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'सुबह सवेरे' न्यूज मेगेज़ीन भोपाल एवं इंदौर एडिशन में प्रकाशित कहानी: 'उम्मीद' ■रमेश शर्मा

■कहानी : उम्मीद 

मनुष्य के जीवन में इतने प्रश्न हैं कि धरती इन प्रश्नों का भार उठाते हुए अपने एकांत में कराहती भी होगी । धरती का कराहना हम सुन नहीं पाते अन्यथा हम सुनकर चकित होते । संभव है करूणा से भर उठते । चारों तरफ प्रश्नों का एक झुण्ड है। घर के बाहर प्रश्न ,घर के भीतर प्रश्न। सोते-जागते हर समय प्रश्न ही प्रश्न । हालात ऐसे हो चुके कि कहीं टहलने निकलो तो भी प्रश्न पीछे दौड़ते चले आते हैं । लगता है जैसे उन्हें भी घर से बाहर निकल कर घूमना पसंद हो। 


इस घटना को घटित हुए बहुत दिन नहीं हुए जब मिश्रा जी अपने डॉगी टोक्यो को साथ लेकर कालोनी की सूनी सडकों पर टहलने निकले थे । उस दिन उनके सामने मोहल्ले की एक लड़की बतियाते हुए अपनी ही रौ में बेसुध चली जा रही थी । उसकी बातचीत के दरमियान आवाज़ की तीव्रता कुछ इस कदर तेज थी कि सुनकर उन्हें याद आया....., एक प्रश्न दिमाग में उठने लगा .... इसका नाम कहीं भुलेनी तो नहीं? यह सोचकर ही मिश्रा जी के दिमाग में एक और प्रश्न घूमने लगा कि उन्हें आखिर कब और कैसे पता चला कि उसका नाम भुलेनी है? उन्होंने दिमाग में बहुत जोर डाला पर ऎसी कोई जानकारी चलकर उनके पास नहीं आ सकी । मिश्रा जी ने उससे उसका नाम कभी पूछा नहीं था। उसने मिश्रा जी को अपना नाम खुद कभी बताया हो ,ऐसा कोई वाकया उन्हें फिलहाल याद नहीं आ रहा था । वह लड़की उसी तरह तेज़ आवाज में बात करती हुई उनके सामने चली जा रही थी।

' मोर नाव ल भुला गे कारे ..मैं भुलेनी बोलत हवं (मेरा नाम भूल गए क्या रे? मैं भुलेनी बोल रही हूँ) ।' लड़की अपनी भाषा छत्तीसगढ़ी में बोलने की कोशिश कर रही थी । उधर से उसे न जाने क्या जवाब मिला कि दूसरे ही क्षण वह हिन्दी में बोलने लगी- 

'कैसे तेरा फोन आजकल लगता नहीं है? कभी लग भी जाता है तो तू फोन उठाता क्यों नहीं है? तू मेरे से प्यार नहीं करता क्या अब ?' लड़की तेज आवाज़ में बोले ही जा रही थी । उसकी बातचीत में भी प्रश्नों का एक रेला था । उधर से कोई जवाब आ रहा था या नहीं, उसे सिर्फ लड़की ही सुन पाने की स्थिति में थी । मिश्रा जी को अचानक याद आया कि फोन पर बातचीत करते हुए ही लड़की के नाम का जिक्र उसकी बातचीत में कभी आया था, जिसे उन्होंने सुन रखा था । 

'तो क्या उनकी तरह उसके नाम की जानकारी कालोनी के हर बच्चे , बूढ़े , जवान , यहाँ तक कि कालोनी में काम करने आ रहे मजदूरों को भी होगी ?'... मिश्रा जी के जेहन में एक और प्रश्न कतार में आकर लग गया था। शायद ऐसा हो । संभव है उसकी बातचीत औरों ने भी कभी सुनी हो। कालोनी की सूनी सडकों पर टहलते हुए फोन पर लम्बी लम्बी बातचीत करते उसे पहले भी कई लोगों ने देखा था।

