आईआईटीयन बाबा अभय सिंह कुम्भ के पर्याय बन गए हैं। यह भारतीय समाज के लिए क्या चिंतन का बिषय नहीं होना चाहिए?
आईआईटीयन बाबा अभय सिंह कुम्भ के पर्याय बन गए हैं। यह भारतीय समाज के लिए क्या चिंतन का बिषय नहीं होना चाहिए?
- रमेश शर्मा
भारतीय समाज का आधुनिक नज़रिया भौतिक सुख सुविधाओं को , संसाधनों को जीवन के एक बड़े विकल्प के रूप में देखता है। इनके जो स्त्रोत होते हैं उस पर उसकी गहरी नज़र होती है। जब भौतिक संसाधनों एवं अर्थ संसाधनों के इन स्त्रोतों को कहीं अस्वीकृत होते हुए वह देखता है तो उसका पूरा ध्यान वहीं केंद्रित हो जाता है मानों कोई अचंभित घटना घटित हो गयी है।
IIT, IIM, AIIMS या ICAI जैसे संस्थानों से पढ़कर निकले युवाओं को यह समाज आर्थिक संसाधनों, तमाम सुख सुविधाओं के स्त्रोतों के रूप में देखता है इसलिए इस तरफ दौड़ने की एक होड़ सी मची रहती है।
बहुत से युवा यहाँ से पढ़ लिखकर कुछ समय नौकरी करते हैं, फिर उनमें जीवन के प्रति एक विरक्ति का भाव उत्पन्न होने लगता है।आर्थिक संसाधनों तथा सुख सुविधाओं के स्रोतों के रूप में देखे जा रहे इस दुनिया से विरक्त होकर जब युवा आध्यात्मिक दुनिया की ओर पलायन करते हैं तो एक तरह से इस दुनिया के प्रति उनकी अस्वीकृति सामने आती है।इस अस्वीकृति से भारतीय समाज के उस आम नजरिए पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। यह प्रश्न चिन्ह भारतीय समाज के लिए एक कौतूहल का विषय बन जाता है। लोग उस पर चर्चा करने लगते हैं कि भाई कोई IIT से पढ़ लिखकर कैसे नौकरी छोड़ सकता है। यह समाज उसे कई बार पागल भी करार देता है। जिस समाज में धन दौलत और आर्थिक संसाधनों को पा लेने की होड़ मची हो, ऐसे समाज में उन संसाधनों को छोड़कर भागना , समाज के नज़रिए में पागलपन हो सकता है। यहां कौन पागल है इसको लेकर एक बड़ा विरोधाभास उत्पन्न होता है।
कभी कबीर के साथ भी यही हुआ था। कबीर दुनिया को पागल समझते थे तो दुनिया कबीर को पागल कहती थी। पर सोचिए कि क्या कबीर पागल कहे जा सकते हैं?
हर पक्ष एक दूसरे को यहां पागल समझता है । दोनों पक्षों के पास एक दूसरे को पागल समझने के पर्याप्त तर्क भी हो सकते हैं।पर बिना जजमेंटल हुए यह तो विमर्श का बिषय होना चाहिए।
कुम्भ में आए आई.आई.टी. से निकले बाबा अभय सिंह को लेकर जिस तरह पागलपन की हद तक भारतीय समाज में, मीडिया में चर्चा है , इस घटना को उपरोक्त संदर्भों में देखा जा सकता है।
अभय सिंह को ज्यादातर लोग पागल समझ रहे हैं। कई लोग तो इसलिए भी पागल समझते होंगे कि वे अच्छी भली महंगे पैकेज की नौकरी छोड़कर इस आध्यात्मिक दुनिया में कूद पड़े हैं। अभय सिंह की बातों को अगर ध्यान से सुना जाए, परखा जाए तो उनकी बहुत सी बातों में प्रखर सच्चाई के साथ एक क्रांतिकारी नज़रिया भी है । इस दुनिया , समाज से ऊब जाने के लिए उनके पास पर्याप्त कारण हैं। भौतिक सुख सुविधाओं में लिप्त समाज स्वार्थी होता है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। मां बाप के बीच आपसी झगड़े और इन सुख सुविधाओं के पीछे भागने की प्रवृत्ति उन्हें स्वार्थी बनाती है। अभय सिंह का प्रकरण इसका जीवंत उदाहरण है। देखा जाए तो इस समाज के भीतर किसी भी संवेदनशील मनुष्य को ऊब से भर देने के अनेक कारण हैं जिसके चलते इस समाज को वह अलविदा कह सकता है। संसाधन किसी इंसान को शांति और आनन्द का सुख नहीं दे सकते यह आदिकाल से स्थापित एक सत्य है।
ऐसे में अभय सिंह जैसे पढ़े लिखे युवाओं का आध्यात्मिक दुनिया की ओर झुकाव कोई अचंभित करने वाली घटना नहीं होनी चाहिए। इस पर इतनी चर्चा भी नहीं होनी चाहिए।
फिर भी इस पर इतनी चर्चा हो रही कि आध्यात्म से जुड़ा कुम्भ स्नान का प्रसंग कहीं दूर छिटक गया है और आईआईटीयन बाबा अभय सिंह कुम्भ के पर्याय बन गए हैं। यह भारतीय समाज के लिए शर्म और चिंतन का बिषय होना चाहिए।
कौन हैं बाबा अभय सिंह
आईआईटियन बाबा अभय सिंह का पूरा नाम अभय सिंह ग्रेवाल है। आईआईटी बाबा अभय सिंह मूलरूप से हरियाणा के झज्जर जिले के सासरौली के रहने वाले हैं।
आईआईटी बाबा के पिता कर्ण सिंह ग्रेवाल पेशे से वकील हैं। ये अपने माता-पिता के इकलौते बेटे हैं। इनके एक बहन है, जो कनाडा में रहती हैं।
अभय सिंह ने बॉम्बे आईआईटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री ली है और फिर करीब 40 लाख के पैकेज पर कनाडा में जॉब किया । वहां वे अपनी बहन के पास रहे और कोरोना के समय में भारत लौट आए।
साल 2021 में अभय सिंह का रुझान पूरी तरह से जॉब की बजाय अध्यात्म की ओर चला गया था। माता पिता को यह पसंद नहीं आ रहा था कि बेटा नौकरी छोड़े। अभय सिंह के मुताबिक वे घर पर ही ध्यान और योग करने लगे थे। उसके विरोध में परिवार ने पुलिस बुला लिया था।
डेढ़ साल पहले अभय सिंह ने घर छोड़ दिया और देश में साधु-संतों के जाने-माने जूना अखाड़े से जुड़े। परिवार ने इनसे सम्पर्क करने की कोशिश की, मगर पिछले छह माह से इन्होंने घर वालों के नंबर को ब्लॉक कर रखा है। वे अब घर वालों से मिलना नहीं चाहते। उन्होंने मोह माया को त्याग दिया है और सारे बंधनों से मुक्त हो गए हैं।
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