एक ऎसी बुराई है जो स्त्रियों को समाज में कलंकित करने का काम करती है |इस बुराई का दोषारोपण सिर्फ और सिर्फ स्त्रियों पर करते हुए समाज अपने आपको पाक साफ़ बताने का आदी रहा है।सच तो यह है कि पुरूष सत्तात्मक सोच वाला हमारा समाज ही इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार है जो अपनी हवस दूर करने के लिए इस तरह की बुराइयों को जन्म देता है । दलित पीड़ित  मजबूर स्त्रियाँ न चाहते हुए भी इस बुराई की जद में आती हैं और उनके प्रति लोगों की धारणा ऎसी बन जाती है कि वे हमेशा हेय की नज़र से देखी जाती हैं । ऎसी स्त्रियों से रिश्ता रखना समाज की नज़र में अपमान का बिषय माना जाता है ।

प्रो.धीरेन्द्र कुमार जैसा शख्स समाज के इस अन्याय के बिरूद्ध टकराता है । वह हसीना नाम की एक ऎसी लड़की को अपनी जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार करता है जो वेश्यावृत्ति में संलग्न गुलशन नाम की मुसलमान स्त्री की बेटी है । पाक साफ़ होने के बावजूद किसी वेश्या की बेटी होने मात्र से ही हसीना के प्रति समाज की धारणा क्या रही होगी, इसे बखूबी समझा जा सकता है| इन सबके बावजूद हसीना प्रो. धीरेन्द्र कुमार से बेइन्तहा प्रेम करने लगती है । ध्यात्ब्य है कि  यह प्रेम यूं ही जन्मता नहीं है बल्कि इसके पीछे की भी कहानी निर्भीकता , मानव-मानव के प्रति त्याग और संवेदना की कहानी है । प्रो.धीरेन्द्र कुमार आंधी तूफ़ान से जूझते हुए , जान की बाजी लगाकर 14 वर्ष की हसीना की जब जान बचाते हैं तब उनके बीच की नजदीकियां शुरू होती हैं। दोनों के बीच वैचारिकता समानता और गहरे संवेदनिक सरोकारों से उनके बीच प्रेम का रिश्ता कायम होता है। इस प्रेम को स्वीकार करते हुए प्रो.धीरेन्द्र कुमार भी हसीना से प्रेम करने लगते हैं । एक वेश्या की बेटी जिसके प्रति समाज की धारणा अत्यंत प्रतिकूल हो,उस सामाजिक धारणा के बिरूद्ध जाकर  प्रो.धीरेन्द्र कुमार द्वारा हसीना जैसी लड़की को जीवन में अपनाना पाठकों के मनोमस्तिष्क में  कई बातों को ध्वनित करता है । एक बात तो यह कि गलत धारणा की शिकार एक स्त्री के प्रति जिस सहानुभूति और सम्मान का भाव लोगों के मन में होना चाहिए, उस सम्मान के भाव के प्रति प्रो.धीरेन्द्र कुमार के मन में गहरी आस्था है । यह आस्था समाज में व्याप्त नास्टेल्जिया को हिम्मत के साथ तोड़ने का एक विनम्र प्रयास लगता है । गांधी जी के दर्शन में भी किसी भी समाज से अंतर्संबंधित स्त्रियों के प्रति सम्मान और प्रेम के लिए बड़ी जगह दिखाई पड़ती है । उनके जीवन से जुड़े कई प्रसंगों में स्त्री के प्रति दया ,करूणा ,प्रेम और सम्मान का भाव हम देखते भी हैं।

प्रो.धीरेन्द्र कुमार जब एक मुसलमान स्त्री की बेटी हसीना को जीवन संगिनी के रूप में अपनाते हैं तो एक सन्देश यह भी निकल कर आता है कि जात-पात या धार्मिक भेदभाव पर उनका विश्वास नहीं है।यह प्रसंग भी गांधी जी के सभी धर्मों के प्रति समभाव जैसे दर्शन से मेल खाता है । गांधी जी का दर्शन धार्मिक भेदभाव और जातिगत जड़ता से बाहर निकलने का सन्देश देता है | जातिगत छुआ छूत जैसी बुराइयों का प्रबल विरोध करते हुए उनका दर्शन दलितों को संरक्षण देने का सन्देश भी देता है।

दहेज़ प्रथा जिसे तिलक के रूप में भी हम सब जानते हैं , भारतीय समाज की एक ज्वलंत समस्या आज भी बनी हुई है । यह एक ऎसी बुराई है जिसके कारण समाज में स्त्रियाँ अत्याचार का शिकार होती हैं। इस बुराई के कारण समाज में स्त्रियों को एक वस्तु की नज़र से देखा जाता है और  उनके मान सम्मान को गहरा आघात लगता है।'समाज की वेदी पर' उपन्यास में इस बुराई पर भी प्रतिघात किया गया है । प्रो.धीरेन्द्र कुमार के माता पिता हसीना नाम की लड़की से उसकी शादी का विरोध वेश्या की बेटी होने के कारण तो करते ही हैं, साथ ही साथ विरोध इसलिए भी करते हैं क्योंकि तिलक के रूप में मिलने वाली रकम भी उन्हें यहाँ प्राप्त होने की कोई सम्भावना नज़र नहीं आती है। गांधी जी दहेज़ प्रथा के भी सख्त विरोधी थे, ऐसे में यह घटना भी गांधी दर्शन से जाकर जुड़ती है।

गांधी जी का सत्य, अहिंसा और प्रेम वाला दर्शन उनके लिए एक मजबूत हथियार की तरह था। उसे जीवन में आत्मसात करते हुए वे पूरी निर्भीकता से जीवन संघर्ष पर डटे रहे । उनका व्यक्तित्व सचमुच एक निर्भीक व्यक्तित्व का मॉडल था । जब इस निर्भीक व्यक्तित्व से प्रो.धीरेन्द्र कुमार जैसे पात्रों की तुलना हम करते हैं तो कई समानताएं हमें नज़र आती हैं । प्रेम और सत्यनिष्ठ पथ पर चलने के कारण प्रो.धीरेन्द्र कुमार को जिन मुसीबतों और षड्यंत्रों का जीवन में सामना करना पड़ता है  वह किसी भी इंसान को विचलित कर सकता है, पर उन्होंने जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए जेल जाना और फांसी पर चढ़ना स्वीकार किया |सत्य अहिंसा और प्रेम जैसे जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी |इस तरह का त्याग गांधी दर्शन में ही संभव है।

नारी मन की कोमलता, उसके भीतर पाए  जाने वाले  प्रेम और त्याग की भावना को भी गांधी दर्शन में कई जगह व्याख्यायित किया गया है । हसीना के भीतर मौजूद एक कोमल स्त्री का मन जिस तरह प्रो.धीरेन्द्र कुमार से प्रेम करने लगता है और अंत में जिस त्याग की भावना के साथ वह प्रो.धीरेन्द्र कुमार को अंग्रेजी सत्ता द्वारा फासी दे दिए जाने के बाद अपने जीवन की ईह लीला समाप्त कर लेती है , वह प्रसंग बहुत कारूणिक है।

पत्रोत्तर शैली में रचे गए उपन्यास का समापन अत्यंत कारुणिक है । प्रो. धीरेन्द्र कुमार की मृत्यु उपरांत हसीना के आत्म बलिदान प्रसंग को लेकर पाठकों के मन में कुछ असहमतियां जरूर हो सकती हैं । सवाल उठ सकते हैं कि क्या हसीना को ऐसा करना चाहिए ? आज के संदर्भ में इसे देखने की कोशिश करें तो यह फैसला जरूर अनुचित नज़र आता है पर  इस घटना को समझने बूझने के लिए हमें तत्कालीन समाज की परिस्थितियों को भी बहुत गहराई में जाकर समझने की जरूरत है । प्रो. धीरेन्द्र कुमार द्वारा हसीना जैसी एक वेश्या की बेटी को अपनाए जाने की घटना को समाज यूं ही अपने लिए अपमान का बिषय मानता है,ऐसे में उसके अकेली हो जाने के बाद समाज किस स्तर पर उसका विरोध और शोषण करता उसकी कल्पना की जा सकती है | अनूप लाल मंडल भी हसीना के जीवन में आए इस तूफ़ान को महसूस करते हैं । भविष्य में अकेली होकर उसके संभावित नारकीय जीवन की कल्पना उन्हें ज्यादा डरावनी लगती है । इसलिए हसीना का आत्म बलिदान जैसे प्रसंग को वे उपन्यास में जगह देते हैं। गहरी नज़र से देखें तो हसीना के आत्म बलिदान का यह प्रसंग एक तरह से समाज के आचरण पर भी एक गहरी चोंट की तरह है | समाज के आचरण पर अनेकानेक सवाल उठाने वाला यह उपन्यास पाठकों के मन को भी उद्वेलित करता है क्योंकि पाठक भी उसी समाज का एक हिस्सा है और गाहे बगाहे समाज के उसी आचरण को कालांतर से बरतने का आदी रहा है।अनूप लाल मंडल बतौर उपन्यासकार एक ऐसे रचनाकार के रूप में सामने आते हैं जिसे समाज और उसके दायरे में रह रहे लोगों के मनोविज्ञान की गहरी जानकारी है।हर प्रसंग के माध्यम से उन्होंने लोगों की नब्ज़ टटोलने की कोशिश करी है |

कहना न होगा कि गांधी दर्शन से उनके रचना संसार की नजदीकियां बहुत गहरी हैं।

आलेख : रमेश शर्मा , मो.7722975017

टिप्पणियाँ

  1. अनूप लाल मंडल के उपन्यासों में गांधी दर्शन के तत्वों को खोजना एक महत्वपूर्ण कार्य है। इस आलेख में गांधी दर्शन के तत्वों को विभिन्न प्रसंगों से जोड़कर जिस तरह पाठकों के सामने रखा गया है उससे आलेख महत्वपूर्ण बन गया है। बधाई

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