'मैं भी कहाँ निरर्थक प्रश्नों में आकर उलझने लगा' लड़की के पीछे चलते हुए यह भाव उनके भीतर उस वक्त उपजा था ।

लड़की उसी गति और उसी वोल्यूम से बातचीत का सिलसिला जारी रखे हुए थी । उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि उसके पीछे भी कोई आ रहा है । लड़की के हावभाव से लगने लगा था कि यह कोई प्रेम प्रसंग का मसला है । 

'मैं मर जाऊँगी ... मैं मर जाऊंगी। मैं और जीना नहीं चाहती।' - रट लगाते हुए इस बीच लड़की ने अचानक रोना शुरू कर दिया था ।

एक बार उन्हें लगा कि वे लड़की से पूछें कि आखिर हुआ क्या है, पर दूसरे ही क्षण उन्होंने अपना विचार बदल लिया था । वायवीय संबंधों में ऐसा होता है , थोड़ी देर रोकर फिर लड़की सामान्य हो जाएगी, ऐसा उन्हें विश्वास था ।

प्रश्न कहाँ थमते हैं । मनुष्य के भीतर अगर उनके लिए जगह न भी हो तो भी वे रेलगाड़ी के खखाखच भरे जनरल डिब्बे में घुसते हुए यात्री की तरह आ ही जाते हैं ।

लड़की के इस तरह रोने ने मिश्रा जी के मन में प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी ।

'लड़की का किसी के साथ सचमुच कोई सम्बन्ध तो नहीं है? किसी ने उसे धोखा तो नहीं दिया है ? संबंधों की कोई निशानी लड़की के गर्भ में तो कहीं नहीं पल रही ? मन में इन अवांछित प्रश्नों की घुसपैठ ने कुछ देर के लिए मिश्रा जी को सकते में डाल दिया था ।

'नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता । जरूरी थोड़ी है कि हर किसी के साथ ऐसा होता हो ' -मिश्रा जी ने मन को तसल्ली देते हुए अपने को आश्वस्त करना चाहा था ।

इस बीच चलते चलते अचानक उनकी डॉगी सीधी सड़क से एक गली की ओर मुड़ गयी थी। उसके पीछे पीछे वे भी गली की तरफ मुड़ गए थे। लड़की की दिशा सीधी थी । सीधी सड़क पर चलते हुए वह आगे निकल गयी थी । जिस गली में वे मुड़े थे उस गली में दस बीस कुत्तों का झुण्ड पहले से मौजूद था। उन्हें देखकर मिश्रा जी कुछ देर के लिए सकते में आ गए थे । उन्हें अंदेशा नहीं था कि इस तरह कालोनी के भीतर आवारा कुत्तों का झुण्ड भी दिख पड़ेगा। उस दिन उनके हाथ में एक लाठी तक नहीं थी कि वे लहरा कर उन आवारा कुत्तों को डरा सकेँ । उन आवारा कुत्तों की नज़र ज्योहीं टोक्यो पर पड़ी उसे झपटने को उसकी तरफ वे सब आने लगे थे ।

क्या करूं ? कैसे टोक्यो को इनसे बचाऊँ ? वे कहीं इसे चीथकर खा तो नहीं जाएंगे ? उनके मन के भीतर प्रश्नों की झड़ी फिर से शुरू हो गयी थी । वे कुत्तों को भगा भगा कर अपनी प्यारी टोक्यो को उनसे बचाने लगे । कुछ देर के लिए वहां अफरा तफरी सी मच गयी थी । प्रतिरोध के कारण ज्यादातर कुत्ते भाग तो गए पर जाते जाते उनमें से एक कुत्ते ने अपने पंजों के नुकीले नाखून से उन्हें घायल कर दिया था ।

