महामाया मंदिर रतनपुर की यात्रा का संस्मरण आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ। इस मंदिर को लेकर लोगों के बीच काफी चर्चाएँ मैंने सुनी थीं सो यहाँ जाना हमने तय किया। महामाया मंदिर भारत के छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित देवी दुर्गा और महालक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है जो कि भारत के 52 शक्ति पीठों में से एक मानी जाती है । रतनपुर एक छोटा सा शहर है जहाँ मंदिरों और तालाबों की अधिकता है । हम जब छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से सड़क मार्ग से निकले तो हमने चेक किया कि इसकी दूरी बिलासपुर जिला मुख्यालय से लगभग 26 किमी है। बिलासपुर से वहां तक पहुँचने में हमें आधे घंटे का सफ़र तय करना पड़ा। बीच में रूककर कहीं चाय वगेरह भी लिया जा सकता है क्योंकि रास्ते भर आपको जगह जगह चाय ठेले दिख पड़ेंगे।
महामाया मंदिर रतनपुर |
जानकारी के मुताबिक देवी महामाया, देवी दुर्गा का एक रूप है जिसे
कोसलेश्वरी देवी के रूप में भी जाना जाता है, जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र
(वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य) की अधिष्ठात्री देवी कही जाती हैं। इतिहास के
मुताबिक़ यह मंदिर रतनपुर के कलचुरी शासन काल के दौरान 12वीं-13वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और देवी महामाया को समर्पित होने की
वजह से इसे महामाया मंदिर के रूप में आज जाना जाता है ।
मनौती स्थल महामाया मंदिर परिसर रतनपुर |
इस मंदिर का एक लंबा
चौड़ा परिसर है। परिसर के निकट तालाब हैं। ट्रस्ट का एक भव्य कार्यालय भी है जहाँ
से जरूरी जानकारियाँ ली जा सकती हैं । परिसर के भीतर शिव और हनुमान जी
के मंदिर हैं।इसके अलावा फैले हुए परिसर में दुकानें हैं और खाने पीने की चीजों से
भरे ठेले खोमचे भी यहाँ आपको दिखेंगे । मंदिर परिसर में एक मन्नत मांगने का क्षेत्र
भी है जहाँ धागा बांधा जाता है। चूंकि यह एक सिद्ध पीठ है इसलिए लोक मान्यता अनुसार यहां धागा बांधने पर मनौतियाँ पूरी होती हैं। परंपरागत
रूप से देवी महामाया को रतनपुर राज्य की कुलदेवी के रूप में मान्यता मिली हुई है। महामाया
मंदिर जहाँ कि देवी महामाया विराजी हुई हैं,नागर शैली की वास्तुकला से निर्मित है
जो दिखने में काफी भव्य और सुन्दर नज़र आता है । परिसर के भीतर,
कांतिदेवल का मंदिर भी है, जो समूह का सबसे
पुराना मंदिर है और कहा जाता है कि इसे 1039 में संतोष गिरि नामक एक तपस्वी द्वारा
बनवाया गया था और बाद में 15वीं शताब्दी में कलचुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय द्वारा
इसका विस्तार किया गया। इसके चार द्वार हैं और उनमें सुंदर नक्काशियाँ हैं। इसके गर्भगृह और मंडप एक आकर्षक प्रांगण के साथ किलेबंद हैं,
जिसे 18वीं शताब्दी के अंत में मराठा काल में बनाया गया था।
कुछ ही दूरी पर 11वीं शताब्दी के अति प्राचीन कड़ईडोल शिव मंदिर के अवशेष हैं, जो खंडहर हो चुके किले की एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसे कलचुरी शासकों द्वारा निर्मित किया गया था, जो शिव और शक्ति के अनुयायी थे।
