सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

महामाया मंदिर रतनपुर की यात्रा

महामाया मंदिर रतनपुर की यात्रा का संस्मरण आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ। इस मंदिर को लेकर लोगों के बीच काफी चर्चाएँ मैंने सुनी थीं सो यहाँ जाना हमने तय किया। महामाया मंदिर भारत के छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित देवी दुर्गा और महालक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है जो कि भारत के 52 शक्ति पीठों में से एक मानी जाती है । रतनपुर एक छोटा सा शहर है जहाँ मंदिरों और तालाबों की अधिकता है । हम जब छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से सड़क मार्ग से निकले तो हमने चेक किया कि इसकी दूरी बिलासपुर जिला मुख्यालय से लगभग 26 किमी है। बिलासपुर से वहां तक पहुँचने में हमें आधे घंटे का सफ़र तय करना पड़ा। बीच में रूककर कहीं चाय वगेरह भी लिया जा सकता है क्योंकि रास्ते भर आपको जगह जगह चाय ठेले दिख पड़ेंगे।

महामाया मंदिर रतनपुर 

जानकारी के मुताबिक देवी महामाया, देवी दुर्गा का एक रूप है जिसे कोसलेश्वरी देवी के रूप में भी जाना जाता है, जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य) की अधिष्ठात्री देवी कही जाती हैं। इतिहास के मुताबिक़ यह मंदिर रतनपुर के कलचुरी शासन काल के दौरान  12वीं-13वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और देवी महामाया को समर्पित होने की वजह से इसे महामाया मंदिर के रूप में आज जाना जाता है ।

मनौती स्थल महामाया मंदिर परिसर रतनपुर 

इस मंदिर का एक लंबा चौड़ा परिसर है। परिसर के निकट तालाब हैं। ट्रस्ट का एक भव्य कार्यालय भी है जहाँ से जरूरी जानकारियाँ ली जा सकती हैं । परिसर के भीतर  शिव और  हनुमान जी के मंदिर हैं।इसके अलावा फैले हुए परिसर में दुकानें हैं और खाने पीने की चीजों से भरे ठेले खोमचे भी यहाँ आपको दिखेंगे । मंदिर परिसर में एक मन्नत मांगने का क्षेत्र भी है जहाँ धागा बांधा जाता है। चूंकि यह एक सिद्ध पीठ है इसलिए लोक मान्यता अनुसार यहां धागा बांधने पर मनौतियाँ पूरी होती हैं। परंपरागत रूप से देवी महामाया को रतनपुर राज्य की कुलदेवी के रूप में मान्यता मिली हुई है। महामाया मंदिर जहाँ कि देवी महामाया विराजी हुई हैं,नागर शैली की वास्तुकला से निर्मित है जो दिखने में काफी भव्य और सुन्दर नज़र आता है ।  परिसर के भीतर, कांतिदेवल का मंदिर भी है, जो समूह का सबसे पुराना मंदिर है और कहा जाता है कि इसे 1039 में संतोष गिरि नामक एक तपस्वी द्वारा बनवाया गया था और बाद में 15वीं शताब्दी में कलचुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय द्वारा इसका विस्तार किया गया। इसके चार द्वार हैं और उनमें सुंदर नक्काशियाँ हैं। इसके गर्भगृह और मंडप एक आकर्षक प्रांगण के साथ किलेबंद हैं, जिसे 18वीं शताब्दी के अंत में मराठा काल में बनाया गया था।

कुछ ही दूरी पर 11वीं शताब्दी के अति प्राचीन कड़ईडोल शिव मंदिर के अवशेष हैं, जो खंडहर हो चुके किले की एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसे कलचुरी शासकों द्वारा निर्मित किया गया था, जो शिव और शक्ति के अनुयायी थे। 

इसी महामाया मंदिर परिसर में पीछे एक पार्क भी है वहां जाकर हमने खूब आनंद लिया। पार्क में स्थित बाटल पाम के ऊँचे ऊँचे पेड़ कतारों में लगे हैं जिनके तनों को विभिन रंगों से रंगा गया है जो बहुत सुन्दर लगते हैं । इस तरह इस परिसर में आकर हमने अपना शाम का समय बहुत आनंद पूर्वक बिताया।

मंदिर परिसर में पीछे स्थित पार्क 

यहाँ आने पर बिलासपुर वापसी के पूर्व रतनपुर भ्रमण के दौरान आगे जाकर आप निम्न दर्शनीय स्थलों का भी जरूर आनंद लें जैसा कि हमने लिया -

प्राचीन किला – जैसे ही आप महामाया मंदिर से निकलेंगेआपको प्राचीन किला मिलेगा। इसे गज महल व हाथी महल कहा जाता हैं। यह किला भारतीय पुरात्तव विभाग द्वारा सरंक्षित किया गया है। कलचुरी राजा द्वारा बनवाया गए  इस किले को देश-विदेश से देखने पर्यटक आते रहते हैं। इस किले में बहुत सारी  मूर्तियां बनी हुई हैंजिसे देखकर आपको आश्चर्य होगा जैसा कि उन्हें देखते हुए हमें भी हुआ था ।