कुछ देर बाद खूंखार लगने वाले सारे कुत्ते भाग गए थे । चोंट की वजह से मिश्रा जी के बाएं हाथ से थोड़ा थोड़ा खून बहने लगा था । ठण्ड का महीना होते हुए भी दहशत की वजह से उनके शरीर से अचानक पसीना चूने लगा । सुन्दर सी फ्रॉक पहनी टोक्यो उनके बाजू में फुदक फुदक कर चल रही थी । उसे सुरक्षित देखकर उन्हें बहुत शुकून मिला । लौटते हुए इस बीच वे मुख्य सड़क पर आ चुके थे। मुख्य सड़क पर वापस आकर उन्हें फिर से भुलेनी की याद हो आयी। यहीं वो जगह थी जहाँ से चलते चलते उस लड़की का साथ छूटा था ।

'कहाँ होगी वह ? उसका रोना बंद हुआ होगा या नहीं ?' -वह दूर दूर तक लौटती हुई कहीं दिखाई नहीं पड़ रही थी । उसके दिखाई न पड़ने से मिश्रा जी के मन में प्रश्नों का झुण्ड फिर से आक्रमण करने लगा था ।

'रोते रोते आखिर भुलेनी कहाँ गयी होगी? वह वापस लौटेगी भी या नहीं ? कहीं वह अपने जीवन को समाप्त तो नहीं कर लेगी? लड़कियों के रोते हुए चेहरों की संख्या को हम रोक क्यों नहीं पा रहे हैं?..................................??'

इस तरह मन में आते हुए कई कई प्रश्नों के झुण्ड थे। लड़कियों पर अत्याचार की घटनाएं सुनकर मन खिन्न हुआ जा रहा था ।  इस बीच उनकी नज़र अचानक हाथ घड़ी पर गयी थी। घड़ी देखकर उन्होंने अंदाज लगाया कि ट्रेन को आने में अभी दो घंटे बचे हैं। अपनी बेटी सारिका को लेने उन्हें रेलवे स्टेशन भी जाना था । उन्हें याद आया कि पूरे छः महीने बाद वह घर लौट रही है । उन्हें उसकी चिंता हो आयी । उन्हें अचानक लगा कि एक लड़की का पिता होना भी कई बार मन को अनगिनत प्रश्नों से भर देता है । 

भुलेनी अब भी उनकी आँखों की पहुँच से बहुत दूर थी । वे उसे सुरक्षित लौटते हुए देखना चाहते थे । अपनी नज़रों के सामने उसे न पाकर वे किसी आशंका की जद में आने लगे थे । अनगिनत प्रश्नों का बोझ और अधूरी इच्छा लिए अपनी टोक्यो के साथ घर लौट जाना ही उनके हिस्से लिखा था । इस लिखे को कौन मिटाएगा ? अब यह प्रश्न बार बार उनके जेहन में उभर रहा था । उनकी आँखों के सामने भेड़ियों की तरह खूंखार कुत्तों के झुण्ड का वह दृश्य फिर से एक बार घूमने लगा था । 'न जाने किस गली में वे किसको अपना शिकार बना रहे होंगे? इस प्रश्न के आते ही भीतर से फिर एक बार वे सहम गए थे । ठीक उसी वक्त उनकी प्यारी सी डॉगी टोक्यो ने पलटकर उनके पांवों को जीभ से पुचकारा था ।वह भी उनकी तरह उनसे बहुत प्यार करती है। वे समझ रहे हैं कि अभी वह उनसे कुछ कहना चाह रही है पर बोल नहीं  पा रही । उसके पास मनुष्यों की तरह बोलने के लिए कोई भाषा नहीं है ।जीभ से पुचकारना ही उसकी भाषा है । उसके साथ रहते हुए कई अनुभव हैं जो उन्हें चकित करते रहे हैं । न जाने उन्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि उसके पुचकारने में एक गहरा भाव है। गहरे प्रेम का भाव । जैसे वह उन्हें चिंतित देखकर कहना चाह रही हो ....आप निश्चिन्त रहिये , भुलेनी लौट आएगी।■■

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