इसी महामाया मंदिर परिसर में पीछे एक पार्क भी है वहां जाकर हमने खूब आनंद लिया। पार्क में स्थित बाटल पाम के ऊँचे ऊँचे पेड़ कतारों में लगे हैं जिनके तनों को विभिन रंगों से रंगा गया है जो बहुत सुन्दर लगते हैं । इस तरह इस परिसर में आकर हमने अपना शाम का समय बहुत आनंद पूर्वक बिताया।
मंदिर परिसर में पीछे स्थित पार्क |
प्राचीन किला – जैसे ही आप महामाया मंदिर से निकलेंगे, आपको प्राचीन किला मिलेगा। इसे गज महल व हाथी महल कहा जाता हैं। यह किला भारतीय पुरात्तव विभाग द्वारा सरंक्षित किया गया है। कलचुरी राजा द्वारा बनवाया गए इस किले को देश-विदेश से देखने पर्यटक आते रहते हैं। इस किले में बहुत सारी मूर्तियां बनी हुई हैं, जिसे देखकर आपको आश्चर्य होगा जैसा कि उन्हें देखते हुए हमें भी हुआ था ।
महामाया मंदिर परिसर |
खूँटाघाट जलाशय :
रतनपुर से आगे सिर्फ 8 Km की दूरी पर खूँटाघाट जलाशय भी है, वहां भी एक बार अवश्य जाना चाहिए ।यह एक बहुत सुन्दर जलाशय है जहाँ पर बोटिंग भी कराई जाती हैं। हमने खूँटाघाट पहुंचकर इस जलाशय के सौन्दर्य का भी आनंद लिया।
रतनपुर से बिलासपुर लौटते समय हमने निम्न मंदिरों का दर्शन किया । आप भी इन मंदिरों का दर्शन बिलासपुर लौटते समय कर सकते हैं -
कालभैरव मंदिर :
जनश्रुति के अनुसार
यहाँ आए श्रद्धालुओं को अपनी तीर्थयात्रा पूरी करने के लिए कालभैरव के मंदिर जाने
की आवश्यकता होती है। यह कालभैरव मंदिर, महामाया मंदिर पहुँचने वाले रास्ते
पर बीच में ही पड़ता है जो इस मंदिर में पहुँचने के पूर्व 3.5Km की दूरी पर स्थित है।
लौटते समय जब आप भैरव बाबा मंदिर परिसर
में जाएँगे तब वहां बहुत सारे छोटे-बड़े मंदिर पाएंगे और यहाँ पर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर भी स्थित है। मंदिर
परिसर के अंदर बहुत सुन्दर एक छोटा सा तालाब भी है जिसमें आप मछलियों को दाना डाल
सकते हैं।इसी तालाब के सामने छोटा सा बगीचा भी है जहाँ हम लोग कुछ देर टहलते रहे। वापस बिलासपुर लौटते समय सिद्धि बिनायक गणेश मंदिर भी पड़ता है जो भैरव
बाबा मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है । लौटते समय हम यहाँ भी गए । मंदिर के अंदर
सभी प्रकार के गणेश जी की मूर्तियां आपको देखने को मिल जाएंगी । उन सब की तस्वीर भी
वहां मंदिर परिसर के अंदर लगी हुई है।
जैसे ही आप सिद्धि विनायक गणेश जी के मंदिर से निकलेंगे, रास्ते में आपको विशाल रूप में खड़े हनुमान जी की प्रतिमा दिखाई देगी। जो रतनपुर से महज 4 Km की दुरी पर स्थित है। जिसके अंदर पहुंचने से आपको सर्वप्रथम लखेश्वर महादेव का मंदिर दिखाई देगा। हम लोग यहाँ भी गए और मंदिर परिसर के दर्शन का आनंद लिया।
यूं तो धार्मिक स्थलों की यात्राएं परंपरागत यात्राएं ही होती हैं पर उसे अगर पर्यटन के हिसाब से लिया जाए तो उसका आनंद अलग होता है। नहीं-नहीं जगहों में जाने का अपना एक अलग आनंद होता है, इसलिए अगर आप रतनपुर जाएं तो उसे पर्यटन के हिसाब से लेते हुए ही जाएं तब उसका अलग आनंद आएगा।
( रमेश शर्मा रतन पुर से लौटकर )
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें