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शिवरीनारायण में आयोजित सृजन संवाद कार्यशाला में कहानी और कविता पर हुई सार्थक परिचर्चा

 


श्रीकांत वर्मा सृजन पीठ और जिला प्रशासन जांजगीर के आयोजन में परिधि शर्मा, सुमेधा अग्रश्री, कुसुम माधुरी टोप्पो ने किया  कहानी पाठ



रायगढ़ । छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद् की बॉडी श्रीकांत वर्मा सृजन पीठ और जिला प्रशासन जांजगीर चांपा के संयुक्त आयोजन में छत्तीसगढ़ के संभावनाशील रचनाकारों के लिए सृजन संवाद के नाम से एक कार्यशाला का आयोजन हुआ । 22 एवं 23 जुलाई को शिवरीनारायण में आयोजित इस कार्यशाला में दिशा निर्देशन के लिए महत्वपूर्ण कथाकार जया जादवानी एवं आनंद हर्षुल, महत्वपूर्ण कवि तेजी ग्रोवर, रुस्तम एवं महेश वर्मा सहित पीठ के अध्यक्ष कवि कथाकार रामकुमार तिवारी उपस्थित थे । प्रथम सत्र का आरम्भ करते हुए कहानी लेखन को लेकर मशहूर कथा लेखिका जया जादवानी ने कुछ  महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर अपनी बातें रखीं । उन्होंने कहा कि कहानी में विवरण की तरह सीधी बात कभी न की जाए। बिटवीन द लाइन्स कुछ ऐसा अलिखित सा हो कि उसे समझने के लिए पाठक को कहानी के भीतर जाना पड़े। कहानी लिखते समय हमेशा अपने अन्दर और बाहर की दुनिया के बीच एक खिड़की खोल कर रखें जहाँ आप आ जा सकेँ । प्रथम सत्र में रायगढ़ से परिधि शर्मा रायपुर से सुमेधा अग्रश्री एवं कांसाबेल से कुसुम माधुरी टोप्पो ने अपनी अपनी कहानियों का पाठ किया । इन तीनों कथा लेखिकाओं की कहानियों पर रायपुर से आयीं कथा लेखिका जया जादवानी एवं रायगढ़ के कथाकार रमेश शर्मा ने महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं । सुप्रतिष्ठित कवि महेश वर्मा एवं तेजी ग्रोवर ने भी इस अवसर पर महत्वपूर्ण सुझाव साझा करते हुए कथाकारों का उत्साह वर्धन किया। दो दिवस अंतर्गत होने वाले सात सत्रों में से कहानी लेखन को लेकर महत्वपूर्ण बातचीत और कहानी पाठ के साथ प्रथम सत्र का समापन हुआ। सत्र का कुशल संचालन छत्तीसगढ़ के पुरातत्वविद , लेखक, विचारक जनसंपर्क विभाग के सेवा निवृत्त अधिकारी राहुल सिंह ने किया ।सृजन संवाद के इस आयोजन में छत्तीसगढ़ के कई जगहों से लगभग 40  संभावनाशील रचनाकारों ने इस आयोजन में हिस्सा लेकर अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की।


 

 

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रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

ज्ञान प्रकाश विवेक, तराना परवीन, महावीर राजी और आनंद हर्षुल की कहानियों पर टिप्पणियां

◆ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी "बातूनी लड़की" (कथादेश सितंबर 2023) उसकी मृत्यु के बजाय जिंदगी को लेकर उसकी बौद्धिक चेतना और जिंदादिली अधिक देर तक स्मृति में गूंजती हैं।  ~~~~~~~~~~~~~~~~~ ज्ञान प्रकाश विवेक जी की कहानी 'शहर छोड़ते हुए' बहुत पहले दिसम्बर 2019 में मेरे सम्मुख गुजरी थी, नया ज्ञानोदय में प्रकाशित इस कहानी पर एक छोटी टिप्पणी भी मैंने तब लिखी थी। लगभग 4 साल बाद उनकी एक नई कहानी 'बातूनी लड़की' कथादेश सितंबर 2023 अंक में अब पढ़ने को मिली। बहुत रोचक संवाद , दिल को छू लेने वाली संवेदना से लबरेज पात्र और कहानी के दृश्य अंत में जब कथानक के द्वार खोलते हैं तो मन भारी होने लग जाता है। अंडर ग्रेजुएट की एक युवा लड़की और एक युवा ट्यूटर के बीच घूमती यह कहानी, कोर्स की किताबों से ज्यादा जिंदगी की किताबों पर ठहरकर बातें करती है। इन दोनों ही पात्रों के बीच के संवाद बहुत रोचक,बौद्धिक चेतना के साथ पाठक को तरल संवेदना की महीन डोर में बांधे रखकर अपने साथ वहां तक ले जाते हैं जहां कहानी अचानक बदलने लगती है। लड़की को ब्रेन ट्यूमर होने की जानकारी जब होती है, तब न केवल उसके ट्यूटर ...

