सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

SHIVRINARAYAN MANDIR KI YATRA : शिवरीनारायण मंदिर की यात्रा

शिवरीनारायण का नाम हमने बहुत सुना था। हमें जो जानकारी मिली थी उसके अनुसार शिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण नगर है जो "छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी" के नाम से भी लोक में विख्यात है। एक बार जब बिलासपुर गए तो संयोग से बाई रोड़ रायगढ़ लौटते समय शिवरीनारायण से होकर लौटना हुआ। समय था तो हम शिवरीनारायण मंदिर परिसर के सामने अपनी चारपहिया रोककर सोच में पड़ गए कि परिसर के भीतर जाएं कि नहीं जाएं।

शिवरीनारायण मंदिर प्रवेश द्वार 
परिधि , प्रतिमा सबकी इच्छा हुई कि आए हैं तो मंदिर दर्शन करके ही जाएं । इसकी दूरी का अगर मोटे तौर पर छत्तीसगढ़ के अलग अलग जगहों से आकलन करें तो यह बिलासपुर से 64 कि. मी., राजधानी रायपुर से बलौदाबाजार होते हुए 120 कि. मी., जांजगीर  जिला मुख्यालय से 45 कि. मी.कोरबा जिला मुख्यालय से 110 कि. मी. और रायगढ़ जिला मुख्यालय से सारंगढ़ होते हुए  110 कि. मी. की दूरी पर स्थित है।
मंदिर परिसर में परिधि और प्रतिमा 
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक स्कंद पुराण में इस पवित्र स्थल को  श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। वहां के स्थानीय लोगों के माध्यम से हमें जो जानकारी मिली उसके मुताबिक़ हर युग में इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है। भगवान श्रीराम और भगवान लक्ष्मण जी ने शबरी के जूठे बेर यहीं उनके आश्रम में आकर ही खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान किया था ।  इस तरह इस घनघोर दंडकारण्य वन में आर्य संस्कृति का बीज भगवान राम के द्वारा ही बोया गया था । शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए "शबरी-नारायण" नामक यह नगर बसा है। भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। शायद इसलिए भी इसे "गुप्त तीर्थधाम" कहा गया है।
परिसर के भीतर का मंदिर 

याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र में इसका उल्लेख भी मिलता है। भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था। यहाँ के जनमानस में प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं। प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द रहा है।आज भी वहां की संस्कृति में ये सारी बातें घुली मिली हैं जो वहां के लोगों से बातचीत करते समय महसूस होती हैं। यहां शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति रही है। छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है। यह क्षेत्र अब शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर  जिला मुख्यालय से 45 किमी की दूरी पर मैकल पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य शिवनाथ, जोंक और  महानदी  के संगम पर स्थित शिवरीनारायण को तीर्थ नगरी प्रयाग जैसी मान्यता मिली हुई है। यहाँ पर छत्तीसगढ़  का प्रसिद्ध शिवरीनारायण मंदिर है। ऐसी लोक मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम  को यहीं पर शबरी  ने बेर खिलाये थे अत: शबरी  के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर मे इसका नाम बिगड़ कर शिवरीनारायण हो गया। यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना एक प्राचीन मंदिर भी है। पर्यटन की दृष्टि  से यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां मंदिरों का एक अत्यंत प्राचीन समूह है। दुधिया रंग के इन श्वेत मंदिरों के समूह की सुन्दरता देखते हुए बनती है।

