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साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2024 की घोषणा हिंदी के लिए गगन गिल और अंग्रेजी के लिए ईस्टरिन किरे पुरस्कृत

गगन गिल जी को उनके कविता संग्रह "मैं जब तक आयी बाहर” के लिए केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार 

साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2024 की घोषणा

हिंदी के लिए गगन गिल और अंग्रेजी के लिए ईस्टरिन किरे पुरस्कृत

बांग्ला, डोगरी और उर्दू में पुरस्कारों की घोषणा बाद में

8 मार्च 2025 को पुरस्कृत होंगे लेखक


नई दिल्ली। 18 दिसंबर 2024; साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित एक प्रेस कान्फ्रेंस में साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2024 की घोषणा की गई। साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए बताया कि पुरस्कार 21 भाषाओं के लिए घोषित किए गए हैं, जिनमें आठ कविता-संग्रह, तीन उपन्यास, दो कहानी संग्रह, तीन निबंध, तीन साहित्यिक आलोचना, एक नाटक और एक शोध की पुस्तकें शामिल हैं। बाड़्ला, डोगरी और उर्दू में पुरस्कारों की घोषणा बाद में की जाएगी। पुरस्कारों की अनुशंसा 21 भारतीय भाषाओं की निर्णायक समितियों द्वारा की गई तथा साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष श्री माधव कौशिक की अध्यक्षता में आयोजित अकादेमी के कार्यकारी मंडल की बैठक में आज इन्हें अनुमोदित किया गया।

पुरस्कार प्राप्त पुस्तकें हैं (कविता-संग्रह) - समीर तांती (असमिया), दिलीप झावेरी (गुजराती), गगन गिल (हिंदी), के. जयकुमार (मलयाळम्), हाओबम सत्यबती देवी (मणिपुरी), पॉल कौर (पंजाबी), मुकुट मणिराज (राजस्थानी), दीपक कुमार शर्मा (संस्कृत), उपन्यास - अरन राजा (बोडो), ईस्टरिन किरे (अंग्रेज़ी), सोहन कौल (कश्मीरी), कहानी-संग्रह - युवा बराल (नेपाली), हूंदराज बलवाणी (सिंधी), निबंध - मुकेश थली (कोंकणी), महेन्द्र मलंगिया (मैथिली), बैष्णब चरण सामल (ओड़िआ), साहित्यिक आलोचना - के.वी. नारायण (कन्नड), सुधीर रसाल (मराठी), पेनुगोंडा लक्ष्मीनारायण (तेलुगु), नाटक - महेश्वर सोरेन (संताली), शोध - ए. आर. वेंकटचलपति (तमिळ)।

ये पुरस्कार, पुरस्कार-वर्ष पिछले पाँच वर्ष (यानी, 1 जनवरी 2018 से 31 दिसंबर 2022 के दौरान) पहली बार प्रकाशित पुस्तकों पर दिए गए हैं। पुरस्कार स्वरूप एक उत्कीर्ण ताम्रफलक, शॉल और एक लाख रुपये की राशि पुरस्कृत लेखकों को कमानी ऑडिटोरियम, कॉपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली- 110001 में 8 मार्च 2025 को आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किए जाएँगे।

-के. श्रीनिवासराव

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■हिंदी भाषा के पुरस्कृत कविता संग्रह की शीर्षक कविता : मैं जब तक आर्ई बाहर

- गगन गिल

मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने

बदल चुका था

रंग दुनिया का

अर्थ भाषा का

मंत्र और जप का

ध्यान और प्रार्थना का

कोई बंद कर गया था

बाहर से

देवताओं की कोठरियाँ

अब वे खुलने में न आती थीं

ताले पड़े थे तमाम शहर के

दिलों पर

होंठों पर

आँखें ढँक चुकी थीं

नामालूम झिल्लियों से

सुनाई कुछ पड़ता न था

मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने

रंग हो चुका था लाल

आसमान का

यह कोई युद्ध का मैदान था

चले जा रही थी

जिसमें मैं

लाल रोशनी में

शाम में

मैं इतनी देर में आई बाहर

कि योद्धा हो चुके थे

अदृश्य

शहीद

युद्ध भी हो चुका था

अदृश्य

हालाँकि

लड़ा जा रहा था

अब भी

सब ओर

कहाँ पड़ रहा था

मेरा पैर

चीख़ आती थी

किधर से

पता कुछ चलता न था

मैं जब तक आई बाहर

ख़ाली हो चुके थे मेरे हाथ

न कहीं पट्टी

न मरहम

सिर्फ़ एक मंत्र मेरे पास था

वही अब तक याद था

किसी ने मुझे

वह दिया न था

मैंने ख़ुद ही

खोज निकाला था उसे

एक दिन

अपने कंठ की गूँ-गूँ में से

चाहिए थी बस मुझे

तिनका भर कुशा

जुड़े हुए मेरे हाथ

ध्यान

प्रार्थना

सर्वम शांति के लिए

मंत्र का अर्थ मगर अब

वही न था

मंत्र किसी काम का न था

मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने

बदल चुका था 

मर्म भाषा का ।



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