Blooming Buds स्कूल रायगढ़ का एनुअल कल्चरल मीट 2023-24 ने जाते दिसम्बर को यादगार बनाया

दिसम्बर रहा Blooming Buds School रायगढ़ के इन प्यारे प्यारे बच्चों के नाम "प्रेम के बिना ज्ञान टिकेगा नहीं। लेकिन प्यार अगर पहले आता है तो ज्ञान का आना निश्चित है।"  - जॉन बरोज़ स्कूल के आयोजनों में शरीक होना भला कौन पसंद न करे।आयोजन में छोटे बच्चों की कला प्रतिभा से रूबरू होना हो फिर तो क्या कहने। तो जाते साल के आखरी महीने दिसम्बर की एक बहुत खूबसूरत सी शाम मेरे हिस्से आयी, जब गुलाबी ठंड के बीच लोचन नगर स्थित Blooming Buds School Raigarh के एनुअल कल्चरल मीट में स्कूल प्रबंधन के सौजन्य से बतौर मुख्य अतिथि मुझे शामिल होने का अवसर मिला। 23 दिसम्बर शाम 5 से 6.30 के मध्य छोटे छोटे, प्यारे प्यारे बच्चों के पेरेंट्स की भरपूर उपस्थिति थी।उनमें भरपूर उत्साह था। एक हेल्दी और सकारात्मक वातावरण से पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम श्रोताओं की भरपूर उपस्थिति लिए हुए गुलज़ार हो उठा था। श्रीमती जागृति प्रभाकर मेडम , जो स्कूल संचालन में डायरेक्टर की भूमिका का निर्वहन करती हैं, उनके निर्देशन में विद्यालय के सम्मानित टीचर्स द्वारा बच्चों के माध्यम से जो प्रस्तुतियाँ करवायीं गईं,उन नृत्य कला की प्रस्तुतियों न...

अख़्तर आज़ाद की कहानी लकड़बग्घा और तरुण भटनागर की कहानी ज़ख्मेकुहन पर टिप्पणियाँ

जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती होंगी कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। (हंस जुलाई 2023 अंक में अख्तर आजाद की कहानी लकड़बग्घा पढ़ने के बाद एक टिप्पणी) -------------------------------------- हंस जुलाई 2023 अंक में कहानी लकड़बग्घा पढ़कर एक बेचैनी सी महसूस होने लगी। लॉकडाउन में मजदूरों के हजारों किलोमीटर की त्रासदपूर्ण यात्रा की कहानियां फिर से तरोताजा हो गईं। दास्तान ए कमेटी के सामने जितने भी दर्द भरी कहानियां हैं, पीड़ित लोगों द्वारा सुनाई जा रही हैं। उन्हीं दर्द भरी कहानियों में से एक कहानी यहां दृश्यमान होती है। मजदूर,उसकी गर्भवती पत्नी,पाँच साल और दो साल के दो बच्चे और उन सबकी एक हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा। कहानी की बुनावट इन्हीं पात्रों के इर्दगिर्द है। शुरुआत की उनकी यात्रा तो कुछ ठीक-ठाक चलती है। दोनों पति पत्नी एक एक बच्चे को अपनी पीठ पर लादे चल पड़ते हैं पर धीरे-धीरे परिस्थितियां इतनी भयावह होती जाती हैं कि गर्भवती पत्नी के लिए बच्चे का बोझ उठाकर आगे चलना बहुत कठिन हो जाता है। मजदूर अगर बड़े बच्चे का बोझ उठा भी ले तो उसकी पत्नी छोटे बच्चे का बोझ उठाकर चलने में पूरी तरह असमर्थ हो च...

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फादर्स डे पर परिधि की कविता : "पिता की चप्पलें"

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