मंदिर परिसर के भीतर मैं और प्रतिमा 

मतंग ऋषि की शिष्या शबरी की कहानी

शबरी को लेकर एक कथा यह भी है कि उसके पिता राजा शबर उसकी शादी छोटी उम्र में ही करा देना चाहते थे पर शबरी विष्णु भक्त थी और शादी करना नहीं चाहती थी।एक दिन वह इसलिए घर से भाग गयी और मतंग ऋषि के आश्रम पहुँच गयी। निश्चित रूप से यह आश्रम इसी क्षेत्र में रहा होगा तब वह वहां पहुँच सकी । मतंग ऋषि एक दयालु और ज्ञानी ऋषि थे।  शबरी की भक्ति और सेवा भाव  देखकर उन्होंने उसे अपने आश्रम में पितृतुल्य संरक्षण दिया। उन्होंने उसे गुरु ज्ञान दिया  कि एक दिन राम इसी आश्रम में तुमसे मिलने आएँगे । कालांतर में मतंग मुनि ने अपना देह त्याग कर दिया पर उनके दिए गुरु ज्ञान पर पूर्ण विश्वास करते हुए शबरी आजीवन राम की प्रतीक्षा में उनकी बाट जोहती रही । राम आएँगे इस विश्वास में आश्रम के सामने बनी राह पर  फूल बिछाना उसका नित्य कर्म था। यह क्षेत्र उस विश्वास का भी प्रतिनिधित्व करता है । एक दिन राम को शबरी के लिए आना ही पड़ा और राम ने शबरी माता को नवधा भक्ति का ज्ञान भी दिया । राम सीता के वियोग में उनदिनों वन वन भटक रहे थे तब शबरी ने ही उन्हें पम्पा नदी तक जाने की बात कही थी। आगे चलकर पंपा नदी सीता की खोज का प्रस्थान बिंदु साबित हुआ।  यह कथा भी यहाँ से जुड़ी है । छत्तीसगढ़ में शबर जाति के लोग आज भी शबरी की आराधना करते हैं।


शिवरीनारायण मंदिर दर्शन 

इस मंदिर को बडा मंदिर एवं नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। उक्त मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला का बेजोड नमूना है। लोक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा शबर ने करवाया था। यहाँ ९वीं शताब्दी से लेकर १२वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियो की स्थापना है। मंदिर की परिधि १३६ फीट तथा ऊंचाई ७२ फीट है जिसके ऊपर १० फीट के स्वर्णीम कलश की स्थापना है शायद इसीलिये इस मंदिर का नाम बडा मंदिर भी पड़ गया । सम्पूर्ण मंदिर अत्यन्त सुंदर तथा अलंकृत है जिनको चारों  ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। यहाँ के मंदिर अत्यंत भव्य होने के साथ साथ मनोहारी भी हैं ।

मनोकामना वृक्ष के नीचे विश्राम

मंदिर परिसर में कई छोटे छोटे मंदिर हैं जिनकी परिक्रमा करते हुए आनंद की अनुभूति होने लगती है। परिसर के भीतर ही एक जगह मनोकामना वृक्ष भी है जहाँ हमने बैठकर थोड़ा समय बिताया। लोगों ने बताया कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर जो भी मनोकामना की जाती है उसे भगवान राम पूरा करते हैं।

मनोकामना वृक्ष के नीचे विश्राम 
शबरी माता का त्याग और ईश्वर के प्रति उसके विश्वास की कथा हमने बचपन से सुन रखी थी । उस कथा को यहाँ आकर महसूस करना एक नया अनुभव रहा।


( रमेश शर्मा , शिवरीनारायण से लौटकर)


 

 

 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर लिखा है आपने। इस तरह की महत्वपूर्ण , छोटी-छोटी जगहों के बारे में भी ब्लॉग के माध्यम से लोगों को बताया जाना चाहिए ।अच्छा संस्मरण है।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

रायगढ़ के राजाओं का शिकारगाह उर्फ रानी महल raigarh ke rajaon ka shikargah urf ranimahal.

  रायगढ़ के चक्रधरनगर से लेकर बोईरदादर तक का समूचा इलाका आज से पचहत्तर अस्सी साल पहले घने जंगलों वाला इलाका था । इन दोनों इलाकों के मध्य रजवाड़े के समय कई तालाब हुआ करते थे । अमरैयां , बाग़ बगीचों की प्राकृतिक संपदा से दूर दूर तक समूचा इलाका समृद्ध था । घने जंगलों की वजह से पशु पक्षी और जंगली जानवरों की अधिकता भी उन दिनों की एक ख़ास विशेषता थी ।  आज रानी महल के नाम से जाना जाने वाला जीर्ण-शीर्ण भवन, जिसकी चर्चा आगे मैं करने जा रहा हूँ , वर्तमान में वह शासकीय कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के निकट श्रीकुंज से इंदिरा विहार की ओर जाने वाली सड़क के किनारे एक मोड़ पर मौजूद है । यह भवन वर्तमान में जहाँ पर स्थित है वह समूचा क्षेत्र अब कृषि विज्ञान अनुसन्धान केंद्र के अधीन है । उसके आसपास कृषि महाविद्यालय और उससे सम्बद्ध बालिका हॉस्टल तथा बालक हॉस्टल भी स्थित हैं । यह समूचा इलाका एकदम हरा भरा है क्योंकि यहाँ कृषि अनुसंधान केंद्र के माध्यम से लगभग सौ एकड़ में धान एवं अन्य फसलों की खेती होती है।यहां के पुराने वासिंदे बताते हैं कि रानी महल वाला यह इलाका सत्तर अस्सी साल पहले एकदम घनघोर जंगल हुआ करता था ...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

