सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्तीसगढ़ विधान सभा के ‘‘रजत जयंती वर्ष "पर मान. राष्ट्रपति महोदया का विधानसभा आगमन - मान. राष्ट्रपति महोदया ने किया विधान सभा के मान. सदस्यों को सम्बोधित

 

छत्तीसगढ़ विधान सभा के ‘‘रजत जयंती वर्ष "पर मान. राष्ट्रपति महोदया का विधानसभा आगमन

- मान. राष्ट्रपति महोदया ने किया विधान सभा के मान. सदस्यों को सम्बोधित

राष्ट्रपति महोदया का सम्मान करते हुए अध्यक्ष डॉ रमन सिंह 

 

           छत्तीसगढ़ विधान सभा के “रजत जयंती वर्ष” के अवसर पर माननीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मु भारत की राष्ट्रपति ने आज विधानसभा के सदन में प्रदेश के मान. विधायकों को संबोधित किया। मान. राष्ट्रपति ने इस अवसर पर सेन्ट्रल हॉल के सामने “कदम्ब” का पौधा लगाया। इस अवसर पर माननीया राष्ट्रपति जी के साथ छत्तीसगढ विधान सभा के सभी मान. सदस्यों का सेन्ट्रल हॉल में समूह छायाचित्र भी हुआ। इस अवसर पर मान. राज्यपाल श्री रमेन डेका, मान. विधान सभा अध्यक्ष  डॉ. रमन सिंह, मान. मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय, मान. नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, मान. संसदीय कार्य मंत्री श्री केदार कश्यप, विधान सभा सचिव श्री दिनेश शर्मा, मान. राष्ट्रपति के सचिव श्रीमती दीप्ती उमाशंकर एवं राज्यपाल के सचिव श्री डॉ. सी. आर. प्रसन्ना आदि उपस्थित थे।

सभा को संबोधित करतीं हुई राष्ट्रपति महोदया 

मान. राष्ट्रपति महोदया इसके पश्चात् चल समारोह के साथ छत्तीसगढ विधान सभा के सभा गृह में पहुंची एवं वहाँ उन्होंने छत्तीसगढ़ विधान सभा के मान. सदस्यों को संबोधित किया। इस अवसर पर मान. राज्यपाल श्री रमेन डेका ने ‘‘सदस्य संदर्भ’’ पुस्तक का विमोचन किया एवं इस पुस्तक की प्रथम प्रति मान. श्रीमती द्रौपदी मुर्मु भारत की राष्ट्रपति को भेंट की।

राष्ट्रपति महोदया का सम्मान करते हुए राज्यपाल रमेन डेका

मान. राष्ट्रपति महोदया ने अपनी भाषण की शुरूआत छत्तीसगढ़ विधान सभा के पच्चीसवें वर्ष के उत्सव की गाड़ा-गाड़ा बधाई के साथ की ।

राष्ट्रपति महोदया का सम्मान करते हुए मुख्य मंत्री विष्णु देव साय

उन्होंने कहा ‘छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया’। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ विधान सभा ने लोकतान्त्रिक परम्पराओं के उच्चतम मानक स्थापित किए हैं। छत्तीसगढ़ विधान सभा ने सदन की कार्रवाई के दौरान गर्भगृह में आ जाने वाले सदस्यों के स्वमेव निलंबन का असाधारण नियम बनाया तथा उसका पालन किया है।

राष्ट्रपति महोदया का सम्मान करते हुए नेता प्रतिपक्ष डॉ चरण दास महंत 

25 वर्षों के दौरान कभी भी मार्शल का उपयोग नहीं करना पड़ा। छत्तीसगढ़ विधान सभा ने केवल शेष भारत ही नहीं बल्कि विश्व की सभी लोकतांत्रिक प्रणालियों के सामने श्रेष्ठ संसदीय आचरण का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।
राष्ट्रपति महोदया का सम्मान करते हुए विधान सभा सचिव दिनेश शर्मा 

उन्होंने महिला विभूति मिनी-माता का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि लोगों के कल्याण और उत्थान के लिए उनके द्वारा किये गये निरंतर कार्य को याद किया।

उन्होंने कहा कि-इस सदन के सभी विधायकों को, विशेषकर महिला विधायकों को, यह प्रयास करना चाहिए कि अगली विधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी हो। महिला विधायकों की संख्या में वृद्धि, ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ की भावना के अनुरूप होगी।

सदन में सदस्यों के साथ समूह चित्र 

उन्होंने कहा कि-छत्तीसगढ़ विधान सभा ने समावेशी कल्याण एवं विकास के लिए अनेक महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए हैं। रूढ़ियों पर आधारित प्रताड़ना से समाज को, विशेषकर महिलाओं को, मुक्त करने का अधिनियम समाज को छत्तीसगढ़ विधान सभा का एक ऐतिहासिक योगदान है।

उन्होंने कहा कि-वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य अंतिम और निर्णायक दौर में पहुंच गया है। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लोग विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं। मुझे विश्वास है कि छत्तीसगढ़ को उग्रवाद से पूर्णतया मुक्त करने के प्रयास में आप सब शीघ्र ही सफलता प्राप्त करेंगे ।

विधान सभा परिसर में कदम्ब का पेड़ रोपती हुई राष्ट्रपति महोदया 

उन्होने कहा कि-गुरु घासीदास जी का ‘मनखे-मनखे एक समान’ अर्थात ‘सभी मनुष्य एक समान हैं’ का आदर्श आज भी विद्यमान है।

इसके पूर्व अपने स्वागत संबोधन में विधान सभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि- छत्तीसगढ़ विधानसभा में यह तीसरा अवसर है जब सभा के माननीय सदस्यों को सम्बोधित करने हेतु भारत के राष्ट्रपति जी का विधानसभा में आगमन हुआ है। सबसे प्रथम भारतरत्न राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी ने द्वितीय विधानसभा के कार्यकाल में सभा को सम्बोधित किया पश्चात् तृतीय विधानसभा के कार्यकाल में मान. राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल जी का आगमन हुआ था। विधानसभा आगमन के इन तीनों अवसरों का उन्हें साक्षी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उन्होने कहा कि-वर्तमान वर्ष छत्तीसगढ़ विधानसभा की स्थापना रजत जयंती वर्ष है। और मै यह बताते हुए गौरवान्वित महसूस कर हूँ कि विगत 25 वर्षों में छत्तीसगढ़ विधानसभा ने संसदीय परम्पराओं और प्रक्रियाओं के पालन कर अपने कार्यां से लोकतान्त्रिक मूल्यों को सुदृढ़ता प्रदान की है। छत्तीसगढ़ राज्य की विधान सभा ने नवम्बर 2005 में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों एवं सचिवों का सम्मेलन एवं वर्ष 2010 में चतुर्थ भारत एवं एशिया क्षेत्र राष्ट्रकुल संसदीय सम्मेलन आयोजित कर संसदीय परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।

छत्तीसगढ़ विधान सभा ने अनेक महत्त्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया है। जिसमें वर्ष 2005 में मातृशक्ति के सम्मान को सुरक्षित रखने की दृष्टि से टोनही प्रताड़ना निवारण, वहीं वर्ष 2011 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा गारन्टी विधेयक पारित हुआ, वर्ष 2012 में खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कर पूज्य पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की अंत्योदय विकास की विचारधारा को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया।

छत्तीसगढ़ विधानसभा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि यहां पक्ष-प्रतिपक्ष के माननीय सदस्यों के मध्य प्रत्येक परिस्थिति में समादर और संसदीय आचरण का भाव सदैव विद्यमान रहा है।

छत्तीसगढ़ विधानसभा संसदीय प्रक्रियाओं और परम्पराओं को प्रोत्साहित करने हेतु कृत संकल्पित है।

उन्होंने यह भी कहा कि-मान. राष्ट्रपति महोदया जी मै आपको यह भी अवगत कराना चाहूंगा कि वर्तमान भवन राज्य बनने के पश्चात् सभा संचालन हेतु हमारी वैकल्पिक व्यवस्था है। हमारी यह विधानसभा शीघ्र ही नया रायपुर स्थित नवीन विधानसभा भवन में स्थानांतरित होगी। इस विधानसभा की सुखद स्मृतियों में एक पृष्ठ और जुड़ गया जब आप अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के मध्य हमारे आमंत्रण को स्वीकार करते हुए सभा के सदस्यों को सम्बोधित करने हेतु कृपा पूर्वक सहमति प्रदान की।

