परिधि की कहानी तोहफा छत्तीसगढ़ में औद्योगिकरण से उपजी भीषण समस्याओं की ओर इशारा करती है। उद्योगों से निकले गर्म राख के निदान की ओर उद्योगों के मालिकों का कोई ध्यान नहीं रहता क्योंकि इसके समुचित निदान में बहुत अधिक खर्च होने की संभावना बनी रहती है। उद्योगों के मालिक गर्म राख को जहां जगह मिलती है वहीं डंफ कर देते हैं । छत्तीसगढ़ में खेल के मैदान और किसानों की जमीनें भी इससे बर्बाद हो रही हैं क्योंकि वहां भी जोर जबरदस्ती यह गर्म राख आए दिन डंफ कर दिया जाता है।
तोहफा कहानी में जन्म से अंधी एक लड़की बबली भी इसी गर्म राख से जलने का शिकार होती है । बच्चे मैदान में खेल रहे होते हैं। उनकी आवाज सुनकर जन्म से अंधी लड़की बबली भी एक लाठी के सहारे मैदान की तरफ बढ़ती है और गर्म राख से झुलस कर उसकी मृत्यु हो जाती है । इस मृत्यु पर नोटिस लेने वाला गांव में कोई नहीं मिलता। उद्योग मालिकों के विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठती । यहां तक कि लड़की के पिता की ओर से भी चुप्पी साध ली जाती है क्योंकि फेक्ट्री का मैनेजर लड़की के पिता के घर आकर अपने बिरूद्ध बन रही सारी परिस्थितियों को पैसे के बल पर मैनेज कर लेता है। बाकी लोग सिर्फ खुसुर फुसुर करते हुए देखते रह जाते हैं।
यह कहानी उद्योगों से उपजी भीषण समस्या की ओर तो इशारा करती ही है साथ ही साथ जन्म से अंधी एक विकलांग लड़की के अस्तित्व की समाज द्वारा की गई उपेक्षा को भी सामने लाती है। उद्योगों द्वारा अवैध तरीके से खेल मैदान में डंफ किये गए गर्म राख में जलकर आठ साल की किसी अंधी लड़की के अस्वाभाविक मौत का जब समाज विरोध नहीं करता तब उसे संवेदनहीन समाज ही कहा जा सकता है। यह कहानी समाज की इस संवेदनहीनता को भी सामने लाकर एक प्रश्न खड़ा करती है।
कहानी : तोहफा
शायद नाली में
बहने वाला पानी नाली से बाहर सड़क पर आकर बहना चाहता था पर सड़क उसके स्तर से
थोड़े ऊंचे स्थान पर थी और उस स्तर तक पहुंचने के लिए उस पानी का अस्तित्व काफी
नहीं था । पर यह चमत्कार था या ईश्वर ने उस काले कलूटे पानी की कामना सुन ली थी कि
नाली के ठीक सामने बने खप्पर की छत वाले कच्चे मकान में रहने वाली राधा बाई ने एक
बाल्टी गंदा पानी छपाक से नाली में उड़ेल दिया और पाने की इच्छा पूरी हो गई। करीब
एक हाथ गहरी नाली से बाहर निकलकर वह सड़क पर बहने लगा। कुछ ही देर में वह सड़क पर बने गड्ढों में अपना
आशियाना बनाने लगा तभी धड़ धड़ की आवाज आई। सामने से एक ऑटो रिक्शा तेजी से आया और
गड्ढे से गुजरते हुए अपने पीछे फव्वारा छोड़ता चला गया और फिर पानी छिटकता हुआ कुछ
ही दूर खड़े एक आवारा कुत्ते पर पड़ा जो अचानक हुए इस प्रहार से थोड़ा सकपका गया
और दुम हिलाता हुआ भाग खड़ा हुआ।
हर रोज की तरह आज
की सुबह भी अखबार वाला निश्चित घरों में अखबार फेंकता निकला। पर आज ठेकेदार के घर
से अखबार लेने कोई बाहर नहीं आया। ठेकेदार के घर में एक अजीब सी शांति छाई हुई थी
जिसकी वजह सारे मोहल्ले में हो रही खुसफुसाहट ही थी। अंदर ही अंदर चल रही इस
खुसफुसाहट की वजह सारे मोहल्ले वासियों के लिए एक गरमा गरम खबर थी। पर ठेकेदार के घर
में बिछी शांति उन लोगों को जरा उदास कर देती जो इस नए मसले पर बहस बाजी के लिए
तैयार बैठे थे। पर वह शांति अगले कई महीनों तक बिछी रहने वाली थी और लोग कुछ दिनों
तक लोक चर्चा करने के बाद उस रहस्यमई शांति के आगे माथा टेक कर खुद भी शांत हो
जाने वाले थे। जो लोग कुछ चंचल थे वे किसी और मसले की तलाश में भिड़ जाने वाले थे।
सब कुछ फिर से
सामान्य हो जाने वाला था मानो कुछ हुआ ही नहीं । मानो यहां कुछ असामान्य होता ही
नहीं। मानो इस दुनिया में घुटनों के ऊपर तक की फ्रॉक पहनने वाली और दिन और रात में
फर्क न कर पाने वाली बबली नाम की किसी लड़की का कभी कोई अस्तित्व रहा ही ना हो।
घोड़ा को घोला और टीम टीम को तिम तिम कहने वाली किसी जन्मांध लड़की का आना या जाना
या फिर किसी एक जगह पर स्थिर रहना या घोड़ा को घोला कहना किसी के भी काम का नहीं
था। जैसे वह कोई गैर जरूरी अस्तित्व रखती थी या फिर रखती ही नहीं थी।
सब कुछ सामान्य
हो जाना सामान्यतया मुमकिन नहीं था। सब कुछ के फिर से सामान्य बन जाने के पीछे कुछ
लोगों के अथक प्रयास थे। सब कुछ फिर से पहले की तरह सामान्य बनाने के लिए कुछ
लोगों ने कोशिश की थी जिससे कुछ और लोग लोकचर्चा के लिए मसाला ना मिल पाने की
शिकायत लेकर उदास हो जाने वाले थे। ठेकेदार को शायद यह मालूम था पर अमुक ढंग से की
गई लोगों की इस शिकायत के प्रति उसकी उदासीनता ने महज आठ वर्ष की बबली के अस्तित्व
को सिर्फ इतना ही हक दिया कि वह जाते जाते लोगों के बीच से चोरी चोरी थोड़ी सी
खुसफुसाहट बटोर सके और किसी लोकल अखबार में अपनी नन्ही उंगलियों के जितनी बड़ी
लंबाई और अपने अंगूठे के बराबर की चौड़ाई वाले एक कोने के कालम की ताजा खबर बन सके
। वह खबर जो न्यूनतम लोगों का ध्यान खींच सकती थी, जिसमें किसी बच्चे के खिलौने और एक अधजले डंडे के पीछे छूट जाने का
कोई जिक्र नहीं था । जिससे किसी लड़की की चीखें सुनाई नहीं पड़ती थीं।
ठेकेदार के घर के
सामने से होकर गुजरने वाले एक बार घर के अंदर झांकने का कष्ट जरूर करते और फिर
निराश होकर निकल जाते और जब राधाबाई की झोपड़ी के सामने से गुजरते तब राधाबाई का
तोता टैं टैं करता, जिसे देख कर कोई
उसके पास जाकर उससे बात करने की चेष्टा करता, कोई गाली बकता हुआ निकल जाता और कोई ऐसे गुजरता की कोई तोता वहां
है ही नहीं, मानो उन्होंने
किसी की टैं टैं सुनी ही
नहीं। वैसे ही जैसे ठेकेदार के घर के आंगन में बने एक छोटे से झूले के नीचे
(जिसमें झूलने वाला अब कोई नहीं) पड़ी एक गुड़िया को लोग नजरअंदाज कर जाते। वह
गुड़िया जिस की दोनों आंखें फोड़ दी गई थीं और जिसकी एक तरफ की चोंटी बंधी थी और
दूसरी तरफ का बाल खुला हुआ था जिससे आखिरी बार उसकी मालकिन ने दिशा मैदान जाने से
पहले खेला था और जिसे कुछ समय बाद घर की नौकरानी कचरे के साथ फेंकने वाली थी। बबली
के सबसे प्रिय खिलौने को कचरे में फेंकने वाली थी, उस कचरे में जो आंगन के एक कोने में जमा था। वह कचरा जिसमें चेरी
के उस पेड़ से टपक टपक कर गिरे
फलों का ढेर था, जिसमें वह झूला
टंगा था , जिसके फलों को
खाने का कष्ट कोई नहीं करता था। जिसके दानों पर खाने वाले का नामोनिशान नहीं था और
उसके फल सड़ जाने को बाध्य थे।
सचमुच सबकुछ
सामान्य हो जाने वाला था। घर में बिछी शांति कुछ ही दिनों में दम तोड़ देने वाली
थी। चहल पहल फिर से घर में शुरू होने वाली थी पर बबली का जिक्र अब नहीं होने वाला
था। अन्य चीजें जस की तस रहने वाली थीं। बबली की मां रोज की तरह स्नान के बाद एक
बार फिर आंगन में लगे एक छोटे से तुलसी के नन्हे से पौधे में लोटा भर पानी डालने
वाली थी। सब कुछ अन्य दिनों की तरह होने वाला था सिवाय एक दिन के जब वह अपना सब्र
खो कर तुलसी के आगे घुटनों के बल पड़ कर दहाड़ें मारकर रोने वाली थी और घर के अन्य
लोग उन्हें दिलासा देने को आने वाले थे। ठेकेदार की आंखों में दुख था या नहीं यह कोई नहीं
कह सकता क्योंकि बिना सच जाने कोई निर्णय लिया नहीं जा सकता था और ना ही किसी निर्णायक या
उसके निर्णय की कोई आवश्यकता यहां थी पर कोई बात थी जिसका प्रमाण किसी के पास नहीं
था। जिनके पास था भी उनके तो मुंह बंद थे।
महीनों बीतने लगे
थे। अप्रैल खत्म हो चला था। मई की आखिरी चंद शामें भी बीतने लगी थीं। कुछ दिनों
बाद शायद बारिश भी होने वाली थी या शायद महीनों बाद भी नहीं होने वाली थी। दूर के
छोटे से घर में रहने वाली वृंदा का बेटा अपनी मां के हाथों पिट रहा था। कारण वह
पढ़ने लिखने के बजाय खेलने कूदने में मगन था और उसकी मां उसे यह कहकर धमकी देते
हुए मार रही थी कि यदि उसने पढ़ाई नहीं की तो वह उसे गांव में छोड़ आएगी जहां वह
बकरियां चराएगा। मार खाता हुआ वह सोच रहा था कि उसके दादाजी की तो ढेरों बकरियां
हैं , वह इतनी सारी
बकरियों को अकेले कैसे चरा पाएगा। जिनकी बकरियां नहीं होतीं वे क्या चराते होंगे? क्या बकरियां खुद नहीं चर सकतीं या
कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि टीवी के रिमोट की तरह बटन दबाते ही बकरियां चरने चली जाएं
और फिर बटन दबाते ही दौड़ कर वापस आ जाएं । तभी उसके सिर पर प्रहार हुआ, चटाक! और वह बकरियों को भूल कर रोने
लगा।
ठेकेदार के घर
में अब अखबार पड़ते ही वह बाहर कुर्सी लगाकर बैठ जाता और अखबार में ही आंखें गड़ा
लेता। अपनी बेटी की मौत का जिक्र वह नहीं करना चाहता था । वह सब कुछ भूलना चाहता