गंगाधर मेहेर : ओड़िया के लीजेंड कवि gangadhar meher : odiya ke legend kavi

हम हिन्दी में पढ़ने लिखने वाले ज्यादातर लोग हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के कवियों, रचनाकारों को बहुत कम जानते हैं या यह कहूँ कि बिलकुल नहीं जानते तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।  इसका एहसास मुझे तब हुआ जब ओड़िसा राज्य के संबलपुर शहर में स्थित गंगाधर मेहेर विश्वविद्यालय में मुझे एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर वक्ता वहां जाकर बोलने का अवसर मिला ।  2 और 3  मार्च 2019 को आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में शामिल होने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जिस शख्श के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नामकरण हुआ है वे ओड़िसा राज्य के ओड़िया भाषा के एक बहुत बड़े कवि हुए हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से  ओड़िसा राज्य को देश के नक़्शे में थोड़ा और उभारा है। वहां जाते ही इस कवि को जानने समझने की आतुरता मेरे भीतर बहुत सघन होने लगी।वहां जाकर यूनिवर्सिटी के अध्यापकों से , वहां के विद्यार्थियों से गंगाधर मेहेर जैसे बड़े कवि की कविताओं और उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी जुटाना मेरे लिए बहुत जिज्ञासा और दिलचस्पी का बिषय रहा है। आज ओड़िया भाषा के इस लीजेंड कवि पर अपनी बात रखते हुए मुझे जो खु...

तीन महत्वपूर्ण कथाकार राजेन्द्र लहरिया, मनीष वैद्य, हरि भटनागर की कहानियाँ ( कथा संग्रह सताईस कहानियाँ से, संपादक-शंकर)

  ■राजेन्द्र लहरिया की कहानी : "गंगा राम का देश कहाँ है" --–-----------------------------  हाल ही में किताब घर प्रकाशन से प्रकाशित महत्वपूर्ण कथा संग्रह 'सत्ताईस कहानियाँ' आज पढ़ रहा था । कहानीकार राजेंद्र लहरिया की कहानी 'गंगा राम का देश कहाँ है' इसी संग्रह में है। सत्ता तंत्र, समाज और जीवन की परिस्थितियाँ किस जगह जा पहुंची हैं इस पर सोचने वाले अब कम लोग(जिसमें अधिकांश लेखक भी हैं) बचे रह गए हैं। रेल की यात्रा कर रहे सर्वहारा समाज से आने वाले गंगा राम के बहाने रेल यात्रा की जिस विकट स्थितियों का जिक्र इस कहानी में आता है उस पर सोचना लोगों ने लगभग अब छोड़ ही दिया है। आम आदमी की यात्रा के लिए भारतीय रेल एकमात्र सहारा रही है। उस रेल में आज स्थिति यह बन पड़ी है कि जहां एसी कोच की यात्रा भी अब सुगम नहीं रही ऐसे में यह विचारणीय है कि जनरल डिब्बे (स्लीपर नहीं) में यात्रा करने वाले गंगाराम जैसे यात्रियों की हालत क्या होती होगी जहाँ जाकर बैठने की तो छोडिये खड़े होकर सांस लेने की भी जगह बची नहीं रह गयी है। साधन संपन्न लोगों ने तो रेल छोड़कर अपनी निजी गाड़ियों के जरिये सड़क मा...

समकालीन कहानी के केंद्र में इस बार: नर्मदेश्वर की कहानी : चौथा आदमी। सारा रॉय की कहानी परिणय । विनीता परमार की कहानी : तलछट की बेटियां