इस अवसर पर अपने उदबोधन में मान. राज्यपाल श्री रमेन डेका ने कहा कि-छत्तीसगढ़ विधानसभा ने अपनी 25 वर्ष की इस यात्रा में संसदीय परंपराओं और लोकतांत्रिक मूल्यों को परिभाषित एवं संवाहित किया है। छत्तीसगढ़ विधानसभा ने गर्भगृह ने प्रवेश पर स्वमेव निलंबन का नियम बनाया है जो अनुकरणीय है। इन 25 वर्षों छत्तीसगढ़ विधान सभा ने न केवल लोक हितकारी कानून बनाये वरण राज्य के हर कोने तक समृद्धि एवं न्याय पहुंचाने का कार्य किया है। राज्य की नीतियों एवं कार्यक्रमों ने राज्य को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृति रूप से सशक्त किया है। आज छत्तीसढ़ देश का स्टील और ऊर्जा उत्पादक राज्य है। छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है।

इस अवसर पर मान. मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने अपने संबोधन में कहा कि- छत्तीसगढ़ राज्य और छत्तीसगढ़ की विधानसभा अपना रजत जयंती वर्ष मना रहा हैं। वर्ष 2000 में पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण किया। संयोग से यह वर्ष उनका जन्म शताब्दी वर्ष भी है। इसे हम अटल निर्माण वर्ष के रूप में भी मना रहे हैं। हमारी विधानसभा की 25 वर्षों की यात्रा लोकतंत्र की सुदृढ़ परंपराओं का प्रमाण है।

उन्होंने कहा कि-लोकतंत्र की जड़ें भारत में वैदिक काल से ही मजबूत रही हैं, और हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हमें प्रदेश की जनता की सेवा करने का अवसर मिला है।

उन्होंने कहा कि-संसदीय परंपराओं को सहेजने एवं इनके संवर्धन में छत्तीसगढ़ विधानसभा ने बहुत अच्छा काम किया है। हम सभी मिलकर विकसित भारत और विकसित छत्तीसगढ़ के निर्माण के लिए संकल्पबद्ध हैं।

इस अवसर पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने भी मान. राष्ट्रपति जी को विधान सभा के रजत जयंती वर्ष में आगमन एवं मान. सदस्यों को सबंधित करने के लिए उनका आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर मान. श्रीमती द्रौपदी मुर्मु भारत की राष्ट्रपति को सदन में मान. राज्यपाल श्री रमेन डेका, मान. विधान सभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, मान. मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय, मान. नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने साल श्रीफल, एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।

 

टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ ■सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह चलो फिर से शुरू करें ■रमेश शर्मा  -------------------------------------- सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘चलो फिर से शुरू करें’ पाठकों तक पहुंचने के बाद चर्चा में है। संग्रह की कहानियाँ भारतीय अप्रवासी जीवन को जिस संवेदना और प्रतिबद्धता के साथ अभिव्यक्त करती हैं वह यहां उल्लेखनीय है। संग्रह की कहानियाँ अप्रवासी भारतीय जीवन के स्थूल और सूक्ष्म परिवेश को मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में बड़ी तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि उनके दृश्य आंखों के सामने बनते हुए दिखाई पड़ते हैं। हमें यहां रहकर लगता है कि विदेशों में ,  खासकर अमेरिका जैसे विकसित देशों में अप्रवासी भारतीय परिवार बहुत खुश और सुखी होते हैं,  पर सुधा जी अपनी कहानियों में इस धारणा को तोड़ती हुई नजर आती हैं। वास्तव में दुनिया के किसी भी कोने में जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन में सुख-दुख और संघर्ष का होना अवश्य संभावित है । वे अपनी कहानियों के माध्यम से वहां के जीवन की सच्चाइयों से हमें रूबरू करवात...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहान...

ज्ञान प्रकाश विवेक, तराना परवीन, महावीर राजी और आनंद हर्षुल की कहानियों पर टिप्पणियां

◆ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी "बातूनी लड़की" (कथादेश सितंबर 2023) उसकी मृत्यु के बजाय जिंदगी को लेकर उसकी बौद्धिक चेतना और जिंदादिली अधिक देर तक स्मृति में गूंजती हैं।  ~~~~~~~~~~~~~~~~~ ज्ञान प्रकाश विवेक जी की कहानी 'शहर छोड़ते हुए' बहुत पहले दिसम्बर 2019 में मेरे सम्मुख गुजरी थी, नया ज्ञानोदय में प्रकाशित इस कहानी पर एक छोटी टिप्पणी भी मैंने तब लिखी थी। लगभग 4 साल बाद उनकी एक नई कहानी 'बातूनी लड़की' कथादेश सितंबर 2023 अंक में अब पढ़ने को मिली। बहुत रोचक संवाद , दिल को छू लेने वाली संवेदना से लबरेज पात्र और कहानी के दृश्य अंत में जब कथानक के द्वार खोलते हैं तो मन भारी होने लग जाता है। अंडर ग्रेजुएट की एक युवा लड़की और एक युवा ट्यूटर के बीच घूमती यह कहानी, कोर्स की किताबों से ज्यादा जिंदगी की किताबों पर ठहरकर बातें करती है। इन दोनों ही पात्रों के बीच के संवाद बहुत रोचक,बौद्धिक चेतना के साथ पाठक को तरल संवेदना की महीन डोर में बांधे रखकर अपने साथ वहां तक ले जाते हैं जहां कहानी अचानक बदलने लगती है। लड़की को ब्रेन ट्यूमर होने की जानकारी जब होती है, तब न केवल उसके ट्यूटर ...

'नेलकटर' उदयप्रकाश की लिखी मेरी पसंदीदा कहानी का पुनर्पाठ

उ दय प्रकाश मेरे पसंदीदा कहानी लेखकों में से हैं जिन्हें मैं सर्वाधिक पसंद करता हूँ। उनकी कई कहानियाँ मसलन 'पालगोमरा का स्कूटर' , 'वारेन हेस्टिंग्ज का सांड', 'तिरिछ' , 'रामसजीवन की प्रेम कथा' इत्यादि मेरी स्मृति में आज भी जीवंत रूप में विद्यमान हैं । हाल के दो तीन वर्षों में मैंने उनकी कहानी ' नींबू ' इंडिया टुडे साहित्य विशेषांक में पढ़ी थी जो संभवतः मेरे लिए उनकी अद्यतन कहानियों में आखरी थी । उसके बाद उनकी कोई नयी कहानी मैंने नहीं पढ़ी।वे हमारे समय के एक ऐसे कथाकार हैं जिनकी कहानियां खूब पढ़ी जाती हैं। चाहे कहानी की अंतर्वस्तु हो, कहानी की भाषा हो, कहानी का शिल्प हो या दिल को छूने वाली एक प्रवाह मान तरलता हो, हर क्षेत्र में उदय प्रकाश ने कहानी के लिए एक नई जमीन तैयार की है। मेर लिए उनकी लिखी सर्वाधिक प्रिय कहानी 'नेलकटर' है जो मां की स्मृतियों को लेकर लिखी गयी है। यह एक ऐसी कहानी है जिसे कोई एक बार पढ़ ले तो भाषा और संवेदना की तरलता में वह बहता हुआ चला जाए। रिश्तों में अचिन्हित रह जाने वाली अबूझ धड़कनों को भी यह कहानी बेआवाज सुनाने लग...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

फादर्स डे पर परिधि की कविता : "पिता की चप्पलें"

  आज फादर्स डे है । इस अवसर पर प्रस्तुत है परिधि की एक कविता "पिता की चप्पलें"।यह कविता वर्षों पहले उन्होंने लिखी थी । इस कविता में जीवन के गहरे अनुभवों को व्यक्त करने का वह नज़रिया है जो अमूमन हमारी नज़र से छूट जाता है।आज पढ़िए यह कविता ......     पिता की चप्पलें   आज मैंने सुबह सुबह पहन ली हैं पिता की चप्पलें मेरे पांवों से काफी बड़ी हैं ये चप्पलें मैं आनंद ले रही हूं उन्हें पहनने का   यह एक नया अनुभव है मेरे लिए मैं उन्हें पहन कर घूम रही हूं इधर-उधर खुशी से बार-बार देख रही हूं उन चप्पलों की ओर कौतूहल से कि ये वही चप्पले हैं जिनमें होते हैं मेरे पिता के पांव   वही पांव जो न जाने कहां-कहां गए होंगे उनकी एड़ियाँ न जाने कितनी बार घिसी होंगी कितने दफ्तरों सब्जी मंडियों अस्पतालों और शहर की गलियों से गुजरते हुए घर तक पहुंचते होंगे उनके पांव अपनी पुरानी बाइक को न जाने कितनी बार किक मारकर स्टार्ट कर चुके होंगे इन्हीं पांवों से परिवार का बोझ लिए जीवन की न जाने कितनी विषमताओं से गुजरे होंगे पिता के पांव ! ...