था। उसका मुंह बंद था। मुंह बंद कराने का यह शुभ कार्य खुद मैनेजर साहब ने उसके घर
पधार कर किया था जहां करीब दो घंटे तक घर के लोगों से वार्तालाप करने के बाद वह
अपनी तोंद हिलाता हुआ बाहर निकला था और उनके पीछे-पीछे खुद ठेकेदार निकला था और
उन्हें विनम्रता पूर्वक विदा कर रहा था। उसकी विनम्रता ही दर्शा रही थी कि धन की
शक्ति आज भी बरकरार है। उस घटना से हर कोई अपना पल्ला झाड़ लेना चाहता था जैसे
किसी का कोई दोष ही नहीं था । और समय के हिसाब से शायद सचमुच ही किसी का कोई दोष
नहीं था। ना उस तोंद हिलाने वाले मैनेजर का, ना उस ठेकेदार का, ना ही दहाड़ें मारकर रोने वाली उस मां का और ना ही खुसुर फुसुर करने
वाले लोगों का।
शायद दोष उस
रोशनी का भी नहीं था जो कभी बबली को रास्ता नहीं दिखा पाई। शायद दोष उस शोरगुल का
भी नहीं था जिसे मैदान में खेल रहे बच्चों ने मचाया था और जिसे सुनकर बबली उस ओर
आकर्षित होकर चली गयी थी।
शायद दोष उस डंडे
का था जिसके सहारे चलती हुई वह मैदान की तरफ लपकी थी । वह डंडा जो आधा जल जाने
वाला था और अगले कई दिनों तक मैदान में यूं ही तनहा पड़ा रहने वाला था और अपनी सजा
काटने वाला था। शायद दोष कहीं ना कहीं उस गुड़िया का भी था जिसकी आंखें उसकी
मालकिन ने फोड़ डाली थीं और जो कई दिनों तक चेरी के सड़ रहे फलों के बीच मुंह छुपाकर
पड़ी रहने वाली थी।
क्योंकि यहां
दोषी वही होता है जो सजा पाता है। कि सच्चाई का पता लगने के बाद और सब कुछ पानी की
तरह साफ होने पर भी लोगों को सिर्फ बबली का दोष ही नजर आने वाला था । उसका दोष यह
था कि अपने अंधेपन के बावजूद वह मैदान में खेलने निकली थी। उस मैदान में जहां खतरा
है , उस खतरे में जो
उसके लिए मौत का तोहफा लिए खड़ा है। यहां छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगरों में स्थित
मैदान खतरों से खाली नहीं होते।वहां कहीं भी गर्म राख डंफ कर दिया जाता है।वे बबली
जैसे बच्चों के लिए मौत का तोहफा लिए खड़े होते हैं और उनके डंडों को आधा जलाकर
तन्हा छोड़ सकते हैं। उन मैदानों में किसी बच्चे के खेलने की जगह नहीं होती
क्योंकि वहां तो कारखानों के मालिक गैरकानूनी रवैय्या अपनाते हुए गर्म राख का ढेर
बिछा देते हैं जिसमें बबली के बाद उसके जैसे और कई बच्चे भी झुलस कर मौत की गोद
में सो सकते हैं और जिसके लिए सिर्फ वे और उनके खिलौने, डंडे और झूले ही दोषी ठहरते हैं ।
कि यहां टीम टीम को तिम तिम और घोड़ा को घोला कहने वाले बच्चों को कोई याद नहीं
रखता।
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डॉ. परिधि पेशे से दंत चिकित्सक हैं और इन दिनों दंत चिकित्सा में मास्टर डिग्री MDS की पढ़ाई कर रही हैं।
बहुत अच्छी कहानी।
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