यह चौथा आदमी कौन है? ■नर्मदेश्वर की कहानी : चौथा आदमी नर्मदेश्वर की एक कहानी "चौथा आदमी" परिकथा के जनवरी-फरवरी 2020 अंक में आई थी ।आज उसे दोबारा पढ़ने का अवसर हाथ लगा। नर्मदेश्वर, शंकर और अभय के साथ के कथाकार हैं जो सन 80 के बाद की पीढ़ी के प्रतिभाशाली कथाकारों में गिने जाते हैं। दरअसल इस कहानी में यह चौथा आदमी कौन है? इस आदमी के प्रति पढ़े लिखे शहरी मध्यवर्ग के मन में किस प्रकार की धारणाएं हैं? किस प्रकार यह आदमी इस वर्ग के शोषण का शिकार जाने अनजाने होता है? किस तरह यह चौथा आदमी किसी किये गए उपकार के प्रति हृदय से कृतज्ञ होता है ? समय आने पर किस तरह यह चौथा आदमी अपनी उपयोगिता साबित करता है ? उसकी भीतरी दुनियाँ कितनी सरल और सहज होती है ? यह दुनियाँ के लिए कितना उपयोगी है ? इन सारे सवालों को यह छोटी सी कहानी अपनी पूरी संवेदना और सम्प्रेषणीयता के साथ सामने रखती है। कहानी बहुत छोटी है,जिसमें जंगल की यात्रा और पिकनिक का वर्णन है । इस यात्रा में तीन सहयात्री हैं, दो वरिष्ठ वकील और उनका जूनियर विनोद ।यात्रा के दौरान जंगल के भीतर चौथा आदमी कन्हैया यादव उन्हें मिलता है जो वर्मा वकील स...

रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी : हम दोनों

स्व.रघुनंदन त्रिवेदी मेरे प्रिय कथाकाराें में से एक रहे हैं ! आज 17 जनवरी उनका जन्म दिवस है।  आम जन जीवन की व्यथा और मन की बारिकियाें काे अपनी कहानियाें में मौलिक ढंग से व्यक्त करने में वे सिद्धहस्त थे। कम उम्र में उनका जाना हिंदी के पाठकों को अखरता है। बहुत पहले कथादेश में उनकी काेई कहानी पढी थी जिसकी धुंधली सी याद मन में है ! आदमी काे अपनी चीजाें से ज्यादा दूसराें की चीजें  अधिक पसंद आती हैं और आदमी का मन खिन्न हाेते रहता है ! आदमी घर बनाता है पर उसे दूसराें के घर अधिक पसंद आते हैं और अपने घर में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! आदमी शादी करता है पर किसी खूबसूरत औरत काे देखकर अपनी पत्नी में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! इस तरह की अनेक मानवीय मन की कमजाेरियाें काे बेहद संजीदा ढंग से कहानीकार पाठकाें के सामने प्रस्तुत करते हैं ! मनुष्य अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं रहता, उसे हमेशा लगता है कि दुनियां थाेडी इधर से उधर हाेती ताे कितना अच्छा हाेता !आए दिन लाेग ऐसी मन: स्थितियाें से गुजर रहे हैं , कहानियां भी लाेगाें काे राह दिखाने का काम करती हैं अगर ठीक ढंग से उन पर हम अपना ध्यान केन्...

गजेंद्र रावत की कहानी : उड़न छू

गजेंद्र रावत की कहानी उड़न छू कोरोना काल के उस दहशतजदा माहौल को फिर से आंखों के सामने खींच लाती है जिसे अमूमन हम सभी अपने जीवन में घटित होते देखना नहीं चाहते। अम्मा-रुक्की का जीवन जिसमें एक दंपत्ति के सर्वहारा जीवन के बिंदास लम्हों के साथ साथ एक दहशतजदा संघर्ष भी है वह इस कहानी में दिखाई देता है। कोरोना काल में आम लोगों की पुलिस से लुका छिपी इसलिए भर नहीं होती थी कि वह मार पीट करती थी, बल्कि इसलिए भी होती थी कि वह जेब पर डाका डालने पर भी ऊतारू हो जाती थी। श्रमिक वर्ग में एक तो काम के अभाव में पैसों की तंगी , ऊपर से कहीं मेहनत से दो पैसे किसी तरह मिल जाएं तो रास्ते में पुलिस से उन पैसों को बचाकर घर तक ले आना कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी। उस चुनौती को अम्मा ने कैसे स्वीकारा, कैसे जूतों में छिपाकर दो हजार रुपये का नोट उसका बच गया , कैसे मौका देखकर वह उड़न छू होकर घर पहुँच गया, सारी कथाएं यहां समाहित हैं।कहानी में एक लय भी है और पठनीयता भी।कहानी का अंत मन में बहुत उहापोह और कौतूहल पैदा करता है। बहरहाल पूरी कहानी का आनंद तो कहानी को पढ़कर ही लिया जा सकता है।       ...

जीवन प्रबंधन को जानना भी क्यों जरूरी है

            जीवन प्रबंधन से जुड़ी सात बातें