महामाया मंदिर परिसर 

    

खूँटाघाट जलाशय :

रतनपुर से आगे सिर्फ 8 Km की दूरी पर खूँटाघाट जलाशय भी है, वहां भी एक बार अवश्य जाना चाहिए ।यह एक बहुत सुन्दर जलाशय है जहाँ पर बोटिंग भी कराई जाती हैं। हमने खूँटाघाट पहुंचकर इस जलाशय के सौन्दर्य का भी आनंद लिया।


रतनपुर से बिलासपुर लौटते समय हमने निम्न मंदिरों का दर्शन किया । आप भी इन मंदिरों का दर्शन बिलासपुर लौटते समय कर सकते हैं -

कालभैरव मंदिर : 

जनश्रुति के अनुसार यहाँ आए श्रद्धालुओं को अपनी तीर्थयात्रा पूरी करने के लिए कालभैरव के मंदिर जाने की आवश्यकता होती है। यह कालभैरव मंदिर, महामाया मंदिर पहुँचने वाले रास्ते पर बीच में ही पड़ता है जो इस मंदिर में पहुँचने के पूर्व 3.5Km की दूरी पर स्थित है।  
लौटते समय जब आप भैरव बाबा मंदिर परिसर में जाएँगे तब वहां बहुत सारे छोटे-बड़े मंदिर पाएंगे  और यहाँ पर  दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर भी स्थित है। मंदिर परिसर के अंदर बहुत सुन्दर एक छोटा सा तालाब भी है जिसमें आप मछलियों को दाना डाल सकते हैं।इसी तालाब के सामने छोटा सा बगीचा भी है जहाँ हम लोग कुछ देर टहलते रहे। वापस बिलासपुर लौटते समय सिद्धि बिनायक गणेश मंदिर भी पड़ता है जो भैरव बाबा मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है । लौटते समय हम यहाँ भी गए । मंदिर के अंदर सभी प्रकार के गणेश जी की मूर्तियां आपको देखने को मिल जाएंगी । उन सब की तस्वीर भी वहां मंदिर परिसर के अंदर लगी हुई है। 

जैसे ही आप सिद्धि विनायक गणेश जी के मंदिर से निकलेंगे, रास्ते में आपको विशाल रूप में खड़े हनुमान जी की प्रतिमा दिखाई देगी। जो रतनपुर से महज 4 Km की दुरी पर स्थित है। जिसके अंदर पहुंचने से आपको सर्वप्रथम लखेश्वर महादेव का मंदिर दिखाई देगा। हम लोग यहाँ भी गए और मंदिर परिसर के दर्शन का आनंद लिया।

यूं तो धार्मिक स्थलों की यात्राएं परंपरागत यात्राएं ही होती हैं पर उसे अगर पर्यटन के हिसाब से लिया जाए तो उसका आनंद अलग होता है। नहीं-नहीं जगहों में जाने का अपना एक अलग आनंद होता है, इसलिए अगर आप रतनपुर जाएं तो उसे पर्यटन के हिसाब से लेते हुए ही जाएं तब उसका अलग आनंद आएगा। 


( रमेश शर्मा रतन पुर से लौटकर )



टिप्पणियाँ

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

डॉ. चंद्रिका चौधरी की कहानी : घास की ज़मीन

  डॉ. चंद्रिका चौधरी हमारे छत्तीसगढ़ से हैं और बतौर सहायक प्राध्यापक सरायपाली छत्तीसगढ़ के एक शासकीय कॉलेज में हिंदी बिषय का अध्यापन करती हैं । कहानियों के पठन-पाठन में उनकी गहरी अभिरुचि है। खुशी की बात यह है कि उन्होंने कहानी लिखने की शुरुआत भी की है । हाल में उनकी एक कहानी ' घास की ज़मीन ' साहित्य अमृत के जुलाई 2023 अंक में प्रकाशित हुई है।उनकी कुछ और कहानियाँ प्रकाशन की कतार में हैं। उनकी लिखी इस शुरुआती कहानी के कई संवाद बहुत ह्रदयस्पर्शी हैं । चाहे वह घास और जमीन के बीच रिश्तों के अंतर्संबंध के असंतुलन को लेकर हो , चाहे बसंत की विदाई के उपरांत विरह या दुःख में पेड़ों से पत्तों के पीले होकर झड़ जाने की बात हो , ये सभी संवाद एक स्त्री के परिवार और समाज के बीच रिश्तों के असंतुलन को ठीक ठीक ढंग से व्याख्यायित करते हैं। सवालों को लेकर एक स्त्री की चुप्पी ही जब उसकी भाषा बन जाती है तब सवालों के जवाब अपने आप उस चुप्पी में ध्वनित होने लगते हैं। इस कहानी में एक स्त्री की पीड़ा अव्यक्त रह जाते हुए भी पाठकों के सामने व्यक्त होने जैसी लगती है और यही इस कहानी की खूबी है। घटनाओ...

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहान...

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ

जीवन के उबड़ खाबड़ रास्तों की पहचान करातीं कहानियाँ ■सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह चलो फिर से शुरू करें ■रमेश शर्मा  -------------------------------------- सुधा ओम ढींगरा का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘चलो फिर से शुरू करें’ पाठकों तक पहुंचने के बाद चर्चा में है। संग्रह की कहानियाँ भारतीय अप्रवासी जीवन को जिस संवेदना और प्रतिबद्धता के साथ अभिव्यक्त करती हैं वह यहां उल्लेखनीय है। संग्रह की कहानियाँ अप्रवासी भारतीय जीवन के स्थूल और सूक्ष्म परिवेश को मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में बड़ी तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि उनके दृश्य आंखों के सामने बनते हुए दिखाई पड़ते हैं। हमें यहां रहकर लगता है कि विदेशों में ,  खासकर अमेरिका जैसे विकसित देशों में अप्रवासी भारतीय परिवार बहुत खुश और सुखी होते हैं,  पर सुधा जी अपनी कहानियों में इस धारणा को तोड़ती हुई नजर आती हैं। वास्तव में दुनिया के किसी भी कोने में जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन में सुख-दुख और संघर्ष का होना अवश्य संभावित है । वे अपनी कहानियों के माध्यम से वहां के जीवन की सच्चाइयों से हमें रूबरू करवात...

चक्रधर नगर स्कूल में जननायक रामकुमार जन्म शताब्दी वर्ष पर हुए शैक्षिक प्रतियोगिताओं के आयोजन

चक्रधर नगर स्कूल में जननायक रामकुमार जन्म शताब्दी वर्ष पर हुए शैक्षिक प्रतियोगिताओं के आयोजन ।  विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चे हुए पुरस्कृत रायगढ़। 16 दिसम्बर। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व विधायक रामकुमार की स्मृति में उनके जन्म शताब्दी वर्ष पर शहर के अनेक संस्थानों में आयोजन हो रहे हैं। इसी कड़ी में जन्म शताब्दी आयोजन समिति के सहयोग से स्वामी आत्मानन्द शासकीय उ मा वि चक्रधरनगर में भी बच्चों के लिए स्लोगन,निबंध एवं भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। इन प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चों को पुरस्कृत करने के लिए सोमवार 16 दिसम्बर को स्कूल में एक गरिमामय आयोजन सम्पन्न हुआ ।  मुख्य अतिथि नगर निगम पार्षद पंकज कंकरवाल, विशिष्ट अतिथि नगर निगम पार्षद कौशलेश मिश्र , वरिष्ठ रंगकर्मी अनुपम पाल एवं पूर्व विधायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकुमार के परिवार से सुनील कुमार अग्रवाल की उपस्थिति में बच्चों ने अपनी स्पीच कला का बखूबी प्रदर्शन किया। स्लोगन प्रतियोगिता अंतर्गत कनिष्ठ वर्ग में शगुफ्ताह  प्रथम,नन्दिता मेहर द्वितीय एवं रितिका पाऊले तृतीय स्थान पर रहीं।क्षमा देवांगन को ...

दिव्या विजय की कहानी: महानगर में एक रात, सरिता कुमारी की कहानी ज़मीर से गुजरने का अनुभव

■विश्वसनीयता का महासंकट और शक तथा संदेह में घिरा जीवन  कथादेश नवम्बर 2019 में प्रकाशित दिव्या विजय की एक कहानी है "महानगर में एक रात" । दिव्या विजय की इस कहानी पर संपादकीय में सुभाष पंत जी ने कुछ बातें कही हैं । वे लिखते हैं - "महानगर में एक रात इतनी आतंकित करने वाली कहानी है कि कहानी पढ़ लेने के बाद भी उसका आतंक आत्मा में अमिट स्याही से लिखा रह जाता है।  यह कहानी सोचने के लिए बाध्य करती है कि हम कैसे सभ्य संसार का निर्माण कर रहे जिसमें आधी आबादी कितने संशय भय असुरक्षा और संत्रास में जीने के लिए विवश है । कहानी की नायिका अनन्या महानगर की रात में टैक्सी में अकेले यात्रा करते हुए बेहद डरी हुई है और इस दौरान एक्सीडेंट में वह बेहोश हो जाती है। होश में आने पर वह मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान है कि कहीं उसके साथ बेहोशी की अवस्था में कुछ गलत तो नहीं हो गया और अंत में जब वह अपनी चिंता अपने पति के साथ साझा करती है तो कहानी की एक और परत खुलती है और पुरुष मानसिकता के तार झनझनाने लगते हैं । जिस शक और संदेह से वह गुजरती रही अब उस शक और संदेह की गिरफ्त में उसका वह पति है जो उसे बहुत प्...