उनकी आत्महत्या की खबरें
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अखबार
पर
छोटी
जगहों को भी
नहीं
घेर पा रहीं हैं
उनकी
आत्महत्या की खबरें
कि
धरती पर
हरियाली
बिछाते हाथों को काटा जा रहा है
किस
तरह उनकी जड़ों से
मानों
धरती के अंत का समय निकट हो !
उनकी ओर उठती नजरों को बाजार ने ढंक लिया है ऐसे
कि
उनकी तरफ जाते रास्ते सभी
धीरे
धीरे हो रहे हैं बंद !
गायब है
उनकी
हथेलियों से उठने वाली सुगंध भी
कि
हल की मूठ थामे
हाथों
की पहुंच से बाहर
हो
गया है यह समय कितना !
वे हाशिए तक धकेले जा चुके हैं
और
होकर हाशिए के बाहर अब
गिर
रहे हैं समय की खाईयों में
कि वहां से नहीं उठ रहा
उनकी
मृत्यु का कोई शोर
ख़बरों के भीतर
से !
धरती के खत्म होने का
संकेत
है यह जबकि
तरक्की
की नई-नई खबरें गढ़ी जा रहीं हैं रोज
एक नई दुनियां के अभ्युदय का शोर है जिनमें
जो
घेर रही हैं बड़ी जगहों को अखबार पर
और
अंधेरे समय की आखों से
बड़ी
ख़बरों की तरह पढ़ी जा रही हैं !!
पढ़ी जाए यह कथा भी
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पांव खाली हों
तो
यात्राएं कठिन होने लगती हैं
थककर ठहरे
हुए पानी की तरह
ठहर जाते हैं यात्री
जीवन की यात्रा में कई बार !
विज्ञान
कहता है
ऊर्जा
होती है
ठहरे
हुए पानी में
ढील
दो
तो
बहने लगता है तेज !
रूकावटें
भी तो भर देती हैं
ऊर्जा
से जीवन को कई बार
कई
बार फिसलन से बचाती हैं रूकावटें !
पांव
खाली हों
या
खाली हो जेबें
रुकावटों
के
डरावने
उदाहरण की तरह ही
रखे
गए दुनियाँ में अभी तक
ये
महज रूकावटें भर नहीं हैं
जीवन
के घर्षण बल हैं ये
जिसके
बिना सम्भव नहीं चलना
जीवन
की धरती पर
जीवन
का विज्ञान
अधूरा
है इन रूकावटों के बिना !
कभी
तो
जीवन
को
विज्ञान
की कसौटी पर कसा जाए
समझा
जाए एक नई दृष्टि के साथ
बदहाली
की नई-नई कथाओं वालों इस देश में
पढ़ी
जाए यह कथा भी
कि
खाली जेबें
और
खाली पांव लिए
अपने
गंतब्य तक
आज
भी
किस
तरह पहुंच रहे हैं लोग !
(लॉक डाउन के दरमियान तंगहाल मजदूरों की पैदल घर वापसी देखते हुए)
मछलियाँ
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यह रहस्य नहीं है
कि मछलियाँ उदास नहीं होतीं
बिना थके हर वक्त जागते हुए
अपनी आंखों की चमक
न जाने कैसे बचा लेती हैं मछलियाँ !
कुछ
लोग कहते हैं
छोटी-छोटी लड़कियों की तरह
होती
हैं मछलियाँ !
काश
किसी
रहस्य से परे
जीवन
की सच्चाईयों का सौंदर्य
हमारे
पास भी होता
तो
हमारी उदासी
आसमान
में छू मंतर हो जाती !
नदियों
का जल
चांद
की रोशनी
और
सूरज का ताप
जो
हमारे हिस्से आए
उनके
होते भी
हम
इतने उदास क्यों हैं?
ये
सवाल
धरती
पर ऊगे हर पेड़ पर
लदे
दिखते हैं
पके
फलों की तरह !
धरती
उदास है
इन
पके फलों के बोझ से
जैसे
धँस रही दिनोंदिन अपने ही भीतर !
खत्म
होने की गति में
फिर
भी
बची
हुई हैं बहुत सी चीजें
जैसे
मछलियों की चंचलता
उनके
न थकने का गीत !
बहुत
सी चीजें
मरती
नहीं कभी
दुनियाँ
को सिरजने के
औजार
की तरह
बची
रहती हैं धरती के किसी कोने में !
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आकाश के एक छोटे हिस्से को घेरकर
छतरियों की तरह फैला कबरा पहाड़
दिखता है दूर से हमें
जैसे आकाश के बीच उग आया हो
कोई दूसरा आकाश
हमारी धरती के ऊपर
जिन्होंने फेरा था उसकी पीठ पर हाथ
और हजारों वर्ष पूर्व अपनी कलाओं से
दिया था मनुष्य होने का सबूत
कोई मोल उनका नहीं रहा अब जैसे
मानों लौट आया हो कोई बर्बर युग फिर से
सभ्यताओं का संहार करने के लिए !
देखते हुए उस तरफ
लौट लौट आती हैं नजरें
उसकी मटमैली पीठ से टकराकर
और ले जाती हैं हमें
इतिहास के घोड़े पर बिठा
रीते हुए समय के पोखरों में
जहां हमारे पूर्वजों के अवशेष
दम तोड़ रहे हैं जल बिन मछली जैसे
सभ्यता के उदास पत्थरों पर !
देखकर अपनी ओर आते
वह कबरा पहाड़ इस तरह देखता है हमें
जैसे चाहता हो बातें करना
पर अटक गया हो
बीते हुए समय का कोई कालखंड
उसकी शिराओं में
गिनते हुए रिश्तों की धड़कनों को !
वह बिना कुछ कहे कह लेता है इतना कुछ
कि उतरकर इतिहास के घोड़े से
हमारे समय के भीतर लौटते हैं जब हम
तो इस तरह दिखता है
उसका झुर्रियों भरा चेहरा हमें
जैसे आशीष में उठ गए हों पूर्वजों के हाथ
और उसके भीतर अब भी चल रही हों
पूर्वजों की सासें
जिसे ठीक ठीक देखते और सुनते हुए भी
हम नहीं देख पा रहे हैं
और नहीं सुन पा रहे हैं
मानो इस बहरे समय ने
पूंजी की काली ब्रश से
सभ्यता पर चढ़ाकर अंधेरे का रंग
हमें अंधा और बहरा कर दिया है !
●रायगढ़ के निकट स्थित प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्रों से समृद्ध छत्तीसगढ़ की प्रमुख पुरातात्विक धरोहरों में से एक कबरा पहाड़ जो अब नष्ट होने के कगार पर है।
सभी कविताएं "वे खोज रहे थे अपने हिस्से का प्रेम" कविता संग्रह से
संपर्क : 92 श्रीकुंज , बोईरदादर, रायगढ़ छत्तीसगढ़ पिन 496001
मो. 7722975017
वैचारिकता के सवाल पर कविताएं खरी उतरती हैं। आज ऐसे ही जन सरोकार वाली कविताओं की जरूरत है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बन्धु
हटाएंसमसमायिक ज्वलंत प्रश्नों एवं ऐतिहासिक महत्व के शैलचित्रों पर लिखी गई बेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बन्धु
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