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SHIVRINARAYAN MANDIR KI YATRA : शिवरीनारायण मंदिर की यात्रा

शिवरीनारायण का नाम हमने बहुत सुना था। हमें जो जानकारी मिली थी उसके अनुसार शिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण नगर है जो "छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी" के नाम से भी लोक में विख्यात है। एक बार जब बिलासपुर गए तो संयोग से बाई रोड़ रायगढ़ लौटते समय शिवरीनारायण से होकर लौटना हुआ। समय था तो हम शिवरीनारायण मंदिर परिसर के सामने अपनी चारपहिया रोककर सोच में पड़ गए कि परिसर के भीतर जाएं कि नहीं जाएं।

शिवरीनारायण मंदिर प्रवेश द्वार 
परिधि , प्रतिमा सबकी इच्छा हुई कि आए हैं तो मंदिर दर्शन करके ही जाएं । इसकी दूरी का अगर मोटे तौर पर छत्तीसगढ़ के अलग अलग जगहों से आकलन करें तो यह बिलासपुर से 64 कि. मी., राजधानी रायपुर से बलौदाबाजार होते हुए 120 कि. मी., जांजगीर  जिला मुख्यालय से 45 कि. मी.कोरबा जिला मुख्यालय से 110 कि. मी. और रायगढ़ जिला मुख्यालय से सारंगढ़ होते हुए  110 कि. मी. की दूरी पर स्थित है।
मंदिर परिसर में परिधि और प्रतिमा 
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक स्कंद पुराण में इस पवित्र स्थल को  श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। वहां के स्थानीय लोगों के माध्यम से हमें जो जानकारी मिली उसके मुताबिक़ हर युग में इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है। भगवान श्रीराम और भगवान लक्ष्मण जी ने शबरी के जूठे बेर यहीं उनके आश्रम में आकर ही खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान किया था ।  इस तरह इस घनघोर दंडकारण्य वन में आर्य संस्कृति का बीज भगवान राम के द्वारा ही बोया गया था । शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए "शबरी-नारायण" नामक यह नगर बसा है। भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। शायद इसलिए भी इसे "गुप्त तीर्थधाम" कहा गया है।
परिसर के भीतर का मंदिर 

याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र में इसका उल्लेख भी मिलता है। भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था। यहाँ के जनमानस में प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं। प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द रहा है।आज भी वहां की संस्कृति में ये सारी बातें घुली मिली हैं जो वहां के लोगों से बातचीत करते समय महसूस होती हैं। यहां शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति रही है। छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है। यह क्षेत्र अब शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर  जिला मुख्यालय से 45 किमी की दूरी पर मैकल पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य शिवनाथ, जोंक और  महानदी  के संगम पर स्थित शिवरीनारायण को तीर्थ नगरी प्रयाग जैसी मान्यता मिली हुई है। यहाँ पर छत्तीसगढ़  का प्रसिद्ध शिवरीनारायण मंदिर है। ऐसी लोक मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम  को यहीं पर शबरी  ने बेर खिलाये थे अत: शबरी  के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर मे इसका नाम बिगड़ कर शिवरीनारायण हो गया। यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना एक प्राचीन मंदिर भी है। पर्यटन की दृष्टि  से यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां मंदिरों का एक अत्यंत प्राचीन समूह है। दुधिया रंग के इन श्वेत मंदिरों के समूह की सुन्दरता देखते हुए बनती है।

मंदिर परिसर के भीतर मैं और प्रतिमा 

मतंग ऋषि की शिष्या शबरी की कहानी

शबरी को लेकर एक कथा यह भी है कि उसके पिता राजा शबर उसकी शादी छोटी उम्र में ही करा देना चाहते थे पर शबरी विष्णु भक्त थी और शादी करना नहीं चाहती थी।एक दिन वह इसलिए घर से भाग गयी और मतंग ऋषि के आश्रम पहुँच गयी। निश्चित रूप से यह आश्रम इसी क्षेत्र में रहा होगा तब वह वहां पहुँच सकी । मतंग ऋषि एक दयालु और ज्ञानी ऋषि थे।  शबरी की भक्ति और सेवा भाव  देखकर उन्होंने उसे अपने आश्रम में पितृतुल्य संरक्षण दिया। उन्होंने उसे गुरु ज्ञान दिया  कि एक दिन राम इसी आश्रम में तुमसे मिलने आएँगे । कालांतर में मतंग मुनि ने अपना देह त्याग कर दिया पर उनके दिए गुरु ज्ञान पर पूर्ण विश्वास करते हुए शबरी आजीवन राम की प्रतीक्षा में उनकी बाट जोहती रही । राम आएँगे इस विश्वास में आश्रम के सामने बनी राह पर  फूल बिछाना उसका नित्य कर्म था। यह क्षेत्र उस विश्वास का भी प्रतिनिधित्व करता है । एक दिन राम को शबरी के लिए आना ही पड़ा और राम ने शबरी माता को नवधा भक्ति का ज्ञान भी दिया । राम सीता के वियोग में उनदिनों वन वन भटक रहे थे तब शबरी ने ही उन्हें पम्पा नदी तक जाने की बात कही थी। आगे चलकर पंपा नदी सीता की खोज का प्रस्थान बिंदु साबित हुआ।  यह कथा भी यहाँ से जुड़ी है । छत्तीसगढ़ में शबर जाति के लोग आज भी शबरी की आराधना करते हैं।


शिवरीनारायण मंदिर दर्शन 

इस मंदिर को बडा मंदिर एवं नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। उक्त मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला का बेजोड नमूना है। लोक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा शबर ने करवाया था। यहाँ ९वीं शताब्दी से लेकर १२वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियो की स्थापना है। मंदिर की परिधि १३६ फीट तथा ऊंचाई ७२ फीट है जिसके ऊपर १० फीट के स्वर्णीम कलश की स्थापना है शायद इसीलिये इस मंदिर का नाम बडा मंदिर भी पड़ गया । सम्पूर्ण मंदिर अत्यन्त सुंदर तथा अलंकृत है जिनको चारों  ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। यहाँ के मंदिर अत्यंत भव्य होने के साथ साथ मनोहारी भी हैं ।

मनोकामना वृक्ष के नीचे विश्राम

मंदिर परिसर में कई छोटे छोटे मंदिर हैं जिनकी परिक्रमा करते हुए आनंद की अनुभूति होने लगती है। परिसर के भीतर ही एक जगह मनोकामना वृक्ष भी है जहाँ हमने बैठकर थोड़ा समय बिताया। लोगों ने बताया कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर जो भी मनोकामना की जाती है उसे भगवान राम पूरा करते हैं।

मनोकामना वृक्ष के नीचे विश्राम 
शबरी माता का त्याग और ईश्वर के प्रति उसके विश्वास की कथा हमने बचपन से सुन रखी थी । उस कथा को यहाँ आकर महसूस करना एक नया अनुभव रहा।


( रमेश शर्मा , शिवरीनारायण से लौटकर)


 

 

 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर लिखा है आपने। इस तरह की महत्वपूर्ण , छोटी-छोटी जगहों के बारे में भी ब्लॉग के माध्यम से लोगों को बताया जाना चाहिए ।अच्छा संस्मरण है।

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